Defence-Corridorजल्दी ही बुंदेलखंड क्षेत्र ‘इज़राइली कॉरिडोर’ बन जाएगा. अभी बुंदेलखंड के सात जिले इस ‘कॉरिडोर’ में शामिल होंगे, लेकिन आगरा, अलीगढ़, कानपुर और लखनऊ के भी इस ‘कॉरिडोर’ के दायरे में आने में ज्यादा वक्त नहीं है. यह गलियारा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को सुरक्षा दृष्टिकोण से एकसूत्रित करेगा. केंद्र सरकार पूरी सोच-समझ के साथ उत्तर प्रदेश के बृहत्तर बुंदेलखंड क्षेत्र को ‘डिफेंस कॉरिडोर’ बनाने जा रही है. इसकी असली बागडोर इज़राइल के हाथ में होगी. बुंदेलखंड क्षेत्र को ‘रक्षा-गलियारे’ में तब्दील करने की योजना काफी अर्से से चल रही थी, जिसने वर्ष 2016 से गति पकड़ी.

‘रक्षा-गलियारे’ में सेना के आयुध और हथियारों से लेकर सारे साजो-सामान बनेंगे. इस ‘रक्षा-गलियारे’ का निर्माण इज़राइल की मदद से होगा और सैन्य साजो-सामान बनाने में भी इज़राइल की केंद्रीय भूमिका रहेगी. ‘रक्षा गलियारे’ के निर्माण की योजना के सार्वजनिक होने के पहले ही वर्ष 2016 में बुंदेलखंड में पानी की समस्या दूर करने के लिए इज़राइल के साथ ‘वाटर यूटिलिटी रिफॉर्म’ करार कर लिया गया था. इस तरह वर्ष 2016 में ही बुंदेलखंड में इज़राइल के प्रवेश का बंदोबस्त हो गया था. उसके बाद से इज़राइली राजदूत, वहां के सैन्य-तकनीकी अधिकारियों और विशेषज्ञों का उत्तर प्रदेश आना-जाना शुरू हो गया. इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इज़राइल के राजदूत से दो-दो बार मुलाकात भी हुई और इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से योगी ने आगरा जाकर भी बातचीत की. यूपी के राज्यपाल राम नाईक ने भी इज़राइल के राजदूत से लखनऊ में मुलाकात की.

पूरी पृष्ठभूमि बनाने के बाद इस साल फरवरी में लखनऊ में आयोजित ‘इन्वेस्टर्स समिट’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुंदेलखंड क्षेत्र में ‘रक्षा गलियारा’ स्थापित करने की योजना की आधिकारिक घोषणा की और उसके बाद इस योजना ने जमीन पर गति पकड़ ली. इस बीच रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की लखनऊ यात्रा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनकी गहन वार्ता, फिर विशेषज्ञीय बैठकों और राजनयिक स्तर की मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा और ‘रक्षा गलियारा’ योजना पर काम बढ़ता रहा. इसके विस्तार में हम आगे चलेंगे. अभी 16 अप्रैल को बुंदेलखंड के झांसी में ‘रक्षा गलियारे’ के मसले पर हुई उच्चस्तरीय बैठक की चर्चा कर लें. इस बैठक में केंद्र से रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण तो आईं ही, केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती भी इस बैठक में शरीक रहीं. बुंदेलखंड पेयजल योजना पर इज़राइल के साथ हुए करार को ध्यान में रखते चलें.

इस उच्चस्तरीय बैठक में ‘सोसाइटी ऑफ इंडियन डिफेंस मैनुफैक्चरर्स’ (एसआईडीएम) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रतो साहा ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बुंदेलखंड में बनने जा रहे ‘रक्षा गलियारे’ के तकनीकी पहलू पेश किए और साफ-साफ कहा कि ‘रक्षा गलियारा’ बनने के बाद यूपी ‘उत्तम सुरक्षा प्रदेश’ बन जाएगा. बैठक में मौजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘डिफेंस कॉरिडोर’ प्रदेश के विकास और रोजगार सृजन में अहम भूमिका अदा करेगा और यह विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा. योगी ने यूपी में ‘डिफेंस कॉरिडोर’ बनाने का निर्णय लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार जताया और कहा, ‘इस अभियान को पूरा करने के लिए मैं पूरी तरह प्रतिबद्ध हूं.’ रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल में चेन्नई में सम्पन्न हुए ‘डिफेंस-एक्सपो’ की कामयाबी और उसके परिणाम पर खूब प्रसन्नता जाहिर की.

हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि ‘डिफेंस-एक्सपो’ में इज़राइल की सक्रिय भागीदारी रही लेकिन यह कहा कि चेन्नई से बंगलुरू तक भी ऐसा ही ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ बनाया जाएगा. रक्षामंत्री ने यह बात जरूर सार्वजनिक की कि यूपी में ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ की स्थापना की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद से रक्षा मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों के स्तर पर लगातार बैठकें चल रही हैं और उसके ठोस परिणाम निकले हैं. रक्षा मंत्री ने स्पष्ट कहा कि यूपी में ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ के निर्माण की निगरानी (मॉनीटरिंग) प्रधानमंत्री खुद कर रहे हैं. रक्षा मंत्री ने कहा कि देश में जिस तरह सुरक्षा की चुनौती है, उस लिहाज से रक्षा उपकरण तैयार करने वाली विदेशी कंपनियों की तरह घरेलू उद्यमियों को भी बराबर का सम्मान मिलेगा. तमिलनाडु-कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में ‘डिफेंस कॉरिडोर’ स्थापित करने का यही उद्देश्य है.

रक्षा मंत्री ने इससे बड़े पैमाने पर रोजगार मिलने की उम्मीद जगाई और कहा कि ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ में बनने वाले सेना के उत्पादों को रक्षा मंत्रालय खरीदेगा. इससे बुंदेलखंड के युवाओं को रोजगार मिलेगा. रक्षा मंत्री ने भरोसा दिलाया कि अब रक्षा से सम्बन्धित 30 फीसदी उत्पाद देश में ही बनेगा और अगले 25 सालों में सेना की सभी जरूरतें देश में ही पूरी होंगी. रक्षा मंत्री यह भी बोलीं कि फिक्की, एसोचेम, सीआईआई जैसी वित्तीय संस्थाओं को बुंदेलखंड लाकर यहां के उद्योगपतियों से बात कराई जाएगी. कॉरिडोर में काम करने वाली कंपनियों को रक्षा मंत्रालय की तरफ से सेना के सामानों की सूची दी जाएगी. जो सामान कंपनियां बना सकती हैं, उनका ऑर्डर दिया जाएगा. बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे पर टेस्टिंग लैब बनाई जाएगी, जिसके जरिए भी रोजगार के अवसर खुलेंगे.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इसी वजह से बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे को तेजी से अंतिम रूप दिया जा रहा है. ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ की स्थापना के बाद रक्षा मंत्रालय घरेलू हथियारों को खरीदने पर अधिक जोर देगा. केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती ने बिना लाग-लपेट के इज़राइल का नाम ले ही लिया. उमा भारती ने कहा कि बुंदेलखंड की परिस्थिति और भौगोलिक स्थिति इज़राइल जैसी है. यहां इज़राइल की तर्ज पर ही विकास सम्भव है. उन्होंने कहा कि ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ का निर्माण बुंदेलखंड के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा. केंद्रीय मंत्री व क्षेत्रीय सांसद उमा भारती ने दोहराया कि ‘डिफेंस कॉरिडोर’ के लिए 20 हजार करोड़ का निवेश होगा और 50 लाख युवाओं को रोजगार मिलेगा.

‘डिफेंस कॉरिडोर’ की स्थापना को आगे बढ़ाने के इरादे से 16 अप्रैल को झांसी में बुलाई गई इस उच्चस्तरीय बैठक में केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा रक्षा विशेषज्ञों और निवेशकों के साथ-साथ यूपी के अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त डॉ. अनूपचंद्र पांडेय, सूचना विभाग के प्रमुख सचिव अवनीश अवस्थी, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग विभाग के सचिव भुवनेश कुमार और बुंदेलखंड क्षेत्र के सातों जिले के जिलाधिकारी शामिल थे. बैठक के पहले प्रदेश सरकार ने ‘डिफेंस कॉरिडोर’ की प्री-फिज़िबिलिटी स्टडी के लिए सलाहकार की नियुक्ति कर ली, जिसकी रिपोर्ट पेश होने के बाद जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई की जाएगी. ‘डिफेंस कॉरिडोर’ छह स्थानों पर क्लस्टर के रूप में विकसित होगा.

क्लस्टर के केंद्र अलीगढ़, आगरा, कानपुर, लखनऊ, झांसी और चित्रकूट में होंगे. कंपनियां रक्षा आयुध व उपकरण के लिए इसी कॉरिडोर में अपनी-अपनी यूनिट लगाएंगी. ‘कॉरिडोर’ के काम को आगे बढ़ाने के लिए आईआईटी कानपुर से खास तौर पर एयरोनॉटिक्स के लिए और बीएचयू आईआईटी से गोला-बारूद से जुड़े प्रोजेक्ट में तकनीकी मदद ली जाएगी. ‘डिफेंस कॉरिडोर’ के लिए जो कंपनियां शामिल की जा रही हैं, उनमें हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स (एचएएल) की तीन यूनिट, यूपी की नौ आयुध फैक्ट्रियां और दो दर्जन प्राइवेट फैक्ट्रियों के साथ-साथ भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड भी शामिल हैं. ‘डिफेंस कॉरिडोर’ के परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश सरकार अलग से एक रक्षा-नीति का मसौदा भी तैयार कर रही है, जिसकी घोषणा जल्दी ही की जाएगी.

बुंदेलखंड में स्थापित होने जा रहे इज़राइल प्रभावित ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ के कुछ आधिकारिक तथ्यों की भी जानकारी लेते चलें. बुंदेलखंड क्षेत्र में ‘डिफेंस कॉरिडोर’ का काम मार्च महीने से शुरू हो गया. झांसी के साथ-साथ अलीगढ़, चित्रकूट, आगरा और कानपुर में भी इस कॉरिडोर के जरिए निवेश होगा. सभी जगह रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों की अलग-अलग टीम जा रही है. 50 साल के लिए मास्टर प्लान बनाया गया है.

‘डिफेंस-कॉरिडोर’ में बुंदेलखंड के सातों जिले झांसी, जालौन, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बांदा और महोबा शामिल हैं. यूपी सरकार ने रक्षा मंत्रालय से कहा है कि ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ के लिए जमीन की कोई कमी नहीं है. साथ ही पर्याप्त टेस्टिंग रेंज भी उपलब्ध हैं. कॉरिडोर के लिए तीन हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि चिन्हित कर ली गई है. भूमि के लिए जल्द ही नोटिफिकेशन भी होने जा रहा है. कॉरिडोर के लिए ऐसे क्षेत्र का चयन किया गया है, जिसे आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे और बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे के माध्यम से आवागमन की सुविधा उपलब्ध हो सके.

‘डिफेंस-कॉरिडोर’ के लिए यूपी की आयुध (ऑर्डनेंस) फैक्ट्रियों के विस्तार का काम तेज कर दिया गया है. झांसी ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ में एयरक्राफ्ट मैनुफैक्चरिंग इंडस्ट्री और ड्रोन मैनुफैक्चरिंग इंडस्ट्री विकसित की जाएगी. कानपुर स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) को खासतौर पर ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ में तकनीकी सहयोग के लिए लगाया गया है. ‘सोसाइटी ऑफ इंडियन डिफेंस मैनुफैक्चरर्स’ (एसआईडीएम) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रतो साहा ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ के जरिए उत्तर प्रदेश को उत्तम सुरक्षा प्रदेश बनाने में लगे हैं और इस काम में बुंदेलखंड क्षेत्र के पूर्व सैनिकों की भी मदद लेने जा रहे हैं.

बुंदेलखंड के ‘रक्षा गलियारे’ की स्थापना की शुरुआत झांसी से हो रही है. झांसी ही केंद्र में रहेगा. झांसी के बाद बुंदेलखंड के अन्य जिलों में गलियारे का विस्तार होगा. झांसी जिले के करीब डेढ़ दर्जन गांवों की जमीन चिन्हित की गई है. गलियारे में पहले औरैया को भी शामिल किया गया था, लेकिन बाद में इसे अलग कर दिया गया. झांसी में रक्षा गलियारे की स्थापना का पहला चरण शुरू करने के लिए राज्यपाल की ओर से बाकायदा गजट जारी किया जा चुका है. झांसी में ‘डिफेंस-कॉरिडोर’ के लिए गरौठा तहसील के गांव एरच, गेंदा कबूला, कठरी, गोरा, जुझारपुरा, टेहरका, हरदुआ, रौतानपुरा, लभेरा, झबरा और टहरौली तहसील के ग्राम शमशेरपुरा, बेंदा, पथरेड़ी, सुरवई और देवरासारन की जमीनें ली जा रही हैं.

रक्षा-गलियारे के लिए बुंदेलखंड क्षेत्र को चुने जाने के पीछे वजह है कि यह उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बृहत्तर बुंदेलखंड को भी अपने प्रभाव-क्षेत्र में लेगा. बृहत्तर बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के सात जिले झांसी, जालौन, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बांदा, महोबा और मध्य प्रदेश के छह जिले सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना और दतिया आते हैं. इसके अलावा मध्य प्रदेश के भिंड जिले की लहार तहसील और ग्वालियर जिले की मांडेर तहसील के साथ-साथ रायसेन और विदिशा जिले का कुछ भाग भी बृहत्तर बुंदेलखंड में आता है.

बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी में थलसेना का बड़ा अड्‌डा है तो दूसरी तरफ बुंदेलखंड को छूता हुआ कानपुर और आगरा वायुसेना का बड़ा अड्‌डा है. आगरा, मथुरा, कानपुर, इलाहाबाद, फतेहगढ़ थलसेना का गढ़ है. उधर मध्य प्रदेश का ग्वालियर भी वायुसेना का संवेदनशील अड्‌डा है. ‘रक्षा-गलियारा’ बनने से ये सभी सैन्य-क्षेत्र एक गलियारे में समन्वित हो जाएंगे. ‘रक्षा-गलियारे’ के संकेत तभी से मिलने लगे थे, जब भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर उतरने का अभ्यास शुरू कर दिया था. पिछले साल वर्ष 2017 में बांगरमऊ के पास एक्सप्रेस-वे पर एयरफोर्स ने बड़ा अभ्यास किया था.

इसमें सुखोई और मिराज जैसे लड़ाकू विमान शरीक हुए थे. आप यह ध्यान देते चलें कि इजरायल ने ग्वालियर में एक भारतीय कंपनी के साथ साझा रक्षा उपक्रम हाल ही में शुरू किया है. यहां तैयार होने वाले हथियार सर्जिकल स्ट्राइक जैसे खुफिया ऑपरेशन में कारगर साबित होंगे. भारत में इजरायल के सहयोग से निजी क्षेत्र में आर्म्स निर्माण की नींव चंबल घाटी में रखी गई है. यहां हल्के रक्षा उत्पादों का निर्माण किया जाएगा.

ग्वालियर से बीस किलोमीटर दूर मालनपुर औद्योगिक क्षेत्र में भी विदेशी निवेश से एक साझा उपक्रम स्थापित किया गया है. साझा उपक्रम में इजराइली कंपनी ‘एसके ग्रुप’ और भारतीय डिफेंस क्षेत्र की निजी कंपनी ‘पुंजलायड’ छोटे हथियारों का निर्माण कर रही है. रक्षा उत्पाद में इजराइल की यह भारत में पहली साझेदारी है. मालनपुर में बनने वाले हथियारों की विशेषता यह है कि इन्हें सर्जिकल स्ट्राइक, आतंकी मुठभेड़ या एंटी टेररिस्ट ऑपरेशन के लिए खास तौर पर तैयार किया जा रहा है.

एक ही गलियारे से सेना को मिलेंगे सारे सामान

‘डिफेंस कॉरिडोर’ को लेकर देश-विदेश की कई कंपनियों के साथ करार होगा, लेकिन रक्षा मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि इसमें सबसे अहम भूमिका इज़राइल की होगी. ‘कॉरिडोर’ में कई शहर शामिल होंगे जहां सेना के इस्तेमाल में आने वाले सारे साजो-सामान बनेंगे. अलग-अलग किस्म के उत्पाद के लिए अलग-अलग फैक्ट्रियां स्थापित होंगी, जिसमें पब्लिक सेक्टर, प्राइवेट सेक्टर और बहुराष्ट्रीय कंपनियां हिस्सा लेंगी. इस कॉरिडोर में वो सभी औद्योगिक संस्थान शरीक हो सकते हैं जो सेना के साजो-सामान बनाते हैं. ‘डिफेंस कॉरिडोर’ की स्थापना के बाद सेना के हथियार से लेकर वाहन और वर्दी से लेकर कल-पुर्जे तक सारे सामान एक ही गलियारे में बनने लगेंगे.

‘डिफेंस कॉरिडोर’ में इज़राइल की भूमिका अहम

देश के दो अलग-अलग क्षेत्रों में बनने जा रहे ‘डिफेंस कॉरिडोर’ में इज़राइल की भूमिका अहम है. फरवरी 2016 में ही इसकी शुरुआत हो गई थी जब इज़राइली रक्षा मंत्रालय के ‘इंटरनेशनल डिफेंस कोऑपरेशन डायरेक्टरेट’ (सीबाट)और फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स (फिक्की) ने इज़राइल में चौथे साझा सम्मेलन का आयोजन किया था. यह सम्मेलन भारत और इज़राइल के बीच रक्षा प्रतिष्ठानों और उद्योगों की साझेदारी को लेकर ही हुआ था, जिसमें भारत की 25 कंपनियां और इज़राइल की सौ रक्षा कंपनियां शामिल हुई थीं.

इस सम्मेलन में पांच सौ से अधिक बैठकें हुईं और तभी भारत और इज़राइल के राष्ट्रीय सुरक्षा रुझान और आपसी उदाहरणीय सहयोग तय कर लिए गए थे. तभी यह भी तय हो गया था कि अगली बैठक चेन्नई में होगी और रक्षा-गलियारे की योजना पर काम बढ़ेगा. इज़राइल के राजदूत डैनियल कारमन ने साफ-साफ कहा था कि भारत और इज़राइल ने कई वर्षों से दोनों देशों के हित की परस्पर रक्षा की है. इज़राइल सरकार और इज़राइली कंपनियां पहले से ही भारत में परियोजनाएं लागू कर रहे हैं.

इज़राइल के ‘इंटरनेशनल डिफेंस कोऑपरेशन डायरेक्टरेट’ के महानिदेशक ब्रिगेडियर जनरल मिशेल बेन बरूच ने कहा था कि भारतीय और इज़रायली रक्षा कंपनियों के बीच सहयोग बढ़ रहा है, जो दोनों देशों के सम्बन्धों में गर्मजोशी दर्शाता है. इज़राइल भारत के बेहद भरोसेमंद रक्षा सहयोगियों की श्रेणी में जुड़ने की पूरी तैयारी कर चुका है. बढ़ते आतंकवाद के खिलाफ इज़राइल की प्रतिबद्धता से भारत और इज़राइल के सम्बन्ध और भी मजबूत हुए हैं. दोनों ही देश आपसी सहयोग को कामयाब बनाने की पुरजोर कोशिश में लगे हुए हैं. भारत अब तक इज़राइल के करीब एक दर्जन सैन्य उपग्रहों को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के माध्यम से प्रक्षेपित कर चुका है.

बुंदेलखंड में ‘डिफेंस कॉरिडोर’ की स्थापना को लेकर इज़राइली राजदूत डैनियल कारमैन की यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात हो चुकी है. मुख्यमंत्री के साथ इज़राइली राजदूत की बातचीत में रक्षा गलियारे के साथ-साथ जल सुधार को लेकर हुआ करार भी शामिल रहा है. उत्तर प्रदेश भारत का पहला राज्य है जो ‘वाटर यूटिलिटी रिफॉर्म’ पर इज़राइल का पार्टनर बना है. उत्तर प्रदेश जल निगम और इज़रायल के बीच हुए करार में इज़राइल की मदद से पीने के साफ पानी की उपलब्धता के साथ-साथ गंगा प्रदूषण और बुंदेलखंड के भूजल की समस्या से पार पाने का लक्ष्य भी शामिल है.

इज़राइल यूपी में गंगा की स्वच्छता और निर्मलता के लिए चलाए जा रहे अभियान का भी हिस्सा है. इज़राइल ने इसके लिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आर्थिक और तकनीकी मदद देने का आश्वासन दिया है. बुंदेलखंड जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्र में सिंचाई परियोजनाओं में तकनीकी मदद के जरिए इज़राइल की पैठ हुई है. बुंदेलखंड में इज़राइल की मदद से कई परियोजनाएं चल रही हैं. सपा सरकार के कार्यकाल में जिस बांध की आधारशिला रखी गई थी, वहां 10 एकड़ के तीन फार्म इज़राइल की मदद से बने हैं. इन कृषि फार्मों में पूरी तकनीक इज़राइल की लगी है. कम पानी में अधिक कृषि उत्पादन करने में भी इज़राइल को महारत हासिल है. हवा से पानी बनाने की इज़राइली तकनीक का इस्तेमाल सपा सरकार के कार्यकाल में भी किया गया था, लेकिन उसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका.

रक्षा क्षेत्र में इज़राइल की मदद से मिल रही है मजबूती

आधिकारिक तथ्य है कि इज़राइल के लिए भारत हथियारों का प्रमुख खरीददार है. वर्ष 2012 से 2016 के बीच इज़राइल द्वारा किए गए कुल हथियार निर्यात में 41 फीसदी हिस्सेदारी भारत की थी. भारत के लिए इज़राइल हथियारों का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है. वर्ष 2012 से 2016 के बीच इज़राइल की 7.2 फीसदी की हिस्सेदारी रही है. भारत और इज़राइल के बीच सहयोग की शुरुआत 1962 में चीन-भारत युद्ध के दौरान ही हुई थी. इस युद्ध के दौरान इज़राइल ने भारत को सैन्य सहायता प्रदान की थी. 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए दो युद्धों के दौरान भी इज़राइल ने भारत की सहायता की. इज़राइल के साथ साझेदारी का ठोस उदाहरण 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान मिला. युद्ध के दौरान जब तोप के गोले की कमी हो गई तब इज़राइल से ही गोलों की सप्लाई हुई थी.

भारत के असैनिक हवाई वाहनों (यूएवी) का आयात भी इज़राइल से होता है. इज़राइल से खरीदे गए 176 यूएवी में से 108 खोजी यूएवी हैं और 68 हेरोन यूएवी हैं. अप्रैल 2017 में भारत और इज़राइल ने उन्नत मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली के लिए दो बिलियन डॉलर (12,878 करोड़ रुपए) के सौदे पर हस्ताक्षर किए. यह भारतीय सेना को 70 किलोमीटर तक की सीमा के भीतर विमान, मिसाइल और ड्रोन को मार गिराने की क्षमता प्रदान करता है. वर्ष 2016 के सितंबर में संयुक्त रूप से विकसित सतह से लंबी दूरी तक मार करने वाली हवाई मिसाइल का भी परीक्षण किया गया था.

भारत ने इज़राइल द्वारा बनाई गई स्पाईडर द्रुत प्रतिक्रिया वाली सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया. भारतीय वायु सेना इस प्रणाली को अपनी पश्चिमी सीमा पर तैनात करने की योजना बना रही है. आतंकवाद के विरुद्ध एक संयुक्त कार्यसमूह के माध्यम से भी भारत और इज़राइल आतंकवाद के मुद्दों पर एक दूसरे का सहयोग करते हैं. दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के 25 साल के प्रतीक के तौर पर तीन भारतीय नौसैनिक जहाजों, विध्वंसक आईएनएस मुंबई, युद्धपोत आईएनएस त्रिशूल और टैंकर आईएनएस आदित्य ने वर्ष 2017 के मई में इज़राइल के हाइफा बंदरगाह तक सद्भावना यात्रा की थी.

‘इज़राइली स्प्रे’ के सहारे दंगाइयों से निपटेगी यूपी पुलिस

उत्तर प्रदेश में दंगाइयों और उपद्रवियों से निपटने के लिए इज़राइली ‘स्कंक-स्प्रे’ से यूपी पुलिस को लैस करने की योजना पर तेजी से काम हो रहा है. कश्मीर के पत्थरबाजों से सीख कर अब यूपी में भी बदमाश और बलवाई पत्थरबाजी कर रहे हैं. कश्मीर में पैलेट-गन का इस्तेमाल विवादग्रस्त हो गया. ऐसे में उत्तर प्रदेश पुलिस इज़राइल में बने ‘स्कंक-स्प्रे’ के इस्तेमाल पर विचार कर रही है. इज़राइली सेना अपने देश में उपद्रवियों को तितर-बितर करने के लिए ‘स्कंक-स्प्रे’ का इस्तेमाल करती है.

यूपी के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड ने इज़राइल से ‘स्कंक-स्प्रे’ आयात किया है. इस तरह उत्तराखंड सरकार ने इसके इस्तेमाल का रास्ता खोल दिया है. उत्तराखंड ‘स्कंक-स्प्रे’ का इस्तेमाल करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. उत्तराखंड पुलिस को इज़राइल से अभी दो सौ लीटर ‘स्कंक-स्प्रे’ की डिलीवरी मिली है. जबकि उत्तराखंड पुलिस ने इज़राइल को 500 लीटर ‘स्कंक-स्प्रे’ का ऑर्डर दे रखा है. ‘स्कंक-स्प्रे’ को हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर भी भेजा गया है.

कश्मीर में दंगाइयों और उपद्रवियों पर पैलेट गन के इस्तेमाल का मानवाधिकार संगठनों द्वारा विरोध किए जाने के कारण उत्तराखंड सरकार ने ‘स्कंक-स्प्रे’ का विकल्प चुना. ‘स्कंक-स्प्रे’ जैविक है और यह स्वास्थ्य के लिए घातक नहीं है. इससे अंगों और त्वचा पर कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता. दरअसल ‘स्कंक-स्प्रे’ से मरे हुए जानवर के शव जैसी तेज असह्य बदबू निकलती है. ‘स्कंक-स्प्रे’ की एक बूंद भी शरीर पर पड़ जाए तो तीन दिन तक उसकी बदबू नहीं जाती. ‘स्कंक-स्प्रे’ का इस्तेमाल करने वाले पुलिसकर्मियों को इसके बदबूदार असर से बचने के लिए एक खास तरह का साबुन दिया जाता है. यह साबुन ‘स्कंक-स्प्रे’  के साथ ही मिलता है. यह साबुन बाजार में नहीं मिलता है.

‘स्कंक’ अमेरिका के जंगलों में पाया जाने वाला गिलहरी जैसा जानवर है जो शिकारी जानवरों से बचने के लिए अपने शरीर से तेज बदबू छोड़ता है. उसकी बदबू इतनी भयानक होती है कि शिकारी जानवर इसे सहन नहीं कर पाता है और वहां से भाग खड़ा होता है. इज़राइल ने दंगाइयों से निपटने के लिए ऐसा ‘ऑरगेनिक-स्प्रे’ तैयार किया, जिसकी बदबू बिल्कुल ‘स्कंक’ जानवर के शरीर से निकलने वाली बदबू जैसी है. ‘स्कंक-स्प्रे’ का इस्तेमाल पानी के साथ किया जाता है. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस पानी की बौछार करती है या आंसू गैस के गोले दागती है, लेकिन अब भीड़ इसकी आदी हो गई है. ‘स्कंक-स्प्रे’ से बेकाबू भीड़ को आसानी से भगाया जा सकता है. उत्तराखंड के बाद अब जम्मू कश्मीर पुलिस ने भी ‘स्कंक-स्प्रे’ का ऑर्डर दिया है.

कमांडोज़ के बाद अब पुलिस को भी ट्रेनिंग देगी ‘मोसाद’

‘डिफेंस गलियारा’ बनाने की योजना के पहले ही भारतीय सेना के कमांडोज़ को इज़राइली खुफिया एजेंसी ‘मोसाद’ से ट्रेनिंग दिलाने का काम शुरू किया जा चुका था. अब पुलिस को भी ‘मोसाद’ के एस्पर्ट्स से ट्रेनिंग दिलाने की तैयारी है. अर्ध सैनिक बलों के कमांडोज़ को भी ‘मोसाद’ ट्रेनिंग देगी. अभी तक ‘कोबरा’ कमांडोज़ और कुछ विशेष चुनिंदा जवानों को ही ‘मोसाद’ से ट्रेनिंग दिलवाई जाती थी. इज़राइल की केंद्रीय खुफिया एजेंसी ‘मोसाद’ को इंस्टीट्यूट फॉर इंटेलीजेंस एंड स्पेशल ऑपरेशन के नाम से भी जाना जाता है.

भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ (रिसर्च एंड अनालिसिस विंग) और ‘मोसाद’ के साथ मिल कर अभिसूचनाओं के आदान-प्रदान की खबरें तो मिलती रही हैं, लेकिन स्पेशल कमांडोज़ को ‘मोसाद’ से ट्रेनिंग दिलाने की खबरें अब छन कर आ रही हैं. कुछ अर्सा पहले ‘मोसाद’ के ‘इन्वेस्टिगेशन विंग’ ने दिल्ली पुलिस के कुछ खास अधिकारियों को दो हफ्ते की विशेष ट्रेनिंग दी थी. इस ट्रेनिंग के लिए दिल्ली पुलिस की अलग-अलग शाखाओं मसलन, स्पेशल सेल, बम निरोधक दस्ता, फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री और ट्रेनिंग ब्रांच के 31 पुलिस अफसरों को चुना गया था. इज़राइली खुफिया एजेंसी के विशेषज्ञ भारतीय सुरक्षा बल के कमांडोज़ के आतंकियों और आतंकी गिरोहों के स्लीपर सेल से निपटने की खास ट्रेनिंग दे रहे हैं.

‘मोसाद’ द्वारा भारतीय सुरक्षा बलों को ट्रेनिंग दिए जाने के बाद ही कई नक्सली संगठनों ने भी यह खबर उड़ाई कि नक्सल विरोधी ऑपरेशंस में इज़राइल का सहयोग लिया जा रहा है. कुछ नक्सली संगठनों ने बाकायदा लिखित बयान जारी कर कहा कि नक्सल विरोधी ऑपरेशन में लगे पुलिसकर्मियों को इज़राइली हथियार मिल रहे हैं और उन्हें इज़राइली विशेषज्ञों द्वारा ट्रेनिंग दी जा रही है.

नक्सली संगठनों के आरोपों को गृह मंत्रालय ने नकार दिया, लेकिन आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों में इज़राइली विशेषज्ञता की मदद लेने के बारे में गृह मंत्रालय के अधिकारी हामी भरते हैं. गृह मंत्रालय के उक्त अधिकारी ने बताया कि कुछ चुने हुए आईपीएस अधिकारियों को इज़राइल भेज कर विशेष ट्रेनिंग दिलवाई जा चुकी है. उन आईपीएस अफसरों को सीधे नेशनल पुलिस अकादमी से चुन कर इज़राइल भेजा गया था जहां उन्हें आतंकियों से निपटने के खास गुर सिखाए गए. दो अलग-अलग खेप में आईपीएस अफसरों की दो टीमें इज़राइल भेजी गई थीं.

ट्रेनिंग पाए भारतीय अधिकारियों को इज़राइली रक्षा मंत्रालय के ‘इंटरनेशनल डिफेंस कोऑपरेशन डायरेक्टरेट’ (सीबाट) भी ले जाया गया था और उन्हें जटिल परिस्थितियों से निपटने की खास ट्रेनिंग दी गई थी. उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में ‘डिफेंस कॉरिडोर’ के निर्माण में ‘सीबाट’ महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है. उधर, मध्य प्रदेश सरकार भी दहशतगर्दों का सफाया करने के लिए इज़राइली सेना से मदद लेने के बारे में विचार कर रही है. इजरायल के साथ मध्य प्रदेश सरकार की सहमति बन गई है. इस सहमति के तहत इजराइली सेना अब मध्य प्रदेश पुलिस को आतंकियों से निपटने के लिए खास ट्रेनिंग देगी.

 

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