Election_Commissionइस साल उत्तर प्रदेश, पंजाब और गुजरात के चुनाव परिणामों ने दो बहुत महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों को उजागर किया है. ये ऐसे मुद्दे हैं, जो देश के हर नागरिक की आजादी और उनके अधिकारों को प्रभावित करते हैं.

  1. जीएसपीसी घोटाला: कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात में जीएसपीसी (गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड) को 20,000 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा. कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी सरकार पर घोटाले का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार ने मनमाने ढंग से कम्पनियों का चुनाव किया था. इस कथित गुजरात गैस घोटाले की सबसे बड़ी लाभार्थी बारबाडोस/मॉरीशस की एक कम्पनी जियो ग्लोबल रिसोर्सेज थी.
  2. ईवीएम छेड़छाड़ का आरोप: भाजपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों ने ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की विश्वसनीयता को लेकर लगातार सवाल उठाए हैं. फ़िलहाल चुनाव आयोग से ज्यादा, भाजपा ईवीएम की प्रमाणिकता का बचाव करती नज़र आ रही है.

‘जनता का रिपोर्टर’ ने भारतीय चुनावों में इस्तेमाल होने वाले ईवीएम के लिए माइक्रोचिप बनाने वाली अमेरिकी कम्पनी और जियो ग्लोबल रिसोर्सेज के स्वामित्व के पैटर्न की समीक्षा की है. इसमें यह सवाल सामने आया है कि क्या जीएसपीसी घोटाले के लाभार्थियों और भारतीय चुनावों में इस्तेमाल होने वाले ईवीएम के लिए माइक्रोचिप्स निर्माताओं के बीच कोई सम्बन्ध है.

जीएसपीसी घोटाला के तार जियो ग्लोबल रिसोर्स के माध्यम से माइक्रोचिप इंक, यूएसए से जुड़ते हैं. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, केजी बेसिन में गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन द्वारा किए गए पेट्रोलियम एक्सप्लोरेशन के काम में सरकार को 20,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ, लेकिन इससे पेट्रोलियम का जो उत्पादन हुआ, वो लाभकारी साबित नहीं हुआ. जियो-ग्लोबल रिसोर्सेज को पहले सोशल मीडिया और पब्लिशिंग कम्पनी सूईट 101 डॉट कॉम के नाम से जाना जाता था. अहमदाबाद में स्थित यह निजी कम्पनी, बारबाडोस में सूचीबद्ध थी, जिसे बिना किसी पारदर्शी बोली के पेट्रोलियम की खोज के लिए एक निजी साझेदार के रूप में शामिल किया गया था.

इस कम्पनी को इसकी सेवाओं के बदले जीएसपीसी में 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी की पेशकश की गई थी. बिना किसी पूर्व क्रेडेंशियल्स और सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड के, जियो-ग्लोबल रिसोर्सेज को यहां साझेदार बना लिया गया, जबकि इस काम के लिए अधिक योग्य होने के बावजूद ओएनजीसी को नजरअंदाज कर दिया गया था. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि जियो-ग्लोबल रिसोर्सेज एक धोखाधड़ी वाली कम्पनी है, जिसने एक्सप्लोरेशन गतिविधियों और परामर्श के नाम पर जनता से लाखों डॉलर हड़प कर साइफन-ऑफ कर दिया.

इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला बोलते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने पिछले साल कहा था कि जियो ग्लोबल रिसोर्सेज का चयन बिना किसी पारदर्शी प्रक्रिया का पालन किए, स्थापित सिद्धांतों के विपरीत गुप्त रूप से किया गया. कैग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए रमेश ने कहा था कि गुजरात सरकार ने सार्वजनिक धन की लूट वाले क्रोनी कैपिटलिज्म को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है.

जीएसपीसी ने जियो ग्लोबल रिसोर्सेज में सरकारी खजाने से 1,734.60 करोड़ रुपए का निवेश किया था, जिसमें से एक भी पैसा वापस नहीं आया. दरअसल, स्टार्टअप कम्पनी जियो ग्लोबल रिसोर्सेज के लिए ओएनजीसी की अनदेखी की गई थी. अब उसे कहा जा रहा है कि वो जीएसपीसी के नुकसान का ज़िम्मा अपने ऊपर ले ले. संयोगवश, केंद्र की भाजपा सरकार ने हाल में अपने मुखर प्रवक्ता संबित पात्रा को ओएनजीसी का निदेशक नियुक्त किया है.

एक कम्पनी के रूप में हमने (जनता का रिपोर्टर) जियो ग्लोबल रिसोर्सेज (इंडिया) की जानकारियां हासिल की. जांच के बाद पता चला कि जियो ग्लोबल रिसोर्सेज (इंडिया) बारबाडोस में अपनी मूल कम्पनी जियो ग्लोबल रिसोर्सेज इंक के साथ सूचीबद्ध है. इस मूल कम्पनी का मुख्यालय कैलगरी, कनाडा में स्थित है. दिलचस्प बात यह है कि जियो ग्लोबल रिसोर्सेज इंक, अमेरिकी वित्तीय समूह की-कैपिटल कॉर्प की सहायक कम्पनी है. की-कैपिटल कॉर्प और भारत में इस्तेमाल होने वाले ईवीएम के लिए माइक्रोचिप्स बनाने वाली अमेरिकी कम्पनी माइक्रोचिप इंक के स्वामित्व का पैटर्न काफी हद तक मिलता जुलता है. (देखें टेबल)

उपलब्ध जानकारियों के अनुसार, ईवीएम माइक्रो कंट्रोलर के निर्माताओं में से एक माइक्रोचिप इंक (यूएसए) है. यह कम्पनी एनआरआई अरबपति स्टीव सांघी की अगुवाई में काम करती है. स्टीव सांघी हरियाणा के मूल निवासी हैं और उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की है.

इस कम्पनी के प्रेसिडेंट और चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर एक अन्य एनआरआई, गणेश मूर्ति हैं. उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से भौतिकी में बीएससी की डिग्री प्राप्त की है. माइक्रोचिप इंक न केवल भारतीय ईवीएम में प्रयुक्त माइक्रोचिप की आपूर्ति करता है, बल्कि माइक्रोचिप पर सॉफ्टवेयर प्रोग्राम राईट भी करता है. उसके बाद इस तरह से उसकी सीलिंग की जाती है कि न तो चुनाव आयोग, न भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और न ही भारतीय कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड उसकी प्रोग्रामिंग को पढ़ सके.

की-कॉर्प और माइक्रोचिप इंक के स्वामित्व का पैटर्न जब नास्डैक के वेबसाइट को खंगाला गया, तो दोनों कम्पनियों के स्वामित्व में एक चौंकाने वाली समानता दिखाई दी. इस समानता से एक खतरनाक निष्कर्ष ये निकला कि कुछ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और वित्तीय संस्थानों द्वारा ईवीएम के माध्यम से भारतीय लोकतंत्र को नियंत्रित करने की एक मजबूत संभावना मौजूद हो सकती है. की-कैपिटल ग्रुप, जियो ग्लोबल रिसोर्सेज की मूल संस्था है. जब नेस्डैक वेबसाइट पर की-कैपिटल कॉर्प की संस्थागत स्वामित्व पद्धति की जांच की गई, तो पता चला कि की-कैपिटल कॉर्प के स्वामित्व वाली ग्लोबल फाइनेंसियल जायंटस के पास ही ‘माइक्रोचिप इंक’ का मालिकाना हक है.

माइक्रोचिप इंक का संचालन दो अप्रवासी भारतीयों की अध्यक्षता में होता है. लिहाज़ा यह कहा जा सकता है कि जीएसपीसी घोटाले के लाभार्थी ही ईवीएम चिप निर्माता कम्पनी के भी मालिक हैं. यह तथ्य चुनावों में ईवीएम से छेड़छाड़ के व्यापक आरोपों के मद्देनज़र बहुत खतरनाक हैं. गौरतलब है कि 2014 के बाद हुए चुनावों में ईवीएम से छेड़छाड़ कर भाजपा को फायदा पहुंचाने के आरोप लगते रहे हैं.

ईवीएम माइक्रोचिप का महत्व

ईवीएम में दो यूनिट्स होते हैं. पहला कंट्रोल यूनिट और दूसरा बैलेट यूनिट. कंट्रोल यूनिट एक कम्प्यूटर की तरह काम करता है. माइक्रोचिप कंट्रोलर (एमसीयू) के अन्दर ही इसका सीपीयू भी बना होता है, जबकि बैलेट यूनिट की-बोर्ड का काम करता है. आसान शब्दों में कहें, तो एमसीयू ईवीएम का दिमाग होता है. ‘मशीन कोड’ नामक सॉफ़्टवेयर को जब एमसीयू पर राईट किया जाता है, तो वो एमसीयू के सभी कार्यों को निर्धारित करता है. ईवीएम के सोर्स कोड की सुरक्षा उपाय के तौर पर, इन एमसीयू को कोड करने के बाद फ्यूज या बर्न कर दिया जाता है, ताकि ‘मशीन कोड’ को दुबारा नहीं पढ़ा जा सके और न ही उसकी नक़ल की जा सके या उसे संशोधित किया जा सके.

चुनाव आयोग का दावा है कि उसने बीईएल और ईसीआईएल के कुछ बहुत ही ईमानदार वैज्ञानिकों की सहायता से अपना सॉफ्टवेयर प्रोग्राम विकसित किया है. चुनाव आयोग ने बार-बार यह कहा है कि ईवीएम का सोर्स कोड परम गोपनीय (टॉप सीक्रेट) है. यह इतना गोपनीय है कि चुनाव आयोग के पास भी उसकी नक़ल नहीं है. इस सोर्स कोड का महत्व जगज़ाहिर है, लेकिन अगर बीईएल और ईसीआईएल के वैज्ञानिकों और कर्मचारियों ने सुरक्षा प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया, तो फिर ईवीएम की सुरक्षा तो खतरे में पड़ जाएगी. लेकिन हम मानते हैं कि एक अरब डॉलर का रिश्वत भी इन वैज्ञानिकों को नहीं खरीद सकता है और इस स्तर पर ईवीएम सोर्स कोड की सुरक्षा से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है.

चुनाव आयोग ने एमसीयू या माइक्रोचिप की खरीदारी को विदेशी वेंडर्स रेनसास, जापान और माइक्रोचिप इंक, यूएसए को आउटसोर्स कर दिया, क्योंकि भारत में किसी भी कम्पनी के पास माइक्रोचिप या एमसीयू बनाने के लिए उतम तकनीक नहीं थी. बहरहाल, कुछ कारणों से, जिनकी बेहतर जानकारी चुनाव आयोग के पास ही होगी, माइक्रोचिप पर सोर्स कोड राईट करने की ज़िम्मेदारी भी विदेशी वेंडर्स को आउटसोर्स कर दी गई. भारत सरकार की संस्था पीआईबी (प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो) द्वारा प्रकाशित चुनाव आयोग के एफएक्यू (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न) में कहा गया है कि सॉफ्टवेयर प्रोग्राम कोड इन दोनों कम्पनियों (बीईएल और ईसीआईएल) द्वारा राईट किया गया है, इन्हें आउटसोर्स नहीं किया गया है और फैक्ट्री लेवल की सुरक्षा प्रक्रिया अपना कर इनकी सुरक्षा के उच्चतम स्तर को सुनिश्चित किया गया है.

प्रोग्राम कोड को मशीन कोड में बदलने के बाद ही विदेशी चिप निर्माता को दिया जाता है, क्योंकि हमारे पास देश में सेमी-कंडक्टर माइक्रोचिप्स बनाने की क्षमता नहीं है. यहीं पर चुनाव आयोग एक भ्रामक घोषणा करता है और झूठे आश्वासन देता है, क्योंकि चुनाव आयोग जो बात नहीं कह रहा है वो यह है कि जिस प्रोग्राम कोड को बाइनरी लैंग्वेज में राईट किया गया है, उसे माइक्रोचिप विनिर्माण कम्पनियां पढ़ भी सकती हैं और उनके साथ छेड़छाड़ भी कर सकती हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो ये विदेशी कम्पनियां किसी विशिष्ट राजनीतिक दल के हितों के अनुरूप प्रोग्राम के साथ छेड़छाड़ कर सकती हैं.

प्रोग्राम कोड से छेड़छाड़ की संभावनाएं

  • मशीन बंद किए जाने के 24 घंटे बाद किसी उम्मीदवार के वोट का कुछ प्रतिशत हिस्सा किसी अन्य राजनीतिक दल के पक्ष में हस्तांतरित करना.
  • मतदान के बाद मशीन को फिर से चालू कर किसी उम्मीदवारों के मतों का एक प्रतिशत किसी अन्य राजनितिक दल के पक्ष में हस्तांतरित करना.

चूंकि अमेरिका और जापान की माइक्रोचिप विनिर्माण कम्पनियां मुहरबंद स्थिति में माइक्रोचिप्स उपलब्ध कराती हैं, लिहाज़ा चुनाव आयोग भी बीईएल और ईसीआईएल के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार इसके मूल प्रोग्राम कोड को सत्यापित करने की स्थिति में नहीं रहता है. चुनाव आयोग ने अब तक यह ज़ाहिर नहीं किया है कि उसने कभी सांघी और मूर्ति की पृष्ठभूमि की कोई जांच की है या नहीं. गुजरात के गैस घोटाले के लाभार्थियों और माइक्रोचिप्स का उत्पादन करने वाली कम्पनियों के स्वामित्व के पैटर्न में हैरान करने वाली समानता से अब भारत में इस्तेमाल होने वाले ईवीएम की प्रामाणिकता पर संदेह की छाया गहरा रही है.

साभार: जनता का रिपोर्टर

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