मेरा अपना यह मानना है कि नए सिरे से केंद्र सरकार चलाने वाले प्रधानमंत्री एवं उनके साथियों को किस तरीके से दिल्ली और केंद्र सरकार का रिश्ता व्यवहारिक रूप से न बिगड़े, इसके बारे में सोचना चाहिए. राजनीतिक तौर पर अक्सर अलग-अलग विचारधाराएं होती हैं, एक-दूसरे के ऊपर हमले भी होते हैं, लेकिन उसका असर सरकार चलाने की प्रक्रिया के ऊपर नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि अगर ऐसा होता है, तो उसका असर सीधा-सीधा जनता के ऊपर पड़ता है, जिसका कोई कुसूर नहीं होता. केंद्र-राज्य संबंधों को लेकर कई सारे आयोगों ने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को दी है. बहुत सारे सुझावों के ऊपर अमल भी हुआ है, लेकिन बहुत सारे सुझावों के ऊपर अमल नहीं हुआ है.

Santosh-Sir-1-new-pixदिल्ली राज्य और केंद्र सरकार का झगड़ा कुछ बुनियादी सवाल खड़े करता है. पहला सवाल यह कि राज्य और केंद्र का संबंध किस सीमा तक कड़वाहट से भरा हो सकता है और दूसरा यह कि क्या राजनीतिक मतभेद शासन चलाने की पद्धति को प्रभावित कर सकता है? दिल्ली सरकार के बारे में कहा जाता है कि यह पूर्ण सरकार नहीं है. यह बुनियादी तौर पर बड़े पैमाने पर किसी भी नगरपालिका का स्वरूप है. बुनियादी सुविधाओं का कैसे सुचारू रूप से संचालन हो सके, स़िर्फ उतना ही इसका काम है. उसमें भी जब परेशानी आती है, तब जनता को दिक्कत होने लगती है.
इस समय दिल्ली गंदगी से परेशान है, क्योंकि जितने भी निगम हैं, जिनके ऊपर सफाई और पानी का ज़िम्मा है, उनके कर्मचारी नाराज़ हैं, क्योंकि उन्हें पिछले कई महीनों से वेतन नहीं मिला है. यह वेतन केंद्र से दिल्ली सरकार को मिलता है, क्योंकि दिल्ली सरकार का बजट बुनियादी तौर केंद्र सरकार तय करती है. दिल्ली सरकार का कहना है कि उसके पास पैसा नहीं है. केंद्र सरकार कह रही है कि जितना बजट आवश्यक है, उसे वह दिल्ली सरकार को दे रही है, लेकिन पैसा कर्मचारियों के पास नहीं जा रहा है. उधर जनता, जो लोकतंत्र को पसंद करती है, चाहे वह भारतीय जनता पार्टी के पक्ष की हो, चाहे कांग्रेस के पक्ष की हो या आम आदमी पार्टी के पक्ष की, यानी दिल्ली में रहने वाले हर आदमी को एक जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
मेरा अपना यह मानना है कि नए सिरे से केंद्र सरकार चलाने वाले प्रधानमंत्री एवं उनके साथियों को किस तरीके से दिल्ली और केंद्र सरकार का रिश्ता व्यवहारिक रूप से न बिगड़े, इसके बारे में सोचना चाहिए. राजनीतिक तौर पर अक्सर अलग-अलग विचारधाराएं होती हैं, एक-दूसरे के ऊपर हमले भी होते हैं, लेकिन उसका असर सरकार चलाने की प्रक्रिया के ऊपर नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि अगर ऐसा होता है, तो उसका असर सीधा-सीधा जनता के ऊपर पड़ता है, जिसका कोई कुसूर नहीं होता. केंद्र-राज्य संबंधों को लेकर कई सारे आयोगों ने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को दी है. बहुत सारे सुझावों के ऊपर अमल भी हुआ है, लेकिन बहुत सारे सुझावों के ऊपर अमल नहीं हुआ है. मुझे लगता है कि एक बार सचमुच दिल्ली के मंत्रिमंडल के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद बातचीत करके कुछ सीमा रेखाएं तय करनी चाहिए. इसका सीधा मतलब है कि कुछ बिंदु तय करने चाहिए, जिनके ऊपर केंद्र सरकार दिल्ली सरकार को मदद करेगी. और, दिल्ली सरकार को भी यह तय करना चाहिए कि इन बिंदुओं पर वह केंद्र सरकार से नहीं लड़ेगी.
दिल्ली में राजनीतिक लड़ाई बहुत दिनों से चल रही है. राजनीतिक मांग है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए. दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि जब यह फैसला हुआ था कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश रहेगा, तब उसके पीछे स़िर्फ और स़िर्फ एक कारण था कि दिल्ली में विदेशी दूतावास हैं, दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट है, दिल्ली में प्रधानमंत्री का घर है, राष्ट्रपति यहां रहते हैं, केंद्रीय मंत्रिमंडल यहां पर है, बहुत सारे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संगठन यहां से काम करते हैं. अगर यहां कोई ऐसा नेतृत्व आ गया, दिल्ली सरकार ऐसे लोगों के पास चली गई, जो केंद्र सरकार के दायरे में आने वाले इन सारे लोगों पर हमला कर दें और कहें कि प्रधानमंत्री बहुत बड़े घर में रहते हैं, यह घर उन्हें नहीं मिलना चाहिए या राष्ट्रपति का घर बहुत बड़ा है, यहां पर हमें बहुत बड़े दस-बीस विद्यालय खोल देने चाहिए. तो अगर इस तरीके का फैसला पूर्ण राज्य की सरकार कर लेती है, तो यह देश के लिए खतरनाक बात साबित होगी.

विदेशी जब यहां आते हैं, चाहे वे राष्ट्राध्यक्ष हों या सामान्य पर्यटक, उन्हें दिल्ली का चेहरा दिखाई देता है और बहुत सारे लोग दिल्ली से आगे कहीं जा नहीं पाते. वे दिल्ली ही आकर लौट जाते हैं. उनके सामने हिंदुुस्तान का चेहरा दिल्ली है. इसलिए ज़रूरी ही नहीं, बहुत ज़रूरी है कि तत्काल दिल्ली की सरकार चलाने के तरीके के बारे में प्रधानमंत्री जी मुख्यमंत्री जी के साथ मिलकर कोई रास्ता निकालें और उन बुनियादी चीजों के ऊपर, जिनमें सफाई, पेयजल और बिजली प्रमुख हैं, बिना दलगत सीमा या विचारधारा लाए हुए दिल्ली को पूरी मदद करें, क्योंकि दिल्ली केंद्र शासित राज्य है. वह आम आदमी पार्टी, कांग्रेस या भाजपा शासित राज्य नहीं है.

शायद इसीलिए यह फैसला लिया गया कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश रहे और दिल्ली में जो सरकार हो, उसके सीमित अधिकार हों. बहुत दिनों तक तो दिल्ली में सरकार थी ही नहीं, एक काउंसिल के ज़रिये यहां की शासन व्यवस्था चलती थी. पर जब सरकार हुई, तब भी यह तय किया गया कि उस सरकार की सीमित ज़िम्मेदारियां हों और वह केंद्र सरकार की निगरानी में चलेे. भारतीय जनता पार्टी जब सत्ता में नहीं थी, तो वह पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग करती थी. जब कांग्रेस सत्ता में नहीं थी, तो उसने भी पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग की, लेकिन दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा किसी भी सरकार ने दिया नहीं. दरअसल, ये संसद का क़ानून है, जिसके तहत दिल्ली केंद्र सरकार के अधीन है.
मैं ये सारी बातें इसलिए लिख रहा हूं, क्योंकि दिल्ली सारी दुनिया के सामने हिंदुस्तान का चेहरा है. विदेशी जब यहां आते हैं, चाहे वे राष्ट्राध्यक्ष हों या सामान्य पर्यटक, उन्हें दिल्ली का चेहरा दिखाई देता है और बहुत सारे लोग दिल्ली से आगे कहीं जा नहीं पाते. वे दिल्ली ही आकर लौट जाते हैं. उनके सामने हिंदुुस्तान का चेहरा दिल्ली है. इसलिए ज़रूरी ही नहीं, बहुत ज़रूरी है कि तत्काल दिल्ली की सरकार चलाने के तरीके के बारे में प्रधानमंत्री जी मुख्यमंत्री जी के साथ मिलकर कोई रास्ता निकालें और उन बुनियादी चीजों के ऊपर, जिनमें सफाई, पेयजल और बिजली प्रमुख हैं, बिना दलगत सीमा या विचारधारा लाए हुए दिल्ली को पूरी मदद करें, क्योंकि दिल्ली केंद्र शासित राज्य है. वह आम आदमी पार्टी, कांग्रेस या भाजपा शासित राज्य नहीं है. वह केंद्र शासित राज्य है, जहां जनता बुनियादी चीजें ठीक करने के लिए किसी एक पार्टी की सरकार बना देती है. पहले उसने भाजपा की सरकार बनाई, फिर कांग्रेस की बनाई और अब आम आदमी पार्टी की बनाई. दिल्ली का इतना ही मतलब है.
अगर प्रधानमंत्री इस बारे में जल्दी कोई फैसला नहीं लेते हैं, तो हो सकता है कि दिल्ली के लोगों में एक नई नफरत केंद्र सरकार के प्रति पैदा हो जाए. दिल्ली राज्य की सरकार चलाने वालों के प्रति गुस्सा आने से पांच साल के बाद दिल्ली की सरकार बदल जाएगी, लेकिन केंद्र सरकार के प्रति अगर गुस्सा पैदा होता है, तो वह स़िर्फ दिल्ली में सीमित नहीं रहता है, वह फिर पूरे देश में घूमता है. इसलिए मैं यह अनुरोध करता हूं कि प्रधानमंत्री तत्काल दिल्ली सरकार के साथ बैठकर सरकार चलाने के निम्नतम या न्यूनतम बिंदु तय करें और उनके ऊपर केंद्र सरकार दिल्ली सरकार को लगातार सहयोग करे. केंद्र-राज्य संबंधों को सुधारने के लिए सरकारिया आयोग की सिफारिशें लागू करना शायद एक शुरुआती बिंदु हो सकता है.

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