बाबुओं की बल्ले – बल्ले
बाबुओं  के लिए सरकार छठे केंद्रीय वेतन आयोग की बाबुओं के लिए फायदेमंद एक और सिफारिश लागू कर रही है. ऐसा वह समयबद्ध तरक्की की नीति में सुधार लाकर कर रही है.    करियर में निश्चित तौर पर प्रगति (एसीपी) की सिफारिश पांचवें वेतन आयोग ने की थी. इसके तहत समूह ए के बाबुओं के लिए तीन बार समयबद्ध तरक्की की, जबकि ग्रुप बी, सी और डी के लिए दो बार समयबद्ध तरक्की देने की व्यवस्था की गई थी. हालांकि बाबुओं ने इसका स्वागत भी किया था. फिर भी इसमें कुछ कमी रह गई, जिसे सरकार अब सुधारने की कोशिश कर रही है. सूत्रों के मुताबिक इस योजना के तहत, जो बाबू अधिक मध्यवर्ती पदों वाले संस्थानों में काम करते थे, उनको नुकसान हुआ. इसकी वजह यह थी कि उनकी तरक्की दूसरे संस्थानों के उनके सहकर्मियों की तुलना में उन्हें कम आय मुहैया कराती कर देती थी.
सूत्रों के अनुसार  सरकार ने इस अव्यवस्था को आख़िरकार दूर करने की कोशिश की है. सरकार ने ग्रुप ए, बी और सी बाबुओं को तीन बार समयबद्ध तरक्की देने की योजना बनाई है. मज़ेदार बात यह कि प्रशिक्षण समाप्त करने के बाद ग्रुप डी के बाबुओं को गु्रप सी में ले लिया जाएगा. सरकार ज़ाहिर तौर पर इसे बाबुओं को ख़ुश करने के लिए इस कदम को पर्याप्त मान रही है, लेकिन क्या बाबू लोग भी थोड़ी मेहनत कर सरकार को पहले सौ दिनों को एजेंडा पूरा करने में मदद देंगे? वास्तव में यही तो असल सवाल है.
कॉरपोरेट पद्धति
अब गुजरात शिक्षा विभाग कॉरपोरेट पद्धति को अपनाने की योजना बना रहा है, कम से कम बाबुओं के काम की समीक्षा के मामले में. सरकार ने प्रयोगिक तौर पर काम का पूरा जायजा लेने के लिए अहमदाबाद के मानव-संपदा कंसल्टैंट को भाड़े पर लिया है.
इस तरीक़े से बाबू अपने वरिष्ठों, अधीनस्थों, सहयोगियों और साझेदारों से फीड बैक ले सकेंगे. पहले, गुजरात में बाबुओं के काम काफैसला बड़े अधिकारी ही करते थे. अब ़फैसला करने वालों के वर्ग बढ़ने से बाबुओं के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं कि  बाबू संपर्क में आनेवाले हरेक दूसरे से बेहतर संबंध बनाएं रखें.
राज्य सरकार इसी तरह की योजना सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपल और शिक्षकों के लिए भी बनाना चाहती है. इससे पहले जयंती रवि, जो राज्य शिक्षा विभाग में कमिश्नर रहे थे, इस तरह की व्यवस्था का सुझाव दे चुके हैं, जिसमें विद्यार्थी ही अपने शिक्षक का मूल्यांकन कर सके.  नहीं हुआ लाभ
चुनाव ख़त्म होने के साथ ही सरकार क़िफायत की अपनी नीति को छोड़ने और अपने पुराने ढर्रे पर आ चुकी है. पिछले वर्ष सरकार ने हवाई जहाज कंपनियों (जैसे एअर इंडिया) ने बाबुओं को मुफ्त टिकट देने पर पाबंदी लगा दी थी, जो काम और आराम को मिलाना चाहते थे. नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अनुरोध पर समीक्षा करने के बाद खर्च करने वाली समिति ने इस पाबंदी को हटा दिया. इस समय स़िर्फ एक ही बदलाव देखने को मिल रहा है कि बाबुओं को इस सुविधा का लाभ लेने के लिए प्रथम श्रेणी के टिकट खरीदने होंगे. चलिए कुछ तो बचत होगी.

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