आए दिन हम ऐसी खबरें पढते हैं कि चपरासी की नौकरी के लिए एमबीए, पीएचडी की डिग्री वाले हजारों युवाओं ने आवेदन दिया. या 50 पदों के लिए एक लाख युवाओं ने आवेदन दिया. दरअसल, ऐसी स्थिति इसलिए बनती है क्योंकि हमारे देश में बेरोजगारी का आंकडा सोलह फीसदी तक पहुंच गया है. देश में जीडीपी ग्रोथ रेट बढ़ने के साथ ही नौकरियों के मौके भी कम होते जा रहे हैं. इस बारे में अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनवल इम्प्लायमेंट ने एक रिपोर्ट जारी की और उस रिपोर्ट के अनुसार, देश में अनइम्पलायमेंट का प्रतिशत सोलह फीसदी तक पहुंच गया है.
2013 से 2015 के बीच 70 लाख नौकरियां कम हो गईं, ऐसा रिपोर्ट का कहना है. रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि हमारे देश में जो इम्पलायबल लोग हैं, उनमें से 82 प्रतिशत पुरुषों का और 92 प्रतिशत महिलाओं का वेतन 10 हजार रुपए से भी कम है. खबर के पीछे की खबर ये है कि हमारे देश की सरकार वास्तविकता से दूर भाग रही है. देश में लगातार हो रहे आन्दोलन और युवाओं का उसमें सहभाग, इस बात को दिखाता है कि देश में वाकई युवा बेरोजगार है और रोजगार के लिए लड़ रहा है. सरकार विभिन्न योजनाओं का रिफरेंस देते हुए रोजगार निर्मित होने की बात करती है, लेकिन ठोस आंकड़े उसके पास भी नहीं है. जब से मोदी सरकार सत्ता में आई, उस दिन से आजतक सरकार चुनावी मोड में है.
इसलिए जो पूरे किए जाने वाले वादे के लिए असली खेल आंकड़ों का होता है. लेकिन वास्तविकता जनता जानती है. यदि 50 चपरासी की पोस्ट के लिए 92 हजार एप्लीकेशसं आते हैं और उसमें भी पीएचडी से लेकर पोस्टग्रेजुएट लोगों के,तो देश में बेरोजगारी का आलम क्या है, सबको दिखाई देता है. ये समय आ गया है कि सरकार को ऐसे विभिन्न रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए आंखें खोलकर देखना चाहिए कि देश की वास्तविकता क्या है? नहीं तो चुनावी मोड में रहने वाली सरकार गवर्नेंस करना ही भूल जाएगी.