बांग्लादेशी घुसपैठियों की तादाद उत्तर प्रदेश में बढ़ती जा रही है, लेकिन योगी सरकार इसे लेकर कोई नीतिगत प्रशासनिक फैसला नहीं ले पा रही है. यह विचित्र है. जिन जरूरी मुद्दों पर भाजपा को वोट मिलता है, उन्हीं मसलों को यह पार्टी सत्ता मिलने के बाद ताक पर रख देती है. सत्ता मिलने के बाद असम में भी भाजपा सरकार को बांग्लादेशी घुसपैठ का मसला याद नहीं था, लेकिन वहां की जनता के दबाव पर अब पंजीकरण की पहले से लागू सुसुप्त व्यवस्था को फिर से सक्रिय किया गया है. उधर, घेरा कस रहा है तो यूपी की तरफ से बांग्लादेशी घुसपैठियों का घेरा खुल रहा है.
पुलिस प्रशासन छिटपुट कार्रवाइयां करती है, कभी बांग्लादेश से जुड़े आतंकियों को पकड़ती है तो कभी बांग्लादेशी लुटेरों को दबोचती है तो कभी वहां से यूपी में जालसाजी का धंधा कर रहे बांग्लादेशियों को गिरफ्तार करती है. अभी पिछले ही दिनों फर्जी पासपोर्ट का धंधा करने वाले गिरोह को पकड़ा गया, जो बांग्लादेशियों को फर्जी पासपोर्ट बनवा कर देता था. लेकिन सरकार के नीतिगत फैसले के अभाव में ये सारी कार्रवाइयां किसी निर्णायक नतीजे पर नहीं पहुंच पातीं. सामान्य अपराध की तरह मामला चलता है और कुछ दिनों में जमानत लेकर बांग्लादेशी फिर अपना जाल फैलाने में लग जाते हैं.
बांग्लादेशियों को फर्जी कागजात बनवा कर भारतीय नागरिक की पहचान दिलाने और उनके लिए पासपोर्ट बनाने वाले गिरोह के तीन लोगों को उत्तर प्रदेश एंटी टेररिस्ट स्न्वायड ने पिछले दिनों गाजियाबाद और देवबंद से गिरफ्तार किया है. फर्जी पासपोर्ट का धंधा करने वाले उक्त गिरोह का जाल अरब देशों तक फैला हुआ है. एटीएस ने बताया कि इस गिरोह ने एक वर्ष में ही बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों को अवैध पासपोर्ट बना कर दिए. गिरफ्तार किए गए तीन धंधेबाजों में एक यूसुफ अली खुद भी बांग्लादेश का रहने वाला है.
वह गाजियाबाद के मुरादनगर में रह रहा था. यूसुफ का पासपोर्ट भी नकली है. पासपोर्ट के लिए फर्जी दस्तावेज बनवाने वाले सहारनपुर देवबंद के वसीम और एहसान को भी एटीएस ने गिरफ्तार किया. देवबंद से पकड़े गए बांग्लादेशी अब्दुल्ला से इस गैंग के धंधे के बारे में एटीएस को सुराग मिला था. फर्जी आधार कार्ड और दूसरे आधिकारिक दस्तावेजों से बांग्लादेशियों को भारत में रहने का कानूनी आधार मिल जाता था. यह गिरोह फर्जी भारतीय पासपोर्ट पर बांग्लादेशियों को अन्य देशों में भेजने का धंधा भी करता था.
एटीएस ने यूसुफ के मुरादनगर स्थित जिस ठिकाने पर छापा मारा, वहां से फर्जी पते पर बनवाए गए दो आधार कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी कार्ड, मूल निवास पहचान पत्र बरामद किए गए. इसके अलावा पासपोर्ट की छायाप्रति, विभिन्न बैंकों की चेक बुकें, पास बुक्स, एटीएम कार्ड, तीन मोबाइल, पश्चिम बंगाल के पते के चार वोटर कार्ड, आधार कार्ड, पासपोर्ट और ग्राम पंचायत प्रमाण पत्र की कई छायाप्रतियां बरामद हुईं. इसके बाद उसकी निशानदेही पर एटीएस ने सहारनपुर पुलिस के साथ देवबंद में छापेमारी कर वसीम और एहसान को गिरफ्तार किया.
उनके पास से लैपटॉप, कम्प्यूटर, प्रिंटर, स्कैनर, बड़ी संख्या में फोटो, कच्चे-पक्के बने फर्जी सर्टिफिकेट्स और बड़ी तादाद में आधिकारिक प्रमाण पत्रों की फोटोकॉपी बरामद हुईं. एटीएस के अधिकारी ने कहा कि पिछले छह महीने में यूसुफ के खाते में सऊदी अरब से आए पांच लाख से अधिक रुपए जमा हुए. यूसुफ ने पहले एटीएस को बताया था कि वह ईंट भट्ठे पर काम करता है. फिर एटीएस को पता चला कि वह पांच जनवरी को सऊदी अरब जाने वाला था. अब एटीएस यूसुफ के विदेशी लिंक खंगाल रहा है. उधर, एटीएस ने वाराणसी में भी एक ऐसे जालसाज को पकड़ा जो खुद को बैंक मैनेजर बता कर अविनाश कुमार सिंह के नाम से धंधा कर रहा था, जबकि उसका असली नाम कामरान रज़ा पाया गया.
बहरहाल, रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर तूल खड़ा करने वाली भाजपा सरकार अवैध बांग्लादेशियों की बढ़ती जा रही भीड़ को नियंत्रित करने या उन्हें बांग्लादेश वापस भेजने में कोई रुचि नहीं ले रही है. केंद्र में भाजपा सरकार है, उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार है और असम में भाजपा सरकार है, लेकिन तीनों सरकारें अवैध बांग्लादेशियों के मुद्दे पर लचर रवैया अख्तियार किए हुई हैं. यूपी में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी विभिन्न अपराधों में लिप्त हैं. कुछ अर्सा पहले ‘चौथी दुनिया’ ने बताया था कि बांग्लादेशी अपराधियों की पकड़ यूपी में लगातार बढ़ती जा रही है और डाके और लूट के अलावा दूसरे कई जरायम धंधे में वे बेहिचक लिप्त हो रहे हैं.
बांग्लादेशी अपराधी पकड़े भी जा रहे हैं और उनके असम से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों के कनेक्शन आधिकारिक तौर पर उजागर हो रहे हैं, लेकिन न असम सरकार उनका ब्यौरा भेजने में कोई सक्रियता दिखा रही है और न केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय पुलिस और प्रशासन तंत्र को कोई सहयोग कर रहा है. लखनऊ पुलिस ने अवैध बांग्लादेशियों का छह साल का ब्यौरा जुटा रखा है, उन बांग्लादेशियों को भी वापस खदेड़ने को लेकर यूपी की भाजपा सरकार मौन ही साधे हुई है. यह आधिकारिक तौर पर साबित हो चुका है कि बांग्लादेशी घुसपैठिए असम से जाली पहचान पत्र बनवा कर आते हैं और उत्तर प्रदेश में अपराध करते हैं.
असम में इन्हें भारतीय पहचान पत्र बनाकर दिया जा रहा है. जाली पहचान पत्र बनाने के गोरखधंधे की छानबीन के लिए लखनऊ पुलिस की टीम असम भी गई और महत्वपूर्ण जानकारियां लेकर आई. पुलिस के सामने दिक्कत यह भी है कि बांग्लादेशियों को स्थानीय लोगों ने अपना रिश्तेदार या परिचित बता कर शरण दे रखा है. बांग्लादेशियों की अवैध बस्तियों को हटाने के लिए लखनऊ पुलिस की तरफ से लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) और नगर निगम को 20 से ज्यादा पत्र भेजे जा चुके हैं. लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही. नगर निगम ने खुद बड़ी तादाद में अवैध बांग्लादेशियों को नगर की सफाई के काम में लगा रखा है. निगम को मजदूर सप्लाई करने वाले ठेकेदार मजदूरों की पहचान लिए बगैर उन्हें सफाई के काम में लगा देते हैं.
अभी कुछ ही दिनों पहले लखनऊ एसटीएफ ने मेरठ के कस्बा फलावदा से एक बांग्लादेशी घुसपैठिया अबू हन्नान उर्फ अबू हना को गिरफ्तार किया था, जो अवैध रूप से भारत में रह रहा था और आपराधिक व आतंकी गतिविधियों में लिप्त था. वह बांग्लादेशी अपराधियों को नकली भारतीय पासपोर्ट और नकली पहचान पत्र दिलाने का धंधा भी करता था. अबू हना कोलकाता, मुजफ्फरनगर, दिल्ली, लुधियाना समेत कई जगहों पर रह कर अपना धंधा चला रहा था. उसने वर्ष 2006 में फलावदा की रहने वाली शबाना से शादी कर ली थी. बाद में उसने अपनी बीवी को सऊदी अरब भेज दिया.
अब एटीएस अबू हना और यूसुफ के लिंक तलाश करा रहा है. एंटी टेररिस्ट स्न्वायड ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आतंकी गतिविधियों में लगे बांग्लादेशियों का भी पर्दाफाश किया, जब सहारनपुर और मुजफ्फरनगर में एक बांग्लादेशी आतंकी के पकड़े जाने के बाद कई संदिग्ध गिरफ्तार किए गए. देवबंद के एक मदरसे के तीन छात्रों को हिरासत में लिया गया था. पकड़ा गया आतंकी भी देवबंद के मदरसे का पूर्व छात्र है. एटीएस ने एसटीएफ की टीम के साथ मुजफ्फरनगर के चरथावल के कुटेसरा गांव में छापा मारकर बांग्लादेशी आतंकी अब्दुल्ला अल मामून पुत्र रहीसुद्दीन अहमद निवासी हुसनपुर जिला मोमिनशाही बांग्लादेश को गिरफ्तार किया था. वह देवबंद में रहकर बांग्लादेश के आतंकियों के लिए फर्जी आईडी से पासपोर्ट बनवाता था.
इसमें बांग्लादेशी फैजान उसका सहयोग करता था. फैजान के भी आतंकी कनेक्शन का खुलासा हुआ. अब्दुल्ला बांग्लादेश के प्रतिबंधित आतंकी संगठन अंसारुल्ला-बांग्ला से जुड़ा है. वह देवबंद में आतंकियों को सुरक्षित आश्रय देता था. अब्दुल्ला एटीएस के सामने यह कबूल कर चुका है कि बांग्लादेश के कई युवक त्रिपुरा, असम, पश्चिम बंगाल के रास्ते अवैध रूप से भारत आ रहे हैं और दलालों की मदद से भारत का पहचान पत्र बनवा रहे हैं.
अब्दुल्ला खुद 2011 में त्रिपुरा बॉर्डर से भारत में घुसा था और सहारनपुर में पासपोर्ट बनवाने के लिए नौ हजार रुपए दिए थे. उसने अपना पहचान पत्र असम के गांव नासत्रा, थाना अभयपुरी बोंगाई गांव जिले से बनवाया था. अब्दुल्ला के पास से उर्दू और बांग्ला में इस्लामिक जेहाद से जुड़े दस्तावेज और साहित्य के अलावा आईएसआईएस सरगना कुख्यात आतंकी अबू बकर बगदादी का घोषणा पत्र, बम बनाने की किताब और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से जुड़े कागजात बरामद किए गए.
यूपी पुलिस ‘से’ रही अवैध बांग्लादेशियों के ब्यौरे का अंडा
उत्तर प्रदेश क्या पूरा देश ही विचित्र राजनीतिक विरोधाभास में फंसा हुआ है. राष्ट्रवादी भावनाएं भड़का कर वोट की राजनीति होती है, लेकिन राष्ट्रहित के लिए जरूरी प्राथमिकताओं पर कोई काम नहीं होता. बांग्लादेशी घुसपैठियों का छह साल का पूरा ब्यौरा हासिल करने के बावजूद उन्हें निकालने की कोई कार्रवाई नहीं हो रही. सरकार की तरफ से कोई आदेश जारी नहीं हो रहा. कभी कहा जाता है कि सरकार समीक्षा में लगी है, तो कभी सरकार निकाय चुनावों में व्यस्त हो जाती है. इस टाल-मटोल में यूपी बांग्लादेशी घुसपैठियों-अपराधियों का अड्डा बनता जा रहा है. यूपी पुलिस द्वारा किए गए भंडाफोड़ के बाद असम पुलिस से इस सिलसिले में जरूरी सहयोग मांगा गया था, लेकिन असम पुलिस को यूपी पुलिस के आधिकारिक पत्र का जवाब देने की भी फुर्सत नहीं है. यह है असम की भाजपा सरकार की राष्ट्रवादी असलियत.
लखनऊ पुलिस के आधिकारिक दस्तावेज बताते हैं कि केवल लखनऊ में तकरीबन एक लाख बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं. इसी क्रम में 1700 बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहली सूची असम पुलिस को भेजी गई थी, जिन्होंने अपना नाम-पता असम का दे रखा है और उनका पहचान-पत्र भी असम के विभिन्न जिलों से हासिल किया हुआ है. यूपी पुलिस की सूची पर असम पुलिस से जवाब मिलने के बाद बांग्लादेशियों को शहर से बाहर खदेड़ने की कवायद शुरू होती, लेकिन बीच में ही इसमें अड़ंगा डाल दिया गया.
यूपी पुलिस की ओर से सूची भेजे हुए कई महीने हो गए, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया. असम पुलिस का जवाब मिलने के बाद यूपी पुलिस की तरफ से दूसरी सूची भेजी जाती, लेकिन सारी प्रक्रिया अधर में लटक गई है. लखनऊ पुलिस के एक आला अधिकारी ने कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की दूसरी सूची बन कर तैयार थी, लेकिन पहली सूची के सत्यापन की प्रतीक्षा में दूसरी सूची अभी नहीं भेजी जा रही. दूसरी सूची में भी 12 सौ बांग्लादेशी घुसपैठियों का नाम है, जिनकी बाकायदा पहचान कर उन्हें सूची में शामिल किया गया है. दूसरी सूची में भी उन बांग्लादेशियों के नाम हैं जिन्होंने अपना पहचान-पत्र असम से बनवा रखा है.
इस प्रकरण का सबसे दुखद किंतु मजाकिया पहलू यह है कि यूपी में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों की शिनाख्त कर उन्हें खदेड़ बाहर करने का राजनीतिक डायलॉग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ही प्रसारित किया था. इसके बाद ही यूपी पुलिस हरकत में आई थी, लेकिन सत्ता अलमबरदार अपना संवाद जारी कर सो गए. नतीजतन पूरी प्रक्रिया सो गई. पुलिस अधिकारी कहते हैं, हम तो तैयार ही बैठे हैं, हमें तो बस शासन के आखिरी औपचारिक आदेश का इंतजार है.