सपा परिवार की आंतरिक कलह की सुर्खियों के बीच ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महोबा रैली हुई. सपा विवाद की लोकरुचि वाली खबरों में मोदी की रैली को पर्याप्त जगह नहीं मिल सकी. सपा सरकार के एक चर्चित कैबिनेट मंत्री ने इसकी दिलचस्प व्याख्या की. ये मंत्री कुछ दिन पहले बर्खास्त हुए थे, दुबारा शामिल किए गए. उनका कहना था कि सपा में कोई विवाद नहीं है. जो दिखाया गया उसका अच्छा परिणाम यह हुआ कि मोदी की रैली को पर्याप्त कवरेज नहीं मिली. इस हास्यास्पद बयान को सपाई सियासत के स्तर के नजरिए से भी देखा जा सकता है.
मोदी ने महोबा में कुछ ऐसे मुद्दे उठाए जिनका उत्तर प्रदेश की राजनीति में दूरगामी प्रभाव होगा. उन्होंने बुंदेलखंड की बदहाली का जिक्र करते हुए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्रों का तुलनात्मक ब्यौरा दिया. इस तुलना के व्यापक निहितार्थ हैं. मध्य प्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड को मिले पैकेज का इस्तेमाल किया, लोगों की मुसीबत कम करने के लिए कारगर योजनाएं बनाई, उनका समयबद्ध क्रियान्वयन सुनिश्चित किया.
इसलिए मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड वाला हिस्सा बदहाल नहीं है. वहां कम पानी वाली फसलों को प्रोत्साहन दिया गया. उन्हें लगाने में सरकार ने किसानों की सहायता की. प्रत्येक गांव में पक्की नालियां बनवाई गईं. इन्हें तालाब से जोड़ा गया. छोटे बांध बनाए गए. इन सबसे पानी की उपलब्धता बढ़ी. जमीन में पानी का स्तर ऊपर हुआ. गुजरात बेकरी में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के नौजवान बड़ी संख्या में हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के लोग वहां काम के लिए नहीं जाते.
स्पष्ट है कि मध्य प्रदेश के बुंदलेखंड में रोजगार के साधन हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने ऐसा नहीं किया. बुंदेलखंड उपेक्षित है, क्योंकि यह भ्रष्टाचार से जुड़ा है. खनन की लूट ने बुंदेलखंड को जर्जर बना दिया है. खनन का भ्रष्टाचार बिना सत्ता संरक्षण के चल ही नहीं सकता. उत्तर प्रदेश के चुनाव में बुंदेलखंड क्षेत्र में सत्ता का भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा बनने वाला है.