3 मार्च 2015 को चुनाव आयोग ने नेशनल इलेक्टोरल रोल प्योरीफिकेशन एंड ऑथेंटिकेशन प्रोग्राम (नेरपाप) लॉन्च किया था. इस कार्यक्रम के तहत मतदाताओं के एपिक डेटा (वोटर कार्ड डेटा) को आधार कार्ड के साथ लिंक और ऑथेंटिकेट किया जाना था. यह काम बूथ लेवल ऑफिसर से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों के जरिए कराया गया. बीएलओ मतदाताओं के घर जाकर ये डेटा (आधार कार्ड डिटेल) इकट्ठा कर रहे थे. हालांकि, इसमें यह भी कहा गया कि मतदाताओं के लिए अपना आधार कार्ड डिटेल देना अनिवार्य नहीं होगा और डेटा की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे. खैर, आधार इकट्ठा करने के लिए कई तरीके अपनाए गए. जैसे, डेटा हब, केंद्र और राज्य के संगठन और अन्य एजेंसियों के जरिए आधार डेटा इकट्ठा किए गए. कई राज्यों ने भी स्टेट रेजिडेंट डेटा हब बनाए हैं, जिसमें मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, दिल्ली आदि शामिल हैं. स्टेट रेजिडेंट डेटा हब के जरिए राज्य सरकारें अपने नागरिकों के आधार कार्ड को विभिन्न कार्यों के लिए लिंक करती हैं. स्टेट रेजिडेंट डेटा हब का अर्थ है, सरकार के पास अपने नागरिकों की 360 डिग्री प्रोफाइल तैयार करना. 360 डिग्री प्रोफाइल का अर्थ यह है कि आपकी कोई भी जानकारी, आपकी कोई भी ऐसी राय, विचार जो किसी सोशल साइट्स या स्मार्ट फोन पर मौजूद है, उसकी हर एक जानकारी सरकार के पास होगी. राज्य सरकार के पास यूआईडीएआई की तरफ से मुहैया कराई गई हर एक जानकारी (बायोमेट्रिक) होगी. चुनाव आयोग ने ऐसे ही स्टेट रेजिडेंट डेटा हब से भी डेटा लिए और इस तरह से चुनाव आयोग तकरीबन 32 करोड़ मतदाताओं के आधार डेटा इकट्ठा कर चुका था.
वोटर कार्ड, आधार से लिंक हुए!
11 अगस्त 2015 को सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश आता है. जस्टिस केएस पुट्टास्वामी (रिटायर्ड) की याचिका रिट पेटिशन सिविल संख्या 494/2012 पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा कि आधार का इस्तेमाल सिवाय पीडीएस (राशन) वितरण के, कहीं नहीं किया जा सकता है. अदालत ने यहां तक कहा कि सरकार किसी को दबाव के तहत आधार कार्ड बनवाने के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकती. इस आदेश के आने के तुरंत बाद ही चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को 13 अगस्त 2015 को पत्र लिख कर तत्काल मतदाताओं से आधार डेटा इकट्ठा करने का काम बंद करने को कहा. आयोग ने नेशनल इलेक्टोरल रोल प्योरीफिकेशन एंड ऑथेंटिकेशन प्रोग्राम को भी स्थगित कर दिया. लेकिन इस बीच करीब 32 करोड़ मतदाताओं के आधार डेटा चुनाव आयोग के पास पहुंच चुके थे. आयोग ने वैसे तो भरोसा दिलाया कि जमा किए गए डेटा की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या चुनाव आयोग की मानव शक्ति और तकनीकी ताकत (खुद की न कि आउटसोर्स्ड) इतनी है, जिससे वो इस डेटा सुरक्षा की गारंटी दे सके. गौरतलब है कि चुनाव आयोग के बहुत सारे काम (खास कर तकनीकी) आउटसोर्स्ड होते हैं. चुनाव आयोग ने अब तक 32 करोड मतदाताओं के वोटर कार्ड आधार से लिंक किए है या नहीं, इसकी आधिकारिक जानकारी चुनाव आयोग को देनी चाहिए. यहां यह स्पष्ट रूप से समझना चाहिए कि वोटर कार्ड का आधार कार्ड के माध्यम से वेरीफिकेशन करना एक अलग बात है और वोटर कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करना एक अलग बात है.