इस संकट के समय गरीबी रेखा के नए मापदंड स्थापित होना चाहिए ।वर्तमान मापदंडों से भीषण दुर्दशा ग्रस्त जनता की वास्तविक स्थिति का परीक्षण और आकलन संभव नहीं है ।

गरीबी ,महंगाई और बेरोजगारी लगातार बढ़ते जाने के कारण भारत की आधी आबादी घनघोर आर्थिक संकटों से ग्रस्त है ।न्यूनतम वेतन पाने वाले लोग अभावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर हैं ।वंचित तबकों की स्थिति तो कहीं अधिक चिंताजनक है ।नोटबंदी और कोरोना के संकट के कारण लाखों लोग बेरोजगार हुए हैं ।

मानवीय आधार पर सरकार का दायित्व है कि अभावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर हो गए प्रत्येक परिवार को गरीबी रेखा में शामिल किया जाए ।इन्हें सम्मानजनक मदद दी जाए ।लेकिन यह चिंताजनक है कि केंद्र सरकार के पास इस संबंध में कोई तैयारी या योजना ही नहीं है ।सरकार कर्ज देने की भारी भरकम घोषणाएं कर रही है ,जबकि जनता की खुशहाली के लिए प्रति माह सम्मानजनक आर्थिक मदद अभावग्रस्त जीवन जी रहे लोगों को देना चाहिए ।

अतः यह बेहद जरूरी है कि गरीबी रेखा के मूल्यांकन के नए मापदंड स्थापित किए जाएं ।इस हेतु जनता से सुझाव मांगे जाएं तथा राजनीतिक दलों और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों की समिति गठित कर जनहित में प्रभावकारी कार्रवाई की जाए ।

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