झारखंड सरकार ने सूबे में धर्म पर पहरा लगा दिया है. अब अगर कोई स्वेच्छा से भी धर्म परिवर्तन करना चाहेगा, तो उसे लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा. इस विधेयक पर मंत्रिमंडल की मुहर लग चुकी है और इसे मानसून सत्र में ही पारित कराने का राज्य सरकार मन बना चुकी है. लालच देकर या जबरन धमका कर धर्म परिवर्तन कराने के मामले में, इस विधेयक में चार साल जेल की सजा के अलावे जुर्माने का भी प्रावधान है. अगर वह अनुसूचित जाति या जनजाति का नहीं है, तो ऐसे मामले में तीन साल की सजा और पचास हजार रुपए का प्रावधान है.
इसे गैर जमानतीय अपराध माना गया है. इसमें ये भी कहा गया है कि अगर अनुसूचित जाति और जनजाति के किसी व्यक्ति का धर्मान्तरण कराया जाता है, तो ऐसे में चार साल की सजा और एक लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है. अगर कोई व्यक्ति स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तो उसे सम्बन्धित जिले के उपायुक्त से अनुमति लेनी होगी, बिना अनुमति के अगर कोई धर्मान्तरण करता है तो इसके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी. किसी भी समुदाय के नाबालिग का धर्मान्तरण अवैध माना जाएगा. राज्य सरकार अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों पर भी रोक लगाने की तैयारी कर रही है, इसके लिए भी एक सख्त कानून लाने की बात कही जा रही है.
मुख्यमंत्री रघुवर दास जबरन धर्मान्तरण पर रोक लगाने को जरूरी मानते हैं. मुख्यमंत्री का कहना है कि देश के अन्य राज्यों में भी इस तरह का कानून लागू है. गृह विभाग ने देश के अन्य भागों में लागू इस तरह के कानूनों का अध्ययन करने के बाद ही इस विधेयक का प्रारूप तैयार किया है. वैसे यह बिल भाजपा की प्राथमिकता सूची में शामिल था. मुख्यमंत्री रघुवर दास भी पार्टी के दबाव में कई मौकों पर धर्मान्तरण विधेयक लाने का आश्वासन दे चुके थे. चुनाव की तिथि नजदीक आते देख भाजपा ने यह हिन्दू ट्रंप कार्ड चलकर 21 प्रतिशत आदिवासियों को अपने पक्ष में गोलबंद करने के लिए मुहिम तेज कर दिया है.
धर्मांतरण की आधारशीला तभी रखी गई थी, जब आजादी के पूर्व रांची के समीप मैकलुस्कीगंज में अंग्रेजों ने अपना ठिकाना बनाया था. यहां सैकड़ों एंग्लो-इंडियन परिवार रहते थे, धीरे-धीरे यहां चर्च की स्थापना हुई. मिशनरी ने शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करना शुरू किया, वह भी सुदूरवर्ती इलाकों में जहां सरकार की पहुंच भी नहीं हो पाती थी, ईसाई मिशनरियों ने सेवा भावना से काम शुरू किया. अविभाजित बिहार के दक्षिण बिहार में बहुत ज्यादा गरीबी थी, खासकर आदिवासियों की स्थिति तो और दयनीय थी. दाने-दाने को लोग मोहताज थे, गरीबी और बीमारी से जूझ रहे थे. कुपोषण की समस्या भी चरम पर थी.
अशिक्षित तो थे ही, इसका ही फायदा ईसाई मिशनरियों ने उठाया. उन्होंने सुदूरवर्ती जंगली इलाकों में भी शिक्षण संस्थान और अस्पताल खोले. गरीबों को आर्थिक मदद के साथ ही खाद्य सामग्री भी उपलब्ध कराया. इन सब से गरीब आदिवासी इनसे प्रभावित हुए. इसके बाद इनलोगों ने गरीब और अशिक्षित आदिवासियों को धर्मान्तरण कराकर मसीही बनाना शुरू किया. जंगली इलाकों में आदिवासी क्रिश्चयन बनने की होड़ में शामिल हो गए और इनकी जनसंख्या लगभग 6 प्रतिशत हो गई. गुमला, सिमडेगा, चाईबासा, लोहरदगा, सरायकेला-खरसांवा जिलों में तो ईसाइयों की संख्या में लगातर बढ़ोतरी होती रही.
मिशनरियों की सक्रियता देख हिन्दू संगठनों खासकर संघ परिवार भी सक्रिय हुआ और धर्मान्तरण को रोकने की कोशिश की. इसे लेकर कई जगह मिशनरी और हिन्दू संगठनों में टकराव भी हुए थे. संघ परिवार ने धर्म परिवर्तन कराए गए लोगों की पुन: घर वापसी के लिए कई कार्यक्रम भी चलाए. छत्तीसगढ़ के जशपुर महाराजा दिलीप सिंह जूदेव ने तो धर्मान्तरण का विरोध करने, इस पर रोक लगाने और घर वापसी के लिए गुमला को अपना कर्मक्षेत्र ही बना लिया था.
संघ परिवार से सम्बन्ध रखने वाले जूदेव काफी हद तक सफल भी रहे थे. झारखंड के गांवों में एकल विद्यालय और सरस्वती शिशु मंदिर खोले गए. संघ परिवार धर्मान्तरण पर काबू पाने में असफल रहा, तो सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया. लेकिन भाजपा यहां जब भी सत्ता में रही, उस समय गठबंधन की सरकार थी. इस बार भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला, तो हिन्दू संगठन रघुवर सरकार पर दबाव बनाने लगे. रघुवर दास ने भी कई मौकों पर संगठन को आश्वस्त किया था कि सरकार इसके लिए विधेयक लाएगी.
ऐसी चर्चा है कि भाजपा सरकार ने आगामी चुनावों को देखते हुए यह हिन्दू कार्ड चला है, क्योंकि भाजपा को इसका भली-भांति अहसास है कि ‘हिन्दुत्व’ ही चुनावी नैया पार करा सकता है. पिछले लोकसभा चुनाव में हिन्दुत्व के सहारे ही नरेन्द्र मोदी ने उम्मीद से कहीं ज्यादा सीटें हासिल की थी. उसके बाद उत्तर प्रदेश में हिन्दुओं के गोलबंद होने के बाद मिली सफलता से तो भाजपा अतिउत्साह में है. झारखंड में भाजपा की सरकार द्वारा धर्म पर पहरा लगाने के लिए धर्मान्तरण विधेयक लाने से ईसाई समुदाय में उबाल है और इसका खामियाजा झारखंड को भुगतना पड़ सकता है. भाजपा सरकार ने झारखंड को एक बार फिर बांटने का काम कर सूबे को बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया है. झामुमो, कांग्रेस, राजद एवं बाबूलाल मरांडी की पार्टी सहित दर्जनों संगठन इस विधेयक का खुलकर विरोध कर रहे हैं. उन्होंने इसे लोकतंत्र पर हमला बताते हुए कहा है कि भाजपा सरकार मुस्लिम तानाशाह की तरह व्यवहार कर मौलिक अधिकार छीन रही है. धर्म निरपेक्ष देश में इस तरह का कानून लाना तानाशाही को दर्शाता है. विपक्षी दलों ने यह आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार संघ परिवार के एजेंडे पर काम कर रही है. इसके विरोध में राज्यव्यापी आंदोलन चलाया जाएगा.
इस विधेयक को लेकर मिशनरी संगठनों एवं धर्मगुरुओं में तो आक्रोश है ही, विपक्षी दल भी इसे लेकर सरकार को घेरने लगे हैं. ईसाई समुदाय ने इसे अपने ऊपर हमला बताया है, जबकि सरना आदिवासी जो हिन्दू धर्म मानते हैं, उनका मनोबल इससे बढ़ गया है. अब दोनों खुलकर सामने आ गए हैं. सरना आदिवासियों (हिन्दू) ने इस बिल का समर्थन करते हुए कहा है कि धर्मान्तरण बिल का विरोध करने वालों का सेंदरा (हत्या) कर दिया जाएगा. केन्द्रीय सरना समिति ने कहा कि विरासत में मिली स्वशासन व्यवस्था को पूर्ण रूप से संचालित करने के लिए सरना चारी हुजीर का गठन किया गया है. सरना समिति ने कहा कि जो भी इस विधेयक का विरोध करेगा, उसे गांव में नहीं घुसने दिया जाएगा और उसकी हत्या कर दी जाएगी.
सरना आदिवासियों ने तो यहां तक कह दिया कि धर्मान्तरित व्यक्तियों को अनुसूचित जनजाति का लाभ नहीं दिया जाय, साथ ही उन्हें पंचायत चुनाव में भी आरक्षण से वंचित रखा जाय. सरना समिति का यह भी कहना है कि अगर लोग धर्मान्तरण करते हैं तो इन्हें गोत्र भी छोड़ देना चाहिए. वहीं इस मामले में आदिवासी सेना का रुख सरना समिति से अलग है. उन्होंने कहा है कि रघुवर सरकार खुद को आदिवासियों का हितैषी बताती है, लेकिन आदिवासियों की धार्मिक, सामुदायिक एवं जंगल की 21 लाख एकड़ जमीन को परती बताकर पूंजीपतियों को दे रही है. सेना ने इस बात से इंकार किया कि मिशनरी जबरन धर्मान्तरण कराती है. उनका कहना है कि झारखंड में ईसाइयों की संख्या 1951 में 4.12 प्रतिशत और 1961 में 4.35 प्रतिशत थी, वहीं 2011 में यह 4.30 प्रतिशत रही. इससे स्पष्ट होता है कि झारखंड में धर्मान्तरण जैसी कोई समस्या नहीं है.
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि रघुवर सरकार ने धर्मान्तरण विधेयक लाकर भावनाओं के साथ तो खिलवाड़ किया ही, राज्य को फिर से बारूद की ढेर पर लाकर खड़ा कर दिया है. पहले से ही सीएनटी एवं एसपीटी एक्ट को लेकर झारखंड में उबाल है. राज्य सरकार ने इस आग में घी डालने का ही काम किया है.
विरोधियों ने एक सुर में किया विधेयक का विरोध
इस विधेयक को लेकर सभी विरोधी दलों ने एक सुर से मुख्यमंत्री रघुवर दास पर हमला बोला है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि यह जनता के मौलिक अधिकारों पर हमला है. उन्होंने कहा कि सरकार ने धर्मान्तरण कानून लाकर नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात किया है. यह स्वतंत्रता पर हमला है. मरांडी ने कहा कि भाजपा की सरकार कानून और संविधान मानने के लिए तैयार नहीं है, वे हमेशा कानून की धज्ज्यिां उ़डाते रहे हैं. संविधान में यह स्पष्ट है कि कोई भी व्यक्ति, कोई भी धर्म स्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है.
जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर दंड का प्रावधान पहले से ही है. आईपीसी की धारा-15 एवं 295-ए के तहत सजा का प्रावधान है. वहीं विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि यह विधेयक खास वर्ग को प्रताड़ित करने के लिए लाया जा रहा है. यह एक सोची-समझी साजिश है. क्या अब सरकार और मजिस्ट्रेट यह तय करेंगे कि लोग कौन सा धर्म अपनाएं. मुख्यमंत्री ने संवैधानिक संस्थाओं को अपनी पॉकेट का संस्था बना दिया है. उन्होंने कहा कि इस विधेयक का पूरे राज्य में विरोध किया जाएगा और उनकी पार्टी इसे वापस लेने के लिए सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन करेगी.
धार्मिक स्वतंत्रता बरकरार रहनी चाहिए: कार्डिनल पी टोप्पो
झारखंड में ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु कार्डिनल तेलस्फोर पी टोप्पो ने इस मामले पर सीधे तौर पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है. हालांकि उन्होंने कहा कि सरकार न्याय करती है तो ठीक है, अगर अन्याय होगा तो गलत होगा. जो हमलोगों पर जबरन या लोभ लालच से धर्मान्तरण का आरोप लगाते हैं, वे अपनी गलती महसूस करेंगे, हम झूठे आरोपों पर क्यों अपनी प्रतिक्रिया दे. उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में अंत:करण की आजादी है, देश में भी हर व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता है. ईश्वर ने मनुष्य को स्वतंत्र इच्छाशक्ति एवं बुद्धि दी है.
उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि हमारे शिक्षण संस्थानों में ज्यादातर गैर मसीही विद्यार्थी पढ़ते हैं, क्या इन सबों का धर्मान्तरण किया गया है या किया जाता है. यह सवाल उनसे पूछना चाहिए जो नियम बना रहे हैं. मैंने अब तक कभी भी या किसी को जबरन इसाई बनाया गया हो, यह नहीं सुना है. मसीही संगठनों का कहना है कि जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर पहले से ही संविधान के तहत कड़े कानून बने हुए हैं, तो इस तरह का बिल लाने की क्या आवश्यकता आ पड़ी. इस कानून का पूरी तरह से दुरुपयोग होगा और निर्दोष लोग प्रताड़ित होंगे, क्योंकि इसे गैर-जमानतीय अपराध माना गया है