सीएजी की सोच ठीक नहीं
देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सीएजी को नसीहत देते हुए कहा कि सीएजी को अपनी सोच बदलने की जरूरत है. जेटली जी ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को कम्पटीशन में रहने के लिए कई बार तुरंत फैसले लेने होते हैं. सीएजी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए. उन्होंने कहा कि जब भी सीएजी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के बहीखाते ऑडिट करती है, तो वही पुराने ढर्रे के हिसाब से उसका ऑडिट होता है. इसके चलते कई ऐसे ऑब्जेक्शन आते हैं जो गैरवाजिब होते हैं. जेटली जी ने ये भी कहा कि 1991 के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में काम करने का माहौल काफी बदला है.
खबर के पीछे की खबर ये है कि हमारे वित्त मंत्री अरुण जेटली देश के जाने-माने वकील हैं. जब वे विपक्ष में थे, तो इसी सीएजी की रिपोर्ट को लेकर सरकार को हमेशा घेरते थे. पिछली यूपीए सरकार को भी अरुण जेटली ने इसी सीएजी रिपार्ट के भरोसे सबसे भ्रष्ट सरकार करार दिया था. लेकिन अब चीजें बदली हैं. तब का सत्ता पक्ष आज विपक्ष में है और तब का विपक्ष यानि जेटली जी आज सत्ता में हैं. सीएजी वैसा ही काम कर रहा है, जैसा वो पहले करता था. आज सीएजी की रिपोर्ट इस सरकार को भी परेशान करती है.
जब सीएजी की रिपोर्ट पर सरकार के पास कोई जवाब नहीं होता तो जेटली जी ने बेहतरीन रास्ता निकाला कि अब सीएजी को सोच बदलने की जरूरत है. यदि 1991 से सार्वजनिक कंपनियों में काम करने का माहौल अच्छा बना हुआ था, तो क्या सीएजी को तब भी अपनी सोच बदलने की जरूरत नहीं थी. जब जेटली जी विपक्ष में थे. जेटली जी का ये वक्तव्य राजनीतिक ज्यादा दिखता है और यथार्थ के धरातल पर मजाक लगता है.
भारत में भ्रष्टाचार बढ़ा है
अब हमारे देश में घूस लेने वाले ही नहीं घूस देने वाले भी बढ़ रहे हैं. इंडिया करप्शन सर्वे 2018 की रिपोर्ट कहती है कि पिछले एक साल में हमारे देश में तमाम प्रयासों के बावजूद घूस देने वालों में ग्यारह प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. 2017 में जो प्रतिशत 45 था, वह 2018 में बढ़कर 56 प्रतिशत हो गया है. देश के 215 जिलों में सर्वे करने के बाद जो रिपोर्ट सामने आई, वो यह बताती है कि 30 प्रतिशत करप्शन हमारे यहां प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन में है. 25 प्रतिशत पुलिस विभाग में है. 18 प्रतिशत नगर निकाय में है. 27 प्रतिशत बाकी सर्विसेज़ में है. 58 प्रतिशत लोगों को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि करप्शन के मामले में कम्पलेन कहां हो सकती है.
खबर के पीछे की खबर ये है कि मात्र सरकारें बदलने से भ्रष्टाचार कम नहीं होगा. सरकार आती है जाती है. पॉलिटिकल पार्टी आती है जाती है, लेकिन काम करने वाले लोग वहीं होते हैं. जब तक हमारे यहां काम करने वालों का माइंडसेट नहीं बदलेगा, तब तक हमारे यहां भ्रष्टाचार यूं ही बढ़ता रहेगा.
सरकार भ्रष्टाचार मुक्ति की बात जरूर करती है, लेकिन जब तक हमारे यहां डिमांड और सप्लाई का गैप पूरा नहीं होता, तब तक भ्रष्टाचार यूं ही चलता रहेगा. लोगों का माइंड सेट इसलिए चेंज नहीं होता, क्योंकि भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों के पकड़े जाने पर भी उनको मामूली सजा होती है. सजा का डर नहीं होने के कारण सारे भ्रष्टाचारी खुलकर भ्रष्टाचार करते हैं.
पैसे लेने वालों को भी शर्म नहीं आती और देने वालों को भी शर्म नहीं आती. पैसा देने वाला लेने वाला को ढूंढ़ता है और पैसा लेने वाला ग्राहक ढूंढ़ता है. यह स्थिति निरंतर चलती आ रही है. हमारे नेता भाषणों में कुछ भी कहें, लेकिन देश की वास्तविकता यही है कि हमारे यहां भ्रष्टाचार अब जीवन का एक अंग बन चुका है.
बोफोर्स के रास्ते जा रहा राफेल
राफेल का मामला भी बोफोर्स घोटाले के रास्ते जाता नजर आ रहा है. बोफोर्स का घोटाला बीबीसी की एक खबर से उजागर हुआ था, जिसके बाद देश में सुनामी आई थी. सरकार बदली इतिहास बदला. वैसे ही राफेल में फ्रांस मीडिया रोज नित्य नए खुलासे कर रहा है. जो सवाल उठ रहे हैं उसके जवाब सरकार के पास नहीं हैं.
राफेल की कीमतों को लेकर जब सवाल उठे तो सरकार ने गोपनीयता की बात कहकर उस पर पर्दा डाल दिया. लेकिन अनिल अंबानी की कंपनी का नाता राफेल के साथ कैसा है, इसके बारे में भारत सरकार ने कहा, ये राफेल और अनिल अंबानी जानें, इसमें सरकार का कोई रोल नहीं. फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद ने एक साक्षात्कार में ये कह दिया कि रिलांयस का नाम भारत सरकार की तरफ से आया था. हमारे पास और कोई चारा था ही नहीं.
लेकिन इस पर भी बचाव का रास्ता निकालते हुए सरकार ने कहा कि राफेल की निर्माता कंपनी डेसॉल्ट और अंबानी के बीच में क्या होता है, इसमें कोई सरकार जिम्मेदार नहीं है. लेकिन अब फ्रेंच मीडिया वो कागजात सामने लाई है, जिसमें यह कंडीशन रखी गई थी कि भारत सरकार की ओर से राफेल के डील में अनिल अंबानी अनिवार्य हैं. अब इसका जवाब सरकार के पास नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से राफेल डील की प्रक्रिया के बारे में जानकारी चाही.
इस बात से भी सरकार संकट में आ सकती है. इन तमाम घटनाक्रमों को देखने के बाद ऐसा दिखाई देता है कि राफेल अब सरकार के गले की हड्डी बन चुका है. विपक्ष बार-बार राफेल को लेकर सरकार पर हमला बोल रहा है और सरकार के पास विपक्ष के सवालों का जवाब नहीं है.
राफेल के मामले में सरकार पहले दिन से लगातार गलतियां करती आ रही है. राफेल के कीमतों का जब मामला उठा, तो सरकार बचाव की भूमिका में आई और गोपनीयता का क्लॉज बताते हुए सरकार ने इस पर मौन धारण कर लिया. उसके बाद अनिल अंबानी पर भी सरकार लगातार झूठ बोलते नजर आ रही है. विडंबना यह है कि जब सरकार से राफेल को लेकर कोई प्रश्न पूछता है, तो सरकार प्रश्न पूछने वाले पर ही प्रश्न उठाती है. लेकिन देश की जनता उठे हुए प्रश्नों के जवाब चाहती है. जवाब अभी तक कोई दे नहीं पाया. बोफोर्स ने इस देश में सरकार बदली, क्या राफेल भी इस सरकार के लिए बोफोर्स साबित होगा, यह तो समय बताएगा.