कल देर रात मैंने सुशांत सिंह राजपूत की फ़िल्म #दिलबेचारा देखी। यह फ़िल्म कल ही हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई है। ज़ाहिर है यह सुशांत की आख़िरी फ़िल्म है। अब वो बड़े पर्दे पर कभी नहीं नज़र आयेंगे। अब सवाल है कि यह फ़िल्म कैसी है? एक दर्शक के नाते फ़िल्म देखते हुए आप कई बार भावुक हो जाते हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि हमें मालूम है सुशांत अब इस दुनिया में नहीं हैं। अगर वे ज़िंदा होते तो फ़िल्म हम एक अलग नज़रिए से देख पाते। स्क्रीनपले के लिहाज़ से फ़िल्म का सेटअप बिल्कुल परफेक्ट है। कहानी हम जानते थे क्योंकि यह एक हॉलीवुड फ़िल्म की रिमेक है। डायलॉग लिखने वाले को लगता है कि ज़्यादा फ़ीस नहीं दी गयी होगी। संवाद और भी अच्छे हो सकते थे। फ़िल्म के संगीत में एक आकर्षण ज़रूर है और गाने के बोल भी कहीं न कहीं आपके मन को छू लेते हैं। सिनेमेटोग्राफी यानी कैमरे का काम बहुत खूबसूरत है। जमशेदपुर से लेकर पेरिस को जिस तरह से दर्शाया गया है, अद्भुत है। अभिनय की बात करें तो सुशांत सिंह राजपूत का परफॉर्मेंस काफ़ी दमदार है। सैफ़ अली ख़ान थोड़ी देर को ही नज़र आये लेकिन, फ़िल्म का जो इकलौता संदेश है वो उन्हीं के संवाद से जाना जा सकता है। डायरेक्शन की बात नहीं करूंगा। उनके लिए बस ‘सेरी’ ही कह सकता हूँ। कुछ कमियां भी हैं, उनकी बात जानकार लोग करेंगे। बचपन से हम सब यही तो सुनते आए हैं- ‘एक था राजा, एक थी रानी.. दोनों मर गए ख़त्म कहानी।’ लेकिन, मरने से पहले जी लेने की बात इशारे में ही सही #दिलबेचारा ने बेहद ही ख़ूबसूरती से बताने की कोशिश की है। कई मामले में यह एक अधूरी सी प्रेम कहानी है। ठीक वैसे ही जैसे सुशांत सिंह राजपूत का सफ़र अधूरा ही रह गया। उनके चाहने वालों के लिए यह फ़िल्म एक सौगात की तरह है। मेरी रेटिंग 5 में से 3 स्टार। अलविदा सुशांत सिंह राजपूत!
‘दिल बेचारा’, एक अधूरी कहानी: हीरेंद्र झा
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