चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों को नकारने का पब्लिक का हक यानि नोटा का वजन अब बढ़ने जा रहा है. चुनावों में मतदाताओं द्वारा नन ऑफ द अबव के विकल्प के बढ़ते उपयोग को देखते हुए चुनाव आयोग इस मामले में कानूनी संशोधन कराना चाहती है. इसके लिए चुनाव आयोग अब कानून मंत्रालय से मुलाकात कर इस संबंध में बातचीत को आगे बढ़ाएगी.
चुनाव आयोग से प्रस्तावित सुझावों में ये बात शामिल है कि यदि जीतने वाले उम्मीदवार से ज्यादा वोट, नोटा को मिलते हैं, तो चुनाव रद्द कर दिया जाएगा और फिर से मतदान कराया जाएगा. इससे मजबूरन पार्टियों को अच्छे कैंडिडेट मैदान में उतारने होंगे, ताकि उन्हें ऐसी स्थिति से दो-चार न होना पड़े. हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कई पार्टियां ऐसी रहीं, जिन्हें नोटा से भी कम वोट मिले. वहीं पब्लिक में इसके प्रति बढ़ती जागरूकता को इसी से समझा जा सकता है कि महाराष्ट्र में हुए गोंदिया उपचुनाव में उम्मीदवारों से नाराज लोगों ने नोटा के लिए प्रचार किया था.
हालांकि नोटा पर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला सितंबर 2013 में आया था, उसमें कहा गया था कि नोटा का चुनाव परिणाम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. लेकिन चुनाव आयोग और ने इसे लेकर काम शुरू कर दिया है और उम्मीद है कि जनवरी के पहले सप्ताह में आयोग मंत्रालय का दरवाजा खटखटा सकता है. इससे पहले हरियाणा में नगर निगम के चुनावों में नोटा को ज्यादा वोट मिलने के कारण हरियाणा राज्य चुनाव आयोग ने दोबारा चुनाव कराया था.
इधर बिहार में नोटा के उपयोग को लेकर लामबंद हो रहे सवर्ण
बिहार से खबर आ रही है कि वहां सवर्ण खासे नाराज हैं. इसके अलावा हाल ही में तीन हिंदी भाषी राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों से भी साफ हो गया है कि सवर्ण कितने गुस्से में थे. लाखों वोट नोटा में डालकर सवर्ण समाज ने गुस्से का इजहार किया. यही चिंगारी अब धीरे धीरे बिहार भी पहुंच रही है. सवर्णों के हितों का दावा करने वाले कई संगठन एक मंच पर आ रहे हैं और सरकार के प्रति विरोध जता रहे हैं. इसी कड़ी में अखिल भारतीय भूमिहर ब्राहम्ण महासभा और सवर्ण एकता मंच ने विभिन्न मांगों को लेकर पटना में सरकार का पुतला फूंका. मंच के अध्यक्ष विवेक शर्मा ने मांग की कि केंद्र व राज्य सरकार सवर्ण समाज को परेशान और कानूनी अधिकार में बाधा उत्पन्न करना बंद करें. अगर सरकार गरीब सवर्णों को 20 फीसदी आरक्षण नहीं देगी तो लोकसभा चुनाच में वोट का बहिष्कार किया जाएगा. केंद्र सरकार गरीब सवर्ण को अन्य समाज की तरह कर्ज माफी व पेंशन का लाभ दे वरना आगामी लोकसभा चुनाव में हम वोट का बहिष्कार करेंगे या नोटा को वोट देंगे. दरअसल जब से एससी-एसटी एक्ट में संशोधन लाया गया है उसी समय से सवर्ण जातियों में गुस्सा है. इस समाज का कहना है कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. अगर सवर्णों को उनका वाजिब हक नहीं मिला तो आगामी चुनावों में नोटा का जमकर उपयोग होगा.