बिहार में दिनदहाड़े हत्या, बलात्कार और बैंक लूट की घटनाओं की खबरों से अखबार भरे पड़े हैं. पिछले 6 महीनों में अपराधिक घटनाओं का रिकॉर्ड देखें, तो दर्जनों बैंक में लूट की घटनाओं के साथ सूबे में अपराध का ‘गाफ्र’ रोजाना बढ़ रहा है. पिछले दो महीने में घटित कुछ आपराधिक घटनाओं ने तो बिहार को बुरी तरह शर्मशार कर दिया है. मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड ने अचानक बिहार को जंगलराज की सुर्खियों में ला दिया. कहा गया कि सरकार की नाक के नीचे लड़कियों का बलात्कार होता रहा और सब कुछ जानते-समझते हुए भी सरकार सोई रही. ठीक उसके बाद सीतामढ़ी कोर्ट परिसर में डबल मर्डर कांड के अपराधी संतोष झा को एके-47 से भून दिया गया.
यह आग बुझी भी नहीं थी कि पूर्णिया बाल सुधार गृह में दो बच्चों की हत्या कर दी गई. हद तो तब हो गई जब अति सुरक्षित क्षेत्र कोतवाली थाना पटना के पास शहाबुद्दीन के शूटर तवरेज को भून दिया गया. इसके बाद जब पूर्व मेयर समीर सिंह मुजफ्परपुर में एके-47 से छलनी हुए, तब तो सूबे के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी को ही अपराधियों के आगे हाथ जोडने पड गए. सुशील मोदी अपराधियों से हाथ जोड़कर यह अपील करते नजर आए कि फिलहाल हत्या करना छोड़ दीजिए. कम से कम पितृ-पक्ष में तो हत्याएं न करें. बाकी दिन तो आप, मना करें न करें, कुछ न कुछ करते ही रहते हैं. सुशासन का दम भरने वाली सरकार के नंबर दो की यह अपील बताती है कि नीतीश सरकार का इकबाल कितना घट गया है.
कहा जाता है कि भ्रष्टाचार और अपराध एक दूसरे के पूरक होते हैं. जिस समाज में भ्रष्टाचार अधिक होगा, वहां अपराध भी बढ़ेगा. इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि हिंसा या अपराध का पोषण भ्रष्टाचार के सहारे होता है. ऐसे में अगर बिहार की बात करें, तो तमाम कोशिशों के बावजूद यहां न तो अपराध कम हुआ है और न ही भ्रष्टाचार रुकने का नाम ले रहा है. बीते कुछ महीनों में भ्रष्टाचार की लम्बी श्रृंखला उजागर हुई है. इनमें सृजन नामक एनजीओ से जुड़ा दो हजार करोड़ का घोटाला, शौचालय निर्माण घोटाला, महादलित विकास फंड घोटाला आदि शामिल हैं.