अभी एक महीना भी नहीं बीता. लोधी इस्टेट के पंद्रह नंबर के घर में बैठे हम दिग्विजय सिंह से बात कर रहे थे. हमने देश का पहला इंटरनेट टीवी चौथी दुनिया टीवी शुरू किया है, जिसमें हम भारत के राजनीतिक इतिहास को टीवी पर ला रहे हैं. इंदिरा गांधी के समय के लोग हमारे बीच हैं, जो राजनीतिक घटनाओं के पीछे की कहानी बता सकते हैं. संयोग की बात कि हमें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से जुड़े लोग आसानी से मिल गए और हमने वहीं से इस सीरीज़ को शुरू कर दिया. दिग्विजय सिंह चंद्रशेखर जी के बेहद करीब थे और उन्होंने कई घटनाओं के केंद्र में रहकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. संयोग की बात है कि यह इंटरव्यू दिग्विजय के जीवन का आ़खिरी इंटरव्यू बन गया. दिग्विजय सिंह भारत के राजनीतिक इतिहास का खुलासा करते-करते खुद भारत के राजनीतिक इतिहास का हिस्सा बन गए. इतिहास ने निर्ममता से दिग्विजय सिंह को छीन लिया और उस अध्याय को ही बंद कर दिया, जिसमें अभी महत्वपूर्ण इबारतें लिखी जानी बाकी थीं.
अगर दिग्विजय सिंह नहीं होते तो चंद्रशेखर जी प्रधानमंत्री नहीं बन पाते. रोमेश भंडारी से दिग्विजय सिंह की अचानक बात होने लगी. रोमेश भंडारी ने दिग्विजय सिंह से चंद्रशेखर जी की वीपी सिंह सरकार के बारे में राय सुन पूछा कि क्या चंद्रशेखर और राजीव गांधी की मुलाकात कराई जा सकती है? दिग्विजय सिंह ने कहा कि क्यों नहीं. इस पर रोमेश भंडारी ने दिग्विजय सिंह को अपने साथ कार में लिया और राजीव गांधी के यहां पहुंच गए.
दिग्विजय सिंह उस पीढ़ी के शख्स थे, जो राजनीति में कुछ नया करने के लिए बेचैन रहती है. उनके लगभग हमउम्र राजनीतिज्ञों में नीतीश कुमार, शरद यादव, केसी त्यागी, अरुण जेटली, उमा भारती, वसुंधरा राजे, प्रकाश करात, वृंदा करात, सीताराम येचुरी तथा डीपी त्रिपाठी जैसे लोगों के नाम हैं. इन लोगों की तरह ही दिग्विजय सिंह का सपना था कि देश में आमूल राजनीतिक परिवर्तन आए और इसी कशमकश में उनके मतभेद भी हुए. नीतीश कुमार और शरद यादव के साथ उन्होंने अपनी आ़िखरी राजनीतिक पार्टी बनाई और बिहार में सत्ता प्राप्ति के लिए अथक प्रयास किया. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, लेकिन दो साल बीतते-बीतते उनमें मतभेद पैदा हो गया. दिग्विजय सिंह नीतीश कुमार से अलग भी हो गए. उन्होंने बांका से निर्दलीय उम्मीदवार बन चुनाव लड़ा और लोकसभा में चुन कर आ गए. बांका के लोगों ने उन्हें सारे राजनीतिक लोगों के मुक़ाबले विजयी बना कर भेजा. बिहार में दिग्विजय सिंह ने एक नई राजनीतिक पहल करनी चाही, पर इस सारी लड़ाई में जो खास बात सामने आई कि दिग्विजय सिंह ने कभी नीतीश कुमार के ऊपर व्यक्तिगत हमला नहीं किया, उन्होंने सारा अभियान राजनीतिक तौर पर चलाया. आज तो देखने में आता है कि जैसे ही राजनीतिक रास्ते अलग हुए, व्यक्तिगत हमले शुरू हो जाते हैं. दिग्विजय सिंह राजनीतिक शालीनता, राजनैतिक व्यवहार और राजनीतिक संबंधों की ज़िंदा मिसाल बन कर जिए.
अगर दिग्विजय सिंह नहीं होते तो चंद्रशेखर जी प्रधानमंत्री नहीं बन पाते. रोमेश भंडारी से दिग्विजय सिंह की अचानक बात होने लगी. रोमेश भंडारी ने दिग्विजय सिंह से चंद्रशेखर जी की वीपी सिंह सरकार के बारे में राय सुन पूछा कि क्या चंद्रशेखर और राजीव गांधी की मुलाकात कराई जा सकती है? दिग्विजय सिंह ने कहा कि क्यों नहीं. इस पर रोमेश भंडारी ने दिग्विजय सिंह को अपने साथ कार में लिया और राजीव गांधी के यहां पहुंच गए. उन्होंने दिग्विजय सिंह का परिचय कराया और कहा कि आप चंद्रशेखर जी से मिलने चल सकते हैं क्या, सरकार गिराने की कोशिश हो सकती है. राजीव गांधी फौरन तैयार हो गए.
राजीव गांधी के पास उस समय मारुति 1000 थी, जो मारुति का नया मॉडल था. राजीव स्वयं ड्राइव करते हुए चंद्रशेखर जी के घर चल दिए. उनके पीछे की सीट पर रोमेश भंडारी और दिग्विजय सिंह बैठे थे. दिग्विजय सिंह बिना सूचना चंद्रशेखर जी के कमरे में राजीव गांधी को लेकर घुस गए. चंद्रशेखर जी का दरबार लगा था, सभी चौंक गए. चंद्रशेखर जी ने सभी को बाहर कर दिया. कमरे में स़िर्फ चार आदमी रह गए. कोई खास राजनीतिक बात नहीं हुई, पर कोशिश करने की बात तय हो गई और दिग्विजय सिंह को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी गई. यह चंद्रशेखर जी के प्रधानमंत्री बनने की ओर पहला क़दम था. दिग्विजय सिंह ने सभी से संपर्क करना शुरू किया.
दिग्विजय सिंह ने मुझे बताया था कि जब वह अजीत सिंह से मिलने गए तो वहां पहले से कुछ लोग बैठे थे. उन्होंने दो घंटे सड़क पर अपनी फिएट में इंतजार किया और इस बीच वह मिताली सिंह की गज़ल, मैं खुशबुओं सी बिखरती रही तुम्हारे लिए हर आईने में संवरती रही तुम्हारे लिए सुनते रहे. उन्हें यह ग़ज़ल इतनी पसंद आई कि जब चंद्रशेखर जी की पचहत्तरवीं सालगिरह उन्होंने अपने घर मनाई तो उन्होंने सबके चले जाने के बाद मिताली से कहा कि क्या वह उन्हें यह ग़जल सुना सकती हैं. मिताली ने भी उन्हें कहा कि उन्हें उनके पास नीचे बैठ कर सुनना पड़ेगा. दिग्विजय सिंह फौरन बैठ गए और मिताली ने उन्हें सामने बैठा कर यही ग़जल सुनाई.
दिग्विजय सिंह चंद्रशेखर जी को अपने पिता जैसा मानते थे. वह जुनून की हद तक चंद्रशेखर जी के समर्थक थे. कुछ भी करने को तैयार रहते थे. चंद्रशेखर जी की पचहत्तरवीं सालगिरह को जिस धूमधाम से दिग्विजय सिंह ने मनाया, वैसा पहले देखने में नहीं आया था. दिग्विजय सिंह का पूरा लॉन मेहमानों से भरा था. अटल बिहारी वाजपेयी उस समय प्रधानमंत्री थे, वह वहां दो घंटे से ज़्यादा रहे. जार्ज फर्नांडिस, मुलायम सिंह यादव, भैरो सिंह शेखावत, गुजराल साहब, शीला दीक्षित, धूमल, वसुंधरा राजे कौन था, जो वहां नहीं था. भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी सभी दलों की दीवारें खत्म हो गई थीं. सभी चंद्रशेखर जी को बधाई दे रहे थे और भूपेंद्र-मिताली से ग़ज़लें सुन रहे थे. सामने पेड़ के नीचे पचहत्तर मोमबत्तियां जल रही थीं. रात बारह बजे पचहत्तर किलो का केक दिग्विजय सिंह लेकर आए. चंद्रशेखर जी ने उसे काटा और दिग्विजय सिंह व भैरो सिंह शेखावत ने गाया, हैप्पी बर्थ डे टू यू.
दिग्विजय सिंह चंद्रशेखर जी की सरकार में वित्त व विदेश राज्यमंत्री रहे. अटल जी की सरकार में रेल राज्यमंत्री और विदेश राज्यमंत्री रहे. उनके पास कार्य कुशलता के अलावा यादों का एक खज़ाना था. क्यूबा के राष्ट्रपति फीडेल कास्त्रो उनके लिए सिगार भेजते थे. इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन उन्हें अपने मित्रों में मानते थे. बेनजीर भुट्टो व नवाज़ शरीफ उनके लगातार संपर्क में रहते थे. एक लंबी सूची है, जो केवल अब सूची ही रह गई है, उनसे संपर्क करने वाला अब नहीं है. दिग्विजय सिंह का घर कभी किसी पार्टी का घर नहीं रहा. उनके मित्रों में सभी दलों के लोग थे. दिग्विजय सिंह दरअसल चंद्रशेखर जी और भैरो सिंह की परिपाटी के नेता थे, जो मित्रता को दल के लेबल से नहीं आंकता. उनके घर हर पार्टी के लोग किसी न किसी आयोजन में अक्सर एक दूसरे से मिल लेते थे. अब उनके न रहने पर बहुत से लोग सालों एक दूसरे से शायद न मिल पाएं और हो सकता है, कुछ तो कभी न मिल पाएं.
दिग्विजय सिंह इतने अच्छे मित्र थे कि कभी सोचा ही नहीं था कि मुझे उनकी याद में लिखना पड़ सकता है. दिग्विजय सिंह की राजनीतिक यात्रा कितनी लंबी और महत्वपूर्ण होती, इसका अब अनुमान लगाना व्यर्थ है, क्योंकि वह अब हैं ही नहीं, लेकिन अगर भूत में किए गए कामों के आधार पर कहें तो निःसंकोच कह सकते हैं कि वह देश के महत्वपूर्ण पचास लोगों में से एक हमेशा रहते. कुछ लोगों के जाने के बाद उनकी याद कुछ समय तक ज़िंदा रहती है, पर दिग्विजय सिंह के संपर्क में आए लोग उन्हें तब तक याद करते रहेंगे, जब तक वे खुद ज़िंदा रहेंगे.