उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने का वादा करती रही है, लेकिन प्रदेश में जिस तरह डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया का प्रकोप फैला और अस्पतालों में अराजकता का वातावरण पैदा हुआ उससे सभी सरकारी दावों की पोल खुल गई है. समाजवादी सरकार संतुलित एवं समावेशी विकास का दावा करती है लेकिन हालात बद से बदतर हैं, यही असलियत है. प्रदेश के अस्पतालों में मरीजों की लम्बी कतारें लगी हैं. लेकिन प्रदेश सरकार के मंत्री और अफसर मस्ती में हैं. अस्पतालों में घनघोर अराजकता का वातावरण है. मरीजों की सिलसिलेवार मौतों पर आए दिन हंगामे हो रहे हैं. ऐसे संवेदनशील समय में लैब तकनीक कर्मचारी संघ हड़ताल पर चला जाता है, काम ठप्प हो जाता है, लेकिन सरकार कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं करती. इस वजह से स्थिति खराब होती जा रही है. प्रदेश में चुनाव आने वाला है, सभी दल चुनाव की तैयारी में लगे हैं. विरोधी दल भी उसी में मशगूल है. डेंगू जनित बीमारियों और उनके फैलते प्रकोप का मामला अदालत की चौखट तक जा पहुंचा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने संबंधित विभागों के सभी अधिकारियों को पूरी कार्रवाई रिपोर्ट के साथ अदालत के समक्ष तलब कर लिया है. मीडिया में फजीहत होने के बाद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अस्पतालों का औचक निरीक्षण करने की जरूरत समझते हैं और लखनऊ के महापौर को शहर की साफ-सफाई का ध्यान आता है.
मरीज तो आम आदमी है, उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं हैं. इस अराजकता और अफरातफरी में अस्पतालों में हर प्रकार के दलाल भी सक्रिय हो गए हैं. ये दलाल अस्पतालों में मरीजों की भर्ती कराने से लेकर उनको रक्तदान कराने व दवाईयां आदि तक दिलाने के लिए सक्रिय हैं. इसके कारण व्यवस्था चरमरा गई है. दलालों की नीचे से ऊपर तक पहुंच हैं. बीमारियों के चलते आजकल हर प्रकार की जांचों के लिए भी कोई निश्चित दाम तय नहीं है. वर्तमान समय में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक केवल लखनऊ में डेंगू व संबंधित बीमारी से प्रभावित पीड़ितों की संख्या साढ़े चार हजार पार कर चुकी है. मरीज मर रहे हैं, लेकिन अधिकारी किसी भी मौत को मानने से इंकार कर रहे हैं. स्वास्थ्य महानिदेशालय के आंकड़ों के अनुसार सरकारी अस्पतालों व प्रयोगशालाओं में डेंगू के 4525 मामले सामने आ चुके हैं. इसके विपरीत सरकारी आंकड़ों में दावा है कि केवल 5 मौतें ही हुई हैं. जबकि मीडिया रिपोर्ट कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव अरुण सिन्हा का कहना है कि डेंगू के मामलों की पुष्टि के लिए राष्ट्रीय प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है. निजी अस्पतालों व पैथोलाजी लैब से पूरी जानकारी लेना सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं. डेंगू से प्रभावित इलाकों की डिजिटल मैंपिंग कराने का भी फैसला हुआ है. लेकिन यह तो केवल सरकारी शब्दावलियां हैं. असलियत यह है कि रोगी इलाज के अभाव में मर रहे हैं. डेंगू से मरने वालो की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. अधिकारीगण सरकार को आंकड़ों का खेल पेश कर गुमराह कर रहे हैं. आज अस्पतालों की हालत यह हो रही है कि लाइन में खड़े होने व पर्चे बनवाने से लेकर दवाइयों की लाइन में लगने तक मारपीट व हंगामा तक हो रहा है. लोहिया अस्पताल में तो महिलाओं से चेन लूटने तक की वारदातें हो चुकी हैं. अस्पतालों में मरीजों व तीमारदारों की सुरक्षा ताक पर है. अस्पतालों में भारी भीड़ के चलते कहीं-कहीं पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ व अभद्रता की वारदातों को भी अंजाम दिया जा रहा है. जिसके कारण कई जगह परिजनों की ओर से हंगामा करने की खबरें लगातार प्रकाशित हो रही हैं. अस्पतालों में चिकित्सकों की ओर से लापरवाही की जा रही है. अभी लखनऊ के एक अस्पताल में एक लड़की का नाक का ऑपरेशन किया गया लेकिन चिकित्सक की लापरवाही के कारण बालिका की मौत हो गई. उक्त बालिका का केवल साइनस का ऑपरेशन किया गया था, लेकिन लापरवाही के कारण उसकी मौत हो गई. इस तरह के माहौल में प्रदेश के लोग जीने के लिए अभिशप्त हैं. अस्पतालों का आलम यह है कि कोई मरीज फर्श पर ही तड़प रहा है तो किसी बच्चे को गोद में लेकर ही ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा है. मरीजों के दबाव की वजह से अस्पतालों की इमरजेंसी में भर्ती तक ठप्प हो रही है. लोहिया अस्पताल और बलरामपुर अस्पताल में ओपीडी व बरामदे में पैर रखने तक की जगह नहीं बची है. वहीं सिविल अस्पताल आदि में कर्मचारियों के कार्य-बहिष्कार के चलते हालात दयनीय है. जो मरीज इलाज के लिए आ रहे हैं उनकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही.
डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया के साथ तेज बुखार के कारण राजधानी लखनऊ ही नहीं, प्रदेश के कई शहरों की जनता व्यवस्था के कारण नाराज है. सफाई व्यवस्था और फॉगिंग का बुरा हाल है. मशीनों की खराबी के कारण अधिकतर जगहों पर फॉगिंग नहीं हो पा रही है. फॉगिंग हो भी रही है तो नेताओं और नौकरशाहों की कॉलोनियों में. राजधानी लखनऊ समेत प्रदेशभर में फैल रही गंदगी के कारण ही खतरनाक रोग पनप रहे हैं. फिर भी सफाई व्यवस्था चौपट है. कई जगह सफाई कर्मचारियों के साथ आम लोगों की हिंसक झड़पें हो रही हैं. विडंबना यह है कि इसी में प्रदेश सरकार बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने का दावा कर ही है और अखबारों और चैनेलों पर विज्ञापन के माध्यम से बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं. प
पॉश इलाक़ों में ‘सरकारी डेंगू’ का प्रकोप अधिक
डेंगू बुखार के कारण सबसे अधिक मौतें जन-सुविधाओं के लिए तरसने वाले इलाकों में हो रही हैं. लेकिन हड़कंप खास लोगों में अधिक है. उसी आम और खास के फर्क से सरकारी आंकड़े भी तैयार किए जा रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक डेंगू का सबसे अधिक प्रभाव लखनऊ के पॉश इलाकों में है. राजधानी में डेंगू के करीब 16 प्रतिशत मरीज अकेले गोमतीनगर में हैं, जबकि इंदिरानगर में करीब 9 प्रतिशत मरीज हैं. यह ब्यौरा सिर्फ उन मरीजों का है, जिनकी सरकारी पैथॉलजी में एलाइजा की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. निजी अस्पतालों में भर्ती 90 फीसदी घोषित डेंगू मरीजों का आंकड़ा इस रिपोर्ट में शामिल नहीं है.
राजधानी के सरकारी अस्पतालों ने एक जनवरी से 21 सितंबर तक का ब्यौरा तैयार किया था. इन नौ महीनों में एलाइजा जांच के बाद सिर्फ 346 लोगों में डेंगू की पुष्टि हुई. सबसे ज्यादा मरीज उन इलाकों से हैं, जो तुलनात्मक रूप से काफी पॉश और साफ-सुथरे माने जाते हैं. गोमती नगर और इंदिरानगर के बाद सबसे ज्यादा डेंगू के मरीज राजाजीपुरम, आलमबाग, अलीगंज, जानकीपुरम और कानपुर रोड के हैं. शहर से बाहर मोहनलालगंज और गोसाईंगंज में सबसे अधिक मरीजों में एलाइजा टेस्ट के बाद डेंगू की पुष्टि हुई. पॉश इलाकों में डेंगू पर सफाई देते हुए स्वास्थ्य विभाग के अफसर कहते हैं कि विकसित और पॉश कॉलोनियों में बड़े-बड़े बंगले हैं. इनमें से ज्यादातर खाली पड़े हैं. बरसात का पानी इनकी छतों और छज्जों पर जमा रहता है. इसे साफ करने वाला कोई नहीं. कई लोगों ने मकान किराए पर दे रखे हैं. किराएदार सफाई के प्रति ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते. इससे वहां जमा साफ पानी डेंगू मच्छर के प्रजनन के लिए मुफीद होता है. दवा का छिड़काव करने वाले कर्मचारियों को भी इन मकानों के भीतर नहीं जाने दिया जाता. लखनऊ के सबसे समृद्ध और पॉश गोमती नगर की आबादी करीब नौ लाख है. शहर और इसके आसपास की आबादी करीब 45 लाख है. आबादी के इस आंकड़े के हिसाब से गोमती नगर की आबादी कुल आबादी का 20 प्रतिशत है, जबकि डेंगू के कुल मरीजों की 25 फीसदी संख्या यहीं है.