महाराष्ट्र में सौ करोड़ रू. की वसूली के गंभीर आरोप के मामले में राकांपा नेता अनिल देशमुख द्वारा राज्य के गृह मंत्री के पद से इस्तीफा राज्य में करीब डेढ़ माह से जारी सस्पेंस थ्रिलर का एक अहम पड़ाव पर है, अंजाम नहीं। अपराध और राजनीति के मिले जुले इस खेल पहली बाजी बीजेपी ने जीत ली है। अगला निशाना मुख्यबमंत्री उद्धव ठाकरे होंगे। अगर पश्चिम बंगाल में इस बार भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हो गई तो यकीन मानिए, उसका सियासी असर दूरगामी होगा। आश्चर्य नहीं कि महाराष्ट्र की तीन पहिए वाली महाआघाडी सरकार का भी सफर जल्द ही खत्म हो जाए। इसका कारण यह है कि भाजपा ने चुनाव जीतने का तंत्र विकसित करने के साथ-साथ चुनाव हारने के बाद भी सत्ता पर काबिज होने का सिस्टम भी ईजाद कर लिया है। कर्नाटक और मध्यप्रदेश के बाद उसकी अगली प्रयोगस्थली महाराष्ट्र हो सकती है। वैसे भी ठाकरे सरकार डेढ़ साल में ऐसा कोई भी संदेश देने में नाकामयाब रही है, जिससे यह भरोसा बने कि विपरीत विचारधारा वाले दल भी एक साथ आकर सत्ता संचालन का सफल नवाचारी प्रयोग कर सकते हैं।
वरिष्ठ नेता अनिल देशमुख ने चौतरफा आलोचना के बाद अपने आका शरद पवार के कहने पर पद से इस्तीफा दिया। अगर यही काम वो मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह द्वारा मुख्यवमंत्री को लिखी अपनी चिट्ठी मीडिया को लीक करने के बाद देते तो शायद वह सचमुच ‘नैतिक आधार पर’ दिया गया त्यागपत्र माना जाता। परमबीर ने यह चिट्ठी उन्हें सचिन वाझे प्रकरण में मुंबई के पुलिस कमिश्नर पद से हटाए जाने के दो दिन बाद लिखी थी। सीएम ठाकरे को भेजी इस विस्फोटक चिट्ठी में उन्होंने अपने ही विभाग के मंत्री अनिल देशमुख पर कई गंभीर आरोप लगाए थे। जिनमें मंत्री द्वारा विवादित सहायक पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाझे और कुछ अन्य वरिष्ठ पुलिस अफसरों को अपने बंगले पर बुलाकर हर माह मुंबई के 1750 बार व रेस्त्रां से प्रति बार रेस्त्रां 2 से 3 लाख रू. वसूली के आदेश देने, हर महीने 100 करोड़ रू.का वसूली टारगेट देने, पुलिस कमिश्नर को अंधेरे में रखकर अधीनस्थ विभागीय अधिकारियों को बंगले पर बुलाने तथा पुलिस तबादलों में भारी भ्रष्टाचार के आरोप शामिल थे।
होली के पहले ही यह चिट्ठी लीक होते ही पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। क्योंकि होता यह सब अन्य राज्यों में भी है, लेकिन कोई आलातरीन पुलिस अफसर अपने ही मंत्री को अमूमन इस तरह सार्वजनिक रूप से बेनकाब नहीं करता। ऐसा करना नंगाई की नैतिकता के भी खिलाफ है। लिहाजा ऐसी बातें कभी रिकाॅर्ड पर नहीं लाई जातीं। मजे की बात यह है कि अपने ही मंत्री के कपड़े उतारने का काम उन्हीं परमबीर सिंह ने किया,जिन्हे सचिन वाझे मामले में पद से हटा दिया गया था, वो परमबीर जो सुशांत सिंह रााजपूत तथा और कुछ केसों में महाआघाडी सरकार की आंख के तारे बने हुए थे।
चिट्ठी लीक होने के बाद भी जब देशमुख से इस्तीफा लेने की जगह ठाकरे सरकार को बचाने का खेल शुरू हो गया तो परमबीर हाई कोर्ट चले गए और उन्होंने सौ करोड़ की कथित वसूली मामले की सीबीआई जांच की मांग कर दी।
इस पूरे घटनाक्रम के पीछे भाजपा का हाथ भी हो सकता है, लेकिन ठाकरे सरकार जिस तरह इस गंभीर मामले को डील कर रही थी, उसके प्रवक्ता संजय राउत पल पल बयान बदल रहे थे, उससे साफ था कि प्रकरण की जड़ें बहुत गहरी और व्यापक हैं। उधर महाआघाडी सरकार के ‘बैक सीट ड्राइवर’ शरद पवार ने अपने प्यादे को बचाने पहले तो अनिल देशमुख को क्लीन चिट दी फिर कहा कि मुख्यमंत्री चाहें तो देशमुख से इस्तीफा ले सकते हैं। लेकिन सीएम ठाकरे ने भी न जाने किस दबाव में न तो देशमुख से ‘नैतिकता के आधार पर’ इस्तीफा लेने का साहस दिखाया और न ही वो सीधे सरकार से पंगा ले रहे सीनियर पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की हिम्मत जुटा सके।
अब जब हाई कोर्ट ने परमबीर सिंह की याचिका पर सौ करोड़ की वसूली मामले की सीबीआई जांच के आदेश दे दिए हैं तो देशमुख के इस्तीफा देने के अलावा कोई चारा ही नहीं था। लिहाजा यह इस्तीफा नैतिकता के आधार पर कम, मजबूरी में ज्यादा है। यूं ठाकरे सरकार अपने महज डेढ़ साल के कार्यकाल में जितनी बदनाम हो चुकी है, उतनी कम ही सरकारें होती हैं। पिछले महिने ही शिवसेना कोटे के एक मंत्री संजय राठोड को एक अभिनेत्री पूजा सावंत की संदिग्ध मौत के मामले में फंसने पर इस्तीफा देना पड़ा था।
जाहिर है कि महाराष्ट्र में अपराध और राजनीति की इस ‘युति’ का खेल अब और तेज होगा। उधर उद्योगपति मुकेश अंबानी के मुंबई स्थित घर एंटीलिया के सामने विस्फोटक भरी गाड़ी रखकर उन्हें धमकाने के मामले में गिरफ्ताखर पुलिस अफसर सचिन वाझे की एनआईए द्वारा जांच में आए दिन चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। सचिन के एक अड्डे मुंबई के रेस्टारेंट से एनआईए ने वो डायरी बरामद की है, जिसमे साफ लिखा है कि सचिन वसूली करके किन-किन लोगों को हिस्सा देकर खुश करता था। इसमे कुछ पुलिस अफसरों व अन्य लोगों के नाम हैं। किसी राजनेता या पार्टी के नाम का खुलासा अभी नहीं हुआ है।
लेकिन एनआईए जैसे-जैसे तरह अंबानी को धमकी, मनसुख हिरेन की संदिग्ध मौत, सचिन वाझे की अदना पुलिस अफसर होने के बाद भी जबर्दस्त रंगदारी और खौफ, उसकी अय्याश जिंदगी और खतरनाक क्रिमिनल माइंड की तह में जा रही है, वैसे- वैसे इस नाटकीय घटनाक्रम के हैरतअंगेज राज खुलते जा रहे हैं। जनता की असली रूचि तो यह जानने में है कि सचिन वास्तव में किसके लिए सौ करोड़ रू. की वसूली करता था। जहां तक अनिल देशमुख का सवाल है तो वो पहली बार 1995 में निर्दलीय विधानसभा का चुनाव जीते थे और राज्य में तत्कालीन शिवसेना भाजपा युति सरकार को समर्थन देकर मंत्री भी बने थे। लेकिन बाद में राष्ट्रवादी कांग्रेस में चले गए।
देशमुख कई दफा मंत्री बने लेकिन भ्रष्टाचार का कोई गंभीर आरोप उन पर नहीं लगा। लगा भी तो सीधे सौ करोड़ रू. प्रति माह वसूली का। एक अकेला मंत्री सौ करोड़ रू. की वसूली करता रहे और किसी को कानो-कान खबर न हो, यह कैसे संभव है? जाहिर है कि अगर यह वसूली सचमुच हो रही होगी तो इसका आदेशस्थान या मूल स्रोत कहीं और होगा। वो स्रोत क्या है, यही सीबीआई को खोज निकालना है। सीबीआई इस मामले में कितनी निष्पक्षता और प्रोफेशनल ढंग से जांच करती है, यह देखना है, क्योंकि यह जबरिया वसूली का मामला भर नहीं है, ‘राजनीतिक चांदमारी’ का भी है। लेकिन इतना तय है कि वाझे प्रकरण और सौ करोड़ की वसूली मामले की कडि़यां किसी बिंदु पर जाकर तो जुड़ेंगी। वो संगम क्या है, वही देश जानना भी चाहता है।
फिलहाल देशमुख का इस्तीफा महाराष्ट्र में अपराध और राजनीति के महानाट्य का मध्यांतर है। असली खेल तो अब शुरू हुआ है। राकांपा सुप्रीमो शरद पवार और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अहमदाबाद में पिछले दिनो मुलाकात की अपुष्ट खबर महाराष्ट्र की अगली राजनीतिक पटकथा का आगाज मानी जा सकती है। हालांकि पवार राजनीतिक गच्चा देने में भी माहिर हैं। बहरहाल भ्रष्टाचार के इस महा दलदल में राजनीतिक गंगा स्नान कौन किसको करवाता है, इस पर सबकी नजर है। यह कहना गलत नहीं होगा कि कोविड, बंगाल के चुनाव से भी ज्यादा थ्रिलर महाराष्ट्र का सचिन वाझे प्रकरण है। आगे आगे देखिए होता है क्या?
वरिेष्ठ संपादक
अजय बोकिल