उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले सियासी रायता बिखेरने की तैयारियां सतह पर दिखने लगी हैं. ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ बोर्ड शरिया कोर्ट गठित करने के मसले पर लगातार सुर्खियों में है, तो दलित ध्रुवीकरण की कोशिशों के तहत ‘बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ’ लाने की मांग अचानक गति पकड़ने लगी है. मुस्लिमों और दलितों को एक शामियाने के नीचे लाने की सियासी कवायद पहले से चल ही रही थी कि ‘बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ’ के लिए नए सिरे से संघर्ष के ऐलान ने इस कवायद को और बल दे दिया है. ‘बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ’ के मसले पर संसद सत्र के दौरान जुलूस और प्रदर्शन के जरिए दिल्ली को चेतावनी देने के पीछे भाजपा को चेताने और विपक्ष को लुभाने का इरादा निहित है.

भाजपा के कई सांसद विधायक इस अभियान में शामिल हैं. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि यह भाजपा के खिलाफ खुली बगावत और भाजपा आलाकमान को दबाव में लेने की चाल दोनों है. भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की उत्तर प्रदेश में शुरू हुई राजनीतिक गतिविधियां ‘बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ’ की धुरी के इर्द-गिर्द घूम रही हैं. इस मांग के जोर पकड़ने में विपक्षी दलों को अपना फायदा और भाजपा का नुकसान दिख रहा है, इसलिए विपक्षी दल इस मुहिम को हवा दे रहे हैं.

दूसरी तरफ, मुस्लिमों और दलितों के एकीकरण की सियासी चाल को दो विपरीत धाराओं में ले जाने का भाजपा का प्रयास जारी है. यह प्रयास दलितों के भारत बंद में मुस्लिमों की सक्रिय और हिंसक भागीदारी के बाद गंभीरता से आगे बढ़ा है. भाजपा सरकार एक तरफ मुस्लिमों के तीन तलाक मसले को संवैधानिक जामा पहनाने के बाद मुस्लिमों में प्रचलित हलाला और बहुविवाह के चलन को खत्म कर मुस्लिम महिलाओं का भावनात्मक समर्थन बटोरने पर लग गई है, तो दूसरी तरफ दलितों के लिए प्रमोशन में आरक्षण के साथ-साथ ओबीसी आरक्षण का अलग फार्मूला लाने समेत कई अन्य सुविधाओं का पिटारा खोलने जा रही है, ताकि प्रतिपक्षी दिशा में ध्रुवीकरण की स्थिति कतई न बन पाए.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जमीनी स्तर पर दलित कार्यकर्ताओं, वकीलों, बुद्धिजीवियों और समाजसेवियों की सूची तैयार कर रहा है. इस सूची के आधार पर भाजपा सरकार उन्हें विभिन्न विभागों, निगमों, समितियों, आयोगों और बोर्डों के अध्यक्ष उपाध्यक्ष के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्र के सलाहकारों और सरकारी अधिवक्ता के विभिन्न पदों पर नियुक्त करने की योजना बना रही है. इसे 2019 चुनाव के पहले लागू किया जाएगा. उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बने करीब डेढ़ साल हो चुके, लेकिन यह काम लंबित पड़ा हुआ है. भाजपा इसका ऐन मौके पर राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है.

सरकारी अधिवक्ता के विभिन्न पदों को छोड़ कर बाकी पद राज्य मंत्री के समतुल्य हैं. इस नियुक्ति के जरिए भाजपा दलितों के साथ-साथ अति पिछड़ों और पिछड़ी जाति के लोगों को भी संतुष्ट करेगी. निवर्तमान सपा सरकार ने तकरीबन सौ नेताओं को अलग-अलग निगमों का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और विभागों का सलाहकार नियुक्त किया था. 19 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के अगले ही दिन योगी आदित्यनाथ ने सभी गैर शासकीय सलाहकारों, निगमों, विभागों और समितियों में अध्यक्षों, उपाध्यक्षों और सदस्यों को हटाने का फरमान जारी कर दिया था.

‘धम्म चेतना यात्रा’ निकालकर या अम्बेडकर जयंती को ‘सामाजिक समरसता दिवस’ के रूप में मना कर और दलितों के घर भोजन करके भाजपा दलितों को प्रभावित करने की कोशिश अर्से से करती आ रही है, लेकिन मुस्लिम-दलित एकीकरण की सियासत पर इससे कोई अधिक फर्क नहीं पड़ा, बल्कि यह और तीव्र होता गया. एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विपक्ष प्रेरित दलित संगठनों के भारत बंद में दलितों से अधिक मुस्लिमों की भागीदारी ने इस सियासत को काफी उग्र कर दिया. इसी सियासी उग्रता में तेल डालने का काम कर रही है ‘बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ’ की मांग.

2014 के लोकसभा चुनाव के पहले भी यह मांग उठा कर दलितों को हरकत में लाने की कोशिश की गई थी, लेकिन उस समय यह अभियान अधिक ध्यान नहीं बटोर सका. ‘ऑल इंडिया एक्शन कमेटी फॉर बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ’ की तरफ से प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंप कर ‘बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ’ और ‘बुद्धिस्ट कोड ऑफ कंडक्ट’ लागू करने की मांग की गई थी. कमेटी की मांग है कि जस्टिस एमएन वेंकटचेलैया समिति की सिफारिशों के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 25 (2) (ब) को संशोधित कर बौद्धों को अलग धर्म के रूप में दर्ज किया जाए.

‘बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ’ के हिमायतियों का कहना है कि भारत में बौद्धों पर हिंदू कानून लागू है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 (2) (ब) के तहत बौद्ध धर्म हिंदू धर्म में समाहित है. बौद्ध पर्सनल लॉ लाए बिना बौद्ध धर्म हिंदू धर्म से मुक्त नहीं हो सकता. वर्ष 2002 में संविधान समीक्षा आयोग और 2017 में सुप्रीम कोर्ट अलग बौद्ध कानून बनाने की हिमायत कर चुका है. रेखांकित करने वाली बात यह है कि ‘बुद्धिस्ट पर्सनल लॉ’ पर जोर देने के लिए दिल्ली घेरने के अभियान में खास तौर पर उत्तर प्रदेश के दलितों को साथ देने की अपील की गई. स्पष्ट है कि इस अपील के राजनीतिक निहितार्थ हैं, क्योंकि भाजपा के कई सांसद, विधायक और कार्यकर्ता इस अपील को प्रचारित-प्रसारित करने में बड़ी तन्मयता से लगे थे. इनमें भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले का नाम अव्वल है, जिन्होंने 15 जुलाई को लखनऊ में सार्वजनिक मंच से कहा कि देश में अराजकता की स्थिति बनी हुई है और संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. उन्होंने स्पष्ट कहा, ‘मैं किसी कार्रवाई से नहीं डरती. अगर अधिकार पाने के लिए मुझे कुर्बानी भी देनी पड़ी तो पीछे नहीं हटूंगी.

लेकिन चुप नहीं रहूगी. बाबा साहेब के उद्देश्य को पूरा करने के लिए संघर्ष करती रहूंगी’. सावित्री बाई ने कहा कि भाजपा लखनऊ और इलाहाबाद का नाम बदल कर बहुजन समाज का इतिहास मिटाने की साजिश कर रही है. अभी हाल ही अप्रैल महीने में भी भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले ने नमो बुद्धाय जन सेवा समिति के मंच से भाजपा नेतृत्व को ललकारा था और कहा था कि भाजपा संविधान को कमजोर कर रही है. दलित या आदिवासी मसलों पर दलित सांसदों को संसद में बोलने नहीं दिया जाता. उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें सांसद बने रहने या आगामी चुनाव में टिकट नहीं मिलने की कोई चिंता नहीं है. भाजपा सांसद के इस संवाद को भाजपा नेतृत्व को दबाव में लेने की पेशबंदी के तौर पर भी देखा जा सकता है.

बहरहाल, भाजपा नेतृत्व को ऐसी चुनौतियां और पेशबंदियां कई दलित नेताओं की तरफ से मिल रही हैं. योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर का विद्रोही-तमाशा कुछ दिनों पहले लोग देख ही चुके हैं. राजभर को मनाने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को लखनऊ आना पड़ा था. इसके बाद भाजपा सांसद अशोक दोहरे, छोटे लाल खरवार, चौधरी बाबूलाल और डॉ. यशवंत सिंह भी इसी तमाशा-पंक्ति में शामिल हो गए. दोहरे ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर यूपी में दलितों के उत्पीड़न की शिकायत की, तो यशवंत ने मोदी सरकार पर ही निशाना साध लिया और कहा कि केंद्र ने चार वर्षों में दलितों के हित का एक भी काम नहीं किया है.

चौधरी ने राम शंकर कठेरिया के साथ-साथ भाजपा नेतृत्व को भी आड़े हाथों ले लिया और कहा कि इन लोगों ने हरिजन एक्ट को धंधा बना रखा है. भाजपा नेतृत्व दलित सांसदों के बगावती तेवर को काउंटर-बैलेंस करने के लिए केंद्रीय मंत्री कृष्णा राज, अनुसूचित जाति जन जाति आयोग के अध्यक्ष राम शंकर कठेरिया, सांसद कौशल किशोर समेत कई नेताओं के जरिए दलित हित के किए गए काम के ब्यौरे के साथ भाजपा के दलित-मित्र होने का संदेश प्रसारित कर रहा है. भाजपा के ये दलित सांसद दलितों को यह बता रहे हैं कि एससी-एसटी के लिए आरक्षित 131 लोकसभा सीटों में से 66 दलित सांसद भाजपा के हैं और उत्तर प्रदेश विधानसभा में भी 87 प्रतिशत दलित विधायक भाजपा के ही हैं. देश के राष्ट्रपति पद के लिए भी भाजपा ने दलित नेता रामनाथ कोविंद को ही चुना. दलितों के लिए किए गए काम का ब्यौरा दलितों के सामने रखा जा रहा है.

भाजपा नेतृत्व ने यह तय कर लिया है कि बगावती तेवर और दबाव की नीति अख्तियार करने वाले सांसदों को 2019 के चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा. टिकट कटता देख कर भाजपा के कई सांसद सपा और बसपा की परिक्रमा करने लगे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में जो लोग मोदी लहर में बह कर सांसद बन गए और अपना कोई राजनीतिक और जन-प्रतिनिधिक योगदान नहीं दे पाए, उन्हें भाजपा इस बार मौका नहीं देने जा रही है. भारतीय जनता पार्टी ने करीब दो दर्जन ऐसे लोगों को सांसद बनाया जो सपा, बसपा और कांग्रेस छोड़कर आए थे. संघ ने पार्टी को ऐसे कई सांसदों की लिस्ट सौंपी है जो चुनाव जीतने के बाद कभी अपने संसदीय क्षेत्र में गए ही नहीं. ये चेहरे अब सपा और बसपा के गलियारे में अपना नाम चलवा रहे हैं.

भाजपा के टिकट से वंचित होने वाले चेहरों में रॉबर्ट्सगंज के भाजपा सांसद छोटे लाल खरवार, लालगंज से सांसद नीलम सोनकर, बहराइच की सांसद सावित्री बाई फुले, इटावा के सांसद अशोक कुमार दोहरे, नगीना के सांसद डॉ. यशवंत सिंह, फतेहपुर सीकरी के सांसद चौधरी बाबूलाल, इलाहाबाद के सांसद श्यामाचरण गुप्ता, देवरिया के सांसद कलराज मिश्र, कानपुर के सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी, झांसी की सांसद साध्वी उमा भारती समेत कई नेता शामिल हैं. साध्वी तो खुद ही चुनाव लड़ने के प्रति अपनी अनिच्छा जता चुकी हैं और डॉ. जोशी और कलराज उम्र के भाजपाई मानक पर दरकिनार कर दिए जाएंगे. साध्वी, जोशी और मिश्र को छोड़ कर अन्य सभी नेता भाजपा नेतृत्व के खिलाफ आग उगलते रहे हैं. इस बार पत्ता कटने वाले कुछ प्रमुख चेहरों में वरुण गांधी का नाम भी लिया जा रहा है, लेकिन बहुत दबी जुबान से. वरिष्ठों को छोड़ कर बाकी सारे नेता टिकट पाने के लिए सपा और बसपा नेतृत्व के साथ सम्पर्क में हैं.

बसपा को भाजपा भी लपकने को तैयार!

भाजपा के शीर्ष सांगठनिक गलियारे में बसपा के साथ भी अंदरूनी मेल-मिलाप की चर्चा चल रही है. कुछ वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को खतरे का ठोस एहसास हुआ तो उत्तर प्रदेश की गद्दी मायावती को देने, केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय देने और संतोषजनक सीटें देकर साथ चुनाव लड़ने का करार बसपा के साथ हो सकता है. भाजपा के अंदर की यह चर्चा फिलहाल तो कयास से अधिक कुछ नहीं, लेकिन सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद और साथ में आने वाले अन्य दलों के बीच सीटों के बंटवारे और नेतृत्व को लेकर जो खींचतान होने वाली है, उसका दृश्य अभी से दिख रहा है.

भाजपा दावा करती है कि उसके साथ चुनाव लड़ने वाले दलों को जीतने की गारंटी है. अगर बसपा भाजपा के साथ आई तो यूपी में वह भाजपा की सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी होगी. भावी महागठबंधन में नेतृत्व को लेकर जो कलहपूर्ण संकट खड़ा होने वाला है, उसे मायावती अच्छी तरह समझती हैं. क्योंकि बसपा के मंडलीय सम्मेलन में मायावती को प्रधानमंत्री बनाने के लिए किया गया आह्वान सपा कांग्रेस खेमे को हजम नहीं हुआ है. बसपा के हाल में हुए मंडलीय सम्मेलन में बसपा नेताओं ने मायावती को विपक्ष एवं तमाम क्षेत्रीय दलों का सर्वमान्य नेता घोषित किया और उन्हें अगला प्रधानमंत्री बनाने के प्रति संकल्प दोहराया. बसपा के राष्ट्रीय महासचिव और को-ऑर्डिनेटर वीर सिंह ने कहा कि देश की सभी क्षेत्रीय पार्टियों ने बहनजी को अपना नेता मान लिया है, अब उन्हें प्रधानमंत्री बनने से कोई रोक नहीं सकता.

बसपाई महत्वाकांक्षा का उभार देखते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी फौरन उत्तर प्रदेश में दलित चेतना यात्रा की शुरुआत कर दी और यात्रा के लखनऊ पहुंचने पर उसके स्वागत में राजनीतिक वक्तव्य जारी किए, लेकिन मायावती का नाम नहीं लिया.

अखिलेश ने बस इतना ही कहा कि सपा-बसपा तालमेल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘बॉडी लैंग्वेज’ गड़बड़ा गया है. इसके बाद अखिलेश यादव ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ही फोकस में रखा और कहा कि कांग्रेस को मुस्लिमों की पार्टी बताने वाली भाजपा यह नहीं समझती कि कोई भी राजनीतिक दल देशवासियों का होता है, किसी धर्म विशेष का नहीं. अखिलेश बोले कि प्रधानमंत्री तारीख बता दें, समाजवादी पार्टी चुनाव के लिए तैयार है.

समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी किसी भी तरह सपा-बसपा गठबंधन को तोड़ना चाहती है. भाजपा चाहती है कि बसपा का तालमेल कांग्रेस से हो जाए, लेकिन सपा के साथ तालमेल न रहे. लेकिन जिस तरह की स्थितियां बन रही हैं, उससे बसपा और कांग्रेस के बीच तालमेल की संभावनाएं कम लग रही हैं. कांग्रेस के नेता ही बसपा के साथ तालमेल के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं. राजस्थान में विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस और बसपा के साथ तालमेल की कोशिशों का करीब-करीब पटाक्षेप ही हो गया है. राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट ने साफ-साफ कह दिया है कि कांग्रेस राजस्थान में भाजपा को अकेले दम पर हरा सकती है, उसे बसपा से तालमेल करने की जरूरत नहीं है. पायलट ने कहा है कि आने वाले चुनाव में भाजपा से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को किसी दूसरी पार्टी का हाथ पकड़ने की जरूरत नहीं है. हालांकि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में कांग्रेस मायावती के साथ तालमेल की मंशा जता चुकी है.

आरक्षण का असंतुलन दूर कर जातीय समीकरण गड्‌डमड्ड करने की फिराक़ में है भाजपा चुनाव का माहौल गरमाने के पहले भाजपा जातीय संतुलन के हिसाब से आरक्षण का नया फार्मूला लागू करने पर भी काम कर रही है. इसके गुणाभाग की कवायद चल रही है. भाजपा की रणनीतियों को जानने वाले खास लोगों में शामिल एक नेता ने कहा कि यह फार्मूला जातीय राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के नेताओं को मुश्किल में डालने वाला है. इसका असर गठबंधन के समीकरणों पर पड़ेगा. पिछड़े और अति पिछड़ा वर्ग में सेंध लगाने के लिए आरक्षण में बदलाव की तैयारी चल रही है. उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय समिति पहले से गठित है.

राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में 28 जून 2001 को इसका गठन हुआ था. अब योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति का गठन भी कर दिया है. सामाजिक न्याय समिति ने पिछड़ी और अनुसूचित जातियों को दिए जाने वाले आरक्षण को सबसे निचले पायदान पर खड़े ओबीसी/अनुसूचित वर्ग के लोगों तक पहुंचाने के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण की सिफारिश की थी. समिति ने अन्य पिछड़ा वर्ग की सभी 79 जातियों के लोक सेवा-योजन में प्रतिनिधित्व का विश्लेषण कर पाया था कि उत्तर प्रदेश में पिछड़ा वर्ग का विभाजन न होने के कारण 2.3 प्रतिशत जातियां ही 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ उठा रही हैं.

इससे अन्य अति पिछड़ी जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित हो रही हैं. ‘आनुपातिक प्रतिनिधित्व सूचकांक’ के मानक पर 79 जातियों के सेवा-योजन की स्थिति का अध्ययन करने के बाद समिति ने पाया था कि अन्य पिछड़ा वर्ग में भी कुछ जातियां जनसंख्या के अनुपात से कहीं अधिक आरक्षण का लाभ उठा रही हैं. दूसरी ओर अधिकांश जातियां अपने जनसंख्या-अनुपात से कम लाभ उठा पा रही हैं. इस सामाजिक असंतुलन को देखते हुए सामाजिक न्याय समिति ने ओबीसी की तीन श्रेणी; पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग बनाने की सिफारिश की थी. तब राजनाथ सिंह इस सिफारिश को लागू नहीं करा पाए थे. अब योगी आदित्यनाथ इसे अमल में लाने जा रहे हैं. हालांकि इसी फार्मूले को बिहार में लागू कर वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अति पिछड़ों और अत्यंत पिछड़े वर्ग के लोगों के चहेते बन गए.

स्पष्ट है कि इस फार्मूले के लागू होने से खास तौर पर समाजवादी पार्टी को अधिक परेशानी होने वाली है. आप समझ ही रहे होंगे कि यूपी में ओबीसी सूची में शामिल 79 जातियों में से किन एक-दो खास जातियों को आरक्षण का पूरा लाभ मिलता रहा है. राजनाथ सिंह का ओबीसी फॉर्मूला लागू होने से आरक्षण का फायदा कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, माली, सैनी, काछी, कोयरी, लोध, राजभर, बिंद, निषाद, मल्लाह, केवट, मांझी, कहार, धीवर, रायकवार, कश्यप, भुर्जी-कान्दू, चौहान, प्रजापति, बढ़ई, नाई, लोहार, गड़ेरिया जैसी जातियों को भी मिलने लगेगा. आरक्षण का लाभ लेने का आंकड़ा यह है कि नौ प्रतिशत आबादी वाले यादवों की सरकारी नौकरियों में 132 प्रतिशत हिस्सेदारी है और पांच प्रतिशत आबादी वाली कुर्मी जाति की सरकारी नौकरियों में 242 प्रतिशत हिस्सेदारी है. जबकि दूसरी तरफ 14 प्रतिशत आबादी वाली 63 जातियों की हिस्सेदारी सिर्फ 77 प्रतिशत है. सरकार ने अगर इन पिछड़ी जातियों में समान हिस्सेदारी की व्यवस्था कर दी तो यादवों का हिस्सा नौकरी में कम हो जाएगा और छोटी-छोटी अति पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी बढ़ जाएगी.

अवकाश प्राप्त जज राघवेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में गठित अन्य पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति जाट जाति सहित अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल विभिन्न जातियों और वर्गों के पिछड़ेपन की मौजूदा स्थिति का पता लगा कर अपनी सिफारिश सरकार के समक्ष पेश करेगी, जिसके आधार पर पिछड़ों को आरक्षण का लाभ देने की नई व्यवस्था लागू होगी. समिति मौजूदा समय में पिछड़ा वर्ग के तहत आने वाले विभिन्न वर्गों और जातियों की मौजूदा सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का अध्ययन करेगी और प्रदेश में लागू आरक्षण व्यवस्था के तहत शैक्षणिक क्षेत्र में पिछड़े वर्ग के विभिन्न वर्गों और जातियों की भागीदारी का पता लगाएगी. समिति यूपी की आरक्षण व्यवस्था के तहत सरकारी सेवाओं में पिछड़े वर्ग की विभिन्न जातियों की भागीदारी का आकलन करेगी और आरक्षण के लाभ में ओबीसी की सभी जातियों की समान भागीदारी पर केंद्रित रिपोर्ट सरकार को देगी.

अब इसका राजनीतिक समीकरण भी समझते चलते हैं. भाजपा का यह फार्मूला सारे जातीय समीकरणों को इधर-उधर कर देगा. स्वाभाविक है कि जातीय आधार पर गठबंधन और महागठबंधन का राजनीतिक फायदा उठाने की मंशा भी गड्डमड्‌ड हो जाएगी. उत्तर प्रदेश में देश की सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटें हैं. यूपी में अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों की आबादी करीब 45 प्रतिशत है. इनमें गैर यादव ओबीसी जातियां 36 प्रतिशत से अधिक हैं. आरक्षण का नया अन्य पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय वाला फार्मूला लागू हुआ तो 36 प्रतिशत ओबीसी आबादी भाजपा के प्रभाव क्षेत्र में चली जाएगी. भाजपा इसी जुगाड़ में है.

सपा-बसपा गठबंधन ‘फ्रस्ट्रेटेड’ लोगों की ज़मात : क़ानून मंत्री

उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक सपा-बसपा गठजोड़ को ‘फ्रस्ट्रेटेड’ लोगों की जमात कहते हैं. पाठक कहते हैं कि इस गठबंधन से 2019 के चुनाव पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. उप चुनाव में हार के लिए सपा-बसपा गठबंधन को जिम्मेदार मानने के बजाय कानून मंत्री कहते हैं कि उपचुनाव में उनकी जीत या भाजपा की हार की वजहें स्थानीय हैं, इससे उन्हें किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए. उप चुनाव की हार-जीत स्थानीय समीकरणों पर तय होती है. जबकि आम चुनाव व्यापक मसलों और लक्ष्यों पर तय होता है. उप चुनाव से राष्ट्र की केंद्रीय सत्ता तय नहीं होती.

जब प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का नाम आता है, तो किसी को दूसरा कोई बेहतर विकल्प नहीं दिखता. सपा बसपा गठबंधन के प्रसंग पर कानून मंत्री कहते हैं, ‘देखिए, कुछ फ्रस्ट्रेटेड लोग इकट्ठा हुए हैं, जिन्हें अपनी ही जमीन का कोई अता-पता नहीं है. ये अपनी जमीन खो चुके हैं. अगर खुदा न खास्ता गठबंधन टूट गया तो इनका कोई ओर-छोर पता नहीं चलेगा. चुनावी वैतरणी पार करना इनके लिए मुश्किल हो जाएगा. ये सब एक दूसरे का हाथ पकड़ कर किसी तरह चुनावी वैतरणी पार करना चाहते हैं. सपा-बसपा गठबंधन मतभेद और मनभेद की जमीन पर खड़ा है. वैचारिक धरातल पर इनमें कोई समानता नहीं है. दोनों पार्टियों में वैमनस्यता बूथ के स्तर तक व्याप्त है. सब जानते हैं कि सपा के लोग दलितों को बूथ के स्तर तक किस तरह पीटते और उत्पीड़ित करते हैं. ये किसी भी तरह मन से इकटठा नहीं हो पाएंगे.’

भाजपा के अंदर दलितवाद के नाम पर या सत्ता के उपेक्षात्मक रवैये को लेकर जो विरोध और विद्रोह के स्वर मुखर हो रहे हैं, उसे लेकर उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक कहते हैं कि ये वे लोग हैं, जो अपने टिकट के लिए परेशान हैं. वे जान चुके हैं कि चुनाव में वे हारेंगे और भाजपा नेतृत्व उन्हें हारने के लिए टिकट नहीं देने जा रही है. इसी हताशा में वे विरोध या विद्रोह के स्वर मुखर करते हैं और पार्टी नेतृत्व, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के खिलाफ अनाप-शनाप बयानबाजियां करते हैं. ब्रजेश पाठक यह दावा करते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी पुनः भारी बहुमत से जीतेगी और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाएगी.

भाजपा की इस जीत में उत्तर प्रदेश राज्य अपनी वही भूमिका निभाएगा जिस तरह 2014 में निभा चुका है. पाठक कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्व में प्रदेश सर्वांगीण विकास कर रहा है, कानून व्यवस्था पूरी तरह पटरी पर है, सपा काल की अराजकता और गुंडा राज समाप्त हो चुका है. अपने विभाग के कार्यकलाप के बारे में पूछने पर ब्रजेश पाठक कहते हैं, ‘जहां तक कानून विभाग का प्रश्न है, हमारी सबसे बड़ी चिंता थी कि जहां 42 लाख से अधिक मुकदमे अदालतों में लंबित हों, उसके निपटारे के लिए क्या किया जाए. हमने पर्याप्त संख्या में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्तियां कीं और वह प्रक्रिया अब भी जारी है.

मुख्यमंत्री ने सभी जिलों में स्थायी लोक अदालतों का गठन कर इस दिशा में सबसे बड़ा काम किया. उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बना जहां सभी जिलों में स्थायी लोक अदालतें गठित हो गई हैं. पहले लोक अदालतें मेले की तरह छठे-छमासे लगती थीं, अब वे स्थायी तौर पर लग रही हैं और उनमें सीजेएम स्तर अधिकारी की नियुक्ति सचिव के बतौर कर दी गई है. इसके अलावा प्रदेश में न्यायिक अधिकारियों के जो पद खाली थे, उन पर नियुक्ति के साथ-साथ सौ पद अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश स्तर के, सौ पद सिविल जज सीनियर डिवीजन के और 330 पद सिविल जज जूनियर डिवीजन के सृजित किए गए हैं, जिन पर नियुक्ति का विज्ञापन कुछ ही दिनों में लोक सेवा आयोग प्रकाशित करने वाला है.

बड़ी संख्या में लंबित पड़े पारिवारिक विवादों के त्वरित निपटारे के लिए हमने 110 पारिवारिक अदालतों की स्थापना का फैसला लिया है. महिला उत्पीड़न के मामलों को निपटाने के लिए सौ फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित किए गए हैं. दलित उत्पीड़न के मामले निपटाने के लिए अलग से 25 फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की गई है. सब जानते हैं कि देसी-विदेशी उद्योगपतियों को निवेश के लिए यूपी में आमंत्रित किया जा रहा है. उन्हें कानूनी सुविधाएं मिलें इसके लिए पहली बार उत्तर प्रदेश में 13 नए कॉमर्शियल कोर्ट खोलने का निर्णय लिया गया है.

प्रदेश के औद्योगिक और व्यवसायिक गतिविधियों वाले जिलों में कॉमर्शियल कोर्ट्स की स्थापना की जा रही है. लखनऊ में भी यह अदालत काम करेगी. पहले सिविल अदालतों में ही कॉमर्शियल विवादों की सुनवाई होती थी और उसमें अप्रत्याशित विलंब होने के कारण निवेश करने वाले उद्योगपति परेशान होते थे. न्यायिक अधिकारियों को कॉमर्शियल विवाद निपटाने की समुचित ट्रेनिंग भी नहीं थी. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. अब बाकायदा प्रशिक्षित न्यायिक अधिकारियों को कॉमर्शियल कोर्ट्स में तैनात किया जा रहा है.

डिस्ट्रिक्ट जज के सुपरटाइम स्केल स्तर वाले जजों को बाकायदा ट्रेनिंग दे कर कॉमर्शियल कोर्ट्स का जज बनाया जा रहा है.’ कानून मंत्री ब्रजेश पाठक कहते हैं कि इसी तरह अन्य मंत्रालयों में भी बिना किसी शोर-शराबे के काम हो रहे हैं, जमीनी स्तर पर जनता को इसका लाभ मिल रहा है. दूसरे दलों ने भी यूपी में कभी न कभी सत्ता संभाली है, उन्होंने क्या किया और योगी सरकार ने इन डेढ़ वर्षों में क्या किया, उसे जनता देख-समझ रही है और लाभ उठा रही है. इसलिए हमें जनता का समर्थन मिल रहा है. चलते-चलते पाठक बोले, ‘काम हम कर रहे हैं तो वोट क्या दूसरे को मिलेगा?’

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