पंजाब में प्रकाश सिंह बादल सरकार केंद्र में बदल रहे वर्क कल्चर को अपनाने में काफी त़ेजी दिखा रही है. शायद यही वजह है कि पंजाब की गतिविधियों पर निग़ाह रखने वाले लोग राज्य सरकार के कार्यों में अनुशासन एवं समय निष्ठा देख रहे हैं. स्पष्ट रूप से यह परिवर्तन उच्च पदों पर भी देखने को मिल रहा है. उदाहरण स्वरूप मुख्य सचिव सर्वेश कौशल अपने कार्यालय निर्धारित समय सुबह 9 बजे से पहले ही पहुंच रहे हैं. इसका मतलब यह है कि इस कार्यालय में काम कर रहे नौकरशाह अपना समय अब व्यर्थ नहीं गंवा सकते. वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अपनी डेस्क पर मौजूद हैं, यह निश्चित करने के लिए सर्वेश कौशल औचक निरीक्षण करते हैं, जिससे यह तय हो सके कि नौकरशाह मुख्यमंत्री के निर्देशों का पालन कर रहे हैं अथवा नहीं. अब देखने वाली बात होगी कि यह समय निष्ठा क्षणिक है या वाकई राज्य की नौकरशाही के काम करने का तरीका बन जाएगी, लेकिन लोग तो यही आशा कर रहे हैं कि काम करने का यह तरीका स्थायी रूप अख्तियार कर ले.
झारखंड को नुक़सान
अब जबकि सभी राज्य इस बात की कोशिश कर रहे हैं कि केंद्र के साथ उनके संबंध बेहतर हों, झारखंड को एक नुक़सान हो रहा है. बीते कई महीनों से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दिल्ली में अपने राज्य का रेजिडेंट कमिश्नर नियुक्त नहीं कर सके हैं, जो राज्य का प्रतिनिधित्व और उसके हितों की रक्षा कर सके. यह पद इस साल की शुरुआत में तब रिक्त हो गया था, जब इस पद पर तैनात विमल कीर्ति सिंह नौकरी छोड़कर राजनीति में चले गए थे. उसके बाद से अतिरिक्त रेजिडेंट कमिश्नर संजय कुमार यह ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं. सूत्रों के अनुसार, हालांकि इस पद के लिए यू पी सिंह, एस के जी राहते एवं एम एस भाटिया के रूप में कुछ आईएएस अधिकारी दावेदार हैं, लेकिन सरकार इस पर कोई निर्णय नहीं ले पा रही है. इस दौरान कई बार केंद्र-राज्य की बैठकें हुईं, जिनमें झारखंड का सही प्रतिनिधित्व नहीं हो सका. यह भी देखा गया कि ऐसी एक बैठक में राज्य का प्रतिनिधित्व एक कनिष्ठ अधिकारी ने किया. निश्चित रूप से यह बात सोरेन सरकार को नहीं बताई गई होगी, जो इस स्थिति को बदलने के लिए इच्छुक नहीं दिखती.
देर से मिली छूट
ऐसा लग रहा है कि कई केंद्रीय मंत्रियों के विरोध के बाद केंद्र सरकार पर्सनल स्टाफ रखने के मामले में थोड़ी नर्म हो गई है. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने यह साफ़ कर दिया है कि अब भाजपा के मंत्रियों के पर्सनल स्टाफ के रूप में स़िर्फ वही लोग काम नहीं कर सकेंगे, जिन्होंने कांग्रेस के मंत्रियों के साथ काम किया है. इससे पहले सरकार के फरमान ने मंत्रियों को दुविधा में डाल दिया था. विशेष रूप से उन मंत्रियों को, जिन्होंने मनमोहन सरकार के समय के ही कर्मचारियों को बहाल रखा था. ऐसे मंत्रियों ने प्रधानमंत्री को भी इस बारे में पत्र लिखा था. दुर्भाग्य से इस फरमान में हल्की ढील बाद में दी गई. इस वजह से गृहमंत्री राजनाथ सिंह को अपने निजी सचिव आलोक सिंह को हटाना पड़ा था, जो इससे पहले यूपीए सरकार में सलमान खुर्शीद के साथ काम कर चुके थे. इसी प्रकार गृह राज्यमंत्री किरेन रिजीजू को भी अभिनव कुमार को हटाना पड़ा था, जो शशि थरूर के साथ काम कर चुके थे.
दिल्ली का बाबू : नौकरशाही में समय निष्ठा
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