सोसाइटी की प्रॉब्लम क्या है, जैसा कि अंबेडकर साहब ने कहा था कि संविधान निश्चित कर देगा कि एक डेमोक्रेटिक पॉलिटी यानि लोकतांत्रिक राजनीति आगे आई थी. ये लोकतांत्रिक समाज नहीं है. ये नहीं चलेगा और वही हुआ. अंशु प्रकाश दिल्ली के एमएलए से बात करना अपने इज्जत के खिलाफ समझते थे. ये विधायक समाज का नेतृत्व करते हैं. उनके इलाके में राशन की कमी है. हो सकता है कि उन्होंने थोड़ा उत्तेजित होकर बोला होगा. इन्होंने कहा कि मैं चोरों-चमारों से बात करने में अपनी बेइज्जती समझता हूं.
पंजाब नेशनल बैंक के मामले से तो देश अभी उबर रहा है. इस बीच कई नई बातें आ गईं. एक तो जान-बूझकर दिल्ली सरकार के साथ कंट्राडिक्शन करवाया जा रहा है. अभी तक दिल्ली में कांग्रेस और भाजपा बुरी तरह हारी थी, 70 में से 67 सीटें आप को मिली थीं. उस शोक से भाजपा अभी तक उबर नहीं पाई है. खेल में तो हारना-जीतना लगा रहता है, लेकिन अभी जो भाजपा का नेतृत्व है, वो हार समझता नहीं है. वो हार गया, तो घूंसा मारने लग जाएगा. चाकू चलाने लग जाएगा. किसी भी तरीके से उनको जीतना है. यह लोकतांत्रिक तरीका नहीं है. केजरीवाल कौन हैं, क्या हैं, मुझे मतलब नहीं है. वे चुनाव जीते हैं और अच्छी मेजॉरिटी से जीते हैं.
आप उनको काम करने दीजिए. दिल्ली का एक पूर्व पुलिस कमिश्नर बख्शी था. मेरी जानकारी में अब तक कोई भी आईपीएस अफसर इतना गैरजिम्मेदार, इतना अहंकारी, इतना अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक नहीं देखा. वो खुले आम चीफ मिनिस्टर को बयान देता है कि मैं उनके साथ डिबेट करने को तैयार हूं. आप हैं कौन? आप चौकीदार हैं. आपका जो काम है, आप करिए. ठीक है, आप एलजी के अंडर में हैं, उनको रिपोर्ट करिए. इलेक्टेड चीफ मिनिस्टर से मत रखिए. यह लोकतांत्रिक तरीका नहीं है.
जिस देश में ये हुआ है, उस देश में पब्लिक रिवोल्यूशन करती है. आप किस खतरे से खेल रहे हैं? बख्शी से जान छूटी, फिर नया कमिश्नर आ गया. उसने सब ठीक कर दिया. उसने एक भी अनर्गल बयान नहीं दिया. अब ये दूसरी मुसीबत आ गई. चीफ सेक्रेटरी अंशु प्रकाश आए. अब पहली बात तो ये गलत है कि आप एमएलए को सीधे चीफ सेक्रेटरी से मिला रहे हैं. एमएलए तो मिनिस्टर से शिकायत करेगा, फिर मिनिस्टर चीफ सेक्रेटरी से बात करेगा. अरविंद केजरीवाल भी रात को साढ़े ग्यारह-बारह बजे मीटिंग बुला रहे हैं.
सोसाइटी की प्रॉब्लम क्या है, जैसा कि अंबेडकर साहब ने कहा था कि संविधान निश्चित कर देगा कि एक डेमोक्रेटिक पॉलिटी यानि लोकतांत्रिक राजनीति आगे आई…थी. ये लोकतांत्रिक समाज नहीं है. ये नहीं चलेगा और वही हुआ. अंशु प्रकाश दिल्ली के एमएलए से बात करना अपने इज्जत के खिलाफ समझते थे. ये विधायक समाज का नेतृत्व करते हैं.
उनके इलाके में राशन की कमी है. हो सकता है कि उन्होंने थोड़ा उत्तेजित होकर बोला होगा. इन्होंने कहा कि मैं चोरों-चमारों से बात करने में अपनी बेइज्जती समझता हूं. ये तो प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट में क्रिमिनल ऑफेन्स है. आप शिड्यूल कास्ट को गाली नहीं दे सकते. वे वहां से चले गए. फिर भाजपा का इशारा है, अमित शाह या और ऊपर से कहा गया होगा कि इनपर क्रिमिनल केस फाइल कीजिए. ये जो एक अप्रिय मामला था, उसको सुलटा लेना चाहिए था. दोनों एक-दूसरे को सॉरी बोल दें और दुबारा ऐसा न करें. उसमें भाजपा का क्या काम? भाजपा का काम तो तब बनेगा, जब सारे मूल्य धरातल पर उतर जाएंगे. इसकी भरसक पूरी कोशिश हो रही है.
बख्शी वहां से हटे और दूसरे पुलिस कमिश्नर बदतमीज नहीं थे. उन्होंने उनका साथ नहीं दिया. पहले जो लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग थे, वो कुछ बोलते नहीं थे. अनिल बैजल ने आकर उसको थोड़ा संभाला. वे एक अच्छे और समझदार अफसर हैं. अभी अनिल बैजल ने एक रिपोर्ट दी है. क्या भाजपा दिल्ली में एलजी के जरिए शासन करना चाहती है? इलेक्शन आप जीत नहीं सकते. आपके पास पावर में रहने का यही तरीका है. इलेक्शन कमीशन को मैनिपुलेट करो, गवर्नर को मैनिपुलेट करो, एमएलए को खरीदो और कुछ नहीं हो तो आर्मी, पुलिस को कंट्रोल करो.
लब्बोलुआब ये है कि इस सरकार को चार साल होने को आए. चार साल में लोकतंत्र को तो आघात पहुंचा है. छोटी-छोटी चीजें, लेकिन ऑल इन ऑल लोकतंत्र माइनस में गया है. चार साल में क्या हुआ है? चार साल में प्लस कुछ नहीं हुआ है. कृषि उत्पादन कम है. औद्योगिक उत्पादन कम है. निर्यात कम है. हर चीज में आंकड़े ठीक नहीं हैं. मार्केट कंडीशन ऐसी है, ठीक है, मैं सरकार को इसके लिए ब्लेम नहीं करता हूं. लेकिन जब प्लस कुछ नहीं है, तो माइनस तो मत होने दीजिए. मूल्यों को तो ठीक रखिए. हर जगह आप टकरा जाते हैं. हर चीज में झगड़ा करना है. हर चीज में आज सीबीआई है. सीबीआई तो सरकार की आर्म है. कोई लॉ तो है नहीं, जिसके नियंत्रण में सीबीआई चलती है. वो केंद्र सरकार की टेरर पुलिस है. आप अपने राजनीतिक विरोधियों को सीबीआई के जरिए कंट्रोल करना चाहते हैं. कर लीजिए. जब वोट पड़ेगा, तब पता चलेगा. वोट सीबीआई को नहीं मिलता है. वोट उसी नेता को मिलता है, जो लोकप्रिय था और लोग समझते हैं कि उसके साथ अन्याय हो रहा है.
मुझे ताज्जुब है कि गुजरात चुनाव के बाद भी भाजपा यह नहीं समझी कि ये सब नहीं चलेगा. यूपी में इतना बड़ा इनवेस्टमेंट समिट कर रहे हैं. यूपी में कानून-व्यवस्था की हालत क्या है? चरमरा गई है. कोई विदेशी निवेशक यूपी में निवेश नहीं करेगा. एमओयू साइन कर देगा. प्रधानमंत्री को खुश करने के लिए फोटो खिंचा लेंगे. कुछ बोल देंगे, पर होगा कुछ नहीं. कानून-व्यवस्था योगी आदित्यनाथ के वश में तो है नहीं. यूपी में कभी किसी को किडनैप कर लेते हैं. किसी को छुरा मार देते हैं.
इनवेस्टमेंट समिट कराने से क्या होगा? अभी साइन किया, तो अभी एक साल में दिल्ली में चुनाव है. अगर मई 2019 का चुनाव भाजपा के पक्ष में नहीं गया, तब भी राज्य सरकारों का कुछ नहीं होगा. राज्य सरकार के पास पैसा तो है नहीं. वे केंद्र सरकार के दम पर ही तो करते हैं. महाराष्ट्र में मेकिंग महाराष्ट्र कर लिया. महाराष्ट्र में तो कांग्रेस और एनसीपी मिलकर चुनाव लड़ेगी, तो दोबारा यहां भाजपा सरकार नहीं बन सकती है. समझ में नहीं आ रहा है कि भाजपा के पास ओवरऑल कोई प्लान है क्या, लेकिन ऐसा लगता नहीं है. अब मुझे साफ होता जा रहा है कि मोदी जी का जो भी मन था, मंसूबे होते हैं कि मैं ये कर दूंगा, मैं वो कर दूंगा, उस समय उनसे कुछ हुआ नहीं. नवंबर 2016 में विमुद्रीकरण के जरिए उनकी लाख कोशिश थी कि इससे कुछ कमाल हो जाएगा. ब्लैकमनी पर अटैक करेंगे, तो रुपया आ जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. फिर जीएसटी ट्राई किया, फिर भी कुछ हुआ नहीं. आज नोटबंदी के डेढ़ साल बाद भी स्थिति सामान्य नहीं हुई है. ये थ्योरी ही गलत है कि आप पूरे इंडिया को फॉर्मल इकोनॉमी बनाना चाहते हैं. अगर ये हो सकता, तो पहले हो जाता. इनफॉर्मल इकोनॉमी इतनी क्यों चल रही है, क्योंकि इसमें सुविधा है. कार्ड से कैसे काम चलेगा, जब नजदीक का बैंक का ब्रांच ही पांच किलोमीटर दूर है. एटीएम दस किलोमीटर दूर है. यह चलने की बात ही नहीं है.
मेरी समझ में ये नहीं आ रहा है कि मोदी जी प्रचारक होने के बावजूद कैसी बात कर रहे हैं. वे ये जानते हैं कि भारत में गांव-गांव की क्या हालत है? अभी भी उनको यह बात समझनी चाहिए. शहरों में जहां बैंकिंग सिस्टम है, एटीएम है, वहां कोशिश कीजिए. वो अपने आप होता है. आपको कोशिश करनी ही नहीं है. जहां लोगों को सुविधा है. आजकल फोन हर जगह है. भाजी वाला, सब्जी वाला, ड्राइवर, नौकर सब सेलफोन यूज कर रहे हैं. सब उनके सारे फीचर्स सीख गए हैं. क्यों? क्योंकि वे इसमें सुविधा देखते हैं. आप अगर चाहते हैं कि कैश से कैशलेस बने, तो सुविधा कीजिए. इंडिया अभी तक इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि आप मदर इकोनॉमी अमेरिका की तरफ इसे ले जाएं. अमेरिका वाले भी पछता रहे हैं. वो अलग बांउड्री है, उनकी दुनिया ही अलग है. उसमें अपने को पड़ने की जरूरत नहीं है. आप अपना समाज चलाइए, जैसे चलता है और ये हिन्दू समाज है, हिन्दुत्व समाज नहीं है. हिन्दू समाज है, जो शालीनता से चलता है. यहां सब चलता है, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन सब चलते हैं. विदेशी आएं, तो उनका भी स्वागत है. उस समाज को आप तोड़ रहे हैं.
अब क्या होगा, मैं जानता हूं. कासगंज. आपका वो ट्रम्प कार्ड कासगंज है. चुनाव नजदीक आ रहे हैं. ग्रोथ हो नहीं सकता, तो हर जगह आप कासगंज की तरह दंगा-फसाद कराएंगे. उससे क्या होगा? फिर भी आप चुनाव नहीं जीतेंगे. उससे क्या, नुकसान केवल सोसाइटी को हुआ. एक बाबरी मस्जिद ने हिन्दू-मुसलमान का सौहार्द तोड़ा, जो आज तक सिमटा नहीं है. उस बात को आज पूरे 25 साल हो गए. तो ऐसी गलतियां नहीं करनी चाहिए. जो आदमी पोजिशन पर बैठता है, उसका फायदा है कि लोग लेजीटमाइज करते हैं. आपकी फोटो उतारते हैं. आपकी प्रशंसा करते हैं, लेकिन आपको जिम्मेदारी समझनी जरूरी है.
जहां मैं बैठा हूं, सवा सौ करा़ेड हैं. आपकी दो आंखें हैं. सवा सौ करोड़ पर आप निगाह नहीं रख सकते, लेकिन सवा सौ करोड़ लोगों की ढाई सौ करोड़ आंखें आपको देख रही हैं. यू आर अंडर चेक. आप हमेशा स्क्रूटनी में हैं. उस स्क्रूटनी में आप फेल हो गए हैं. गुजरात का रिजल्ट दिखाता है कि लोग पछता रहे हैं. 18 प्रतिशत आपका वोट है, वो तो आपको मिलेगा. वो तो भक्त हैं, अंधे भक्त. वो तो सफेद को काला, काला को सफेद बोलने के लिए तैयार हैं. लेकिन अगर आपको जोड़ना है, युवा शक्ति को, स्त्री शक्ति को, दलित शक्ति को, अल्पसंख्यक को, तब ये रवैया नहीं चलेगा.
इससे बड़ा मजाक क्या होगा? लोग कह रहे हैं कि दिल्ली में चीफ सेक्रेटरी के साथ जो हुआ, यह तो पंजाब नेशनल घोटाले से नजर हटाने के लिए किया जा रहा है. ये 14वें प्रधानमंत्री हैं. मैं समझता हूं कि 13 प्रधानमंत्री बड़े कमजोर प्रधानमंत्री भी रहे हैं, लेकिन कभी ऐसा नहीं किया. एक तो इनके पास मेजोरिटी है. कमजोरी नहीं है, तो फिर ये कमजोरी क्यों दिखा रहे हैं? अभी भी समय है. 15 महीने हैं. मरहम लगाइए देश को. सौहार्द बढ़ाइए. हारना-जीतना लगा रहेगा. अभी भी आप कांग्रेस से आगे हैं, तो उसी को संजोइए. कम मेजोरिटी भले रहेगी, लेकिन आपकी सरकार तो बन जाएगी. ये आप जो देश का वातावरण बिगाड़ रहे हैं, इसका कोई फायदा नहीं है.