पिछले कुछ दिनों से चल रहे हिन्दू-मुस्लिम कार्ड को एक दिन के लिए टीवी चैनलों ने आराम दिया और एग्जिट पोल्स ने स्टुडियोज का पारा चढ़ाया. हालांकि एग्जिट पोल की उतनी जरूरत थी नहीं क्योंकि चैनलों की खबरों और बहसों से वैसे ही पता चल रहा था कि कौन किसकी सरकार बनवाएगा. सोशल मीडिया के इस जमाने में वैसे भी मतदाता से ज्यादा मीडिया का रूख मायने रखता है. फिर भी टेलीविजन पर चल रही बहसों के पोस्टमार्टम में हम एक नजर दो दिनों की डिबेट्स पर डाल ही लेते हैं.
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6 दिसंबर को आजतक के दंगल में बात हो रही थी बुलंदशहर में आरोपियों पर हुई एफआईआर की. वीएचपी के प्रवक्ता विजय शंकर तिवारी ने तर्क दिया कि हर घटना के पीछे सबको बस बजरंगी दल और वीएचपी के कार्यकर्ता ही दिखते हैं. बाकी संगठनों पर तो उंगली उठाने की हिम्मत किसी की होती नहीं है. इसके बाद एंकर रोहित सरदाना ने कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी से पूछा कि यदि आरोपी का नाम कुंदन है तो क्या वो वीएचपी या बजरंगी दल का ही होगा. फिर तो हर हिन्दू और आप भी वीएचपी के हैं. इसके बाद उस दिन के आरोपियों को आतंकवादी घोषित करने के लिए एंकर समेत सभी सब जुट पड़े. आरोपियों की गिरफ्तारी न हो पाने के पीछे बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने बहुत बिढ़या तर्क दिया कि 100 आरोपी बच जाएं लेकिन 1 भी बेगुनाह को जेल नहीं जाने देंगे इसलिए हम आरोपी को पकड़ने में जल्दबाजी नहीं करेंगे. इससे पता चल गया कि योगी सरकार अपराधियों के प्रति कितनी गंभीर है.
उसी रात जी न्यूज के डेली न्यूज एंड एनॉलिसिस में सुधीर चौधरी कांग्रेस के खिलाफ सत्याग्रह को आगे बढ़ा रहे थे, जो वो पिछले 2 दिनों से नवजोत सिंह सिद्धू और कांग्रेस के खिलाफ चला रहे थे. इस दौरान उन्होंने नेताओं को एक शानदार सलाह दी कि निश्पक्ष होने की जरूरत सिर्फ मीडिया को नहीं बल्कि राजनेताओं को है. उन्होंने कई बार कहा कि इस सत्याग्रह में पूरा देश हमारे साथ है. अच्छी बात है कि सिद्धू की सभा में हुई पाकिस्तान जिंदाबाद की नारेबाजी की निंदा होनी ही चाहिए लेकिन ये पूरा मामला एकतरफा कांग्रेस के खिलाफ जाते दिखा. करीब 35 मिनट चले शो में जी न्यूज ने नवजोत सिद्धू के खिलाफ नाराजगी जताने वाले आम लोगों की ढेर सारी बाइट दिखाईं. इतना ही नहीं पाकिस्तान तक से उन लोगों की बाइट दिखाईं जो खुश थे कि भारत में एक राजनेता की सभा में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे. इसके बाद भाजपा के केन्द्र से लेकर राज्यों तक के मंत्रियों के विचार भी इस मुद्दे पर लिए गए. लेकिन कमाल की बात ये है कि जिस पार्टी के खिलाफ वो तीन दिन से सत्याग्रह चला रहे हैं उसके किसी भी नेता-प्रवक्ता से बात करना उन्होंने जरूरी नहीं समझा. खबर से जुड़े हर पक्ष से बात करने के पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांत को पूरा करना उन्हें शायद जरूरी नहीं लगा. अब ये जरूरी क्यों नहीं लगा, ये बताने वाली बात नहीं है. कांग्रेसी प्रवक्ता या नेताओं से इस मामले पर उनकी राय जानने की बजाय उन्होंने पिछली आधा दर्जन ऐसी क्लिपिंग दिखाने में जरूर काफी मेहनत की, जिनमें कांग्रेसी प्रवक्ता बहस छोड़कर चले गए थे.
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उसी दिन अंबानी के चैनल न्यूज 18 में मिशेल के खिलाफ आर-पार शो में बताया गया कि मिशेल के तीनों वकील कांग्रेस से जुड़े हैं. फिर भाजपा प्रवक्ता ने कांग्रेस के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगाई. एंकर के सीधे सवाल कि मिशेल किसके इशारे पर वकालत करने गया. इसके बदले कांग्रेस प्रवक्ता अभय दुबे ने बहुत बढि़या कविता सुनाई. हो सकता है कि चुनावी थकान ने उनकी मेमोरी पर असर डाला हो और वो भूल गए हों कि वो कवि सम्मेलन या प्रत्याशी की सभा में नहीं बल्कि चैनल के स्टुडियो में हैं.
7 दिसंबर तो सभी चैनलों में एग्जिट पोल के नाम रहा. जाहिर है, सभी चैनल ने अपने-अपने एजेंडे के मुताबिक नतीजे दिखाए. अब नतीजे देखने में व्यस्त लोगों के मन में सर्वे की सच्चाई को लेकर कितने सवाल आए, इस पर भी एक सर्वे होना चाहिए. क्योंकि किसी भी चैनल ने 5-10 हजार वोटरों से ज्यादा लोगों पर तो सर्वे किया नहीं है. इतनी संख्या के वोटर्स का सर्वे करने के लिए तो उन्हें अपने ऑफिस से बाहर कदम निकालने की भी जरूरत नहीं है. अब हर चैनल के स्टॉफ, स्ट्रिंगर्स और उस मीडिया ग्रुप की बाकी कंपनियों को मिला लें तो इतने लोग तो हो ही जाते होंगे. ऐसे में उल्टी गंगा बहने की संभवना भी बन जाती होगी कि पहले ए़जेंडे के मुताबिक नतीजे तय किए जाएं और फिर मनमाफिक नतीजे देने वाला सर्वे किया जाए.
बहरहाल, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो कह दिया है कि सबसे बड़ा सर्वेयर तो मैं ही हूं. मैं जनता के बीच रहता हूं और मुझे पता है कि जनता ने भाजपा को वोट दिया है. काश की ईवीएम बोल सकती, तो वो यही कहती कि भाई इतनी ठंड में मुझे परेशान करने की क्या जरूरत थी, इन्हीं सर्वज्ञानी लोगों से चुनावी नतीजे पूछ लेते!