प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत) का शुभारम्भ भगवन बिरसा की धरती झारखण्ड से कर दिया. लोग खुश भी हो गए कि प्रधानमंत्री ने इस महत्वकांक्षी योजना की शुरुआत उनके राज्य से की है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस योजना का लाभ लोगों को मिलेगा कैसे? या दुसरे शब्दों में कहें तो राज्य के जिन 57 लाख परिवारों को इस योजना से जोड़ा गया है उनका इलाज आखिर होगा कहां?
पंचायत से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और जिला अस्पतालों तक में डॉक्टरों और ट्रेनिंग याफ्ता नर्सों का आभाव है. इसके अलावा सुदूरवर्ती गांवों में सड़कें न के बराबर हैं. कोई बीमार हुआ तो वहां एम्बुलेंस या गाड़ियों का न पहुंचना दुश्वार है. एक बड़ी ग्रामीण आबादी एएनएम एवं सहिया दीदी (प्रशिक्षित दाई) के भरोसे जिंदा है.
यदि राज्य के आंकड़ों पर नज़र डालें तो सात हजार की आबादी पर अस्पतालों में औसतन एक बेड है और 19 हजार की आबादी पर एक डॉक्टर, जबकि दिल्ली में 11 हजार की आबादी पर एक एवं बिहार में 17 हजार की आबादी पर एक एक डॉक्टर हैं. उस पर से भी सोने पे सुहागा यह कि इन अस्पतालों में सरकारी सुविधाओं का घोर अभाव है. वहीँ दूसरी तरफ राज्य में प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेन्द्र की संख्या आबादी के अनुसार लगभग आठ हजार होनी चाहिए. पर राज्य में उपकेंद्रों की संख्या मात्र 3958, अतिरिक्त स्वास्थ्य उपकेन्द्र तो मात्र 330 ही हैं, जबकि 796 केन्द्रों की जरुरत है.
प्राथमिकी स्वास्थ्य केन्द्र तो राज्य में हैं ही नहीं, जबकि 1126 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की जरूरत है. पूरे राज्य में 24 रेफरल अस्पताल हैं, जबकि चार मेडिकल कॉलेज अस्पताल, जहां जरूरत से ज्यादा रोगी हमेशा भर्ती रहते हैं. पूरे राज्य में चिकित्सकों की संख्या मात्र 2468 है, जबकि विशेषज्ञ चिकित्सकों की घोर कमी है. लगभग साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले राज्य में मात्र डेढ़ हजार एएनएम हैं. लैब टेक्निशियन की संख्या भी जरूरत से काफी कम है. राज्य में केवल 225 लैब टेक्निशियन हैं, जबकि फार्मासिस्टों की संख्या साढ़े तीन सौ है.
झारखण्ड में अस्वस्थ्य लोगों की संख्या अच्छी खासी है. यहां 77.5 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं और प्रति एक हजार पर 49 बच्चों की मृत्यु एक वर्ष की आयु तक पहुंचने से पहले ही हो जाती है. इसका एक कारण यह भी है कि लगभग 38 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनेमिक हैं. जाहिर है कि इनके बच्चे भी कुपोषित ही होंगे.
गांवों में अधिकांश प्रसव गांव की दाई द्वारा कराए जाते हैं, क्योंकि गांव एवं प्रखंड स्तर पर सुरक्षित प्रसव की कोई व्यवस्था नहीं है. केवल 22 प्रतिशत प्रसव ही अस्पतालों में होते हैं. झारखण्ड में कुष्ठ, टीबी, मलेरिया, डायरिया, कालाजार के रोगी बहुतायत की संख्या में है. अब ये लोग इस योजना का लाभ लेने के लिए अस्पतालों की ओर दौड़ेंगे. अस्पतालों में सिनेमाघरों जैसी लंबी कतारें लगेंगी.ऐसे में अपना इलाज कराना बीमार लोगों के लिए मुश्किल भरा काम होगा.