अब यह पूरी तरह से स्पष्ट हो चुका है कि मनरेगा जीती जागती स्मारक बनती जा रही है. मनरेगा के तहत मिलने वाले रोजगार में भारी कमी आने के बाद अब ये खबर आ रही है कि केंद्र सरकार पिछले कई महीनों से 19 राज्यों को मनरेगा के फंड का भुगतान नहीं कर रही है. इधर सरकार का तर्क है कि चूंकि इन राज्य सरकारों ने ऑडिटेड रिपोर्ट जमा नहीं की है, इसलिए इनका फंड स्वीकृत नहीं किया जा रहा है. लेकिन इधर मनरेगा के तहत होने वाले काम पूरी तरह से बंद हो गए हैं. काम के बाद मिलने वाली मजदूरी तो पिछले कई महीनों से नहीं मिल रही थी, लेकिन तब उम्मीद थी कि केंद्र से पैसा आने के बाद भुगतान होगा. लेकिन अब वो उम्मीद भी खत्म होती प्रतित हो रही है.
हालांकि भुगतान की प्रक्रिया में भी कई जटिलता है. दरअसल, मनरेगा के तहत कर्मियों के भुगतान की प्रक्रिया शुरू होती है, फंड ट्रांसफर ऑर्डर (एफटीओ) के जरिए, जो जिलों को भेजा जाता है और फिर राज्य के स्तर पर श्रमिकों के खातों में फंड के ट्रांसफर की मांग की जाती है. एफटीओ को ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास भेजने से पहले उस पर दो अधिकृत व्यक्तियों का हस्ताक्षर जरूरी होता है. चूंकि भुगतान बैंक खातों के जरिए होता है, इसलिए एफटीओ को पब्लिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम (पीएफएमएस) के पास भेजा जाता है, जो केंद्र सरकार की एक ऑनलाइन एप्लिकेशन है. लेकिन यहां परेशानी यह है कि अब तक एफटीओ ही लंबित हैं और जब एफटीओ लंबित हैं, तो इसका मतलब है कि पीएफएमएस ने उन पर कार्य नहीं किया है. यानि सरकार की तरफ से भुगतान की स्वीकृति नहीं मिली है. एक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च-अप्रैल 2017 के दौरान 20 दिनों तक लगभग किसी भी एफटीओ पर कार्रवाई नहीं की गई थी, वहीं मई 2017 के दौरान 807 एफटीओ पर कार्रवाई नहीं हुई थी.
अलबत्ता, कारण चाहे जो भी हो, मनरेगा के तहत राज्यों को होने वाले भुगतान के बंद होने के बाद अब लाखों कामगार सड़कों पर आ गए हैं. मनरेगा कर्मियों की दुर्दशा को लेकर आवाज उठाने वाले संगठनों में भी इसे लेकर भारी रोष है. अखिल भारतीय मनरेगा कर्मचारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु प्रताप सिंह ने चौथी दुनिया से बातचीत में कहा कि ‘जिस योजना के कारण लाखों परिवारों के चुल्हे जलते थे, उस योजना के अप्रभावी हो जाने के कारण अब भूखमरी जैसी समस्या सामने आ गई है. सुदूर गांवों में हालत और भी खराब है. जब मनरेगा आया था, तब जमीनी स्तर पर इसका बहुत सकातरात्मक प्रभाव देखने को मिला था. इससे वृहद स्तर पर पलायन रुका था और लोगों को उनके गांव में ही राजेगार मिल रहा था, लेकिन बीते तीन-चार सालों में स्थिति खराब हुई है.
अब तो शायद ही कोई हो जिसे सौ दिनों का रोजगार मिल रहा हो. सरकार भी इसे सुदृढ करने की जगह कमजोर करती जा रही है.’ भुगतान में इस देरी के कारण 9.2 करोड़ से अधिक सक्रिय श्रमिकों को उनकी मजदूरी समय पर मिलने की संभावना नहीं है और देरी से भुगतान वाली मजदूरी की रकम करीब 3,066 करोड़ रुपए है. गौर करने वाली बात यह है कि नियमानुसार मस्टर रोल बंद होने के 15 दिनों के भीतर श्रमिकों को भुगतान करना अनिवार्य है. ऐसा नहीं होने पर मजूदर प्रति दिन के हिसाब से हर्जाना मांग सकते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016-17 के दौरान केवल हर्जाने की राशि लगभग 516 करोड़ थी. हैरान करने वाली बात यह है कि जनवरी 2017 तक इसमें से मात्र 6 फीसदी के भुगतान को स्वीकृति मिली है.
इन सबके बावजूद सरकार इस योजना को लेकर आंकड़ों के जरिए अपनी पीठ थपथपाने से बाज नहीं आ रही. 27 अक्टूबर को ग्रामीण विकास मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए एक बयान में यह बताने की कोशिश की गई थी कि कैसे सरकार ने इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा के फंड में भारी बढ़ोतरी की है. ग्रामीण विकास मंत्रालय के उस बयान में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि मनरेगा के फंड में 48,000 करोड़ की बढ़ोतरी ऐतिहासिक है. लेकिन आंकड़ों के खेल को समझें, तो पता चलता है कि फंड में हुई बढ़ोतरी से ज्यादा पिछले साल का एरियर ही था. कहा जाता है कि किसी भी पहल की सफलता का पता परिणाम से चलता है.
इस बढ़ोतरी का हश्र्र यह है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में मनरेगा के तहत कामगारों की दिहाड़ी में अब तक का सबसे कम इजाफा हुआ है. ठीक एक साल पहले ही 2016-17 में यह बढ़ोतरी 5.7 फीसदी थी, लेकिन 2017-18 में यह मात्र 2.7 फीसदी है. यह हास्यास्पद है कि अप्रैल 2017 के बाद यूपी, बिहार, असम और उत्तराखंड में मनरेगा कामगारों की मजदूरी में सिर्फ एक रुपए की वृद्धि हुई है. वहीं ओड़ीशा में दो रुपये और पश्चिम बंगाल में चार रुपए मजदूरी बढ़ाई गई है. बेतहासा बढ़ रही महंगाई के इस दौर में मजदूरी बढ़ोतरी के ये आंकड़े मनरेगा कर्मियों के लिए किसी मजाक से कम नहीं हैं.
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने अपने उस बयान में यह भी दावा किया था कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर से जुड़े मनरेगा के प्रस्तावों पर तुरंत कार्रवाई की गई है. लेकिन सरकार के आंकड़े ही इस दावे की पोल खोलते हैं. मनरेगा की वेबसाइट पर दिए गए स्टेट फैक्ट शीट (बॉक्स देखें) में बताया गया है कि 11 सितम्बर के बाद से उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु का भुगतान बंद है. वहीं छत्तीसगढ़ को 12 सितम्बर और राजस्थान को 14 सितम्बर के बाद से फंड नहीं दिया गया है. सरकार जिन राज्यों के प्रस्तावों पर कार्रवाई की बात कह रही है, उनमें से मध्य प्रदेश अकेला ऐसा राज्य है, जिसे अक्टूबर में अंतिम भुगतान किया गया है.