सरकारी ऐलान के बाद सामने आने लगे अस्पतालों से ठगाए पीडि़त
भोपाल। उस अस्पताल का नाम शहर के कोविड अस्पतालों की सूची में शामिल नहीं। कुल जमा दो कमरे का एक टपरीनुमा अस्पताल। न डॉक्टरों की उपलब्धता और न ही संसाधनों की मौजूदगी। अस्पताल के रेट्स देखे जाएं तो उनका काम्पीटिशन सीधे बड़े और नामचीन अस्पतालों से। मजबूरी का फायदा उठाने में जुटे अस्पतालों के काले चि_े अब उजागर होने लगे हैं। कुछ पर कार्यवाही हो गई और बाकी कतार में हैं। गृहमंत्री द्वारा पुलिस के हाथों कमान सौंपने के बाद अब पीडि़तों की दौड़ थानों की तरफ लगने लगी है।
अशोका गार्डन 80 फीट रोड पर स्थित है आशा हॉस्पीटल। किसी मोहल्ला डिस्पेंसरी या बड़े क्लिनिक से ज्यादा इसका आकार नहीं है। एक मई को यहां सुंदर नगर निवासी अनीस खान को एडमिट किया गया था। कम आर्थिक व्यवस्थाओं के चलते इन्होंने इस छोटे अस्पताल की शरण ली थी। लेकिन बताया जाता है कि अस्पताल पहुंचते ही इलाज से पहले इन पर बिलों की बारिश होने लगी। महज ऑक्सीजन की उपलब्धता के नाम पर इनके हिस्से दो हिस्सों में 45 हजार के बिल पहुंच गए। अनीस के रिश्तेदार सईद खान का कहना है कि अस्पताल द्वारा न तो किसी तरह की दवाएं उपलब्ध कराईं और न ही किसी विशेषज्ञ डॉक्टर से उनका इलाज कराया गया। नतीजा यह है कि अस्पताल पहुंचने के दूसरे दिन अनीस की मौत हो गई। अस्पताल प्रशासन ने दिए गए बिल का भुगतान होने के बाद ही उन्हें घर ले जाने की इजाजत दी। सईद का कहना है कि इस मामले को अब कानूनी शरण लेने वाले हैं।
साढ़े 10 लाख की दवाएं, लेकिन क्या दिया उल्लेख नहीं
इधर राजधानी के नामवर कोविड अस्पतालों में शामिल नेशनल हॉस्पीटल में नसीम उद्दीन नामक व्यक्ति को 22 लाख रुपए से ज्यादा का बिल थमा दिए जाने का मामला भी चर्चाओं में है। अस्पताल प्रबंधन की अमानवीयता का यह आलम है कि बिल अदा न करने के हालात में परिजन को मृतक का शव देने से भी स्पष्ट इंकार कर दिया गया था। अस्पतालों की लूटमार का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि नसीम उद्दीन के 20 दिन के इलाज के लिए दवाओं के खर्च के रूप में नेशनल हॉस्पीटल ने 10 लाख 52 हजार 781 रुपए वसूल किए हैं। जबकि इस दौरान मरीज को क्या दवाएं दी गईं, इसका कोई उल्लेख उसकी फाईल में नहीं किया गया है। वसूली पर आए तो अस्पताल ने वेंटीलेटर 2 लाख, 38 हजार, 600 रुपए चार्ज किए गए। सर्वर क्रिटिकल लाइफ सेविंग सपोर्ट आर्गन के नाम पर मरीज से 7 लाख, 39 हजार, 200 रुपए की वसूली की गई है। इसके अलावा डॉक्टरों की फीस के नाम भी 35 हजार, 650 रुपए की वसूली की गई है।
शिकार पहले भी हो चुके
सूत्रों का कहना है कि नेशनल हॉस्पीटल में बिल वसूली के ऐवज में शव को रोक लिए जाने की प्रथा पुरानी है। इससे पहले इसी अस्पताल में प्रशासनिक अधिकारी डॉ. मसूद अख्तर भी इलाज के लिए पहुंचे थे। जिनकी इलाज के दौरान मौत हो गई। सूत्रों का कहना है कि अस्पताल प्रबंधन ने अपने बकाया बिल 18 लाख रुपए की वसूली के लिए अख्तर के शव को दो दिन तक रोक रखा था।
… तो राज खुलता ही नहीं
नेशनल हॉस्पीटल में बकाया बिल की रकम वसूलने के लिए शव को रोके जाने के बाद हंगामा शायद इतना बड़ा नहीं होता, जितना मामला प्रबंधन द्वारा थमाए गए 22 लाख रुपए से ज्यादा के बिल को देखने के बाद हो गया। नसीम उद्दीन के परिवार ने मामले को लेकर अधिकारियों तक इस अव्यवस्था को पहुंचाया, जिससे मामला उजागर हुआ। अब वे नसीम उद्दीन की मौत और अस्पताल प्रबंधन द्वारा की जा रही लूटमार को लेकर न्यायालयीन प्रक्रिया भी अपनाने वाले हैं।