केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) एक बार फिर देश की प्रमुख जांच एजेंसी में वरिष्ठ नियुक्तियों के मसले पर आमने-सामने हैं. सूत्रों का कहना है कि दोनों संगठनों के बीच ताजा विवाद सीबीआई में एक विशेष निदेशक की नियुक्ति को लेकर है. यह मुश्किल कुछ दिनों पहले सीबीआई में एक अतिरिक्त निदेशक की नियुक्ति पर हुए संघर्ष के बाद सामने आई है, जिसमें सीबीआई ने बाजी मारी थी. सूत्रों का कहना है कि ये एजेंसियां सीबीआई में नंबर दो पद यानी एक विशेष निदेशक की नियुक्ति के लिए गठित पैनल पर आपस में भिड़ गई हैं. सीवीसी, गृह मंत्रालय और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने इस पद के लिए पांच नाम प्रस्तावित किए हैं और शीघ्र निर्णय के लिए जोर दिया जा रहा है. दिलचस्प रूप से, सूत्रों का कहना है कि प्रस्तावित नामों में से चार के पास सीबीआई या सतर्कता विभाग में काम करने का पर्याप्त अनुभव नहीं है. केवल एक उम्मीदवार, ओडिशा के पुलिस महानिदेशक प्रकाश मिश्रा हैं, जिनकी दावेदारी सबसे मजबूत है. सीबीआई ने इस तरह के पैनल के गठन का विरोध किया है और कहा है कि इस नियुक्ति के लिए इतनी जल्दी क्या है, जब अन्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में विशेष निदेशक के कई अन्य पद रिक्त पड़े हुए हैं
केरल में बाबुओं की कमी
केरल को बाबुओं की कमी झेलनी पड़ रही है. राज्य में 165 आईएएस, 125 आईपीएस और 88 वन सेवा के अधिकारियों की कमी है. नतीजतन, 36 अधिकारियों को अतिरिक्त कार्यभार संभालना पड़ रहा है. जाहिर तौर पर राज्य सरकार ने इस वर्ष केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए केरल कैडर के अधिकारियों की सिफारिश न करने का ़फैसला किया है. इसके अलावा, केंद्र में पांच साल की प्रतिनियुक्ति पूरी करने वाले अधिकारियों को तुरंत राज्य में वापस आना होगा और किसी को भी एक्सटेंशन की अनुमति नहीं होगी. सूत्रों के अनुसार, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) को इस आशय की जानकारी मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने दे दी है और इसे स्वीकार कर लिया गया है. कार्मिक विभाग के संयुक्त सचिव भानु प्रताप शर्मा ने राज्य के मुख्य सचिव ई के भारत भूषण को सूचित किया है कि मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने प्रतिनियुक्ति की अवधि के बाद अधिकारियों को तुरंत अपने मूल कैडर में वापसी को मंजूरी दे दी है.
टॉप कॉप की सलाह
सेवा नियमों की वजह से और अपने करियर के दौरान सरकार एवं व्यवस्था के प्रति वफादारी के कारण सिविल सेवक अक्सर सेवानिवृत्ति के बाद ही अपनी ईमानदारी दिखा पाते हैं. खासकर तब, जब वे सेवानिवृत्ति के बाद अपनी आत्मकथा या संस्मरण लिखते हैं. लेकिन, आंध्र प्रदेश में पुलिस अतिरिक्त निदेशक सेवा के विनय कुमार सिंह एक ऐसे दुर्लभ अधिकारी हैं, जिन्होंने नौकरी में रहते हुए यह काम कर डाला है. सिंह की किताब-इज इट पुलिस: कंफेसन ऑफ ए टॉप कॉप पुलिस सुधारों और आपराधिक न्याय प्रणाली को न्यायपूर्ण बनाने की बात कहती है. 1987 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी विनय कुमार सिंह की यह पुस्तक नौकरशाही के भीतर चर्चा का विषय बन गई है, लेकिन यह सब आसान नहीं था. सूत्रों का कहना है कि सिंह ने चार साल पहले यह पुस्तक लिख ली थी, लेकिन राज्य सरकार ने इसे तीन साल तक प्रकाशित नहीं होने दिया. कथित तौर पर, पुलिस अधिकारियों एवं वरिष्ठ बाबुओं के एक वर्ग ने इस किताब के कुछ अंशों और शीर्षक पर आपत्ति जाहिर की थी और सिंह को इसे प्रकाशित कराने से पहले संशोधित करना पड़ा. सिंह अब उन लोगों की जमात में शामिल हो गए हैं, जो सरकार से जल्द से जल्द पुलिस सुधारों को लागू करने और पुलिस मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप समाप्त करने की बात कहते हैं. लेकिन, क्या नेतागण ध्यान देंगे?
दिल्ली का बाबू : एक बार फिर सीवीसी बनाम सीबीआई
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