अजय बोकिल
वरिष्ठ संपादक
अगर इस खबर के पीछे कोई राजनीतिक दुश्मनी का एंगल है तो अत्यंत निंदनीय है, यदि इसके पीछे केवल स्वार्थ है तो यह मानवता के खिलाफ है। मंगलवार को खबर चमकी कि महाराष्ट्र ने कोविड 19 के बढ़ते प्रकोप के बीच दूसरे राज्यों को मेडिकल ऑक्सिजन की सप्लाई रोक दी है, जिनमें मध्यप्रदेश भी शामिल है। इस खबर से मप्र में हड़कंप मचना ही था, क्योंकि बावजूद तमाम दावो के राज्य में कोरोना पाॅजिटिव की संख्या बढ़ रही है। चूंकि कोरोना मुख्य रूप से शरीर के फेंफडों पर अटैक करता है, इसलिए अस्पतालों में कृत्रिम ऑक्सिजन देने के लिए मेडिकल ऑक्सिजन की बेहद ज्यादा जरूरत है। क्योंकि कोरोना को यही प्राणवायु जिंदा रह सकने की कुछ हद तक गारंटी है।
दरअसल कोरोना ने हमारे सिस्टम की जो खामियां गंभीरतापूर्वक उजागर की हैं, उनमें एक मेडिकल ऑक्सिजन का आपूर्ति तंत्र भी है। बताया जाता है कि कोरोना के कारण देश में मेडिकल ऑक्सिजन की मांग सामान्य से चार-पांच गुना तक बढ़ गई है। कोरोना प्रकोप की सबसे ज्यादा खराब स्थिति अभी भी महाराष्ट्र में है। इस कारण राज्य के पुणे जिला प्रशासन ने मेडिकल ऑक्सिजन निर्माता कंपनियों को निर्देश दिए हैं कि वो अपने उत्पादन का 80 फीसदी अस्पतालों के लिए सुरक्षित रखें। इसके पूर्व राज्य के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा था कि महाराष्ट्र सरकार प्रदेश में मेडिकल ऑक्सिजन उत्पादन का 50 फीसदी केवल महाराष्ट्र के लिए रिजर्व रखेगी। लेकिन पुणे और अन्य जिलों में कोरोना की गंभीरता को देखते हुए यह रिजर्व प्रतिशत बढ़ाकर 80 फीसदी कर दिया गया। बाकी 20 फीसदी औदयोगिक कार्यों के लिए रहेगा। साथ ही राज्य सरकार प्रदेश में मेडिकल ऑक्सिजन उत्पादन की समीक्षा भी कर रही है।
यहां समझने की बात यह है कि मेडिकल और इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन में फर्क क्या है? हम जो सामान्य रूप से ऑक्सिजन लेते हैं, वो हमे वातावरण की हवा से मिलती है। लेकिन मेडिकल ऑक्सिजन या एयर का उपयोग अस्पतालों के आईसीयू या एनआईसीयू में होता है। ये ऑक्सिजन विशिष्ट एयर कम्प्रेसरों में सप्लाई की जाती है, जो मरीज को कृत्रिम सांस देने के काम आती है। चूंकि कोरोना वायरस व्यक्ति के फेंफडों पर हमला करता है, इसलिए उसे बचाने के लिए इनहेलेशन थेरेपी में ऑक्सिजन का उपयोग किया जाता है। एक और तीसरी औद्योगिक ऑक्सिजन भी होती है, विभिन्न उत्पाद तैयार के काम आती है। मेडिकल ऑक्सिजन भी उन्हीं कारखानों में ही बनती है, जहां इंडस्ट्रीयल ऑक्सिजन बनती है। चूंकि कोविड 19 के चलते देश में मेडिकल ऑक्सिजन की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है, इसलिए दो माह पूर्व भारत सरकार ने देश के सभी 26 औदयोगिक ऑक्सिजन निर्माताओं को मेडिकल ऑक्सिजन का उत्पादन बढ़ाने के निर्देश दिए थे। उनसे ऑक्सिजन उत्पादन का मासिक डाटा जमा करने को भी कहा गया था। खास बात यह है कि इन ऑक्सिजन निर्माता कंपनियों की सूची में कोई भी मप्र में नहीं है। ऐसी ज्यादातर इकाइयां महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु , पंजाब आदि राज्यों में हैं। चिकित्सा जगत में मेडिकल ऑक्सिजन की मांग कितनी है, इसे मेडिकल ऑक्सिजन के बाजार से समझा जा सकता है। वर्ष 2018 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में मेडिकल ऑक्सिजन गैस सिलेडंरों का बाजार 2018 में 8.30 अरब डाॅलर का था, जो 2025 में बढ़कर 14.41 अरब डाॅलर का होने की उम्मीद है, लेकिन इसी बीच कोविड 19 ने इसकी मांग सामान्य से चार-पांच गुना बढ़ा दी है। उधर देश और मध्यप्रदेश में भी कोविड 19 के मरीज बढ़ते ही जा रहे हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक मप्र में कोरोना पाॅजिटिव की संख्या बढ़कर 77 हजार 323 तथा कोरोना से मौतों की संख्या भी 1609 हो गई है। लेकिन राज्य में जरूरत के मुताबिक ऑक्सिजन बेड्स की भारी कमी है। इसीलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल में बताया था कि 31 अक्टूबर तक मप्र में 3600 ऑक्सिजन बेड और बढ़ाए जाएंगे। ऑक्सिजन गैस सिलेंडरो की खूबी यह होती है कि गैस सिलेंडरों की तुलना में काफी लंबे होते हैं।
यहां समझने वाली बात यह है कि मुश्किल दौर में उद्योगपति अपने ढंग से बाजार का फायदा उठाते हैं और राजनीति अपने तरीके से उसमें स्पेस तलाशती है। मप्र की चिंता वाजिब है कि अगर महाराष्ट्र से आक्सीजन गैस सप्लाई बंद हो गई तो पेशंट को जिंदा रखने के काम आने वाली आक्सीजन कहां से आएगी? मरीज ऑक्सिजन के अभाव में मर जाने का खतरा है। हालांकि शिवराज सरकार ने ताबड़तोड़ ऑक्सिजन के औद्योगिक उपयोग को नियंत्रित करने के आदेश दिए हैं, क्योंकि औद्योगिक उत्पादन की तुलना मरीज को बचाना पहली प्राथमिकता है। मध्यप्रदेश में सरकारों का माइनस पाॅइंट यह है कि उन्होंने अपने राज्य में मेडिकल ऑक्सिजन उत्पादन की और ध्यान ही नहीं दिया। हमे ये आज भी अन्य राज्यों से मंगवानी पड़ती है। मप्र में इसके कारखाने होते तो इतनी चिंता की बात नहीं होती। हम अपने ढंग से उत्पादन भी बढ़ा सकते थे, लेकिन इस बुनियादी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन इस मामले में हम महाराष्ट्र की मेहरबानी पर निर्भर हैं। कायदे से कोरोना काल की याद को स्थायी बनाने के लिए राज्य में मेडिकल ऑक्सिजन बनाने का कारखाना स्थापित किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में भी ऐसी स्थिति बनने पर हमे दूसरों पर ज्यादा निर्भर न रहना पड़े। साथ ही मेडिकल ऑक्सिजन के 80 फीसदी मार्केट पर मुट्ठी भर कंपनियों का ही कब्जा है। यह ढीला पड़े, इसके उपाय भी किए जाने चाहिए। मप्र की चिंता पर महाराष्ट्र का अधिकृत बयान नहीं आया है, लेकिन लगता है कि उनको अपने राज्य की जरूरत की महाचिंता है। बेशक अपने राज्य के नागरिकों के स्वाथ्य की रक्षा हर सरकार का कर्तव्य है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि इलाज के उपकरणों पर भी एकाधिकार जताया जाए।
इस मामले में राजनीति की बू इसलिए आ रही है, क्योंकि अभिनेता सुशांत की मौत के मामले ने अब जो टर्न ले लिया है, वो अपराध के अन्वेषण के बजाए निहायत घटिया राजनीति का है। राजनीतिक दल इस संदिग्ध मौत को अपने-अपने ढंग से भुनाने में लगे हैं तो एक राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ता जिस तरह एक वाचाल अभिनेत्री से उलझते हैं और मामला पाकिस्तान-दाउद होते हुए उस एक्ट्रेस का ऑफिस तोड़ने तक जा पहुंचता है, यह सब बेहद निंदनीय और क्षुब्ध करने वाला है। इन सबसे हमारे राजनेता और अभिनेता आखिर सिद्ध क्या करना चाहते हैं? बयान बाजियो को विध्वंस तक ले जाने का क्या मतलब है? क्या ये लोग जनता को मूर्ख समझते हैं?
बहरहाल मेडिकल ऑक्सिजन गैस सिलेंडरों की सप्लाई रोकने का मामला सुशांत प्रकरण से कही ज्यादा गंभीर और संवदेनशील है। अभी कहना जल्दबाजी होगी कि महाराष्ट्र सरकार ने जानबूझकर मप्र को ऑक्सिजन सप्लाई रोकी है, लेकिन जिस तरह उसने अपने अस्पतालों के लिए ही ऑक्सिजन आरक्षित करने को कहा है, उसका सीधा प्रभाव मप्र को सप्लाई होने वाली मेडिकल ऑक्सिजन पर पड़ने लगा है। उम्मीद की जाए कि दोनो राज्यों के अधिकारी इस समस्या का समाधान निकाल लेंगे और देश के दो पड़ोसी राज्यों के सौहार्दपूर्ण रिश्तों में यह मामला ‘गलवान घाटी’ नहीं बनेगा। लेकिन अगर इस निर्णय के पीछे भी कोई राजनीतिक दुर्भावना है तो उसे सहन नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि मेडिकल ऑक्सिजन की सप्लाई कोई वोट बैंक पकाने का मामला नहीं है, यह मनुष्य के जीवन को बचाने की अंतिम कोशिश है। कोरोना काल में किसी को उस हाल से गुजरना पड़ सकता है, जहां ऑक्सिजन ही उसके थके फेंफड़ों में जान फूंक सकती है। यह मामला अगर विवाद में तब्दील हुआ तो किसी के लिए अच्छा नहीं होगा। आपदा में एक दूसरे की मदद करना मानवता की पूजा का अवसर है। इसे नहीं भूलना चाहिए।
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