और शहिदे आजम भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को लोहिया जयंती के दिन ही फाँसी पर चढ़ाने के कारण डॉक्टर साहब ने मृत्यु तक अपने जन्मदिन को नही मनाया था ! और अपने साथियों को भी सक्त ताकिद थी कि मेरे जन्मदिन के ही दिन भारत माँ के तीन सपुतोकी अंग्रेजो ने फांसी लगाकर हत्या की हैं इसलिए अब आज से 23 मार्च को कभी भी मेरा जन्मदिन नहीं मनाया जायेगा !
डॉ राम मनोहर लोहिया और राष्ट्रीय एकात्मता !
गोवा मुक्ति का सूत्रपात 1944 मे करने वाले डॉ राम मनोहर लोहिया अपने जर्मनी से पढाई के समय के गोवेनिज मित्र मेनेजेस के आग्रह के कारण 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के कारण विभिन्न जेलों से 1944 को मुक्त होने के बाद मेनेजेस साहब ने स्वास्थ्य लाभ के लिए डॉ राम मनोहर लोहिया जी को अपने घर आसोला मे बुलाया था!और मेनेजेस और अन्य स्थानीय लोगों से जब पोर्तुगिज शासकों की अन्याय और अत्याचार की कहानियों को सुनने के बाद डॉ राम मनोहर लोहिया जी भले स्वास्थ्य लाभ के लिए आये थे!लेकिन लोहिया जिस मट्टी के बने थे भला वह इस तरह के अन्याय-अत्याचार की बातों को सुनने के बाद चुपचाप स्वास्थ्य लाभ कर सकते? उल्टा उनका स्वास्थ्य इस तरह के माहौल में और भी ज्यादा बिगडेगा! और तबतक उनके दिल को राहत नहीं मिलेगी जबतक कि वह उस सवाल को लेकर कोई पहल नहीं करते ! तबतक उनकी तबियत ठीक नहीं हो सकती इसलिए गोवा मे गये थे स्वास्थ्य लाभ के लिए लेकिन गोवा को पोर्तुगिज शासकों से मुक्ति का बिगुल बजा दिया ! और उस कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया और बाद में गोवा से बाहर निकाला कर दिया !
लेकिन एक तरफ संपूर्ण भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1944 को स्वतंत्रता आंदोलन परवान पर चढा हुआ था और गोवा में डॉ राम मनोहर लोहिया के जाने के बाद आंदोलन की शुरुआत होती है और 1961 मे भारत की स्वतंत्रता के बाद चौदह साल बाद गोवा आजाद होता है ! यह मेरे लिए एक अनबुझी पहेली है ! लेकिन मेरे लेखन का विषय राष्ट्रीय एकात्मता होने के कारण मै इस विषयपर जादा नहीं लिखूंगा कोई और साथियों मेसे लिखे इस उम्मीद के साथ अपने आप को रोक कर मेरे विषयपर आता हूँ !
डॉ राम मनोहर लोहिया और राष्ट्रीय एकात्मता !
हालांकि गोवा को पोर्तुगिज पंद्रहवीं शताब्दी के शुरूआत में ही वास्को दि गामा की ऐतिहासिक भारत खोजके !1498 को पहले कालिकत केरलाका सबसे पुराना बंदरगाह है ! पाचसौ साल पहले ही कब्जे के करने के बावजूद यानी अंग्रेजी राज के भी तीन सौ साल पहले के ! भारत की स्वतंत्रता के बाद चौदह साल बाद गोवा आजाद होता है यह राष्ट्रीय एकात्मता की एक कडी है ! मै लेख के अंतिम चरण में इसपर रोशनी डालने की कोशिश अवश्य करूगा !
डॉ राम मनोहर लोहिया जी की हिंदू बनाम हिंदू नामकी पुस्तिका में वह लिखे हैं कि भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लडाई हिंदू धर्म मे उदारवादी और कट्टरता की पिछले पाँच हजार सालों से भी ज्यादा समय से चल रही है ! और जिसका अंत अभी भी दिखाई नहीं पड़ता है ! इस बात की कोई कोशिश भी नहीं की गयी जो होनी चाहिये थी ! इस लडाई को नजर में रखकर हिंदुस्थान के इतिहास को देखा जाए,उसे बुना जाए,लेकिन देश में कुछ होता है,इसका बहुत बडा हिस्सा इसी के कारण होता है !
मै डॉ राम मनोहर लोहिया के शुरू के आकलन को स्वीकार करता हूँ पर कोई भी कोशिश नहीं की गयी इस बात से असहमत हूँ ! क्योंकि ढाई हजार साल पहले के वर्तमान बिहार जो कभी विहारों के कारण बिहार बोला जा रहा उसी बिहार में चालीस पचास साल के फासले से महाविर और सिद्धांर्थ गौतम के प्रयास क्या थे ? दोनों ने हिंदू धर्म मे उदारवादी लडाई मुख्यतः जाँत पात की प्रथा यानी उचनिच संपूर्ण हिंदू धर्म को नकारते हुए पर्यायवाची धर्म स्थापित कर के हिंदू धर्म की नींव पर ही हमला किया है ! और उन्हें कुछ हदतक कामयाब होने का इतिहास मौजूद है फिर उनके खिलाफ हिंदू धर्म के कट्टरता वादियोने क्या किया है ? और किस तरह से भारत की भुमि पर से खदेड़ कर (कश्मीरी पंडित कल्हण की राज तरंगिणी ग्रंथ में विस्तार से लिखा है !)
आज भी वह धर्म दुनिया के अन्य धर्मों में तीसरे स्थान पर कायम है ! मै उनके तफसील मे जाउँगा तो वह एक स्वतंत्र लेख का विषय है ! और मैं अवश्य उसपर भी कभी अवश्य लिखूंगा !
तो सिद्धार्थ और महावीर के ढाई हजार साल बाद गोरखनाथ और मछिद्रनाथ और गोरखनाथ के नाथ संप्रदाय के प्रयास उसीके आसपास कर्नाटक में ग्यारहवीं शताब्दी मे खुद ब्राम्हण होने के बावजूद बसवराजजीने लिंगायत पंथ की स्थापना की है ! और कट्टरता के खिलाफ आजसे एक हजार साल से भी ज्यादा समय कर्नाटक,महाराष्ट्र कुछ हदतक आंध्र प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में इस पंथ का प्रसार करने की कोशिश की है ! और कट्टरता के खिलाफ अपने उदारवादी आंदोलन को फैलाने मे कामयाब रहे उसी तरह महाराष्ट्र में ग्यारहवीं शताब्दी मे संत ज्ञानेश्वर सोलवी शताब्दी में संत तुकाराम उनके बिचमेही एकनाथ,नामदेव,जनाबाई गोरा कुंभार,और संतों के लगातार एक के बाद एक झडी लग गई थी उधर उत्तर भारत में कबीर,रैदास,नानक और सबसे बड़ी बात सूफी संतों की मुस्लिम कट्टरता को कम करने के लिए विशेष योगदान रहा है ! और इसकारण हिंदू-मुस्लिम सभीको उनके तत्वज्ञान के अनुयायी बने ! एक तरह से हिंदू-मुस्लिम के बीचो-बीच पुल का काम किया है ! और आज दोनों समुदायों के बीच आपसी सौहार्द प्रस्थापित करने के लिए विशेष योगदान रहा है !
मतलब कट्टरता के खिलाफ उदारवादी आंदोलन इतिहास के क्रम में लगातार जारी है ! और कब किसका पलडा भारी रहा इस तफसील मे जाउँगा तो वह एक स्वतंत्र लेख का विषय है और मैं अवश्य उसपर भी कभी अवश्य लिखूंगा ! क्योंकि यह मेरे लाइफ मिशन का पार्ट है जो मैंने आजसे तीस साल पहले ही भागलपुर दंगा के बाद शुरू किया है ! और शायद अंत तक वही रहेगा!
डॉ राम मनोहर लोहिया के आकलन के अनुसार कट्टरता और उदारता की लडाई इतिहास क्रम में लगातार जारी है ! और पर आज मेरा लेखन का विषय राष्ट्रीय एकात्मता और वह भी वर्तमान की होने के कारण अब मैं उसपर आता हूँ !
ढाई-तीन हजार साल से भी ज्यादा समय से कट्टरता और उदारता की लडाई लगातार जारी है ! और आज गत सौ साल से मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप की संपूर्ण राजनीति सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता के उपर ही जारी है ! और अंग्रेजों ने बखूबी बाटो और राज करो कि निति के कारण जरूर हवा दी है ! लेकिन उसके लिए हिंदू और मुसलमानों के कट्टरता वादियोने बहुत ही संगीन भुमिका निभाई है ! और उसमें कौन कम और कौन ज्यादा यह कहना मुश्किल है ! क्योंकि अलिगढ स्कूल के 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों को पुचकारने की निति और उसीके देखा देखी मे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय फिर 1906 मे प्रिंस आगाखान और ढाका के नवाब और अन्य मुस्लिम जमिनदारोकी मिलकर मुस्लिम लिग की स्थापना और उसीकी प्रतिक्रिया मे 1915 मे हिंदुओं के राजा-महाराजा और जमिनदारोकी पहल से हिंदू महासभा की स्थापना ! और वह कम लगीतो दस साल बाद 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना उसी तर्ज पर मौलाना मौदुदी ने जमाते इस्लामी हिंद यानी मुस्लिम लिग के रहते हुये अपनी अलग संघ के तर्जपर आर एस एस के स्थापना के पंद्रह साल बाद 1941 में जमाते इस्लामी हिंद यानी मुस्लिम आर एस एस के स्थापना के और इसके अलावा आर एस एस के स्थापना के एक साल बाद तबलीगी जमात ! यह सब आजादी के पहले ! और इन्हीं सांप्रदायिक राजनीति को अंग्रेजों ने बखूबी बाटो और राज करने के लिए विशेष रूप से इस्तेमाल करने का नतीजा है कि भारत का बटवारा और उस बटवारे से मसला हल होने की जगह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाकिस्तान और भारत दोनों को देखने से पता चलता है कि दोनों जगहों के वर्तमान सत्ताधारी दल अगर मुल्क का बटवारा नहीं हुआ होता तो इमरान खान ज्यादा से ज्यादा क्रिकेट टीम का मैनेजर या प्रशिक्षक और नरेंद्र मोदी जी को संघ की प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी सह्माल्ने के काम करने पड रहे होते !
सबसे पहली बात संघ को इतनी हैसियत प्राप्त होने का कोई कारण ही नहीं था कि मुसलमानों का डर दिखाकर ही 96 साल का सफर तय किया है ! और उसकी राजनीतिक ईकाई जिसे 1977 के पहले जनसंघ और 1980 के बाद भारतीय जनता पार्टी का आज का राजनीतिक मुकाम सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता के ध्रुवीकरण की राजनीति के कारण भारत की सत्ताधारी पार्टी बनने के लिए विशेष रूप से हिटलर के जैसा जू द्वेष और भारत में मुसलमानों का डर दिखाकर ही तिस पैतीस सालों मे भारत की सबसे बड़ी पार्टी बनने के लिए विशेष रूप से उग्र हिंदू धर्म को भागलपुर से लेकर गुजरात तक सुनियोजित ढंग से दंगों की और तथाकथित आतंकवादी हमले सचमुच किसने किये यह आज भी अनबुझी पहेली है क्योंकि महात्मा गाँधी के हत्या अगर कर सकते हैं तो कुछ भी कर सकते हैं और जस्टिस मादान ने भिवंडी और जलगाव दंगों पर अपने रिपोर्ट मे यह बात साफ तौर पर लिखा है कि दंगा कौन किया यह बात दीगर है लेकिन दंगा की भुमिका बनाने का काम बदस्तूर संघ अपने शाखाओके द्वारा तथाकथित बौद्धिक और अन्य प्रशिक्षणो के माध्यम से दंगा की भुमिका बनाने का काम करते हैं !
और यह बात मैंने खुद नांदेड 6 अप्रैल 2006, मालेगाँव विस्फोट के दोनों घटनाओं की खुद जाँच करने के कारण भारत में जितने भी आतंकवादी घटनाए हुई है फिर वह संसद,अक्षरधाम,पुलवामा,में बटला हाउस,और समझौता एक्सप्रेस से लेकर,एक जून 2006 को नागपुर संघ मुख्यालय के तथाकथित फिदाईन हमला और 26/11 का हेमंत करकरे और अशोक कामटे,साळसकर जैसे पुलिसके जांबाज अफसरो की हत्या,हैद्राबाद के मक्का मस्जिद,तेनकाशी,मोडासा,सुरत अजमेर शरीफ वाराणसी से लेकर जितने भी आतंकवादी घटनाओके बारेमे मैंने पचासों बार निस्पक्ष जाँच करने की माँग की है और इनमे से एक मालेगाँव विस्फोट के मामले में हेमंत करकरे जी ने थोड़ी कामयाबी प्राप्त की थी तो उनको ही जान गवानी पडी! तो भारत की अखंडता और एकता के लिए विशेष रूप से इस तरह की राजनीति का सूत्रपात गत तीस साल से भी ज्यादा समय से चल रहा है और आनन-फानन में दुसरे ही क्षण अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को जेलों में ठुसा गया है और इस तरह के हजारों युवक अल्पसंख्यक समुदाय के जेलोमे सालोसे सड रहे हैं और और यह समाज आज भारत में दुनिया का दो नंबर की जनसंख्या का है जो 30-35 करोड की आबादी है और इसी समाज को दंगों से लेकर तथाकथित आतंकवादी घटनाओके गुनाहगार ठहरा कर कौनसे भारत के एकता और अखंडता की स्तिथि कायम हो सकती है ? अगर भारत की एक चौथाई आबादी असुरक्षित मानसिकता में डाल कर किस देश की समाजस्वास्थ ठीक रहेगा ? और एकता-अखंडता की बात तो कोसों दूर है !
और पिछले साल से नागरिकता सुधारने के कानून के नाम पर की जाने वाली बात समस्त अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को असुरक्षित मानसिकता में डाल कर किस देश की एकता-अखंडता कायम रह सकती हैं ? और उपरसे सरकार के खिलाफ किसी भी आंदोलन या बयान,लेख या वक्तव्य को देशद्रोह का मुकदमा दायर करने कीयह कृति संपूर्ण भारत में दहशत का माहौल पैदा करने से कौन-सा एकता और अखंडता को कायम रखा जा सकता है ? और हजारों लोगों को तथाकथित राष्ट्र-द्रोही के आरोपों मे जेल मे डालना कौनसे राष्ट्रीय एकता के लिए वर्तमान सत्ता में बैठे हुए संघ परिवार के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक काम कर रहे हैं !
इसी तरह आये दिन भावनीक मुद्दों को तूल देकर सतत ध्रुवीकरण की राजनीति का दौर जबतक रोका नहीं जायेगा तबतक समस्त अल्पसंख्यक समुदाय के लिए असुरक्षा की भावना बनी रहेगी और जबतक इस देश की एक चौथाई से भी ज्यादा जनसंख्या जोकि अल्पसंख्यकोंकी है यानी तीस से चालीस करोड ! क्या इस तरह के माहौल में किसी भी देश का सामाजिक स्वास्थ्य बरकरार रह सकता है ?
दलितों के अत्याचार के बाद उन्नाव से लेकर हाथरस,बलरामपुर यह सिर्फ हाल के उदाहरण बता दिया बाकी सहारनपुर का दलित विरोधी दंगा और भी अन्य घटनाओं को लेकर पुलिस-प्रशासन का रवैया अभी किसानों के आंदोलन लेकर सत्ताधारी दल के जिम्मेदार पदोपर बैठे हुए लोग कोई खलिस्तानी तो कोई नक्सलैट तो कोई विदेशी मदद से चल रहे आंदोलन बोल रहे हैं और उपरसे प्रधानमंन्त्री पदपर बैठे सत्तर साल पार कर चुके महाशय हम बिल को वापस नहीं लेने की रट लगाए जा रहे हैं !
हमारे देश की सभी संविधानिक संस्थाओं को और मिडिया के लोगों को सरकारी दहशत में रहने के लिए मजबूर कर दिया है ! यह बात चार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोगों ने प्रेसवार्ता करके बोला है ! और इडी,सीबीआई,एन आइ ए सिर्फ और सिर्फ विरोधी दलों की सरकारों को गिराने का काम और विरोधी पार्टियां के लोगों को इन एजेंसियों का डर दिखाकर अपने पार्टी मे श्यामील करने के लिए विशेष रूप से इस्तेमाल करने का नतीजा इन सभी एजेंसियों की प्रतिष्ठा मट्टी पलित करने का गुनाह वर्तमान सत्ता धारी पार्टी कर चुकी है और अब सोशल मीडिया के पीछे पड गये रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावडेकर के मुहसे तीन दिन पहले तथाकथीत सोशल मीडिया सेन्सॉर के जो नियमों की घोषणा की है वह आजसे नब्बे साल पहले के जर्मनी मे डॉ गोबेल्स को भी मात देने वाली हरकत लग रही है और सात साल की सत्ता में आने के बाद भारत के संविधान को बदलने का काम करने के लिए विशेष वर्तमान सत्ता धारी पार्टी कर रही है जबकि भारत का संविधानिक प्रावधान हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के अंदर से जो मूल्यों को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने बनाया था वह सब कुछ संघ के दीर्घकालीन प्रमुख रहे श्री माधवराव सदाशिव गोलवलकर के दर्शन के अनुसार संविधान को बदलने की कवायद लगातार जारी है!और आज भारत की अखंडता और एकता के लिए जितना खतरा पैदा हो गया है उतना कभी भी नहीं रहा है और आज डॉ राम मनोहर लोहिया होते तो उन्होंने कभी भी इस तरह की फासिस्ट सरकार को बरदास्त नहीं किया होता गोवा मुक्ति के पचहत्तर साल के उपलक्ष में गोवा से ही वर्तमान सत्ता धारी दल के खिलाफ सिविल नाफरनामीके तर्ज पर आंदोलन शुरू किया होता!
क्योंकि डॉ राम मनोहर लोहिया के सामने का जनसंघ और संघ का असली चेहरा पूरा पता नहीं होने से क्योंकि डॉ साहब 1967 मे असामयिक मौत होने कारण गफलत में गैर कांग्रेस वाद के लोहिया जी के सिद्धांत मे जनसंघ और संघ को शामिल करने की ऐतिहासिक भूल की है ! और वही भूल दोबारा जेपी आंदोलन के दौरान होने का खामियाजा आज संपूर्ण देश को भुगतना पड़ रहा है ! क्योंकि जीस पाँच हजार साल से चली आ रही कट्टरपंथी और उदारपंथी लडाई हिंदू बनाम हिंदू नामके निबंध मे डाक्टर साहब ने की है उसके अनुसार कट्टरपंथी तत्वों का प्रतिनिधित्व वर्तमान समय में संघ परिवार और उसकी राजनीतिक ईकाई बीजेपी कर रही है और भारत की एकता और अखंडता के लिए सबसे बड़ा खतरा वर्तमान समय में सत्तर के दशक के शुरुआती दौर में खुद डॉ राम मनोहर लोहिया जी की गैर कांग्रेसवाद के निति के कारण संघ परिवार का समावेश करने के कारण गाँधी जी के हत्या के बाद मुँह छुपाते हुए संघ को खुलकर सामने आने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है और उसके बाद जाॅर्ज फर्नांडीज,नितीश कुमार जैसे पतनशीलता की हदे पार करने वाले आपके अपने अनुयायियों ने बची खुची कसर नहीं छोड़ी जिसका सबसे बडा प्रमाण जिस तरह से भारत की संसद में जाॅर्ज फर्नांडीज गुजरात दंगों के समर्थन और ओरिसा के कंधमाल जिले के मनोहरपुकुर मे कोढीयोकी सेवा करने वाले फादर स्टेन्स और उनके दो किशोर उम्र के बच्चों को जिंदा जलाया गया उसके तथाकथीत जाँच जाॅर्ज फर्नांडीज के नेतृत्व में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपने आप को क्लीन चिट दिलवाई यह भारत के समाजवादी आंदोलन के इतिहास का सबसे पतनशीलता का दौर था जिसे खुद डॉ राम मनोहर लोहिया ने कदापि माफ नहीं किया होता !
और यह बात मैंने आपातकाल में एस एम जोशीजी को जनता पार्टी के गठन के पहले कही थी कि आप चुनावी गठबंधन कर सकते लेकिन जनसंघ जैसे सांप्रदायिक दल के साथ एक पार्टी करने का प्रयास हर मायनों में भारत के लिए गलत साबित होगा और जनसंघ आर एस एस की राजनीतिक ईकाई होने के कारण सबसे ज्यादा सत्ता में आने के बाद लाभान्वित होगा और सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादीयोका होगा यह धोका मैंने कहा था और नहीं मैंने जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है और नाही किसी भी पद की ऑफर को स्वीकार किया जिसमें अमरावती लोकसभा चुनाव में टिकट से लेकर प्रदेश जनता पार्टी के महासचिव पद ऑफर थे ! सवाल मेरे व्यक्तिगत नकारा जाने का नही है आज सब कुछ सामने ही है और जो धोखे के इशारे मैंने बताया थे उनमें से एक भी गलत साबित हुआ ?
डॉ राम मनोहर लोहिया जी की हिंदू बनाम हिंदू नामकी पुस्तिका में वह लिखे हैं कि भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लडाई हिंदू धर्म मे उदारवादी और कट्टरता की लडाई पिछले पाँच हजार सालों से भी ज्यादासमय से जारी है और आज की बात है कि वर्तमान में भारत मे हिंदू कट्टरता की लडाई लोहिया जी की मृत्यु के बाद जिस तरह से भारत की अखंडता और एकता के लिए जितना खतरा पैदा हो गया है और इतिहास में की बात है कि वर्तमान में भारत मे हिंदू कट्टरता मतदाता को भ्रमित कर के हिंदू धर्म के नाम पर खुलकर खूनी खेल खेल रही है भागलपुर,गुजरात और देश के अन्य हिस्सों में ध्रुवीकरण की राजनीति के द्वारा दिल्ली से लेकर गली तक जो राजनीतिक काम कर रहे हैं वह भारत की अखंडता और एकता के लिए जितना खतरा पैदा हो गया है और इसे नहीं रोका गया तो बहुत संभावना है कि भारत के कितने टुकडे होंगे यह कहना मुश्किल है !
डॉ सुरेश खैरनार 21 मार्च 2021 , नागपूर