भोपाल। वक्फ अधिनियम की धज्जियां उड़ रही हैं, अदालत के आदेश हवा हो रहे हैं, वक्फ बोर्ड के बैठे पुराने घाघ नए नवेले सीईओ को नियमों की व्याख्या अपने तरीके से सिखाने में जुटे दिखने लगे हैं। नतीजा एक के बाद एक बन रहीं कमेटियां बोर्ड के लिए कल की मुश्किल बनने की तैयारी में हैं।
वक्फ एक्ट 1995 के अनुसार प्रदेश की किसी भी छोटी बड़ी कमेटी के गठन के लिए पूर्णकालिक बोर्ड का अनुमोदन अनिवार्य है। बोर्ड बैठक में रखे गए प्रस्ताव के और इस पर एक तिहाई सदस्यों की सहमति के बाद ही कमेटी को आकार दिया जा सकता है। मौजूदा हालात में बोर्ड वजूद में नहीं है और यहां की व्यवस्था प्रभारी के तौर पर प्रशासक सम्हाल रहे हैं।
अदालत का एक फैसला
वक्फ बोर्ड के अधीन काम करने वाली ओकाफ ए अम्मा की तत्कालीन कमेटी को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट ने आदेश दिए हैं कि किसी भी वक्फ कमेटी के गठन में किसी तरह के राजनीतिक हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया जायेगा। ये आदेश तत्कालीन ओकाफ अध्यक्ष स्व सुल्तान अब्दुल अजीज की कमेटी को लेकर दिए गए थे। सूत्रों का कहना है कि उनकी कमेटी के लिए तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रुस्तम सिंह और भाजपा संगठन मंत्री माखन सिंह ने अनुशंसा की थी।
फिर दोहराई जा रही कहानी
सूत्रों का कहना है कि मप्र वक्फ बोर्ड ने हाल ही में उज्जैन, हरदा समेत प्रदेश के कई जिलों की नई कमेटियों का गठन किया है। इन कमेटियों के गठन में भाजपा के मंत्री कमल पटेल और अल्पसंख्यक मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ सनवर पटेल की भूमिका बताई जा रही है। सूत्रों का कहना है कि इस गठन में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से भी दबाव बनवाया गया है।
मुश्किलें ये भी हैं
सूत्रों का कहना है कि उज्जैन की कमेटी को बेदखल कर सियासी हस्तक्षेप से नई कमेटी गठित करने के बीच कुछ अदालती अड़चनें भी हैं। बताया जा रहा है कि दरगाह मलंग शाह की इस कमेटी को कुछ समय पूर्व सेंट्रल वक्फ काउंसिल की ऋण बकाया और अन्य आरोपों के साथ काम से रोका गया था। जिसको लेकर कमेटी ने अपना पक्ष रखने के लिए मप्र वक्फ ट्रिब्यूनल में प्रकरण दर्ज करवाया है। जिस पर अब तक कोई फैसला नहीं आया है। ऐसे में भविष्य में आने वाले फैसले से नई कमेटी प्रभावित होगी। साथ ही वक्फ बोर्ड को अदालत की अनदेखी करने जैसे मामलों का सामना करना पड़ सकता है।
कर्मचारियों की व्याख्या
इंदौर के एक मुतावल्ली द्वारा मनमाने तरीके से किए जा रहे कामों को लेकर बोर्ड के नए सीईओ से शिकायत की गई। सीईओ ने अपने कर्मचारियों से मामले को समझा। उनको बताया गया कि मामला मुतवल्ली और किरायादार के बीच का है, बोर्ड इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। जबकि वास्तविकता यह है कि प्रदेश भर में मौजूद करीब 1500 से ज्यादा कमेटियां बोर्ड द्वारा ही नियुक्त की गई हैं और इनके मुतवल्ली बोर्ड के अधीन हैं। किसी भी विवादित मामले का निराकरण अदालत के बाहर करने के लिए बोर्ड किसी भी मुतवल्ली को आदेश कर सकता है।