आज का संपादकीय संभवत: पूर्ण रूप से झूठ पर आधारित है. मैं चाहूंगा कि आप इस लेख में लिखी हुई सारी बातों को जांचें और मुझे लिखें कि मैंने यह झूठ क्यों लिखा है. यह झूठ प्रधानमंत्री के सामने भी जाना चाहिए और एक वंचित व्यक्ति के सामने भी, जो स़िर्फ दो वक्त का भोजन पाने के लिए दिन भर हाड़तोड़ मेहनत करता है. 26 मई, 2014 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शपथ ली थी, उस समय इंदौर से भोपाल का रेल किराया पैसेंजर सवारी का 40 रुपये था, जो आज 25 प्रतिशत बढ़ोत्तरी के बाद 50 रुपये है. उस दिन प्लेटफॉर्म टिकट 5 रुपये का था, जो आज दस रुपये में मिलता है और व्यवस्था जस की तस है.
सबसे पहले रेल किराया बढ़ाया गया था, तो यह कहा गया था कि अगर किराया नहीं बढ़ेगा, तो वर्ल्ड क्लास रेल नहीं आ पाएगी. अब दो से तीन बार किराया बढ़ चुका है, लेकिन वर्ल्ड क्लास रेल तो छोड़ दीजिए, रेल में किसी भी सुविधा की बढ़ोत्तरी नहीं हुई और हम वैसी ही नारकीय स्थिति में सफर करते हैं. किराया बढ़ाते समय जो वादे किए गए थे, उन वादों का आ़िखर क्या हुआ? 2-जी का उदाहरण. आइडिया का नेट बाउचर 98 रुपये में अनलिमिटेड आता था. आज अनलिमिटेड 2-जी 250 रुपये में आता है. उस दिन एक डॉलर 58 रुपये के बराबर था और आज 66 रुपये के बराबर है. तब कॉल रेट 30 पैसे मिनट थी, आज एक रुपये मिनट है.
तब कच्चा तेल 105.71 डॉलर प्रति बैरल था, पेट्रोल 71.41 रुपये लीटर था और पेट्रोल पर वेट 21 प्रतिशत था, आज कच्चा तेल 40 डॉलर प्रति बैरल है, पेट्रोल 68.50 रुपये लीटर है और पेट्रोल पर वैट 31 प्रतिशत हो गया है. तुअर (अरहर) की दाल उस समय 70 रुपये प्रति किलो थी, आज 130 रुपये प्रति किलो है और प्याज 15 रुपये प्रति किलो था, आज 80 रुपये प्रति किलो है.सर्विस टैक्स 12.36 प्रतिशत था, आज 14 प्रतिशत है. एक्साइज ड्यूटी 10 प्रतिशत थी, आज 12.36 प्रतिशत है. सभी दोस्त, खासकर उद्योगपति दोस्त, अपनी बैलेंस शीट चेक करें, चार्टर्ड एकाउंटेंट अपने ग्राहकों और ग्राहक स्वयं की बैलेंस शीट चेक करें, तो सारा माजरा समझ में आ जाता है.
आज मोदी सरकार को 462 दिनों से ज़्यादा हो गए और इस सरकार ने हमसे 100 करोड़ रुपये की गैस सब्सिडी खत्म कराने के लिए 250 करोड़ रुपये के विज्ञापन दे दिए हैं. स्वच्छता अभियान का विज्ञापन बजट भी 250 करोड़ रुपये था, लेकिन दिल्ली में स़फाई कर्मियों की सालाना तनख्वाह के लिए ज़रूरी 35 करोड़ रुपये का इंतजाम केंद्र सरकार ने नहीं किया.
किसान टीवी पर सालाना 100 करोड़ रुपये का खर्च सरकार दे सकती है, क्योंकि इस चैनल के सलाहकार समेत आधे कर्मचारी किसी न किसी संगठन से जुड़े हुए हैं, जो प्रधानमंत्री का प्रिय संगठन है. लेकिन, उन किसानों की खाद्य सब्सिडी इस सरकार ने छीन ली, जिनके टीवी चैनल पर 100 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं.
सरकार के पास योगा-डे के लिए 500 करोड़ रुपये हैं, जो उन्होंने खर्च किए. सरकार के पास हरियाणा के स्कूल में योग सिखाने के लिए सालाना 700 करोड़ रुपये हैं, लेकिन सरकार ने प्राथमिक शिक्षा के बजट में 20 प्रतिशत कटौती की, क्योंकि स्कूलों के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं. सरकार के पास कॉरपोरेट घरानों को 64 हज़ार करोड़ रुपये की टैक्स छूट देने के लिए पैसे हैं, लेकिन आत्महत्या कर रहे किसानों का कर्ज चुकाने के लिए 15 हज़ार करोड़ रुपये नहीं हैं. स्किल इंडिया के लिए 200 करोड़ रुपये का विज्ञापन बजट है, लेकिन युवाओं की छात्रवृत्ति में 500 करोड़ रुपये की कटौती बिना किसी हिचक के सरकार कर डालती है.
यह वह सरकार है, जो विदेशियों को 17.26 रुपये प्रति किलो की दर से प्याज बेचकर उसे 45 रुपये प्रति किलो की दर से वापस खरीदेगी, जो ट्रांसपोर्ट आदि का खर्च जोड़कर 50 रुपये प्रति किलो में वापस मिलेगा. और सबसे मजे की बात, इस सरकार ने विपक्ष और किसानों के दबाब में आकर भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर घुटने अवश्य टेके, लेकिन चौतऱफा विरोध से घिरी सरकार जान-बूझकर भूमि अधिग्रहण क़ानून लाने की जिद पर बनी रही और सारे देश में अपनी किरकिरी करा ली. आ़िखर में किसानों की जीत हुई. कहा गया कि अब सरकार इस विषय पर अध्यादेश नहीं लाएगी.
सरकार घाटे में है. ओएनजीसी को बेचने की तैयारी चल रही है. रेलवे की ज़मीनें बेचने के लिए टेंडर जारी किया जाए, यह फैसला लिया गया है, लेकिन गुजरात के उद्योगपति के लिए 22 हज़ार करोड़ रुपये सरकार ने बहुत आसानी से दे दिए हैं. हमने मनमोहन सिंह सरकार को मौन सरकार की संज्ञा दी, लेकिन उनके कार्यकाल में विकास की दर नौ प्रतिशत थी और अब काम करने वाली सरकार, नया भारत बनाने वाली सरकार में विकास की दर सात प्रतिशत रह गई है.
मैं मानता हूं कि ये जानकारियां ग़लत हैं, क्योंकि इन्हें उन साधारण लोगों ने मुझे भेजा है, जो देश का अर्थशास्त्र नहीं जानते, मंत्रियों के तर्क नहीं जानते, अधिकारियों की सपने दिखाने की कला नहीं जानते, लेकिन अंत में तो पेट में जाने वाली रोटी और टूटते सपनों की सच्चाई का जिन्हें सामना करना होता है, वे ऐसी जानकारियां हम लोगों तक पहुंचाते हैं.
और, हम इन जानकारियों को झूठा कहते हैं या पर्चा फाड़कर फेंक देते हैं, क्योंकि हमारे लिए लोगों के दु:ख-दर्द से ज़्यादा इंद्राणी मुखर्जी की कहानी मायने रखती है. जब इंद्राणी मुखर्जी की लड़की, जिसकी अब हत्या हो चुकी है या हत्या हुई है, यह साबित किया गया है, तब किसी चैनल या अ़खबार ने पीटर मुखर्जी जैसे सर्वशक्तिशाली व्यक्ति के ़िखला़फ, भाईचारा दिखाते हुए, रिपोर्ट नहीं किया. अब रा़ेजाना नई कहानियां सामने आ रही हैं और इन कहानियों में सच्चाई का पुट कम, कल्पना का पुट बहुत ज़्यादा है.
हम अपने पाठकों से यह अनुरोध करते हैं कि वे इस संपादकीय में लिखे हर शब्द को ग़लत साबित करें, क्योंकि हो सकता है कि यह ग़लत हो. हमने इसे स्वयं परखा नहीं है, क्योंकि हमें लगा कि परखने का काम यदि हम साथ-साथ करें, तो कैसा रहे. इसलिए हम आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार कर रहे हैं.