kisaanकहने को तो मध्य प्रदेश सरकार सूखा राहत के लिए बहुत से कदम उठा रही है या उसने इसके लिए अब तक बहुत से कदम उठाएं हैं लेकिन इन योजनाओं का फायदा लोगों को होता नहीं दिखाई पड़ रहा है. पिछले साल अवर्षा की वजह से उत्पन्न हुई संभावित सूखे की स्थिति के आंकलन के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को वास्तविक स्थिति का जायजा लेने के लिए तीन दिन (25, 26 और 27 अक्टूबर) के ग्रामीण भ्रमण पर भेजा था.

इसके लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों अलग-अलग विकास खंड आवंटित किए गए थे. आदेशानुसार उन्हें नौ से दस गांवों का दौरा करके, ग्रामीणों के साथ बातचीत करके ज़मीनी अनुभव के आधार पर अवर्षा की स्थिति, कृषि और इससे जुड़े विषयों के संबंध में रिपोर्ट देनी थी.

अधिकारियों को भ्रमण किए गए गांवों में पीने के पानी की स्थिति एवं स्त्रोत, अगली फसल के लिए (गत वर्ष की तुलना में) कुएं, तालाब, नहर, ट्यूबवेल व अन्य संसाधनों से सिंचाई की व्यवस्था की जानकारी मांगी गई थी. और सबसे प्रमुख अधिकारियों को यह जानकारी भी देनी थी कि गर्मी तक उन गांवों में पीने का पानी उपलब्ध रहेगा या नहीं, या गर्मियों में इन गांवों में पीने के पानी की वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी. वैकल्पिक व्यवस्था कैसी होगी इस संबंध में अधिकारियों को ग्रामीणों से बातचीत कर सुझाव देेने थे.

जो अधिकारी भी ग्रामीण भ्रमण पर गए थे उनमें से अधिकांश ने अपनी रिपोर्ट में भ्रमण किए गए गावों में गर्मी के मौसम में पानी की कमी होने की आशंका जताई थी और इसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने की बात कही थी. अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि पिछले दो वर्षों से वर्षा नहीं होने के कारण गांवों का भू-जल स्तर गिर गया है, अधिकांश गांवों में नल-जल योजना के पाइप डले हैं लेकिन पानी की सप्लाई बंद है. अधिकांश गावों में नल-जल योजना फेल है. इसके अलावा गांवों में जो हैंडपंप लगे हैं उनकी स्थिति भी ठीक नहीं है. प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सरकार को भ्रमण की रिपोर्ट दिए छह महीने से ज्यादा समय गुजर गया, लेकिन सरकार ने उनके सुझावों पर कतई अमल नहीं किया.

इसका सीधा सा उदाहरण नल-जल योजना है. इस योजना की शुरूआत साल 2011 में केंद्र सरकार द्वारा स्पेशल बुंदेलखंड पैकेज के अंतर्गत जल प्रदाय योजना की शुरूआत की गई थी. प्रदेश के सभी गांवों में घर-घर तक पीने का पानी सप्लाई करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने इस योजना के विस्तार का खाका तैयार किया था. गत वर्ष अक्टूबर माह में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचई) की समीक्षा बैठक में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश के हर घर में इस योजना के बल पर पानी पहुंचाने की बात कही थी.

उन्होंने कहा था कि पानी पहुंचाने के प्रबंध अभी से किए जाएं ताकि गर्मियों में प्रदेश के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में दिक्कत न आए. जिन जगहों पर बिजली की दिक्कत है उन बसाहटों में सौर ऊर्जा आधारित नल-जल योजना चलाने की बात कही गई थी. लेकिन आज स्थिति यह है कि प्रदेश के तकरीबन 70 प्रतिशत गांवों में यह योजना बंद पड़ी है. एक तरह से सूखे से निपटने के लिए शुरू की गई अधिकांश योजनाएं  सफेद हाथी साबित हो रही हैं. सरकार इन योजनाओं के नाम पर अथाह पैसे खर्च कर रही है लेकिन इसका प्रभाव ज़मीनी स्तर पर नहीं हो रहा है.

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के 150 गावों में सल 2011 में इस योजना की शुरूआत की गई थी. जिसके अंतर्गत प्रत्येक गांव में दो पानी की टंकी और एक पंप लगाया जाना था. इसके लिए 9 करोड़ रुपये भी खर्च किए गए, लेकिन आज पांच साल बाद इन 150 गावों में से 87 गांवों में सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह योजना ठप्प पड़ी है.

इसके अलावा सरकार जिन 63 गांवों में इस योजना के चलने का दावा किया जा रहा है उनमें से 33 गांवों में योजना बदहाल है. क्या ऐसे में सरकारों से सूखे से जूझ रहे लोगों की प्यास बुझाने की अपेक्षा की जाए. यदि प्रदेश के सबसे ज्यादा सूखा प्रभावित क्षेत्रों में इस योजना की यह हालत है तो राज्य के अन्य हिस्सों में इसका क्या हाल होगा इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. प्रदेश सरकार पर इस योजना के असफल होने का आरोप इसलिए भी लग रहा है क्योंकि विधान सभा में तकरीबन हर क्षेत्र के विधायक

अपने-अपने क्षेत्रों में विभिन्न कारणों से बंद पड़ी

नल-जल योजना के  पुनः प्रारंभ होने के संबंध में सवाल पूछ चुके हैं, लेकिन मंत्री महोदया के पास इस योजना के पुनः प्रारंभ होने के संबंध में कोई साफ जवाब नहीं है. यह स्थिति तब है जब सरकार सूखा राहत को अपनी कार्यसूची में सबसे ऊपर रखा है. पिछले साल 16 दिसंबर को  विधान सभा में 163 सवाल पूछे गए थे जिनमें लगभग 28 सवाल केवल नल जल योजना से संबंधित थे. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि नल-जल योजना की प्रदेश में क्या स्थिति है. कहीं मोटर चलाने के लिए बिजली नहीं है, तो कहीं वोल्टेज कम है, कहीं मोटर महीने से जली पड़ी है तो कहीं बोर में पानी नहीं है.

कहीं टंकी लगी है तो पाइप लाइन नहीं बिछी है.कई जगहों पर तो खराब गुणवत्ता की पाइपलाइन बिछाने की खबरें भी आईं यह बात मंत्री कुसुम सिंह मेहदले ने भी सदन में स्वीकार की थी. सरकार ने योजना में पैसा तो खर्च किया लेकिन इनका संचालन नहीं हो पा रहा है न ही रख-रखाव. ऐसे में इसे मजह दिखावा ही कहा जाएगा कि सरकार प्रदेश के घर-घर तक लोगों के पास पानी तो पहुंचाने का श्रेय लेना चाहती है लेकिन लेकिन इसके लिए न तो वह गंभीर है और न ही उसका महकमा.

इसी तरह सरकार की एक अन्य योजना है कपिल धारा योजना. इस योजना में अधिकतम 50 फिट की गहराई तक किसान के खेत में कुआं खोदने का प्रावधान है. जिसका व्यास छह मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए. इसके निर्माण मेंे महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत लोगों को रोजगार भी मिलता है.

कपिल धारा योजना के लिए सरकार एक से तीन लाख के रुपये के बीच आवश्यक्तानुरूप धन उपलब्ध कराती है, इसका मुख्य लक्ष्य बारिश के पानी को संरक्षित कर किसान को रबी की फसल के लिए पानी उपलब्ध कराना है जिससे कि किसान एक से ज्यादा फसल का उत्पादन अपने खेत में कर सके और उसके पास अपने उपयोग के लिए गर्मियों में भी पानी उपलब्ध रहे. लेकिन अधिकांश भ्रष्टाचार की वजह से कुओं को 50 फिट से कम खोदा गया.

इस वजह से इनमें ज्यादा पानी संरक्षित नहीं हो पाता है, ऐसे में यह योजना हितग्राही मूलक न होकर भ्रष्टाचार मूलक बनकर रह गई है. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह योजना शत प्रतिशत सफल नहीं हो सकती है क्योंकि जल स्तर के लगातार नीचे जाने की वजह से जमीन का पानी कुएं में एकत्रित नहीं हो पाता है. वहीं दूसरी तरफ लगातार वर्षा न होने की वजह से भी इनमें पानी एकत्र नहीं हो पाता है. ऐसे में सरकार को लोगों को सूखे से निजात दिलाने के लिए दूरगामी कदम उठाने चाहिए. पानी के लिए पानी की तरह पैसा बहाने के बावजूद लोगों के गले तर्र नहीं हो पा रहे हैं. ऐसे में सरकारी योजनाओं और सरकार की मंशा पर निश्चित तौर पर सवाल खड़े होते हैं.

यूपी के आठ जिले सूखाग्रस्त घोषित केंद्र से मांगी मदद

उत्तर प्रदेश सरकार ने सूबे के आठ जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है. इनमें बुंदेलखंड के सात जिले और कानपुर नगर जिला शामिल हैं. प्रदेश में रबी फसल के दौरान बारिश न होने से किसानों के नुकसान की सूचना पर केंद्र सरकार ने पिछले महीने प्रदेश सरकार से सूखे की स्थिति पर रिपोर्ट मांगी थी.

इस पर शासन ने जिलों से रिपोर्ट मांगी, तो बुंदेलखंड के ललितपुर को छोड़कर छह जिलों और कानपुर नगर में 33 फीसदी से अधिक फसलों के नुकसान की  बात सामने आई. इन सात जिलों में 1,261 करोड़ के नुकसान का हवाला देते हुए केंद्र से सहायता मांगी गई है. उक्त जिलों को सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया जा रहा था जिससे केंद्र सरकार मेमोरंडम की जांच के लिए अपनी टीमें नहीं भेज पा रही थी. केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकार को जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर इसकी सूचना भेजने का निर्देश दिया था.

इस पर प्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड के बांदा, महोबा, झांसी, चित्रकूट, हमीरपुर, जालौन व ललितपुर तथा कानपुर नगर जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने का फैसला कैबिनेट बाई सर्कुलेशन से किया. केंद्र को भेजे गए रबी मेमोरेंडम में ललितपुर जिला शामिल नहीं था, फिर भी केंद्र ने ललितपुर को भी सूखाग्रस्त जिलों में शामिल कर लिया है. इससे प्रदेश सरकार केंद्र को नए सिरे से मांगपत्र भेज सकती है. सूखाग्रस्त घोषित करने की रिपोर्ट केंद्र को भेजी जा रही है. रिपोर्ट पाते ही केंद्र सरकार सूखाग्रस्त जिलों का जायजा लेने के लिए अपनी टीम भेजेगी. इसी टीम की रिपोर्ट पर राहत पर फैसला होगा.

पिछले साल भी 50 जिले सूखाग्रस्त घोषित किए गए थे. तब किसानों को क्या मदद मिली थी, सरकार के कारनामे जगजाहिर हो चुके हैं. सरकार ने पिछले साल मध्य यूपी के सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, उन्नाव, कानपुर नगर, लखनऊ, अमेठी, रायबरेली, कानपुर देहात, फतेहपुर, पूर्वांचल के बलिया, सिद्धार्थनगर, बस्ती, जौनपुर, गोंडा, फैज़ाबाद, बाराबंकी, संत कबीर नगर, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, महाराजगंज, कुशीनगर, इलाहाबाद, कौशांबी, अंबेडकरनगर और बलरामपुर, विंध्य क्षेत्र के मिर्जापुर, सोनभद्र, संत रविदास नगर, चंदौली, पश्चिमी यूपी के मैनपुरी, शाहजहांपुर, एटा, इटावा, बागपत, रामपुर, कन्नौज, हाथरस, आगरा, गाजियाबाद, फर्रुखाबाद, औरैया, पीलीभीत, बुंदेलखंड के बांदा, झांसी, जालौन, महोबा, चित्रकूट, हमीरपुर, ललितपुर को सूखाग्रस्त जिला घोषित किया था.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here