उन्नीस महीनों के बाद घर से बाहर निकलने के पहले इस पेड़ पर सिर्फ पत्ते थे ! आज वापस आकर देखता हूँ तो हमारे आंगन में बीन बुलाएं इस पेड़ की बहार हमारे छत के नीचे देखकर मैंने छत पर घुमते हुए आप लोगों से मेरी अनुपस्थिति में निसर्ग के चमत्कार से अवगत करने से अपने आप को रोक नहीं पाया !
आपातकाल के उन्नीस महीनों की तथाकथित भयपर्व से 25 जून 1975 के बाद मार्च 1977 तक ! तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के जयप्रकाश नारायण के आंदोलन को देखकर और अपनी कुर्सी को रामलीला मैदानकी 25 जून 1975 की एतिहासिक रैली में सिंहासन खाली करो की जनता आती है के नारे से विचलित होकर आजादी के बाद प्रथम बार भारत में बगैर किसी विदेशी आक्रमण के सिर्फ भीतरी जनआंदोलन से डरते हुए अपने कुछ चांडाल चौकडी की सलाह पर मुख्यमंत्री सिद्धार्थशंकर राय के बने बनाये ड्राफ्ट पर तत्कालीनराष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को विदेशकी यात्रा से वापस बुला कर मुहर लगा दी थी और 26 जून 1975 से सतहत्तर मार्च तक उन्नीस महीने आपातकाल लगा दिया था !
लेकिन आपातकाल के चालीस साल के उपलक्ष्य में एक इंटरव्यू में लाल कृष्ण आडवाणीजीने 25 जून 2015 मे इंडियनएक्सप्रेस के संपादक शेखर गुप्ताजी को दिया साक्षात्कार में साफ-साफ शब्दों में कहा था कि एक आपातकाल चालीस साल पहले घोषित था लेकिन गत एक साल और कुछ महीनों से भारत मे अघोषित आपातकाल और सेंसरशिप जारी है और संपूर्ण देश एक भयपर्व से गुजर रहा है ! यह वही लाल कृष्ण आडवाणी है जिनके कारण आज बीजेपी को सत्ता नसीब हो रहीं हैं !
भारत में दोबारा 2014 से भयपर्व जारी है ! एक सुलतानी संकट और फिर जनवरी 2019 के बाद कोरोना नाम की महामारी का आसमानी संकट ! जिसे प्रधानमंत्री ने आपदा में अवसर की तलाश नाम की उपमा देकर खुब भुनाया ! सबसे पहले तो विश्व के दादा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को करोड़ों रुपये का चुना लगाकर अहमदाबाद में लाखों की भीड़ इकट्ठी कर के कौनसा लक्ष्य हासिल किया पता नहीं !
फिर दो महीने बाद अचानक लाॅकडाउन की घोषणा कर के बिल्कुल नोटबंदी की तरह ! करोड़ों लोगों के जीवन को ध्वस्त करने की घोषणा संपूर्ण देश में अफरा तफरी का माहौल बना कर सिर्फ पैदल चलने के कारण शेकडो की संख्या में लोग मरे !
और बीमारी में स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में उससे बडी संख्या में लोग मरे वह अलग ! शायद वर्तमान प्रधानमंत्री को इस तरह के निर्णय लेकर लोगोंमें क्या प्रतिक्रिया होती है यह देखने की आदत है ! शायद आगे चलकर कोई और बडी आफत भरा निर्णय लेने के लिए लोगों का मनोबल तैयार हो ! कोरोना के आडमे वर्तमान समय की सरकार के लिए आपदा में अवसर का मौका मिला है ! और उसने उस स्थिति का पूरा-पूरा फायदा उठाया है ! ऑक्सीजन के अभाव तथा अधुरे स्वास्थ्य सेवाओं के कारण जो मरे तो उनके अंतिम संस्कार के लिए भी पर्याप्त इंतजाम नहीं कर सकें तो शवों को नदियो में बहाने से लेकर कहीं भी फेंकने के लाखों मुर्दों के फोटो संपूर्ण विश्व ने देखें है !
और स्थिति का फायदा उठाकर कृषि क्षेत्र जिसपर आज भी आधे से ज्यादा जनसंख्या निर्भर करती है ! तथाकथित नया कृषी संशोधन बिल संपूर्ण विरोधी दलों की अनदेखी कर के मनमाने तरीके से पास करने का उदाहरण, भारतीय संसदीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे बडा माना जायेगा ! क्योंकि आपदा में अवसर की तलाश जो हुई ! फिर 2014 से शुरू किया सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों को प्रायवेट मास्टर्स के हवाले करने की प्रक्रिया आपदा प्रबंधन समय में शायद पूरा करने की ठानी तो अब कौनसे उद्योग बचें है ? यह एक संशोधन का विषय है ! मतलब 1950 मे बनी जनसंघ नाम की पार्टी जोके पूंजीवाद, सामंतवाद तथा सांप्रदायिकता पर आधारित पार्टी का गठन गोलवलकर के निर्देशन में बनी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी को इसकी जिम्मेदारी सौंपी थी ! फिर 1977 मे वह जनता पार्टी मे विलीन हुई लेकिन दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर (आर एस एस और जनता पार्टी) पुराना जनसंघ नाम की जगह भारतीय जनता पार्टी 1980 मे सिर्फ नाम बदला लेकिन नीति वही रखी है और आज की बीजेपी आज इकतालीस साल के भी पहले से भारत की सत्तापर कब्जा करने में कामयाब हुई है और इस कामयाबी में आर एस एस के कैडरों की भुमिका अहम है !
और इस तरह के हिंदु राष्ट्र को अमलीजामा पहनाने के लिए तथाकथित नागरिकसंशोधन बील जो शत-प्रतिशत हिंदू राष्ट्र की तरफ इशारा करता है ! और उसी कडी मे राम मंदिर निर्माण तथा बाबरी विध्वंस के मामले को हमेशा के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा अनदेखी कर के मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने का निर्णय भारत के संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही है ! वैसे ही कश्मीर से 370 जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण संविधानिक प्राविधान को खत्म करने की तो हद ही हो गयी है और अब हमारे शैड्यूल एरिया आदिवासी, उत्तर पूर्व तथा अंदमान, निकोबार, लक्षद्वीप जैसे द्वीपों की स्वायत्तता धोके में आने की शुरुआत की है और संघ परिवार की घोषणा एक राष्ट्र, एक विधान, एक निशाण के तरफ का लक्ष्य हासिल करना है ! जोके भारत जैसे विविधता वाले देश की एकता-अखंडता के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होगा ! आजादी के बाद इन सभी विविधताओं से भरा देश को एकजुट करने की प्रक्रिया को संघ के इस तरह के एक रंग में ढालने की कोशिश भारत को और बटवारे की नौबत आ सकती है !
क्योंकि गत सात साल से कभी नागरिक बिल तो कभी खाने पीने की पाबंदी और कल दशहरे और संघ स्थापना दिवस के अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जनसंख्या को लेकर जो कहा है कि हमारे राष्ट्र के संतुलन को बनाने रखने के लिए लोकसंख्या का संतुलन भी आवश्यक है ! इसका मतलब वह सीधा-सीधाअल्पसंख्यक समुदाय के प्रजनन की तरफ इशारा कर रहे हैं और बीजेपी के सत्ता वाले कुछ राज्यों में उस पर नियंत्रण के बिल तक पास कीये गए है और तथाकथित लव-जेहाद के नाम पर भी ! आखिर आपदा में अवसर की तलाश जो हुई !
हालांकि सरकार को अपनी सुविधा के लिए आपदा कभी भी आडे नहीं आईं ! फिर बिहार-झारखंड, बंगाल, आसाम के चुनाव हो ! या कर्नाटक, मध्यप्रदेश, जैसे राज्यों की गैर बीजेपी सरकारों की जगह बीजेपी की सरकारों को बनाने के लिए, सभी तरह के हथकंडो का इस्तेमाल कर के आपदा में अवसर की तलाश करके दिखा दी ! और लोगों के आंदोलन ना हो इसलिए भी लाॅकडाउन के आडमे तरह-तरह की पाबंदी लगा दी ! लेकिन किसान-मजदूर जिनका जीवन अपने खेत, कारखानों पर अवलंबित है, तो उन्होंने अपने जीवन की परवाह किये बिना ! आंदोलन के लिए कोरोना से लेकर, सरकार के रस्ते खोदने, तथा किले गाडने से लेकर ,तीन डीग्री सेसेल्सियस तपमान मे ठंडे पानी की बौछारे ! और अब गाडियाँ जिंदा किसानों के उपर चढाकर मारने की शुरुआत की है ! और अब तो खून करने की शुरुआत की है ! कल सिंघू बार्डर पर एक किसान पर गोलियां चलाई गई ! और वह मर गया ! आने वाले 26 नवम्बर को किसानों के आंदोलन को एक साल पूरा हो रहा है ! और सरकारी दमन ,अपना रंग दिखा रहा है ! आखिर आपदा में अवसर की तलाश जो जारी है !
मानवाधिकार आयोग की वर्षगांठ पर मानवाधिकार की जो व्याख्या प्रधानमंत्री ने की है ! वह आजसे उन्नीस साल पहले गुजरात दंगों की याद दिला रहें हैं ! और महात्मा गाँधी के हत्या से लेकर, 1984 के सिख विरोधी दंगों, तथा 24 अक्तूबर 1989 के भागलपुर का दंगा ! यानी आजादी के बाद भारत के सभी दंगों को यही तर्क लागूं करते हैं ! तो सभी मे मानवाधिकार के प्रधानमंत्री की नई व्याख्या से दुसरे पक्ष को सहुलियत दिया तो हिटलर, मुसोलिनी, स्टालिन जैसे तानाशाहो ने किये सभी तरह के गुनाहगार मुक्त है !
क्योंकि दुसरे पहलुओं को देखने के बाद हर तरह के गुनाहगार मुक्त है ! हत्यारा कोई भी हत्या के बाद यही तर्क देते हैं कि मैंने हत्या करने की वजह यह थी ! और आज नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी के हत्या के बाद यही तर्क दिया है कि उनके कारण देश का बटवारे की नौबत आईं हैं ! और वह मुसलमानों को सरपरस्त करने के कारण मैंने ऊनका वध किया है वध रावण ,कंस जैसे इतिहास के विलनो के मारने के काम कोई वध बोला या लिखा जाता है ! और इस कारण गत सात साल से गोडसे के महिमामंडित करने के काम में तेजी आई है और कुछ लोग तो उसके मंदिर बनाने से लेकर संसद मे तक उसके तारीफें की जा रही है क्योंकि उन्हें नाथूराम गोडसे का दुसरा पक्ष जो सही लगता है और प्रधानमंत्री भारतीय मानवाधिकार आयोग का स्थापना समारोह में जब मानवाधिकार की जो व्याख्या प्रधानमंत्री ने की है और उन्होंने पिछले और आगे भी होने वाले सभी मानवाधिकार के उल्लंघन के मामले आज के मानवाधिकार आयोग ने अब दुसरे पक्ष के तहत देखना है फिर ताजी लक्ष्मीपूर खिरी की घटना भले दिन-दहाड़े एक केन्द्रीय मंत्री के पुत्र द्वारा आठ किसानों को कुचलने की घटना में दुसरे पक्ष के तहत देखना है ! शायद विश्व के मानवाधिकार के लिए भी प्रधानमंत्री की नई व्याख्या से दुसरे पक्ष को महत्व देना आवश्यक होगा क्योंकि हम विश्व गुरु जो ठहरे ! अमूमन हत्या बगैर कारण से करता नहीं है ! और प्रधानमंत्री के अनुसार इस तरह दुसरी बाजू देखना है तो वर्तमान समय में हमारे जेलो में पडे सभी कैदियों को अविलंब छोड़ देना चाहिए ! आखिर आपदा में अवसर की तलाश जो हुई !