राजनीति समाज सेवा का एक सशक्त माध्यम एवं मंच माना जाता है, लेकिन कुछ राजनेता सिर्फ अपनी महत्वाकांंक्षा की पूर्ति के लिए राजनीति में आते हैं. उनका लक्ष्य समाज सेवा नहीं बल्कि येन-केन-प्रकारेण विधायक या सांसद बनना होता है. कुछ नेता धैर्यपूर्वक समाजसेवा में लगे रहकर मतदाता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं जबकि अधिकांश नेता सिर्फ अवसरवाद में विश्वास करते हैं. राजनीति में प्रवेश करते ही विधायक/सांसद बनने का स्वप्न देखने लगते हैं और इस स्वप्न को साकार करने के लिए दल बदल का सहारा लेते हैं. ऐसे राजनेता राजनीति से अधिक अवसरवादी होते हैं.
सर्वप्रथम दल-बदल करने का श्रेय वर्तमान भाजपा सांसद डॉ. भोला सिंह के नाम अंकित है. वहीं सर्वाधिक पार्टी बदलने का ताज सुदर्शन सिंह के सिर पर है. डॉ. भोला सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में राजनीति में प्रवेश किया. भाकपा के समर्थन से विधानसभा का उप चुनाव लड़े और विजयी हुए. बाद में भाकपा की सदस्यता ग्रहण कर ली और उसके बाद विधानसभा चुनाव लड़े और पराजित हो गए. भाकपा में अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति नहीं होते देख भाकपा को तलाक देकर कांग्रेस की गोद में आ गए. लगभग 20 वर्षों तक वे कांग्रेस पार्टी में रहते हुए पार्टी के जिलाध्यक्ष बनाए गए. विधायक निर्वाचित हुए. बिहार सरकार के मंत्री भी बने. कांग्रेस में अपनी दाल गलते नहीं देखकर पुन: पाला बदलते हैं और राजद की सदस्यता ग्रहण कर लेते हैं. लेकिन महत्वाकांक्षा पूरी न होने पर फिर भाजपा की शरण में आ जाते हैं. भाजपा में पुन: उनके भाग्य का पटल खुलता है. विधायक निर्वाचित होते हैं और बिहार विधानसभा के उपाध्यक्ष बनाए जाते हैं. इस समय वह बेगूसराय से भाजपा के संसद हैं. उसके बाद कई नेताओं दलबदल की नीति अपनाई, लेकिन इस नीति में एक मात्र जमशेद अशरफ भाग्यशाली निकले. वह कांग्रेस, लोजपा के बाद पाला बदलकर जदयू में चले जाते हैं और विधायक निर्वाचित होते हैं. नीतीश सरकार में मंत्री बनते हैं, लेकिन नीतिगत मतभेद की वजह से मंत्रीपद एवं जदयू की सदस्यता से त्यागपत्र दे देते हैं. पुन: दलबदल कर कांगे्रस पार्टी में आ-जाते हैं. विधानसभा चुनाव लड़ते हैं और पराजित हो जाते हैं. वे अपनी अंदर की महत्वाकांक्षा की वजह से एक बार फिर पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो जाते हैं और वह इस समय भाजपा के सदस्य हैं.
इसी कड़ी में एक नाम शंकर सिंह का है. युवक कांग्रेस के नामचीन नेता और इंदिरा गांधी के स्नेहपात्र शंकर विधयाक बनने की ललक में भाजपा में शामिल हो जाते हैं. शंकर सिंह को भाजपा जिला अध्यक्ष बना देती है. लेकिन टिकट नहीं मिलने की वजह से दल-बदलकर जदयू में शामिल हो जाते हैं. इसी प्रकार कांग्रेस के नेता रहे चितरंजन प्रसाद सिंह अलग-अलग पार्टियों से होते हुए हम(सेक्यूलर) में शामिल हो जाते हैं और अब उसके समर्पित सदस्य हैं.
इसी प्रकार कांग्रेस के नेता अनिल कुमार सिंह अपनी महात्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए अलग-अलग पार्टियों में गए, लेकिन जब महात्वाकांक्षा पूरी नहीं हुई, तो उन्होंने फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया. प्रो. राम बदन राय जनता दल से राजनीति में प्रवेश करने के बाद, राजद, जदयू के रास्ते अब भाजपा में शामिल हो गए हैं. भालो सिंह के नाम दलबदल करने वाले नेताओं में पहले नंबर पर है, लेकिन सर्वाधिक दल-बदल शिरोमणि का ताज तो सुदर्शन सिंह के सिर पर है.