बहुत देर तक कागज़ पर एक नाम लिखकर उसे एकटक देखता रहा। अचानक वो नाम धीरे-धीरे हवा में ऊपर उठने लगा। मैं भी उसके साथ-साथ उड़ चला.. कहाँ? किधर? कुछ याद नहीं। बस इतना अहसास है कि स्याह अँधेरे आसमान में हम उड़े चले जा रहे थे। एक नाम जुगनू की तरह जगमगाता मुझे रास्ता दिखा रहा था। कहाँ? किधर? कुछ याद नहीं। बस इतना अहसास है कि वो नाम मेरी साँसों में एक ताज़गी, एक सुगंध भर रहा था। मैं बेसुध था। मैंने उसे छूने की बहुत कोशिश की। वो मेरी नज़र के सामने ज़रूर था लेकिन, मेरी पहुँच से बहुत दूर। तभी खिड़की से आती हवा ने कागज़ के पन्ने को फड़फड़ा कर पलट दिया। एक शून्य लिए कोरा कागज़ मेरे सामने था। जिस पर सिर्फ एक नाम लिखकर मैं फिर से उड़ सकता था।
हीरेंद्र झा
(एक प्रेमी की डायरी से चुनकर कुछ पन्ने हम आपके लिए लाते रहेंगे)
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