मुझे मेरे मित्र श्री. गौर किशोर घोष की अनायास 20 जून को उनके शताब्दी समारोह का समापन, और आपातकाल में बंगाल के जो लोगों को गिरफ्तार किया गया था उनमें एक गौरकिशोर घोष भी थे ! और उन्होंने एक दिसम्बर 1975 के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को प्रेसीडेंसी जेल कलकत्ता से एक पत्र लिखा था ! मुझे लगता है कि वह पत्र वर्तमान प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी को भी काफी हदतक लागू होता है ! मै तो वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे तभी से उन्हें मेल एडिशन अॉफ इंदिरा गाँधी बोलते आ रहा हूँ ! 1971 के बाद इंदिराजी भी कांग्रेस पार्टी को वन वुमेन पार्टी में तब्दील कर लिया था ! और नरेंद्र मोदी ने भी 2013 – 14 के बाद भाजपा को वन मॅन पार्टी बना लिया है ! कोई तो कहता है, कि ज्यादा तर मंत्री सिर्फ नाम के लिए है ! उनके विभाग के फैसले प्रधानमंत्री ही लेते हैं !
मिडिया में भी नरेंद्र मोदी को छोड़कर अन्य किसी ( थोड़ा बहुत अमित शाह ) मंत्री के बारे में कवरेज नही रहता है ! कई मंत्रियों के नाम और विभागों की जानकारी नहीं है ! बस एक मात्र बाहुबली नरेंद्र मोदीजी अठारह – अठारह घंटे तक काम करते हुए, 145 करोड़ जन संख्या के देश का भार वहन कर रहा है ! और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा का भी !
तो श्री. गौरकिशोर घोष का 48 साल पहले प्रेसिडेन्सि जेल का खत, भले ही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नाम है ! लेकिन उस पत्र के मुद्दे वर्तमान प्रधानमंत्री को भी हूबहू लागू है ! इसलिए मै वह पत्र जैसे के वैसे दे रहा हूँ !
” प्रिय प्रधानमंत्री,
कारागृह में बंदी काल में आजकल पत्र – पत्रिकाओं के द्वारा प्रायः प्रतिदिन ही फासिस्ट – विरोधी आंदोलन के संबंध में आपकी सुललित भाषणावली का पाठ करता हूँ ! फासीस्टवाद के विरोध में आपका इस प्रकार प्रेम देखकर बहुत ही अधिक पुलकित होता हूँ और प्रसन्न भी ! बहुत – से विषयों में दुःख के साथ स्विकार करता हूँ कि, मेरी तरह के परिपक्व मत का प्रौढ व्यक्ती – पिछले 27 वर्षों तक जो साहित्य और पत्रकारिता की ही जीवीका – ग्रहण कर मोटे तौर पर सद्भाव से अपने अस्तित्व की रक्षा का प्रयत्न करता आया है, आपके साथ सहमत नहीं हो पाता ! किंतु यही एक क्षेत्र, आप द्वारा फासीस्टवाद का विरोध, हमारे प्रवाह – हीन, निस्चल जीवन में आज भी लहरें उठाता है ! फासीस्टवाद – विरोधी आंदोलन का मै भी एक पुराना सैनिक हूँ ! फासीस्टवाद को आज भी मै सभ्यता का शत्रु मानता हूँ ! इसलिये यह चिठ्ठी लिख रहा हूँ !
मैं सन 1938-39 की बात कर रहा हूँ ! सब कुछ याददाश्त पर भरोसा कर के ही लिखा है ! तब आज का परिपक्व प्रोढ मात्र सदय किशोरावस्था पार कर एक चंचल तरुण था ! हमारे उस युग में – फासिस्टवाद सभ्यता का शत्रु है – यह अमोघ सत्य पहुचा दिया था मनिषि मानवेंद्र नाथ ने – कॉमरेड एम एन रॉय नाम से जो बेहतर परिचित हैं ! सारी प्रगतिशील शक्तियों के निकट उन्होंने यह आव्हान किया था, सभ्यता के शत्रु फासिस्टवाद के विरुद्ध एकसुत्रि विरोध में खडा हो जाने के लिए ! दुःख की बात है कि भारत में फासिस्टवाद तब नयी – नयी थी ! कहना बेकार है कि उन्हें कोई विशेष समर्थन नहीं मिला – न कांग्रेस ने, न सोशलिस्ट ने, और तो और कम्युनिस्टों ने भी नहीं ! मानवेंद्र नाथ रॉय की आवाज उस समय नक्कारखाने की तुती की समान थी ! लेकिन उनके आव्हान मे सत्य की पुट थी !
आज भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के सारे नेता आज आपको चारों ओर से घेर कर फासीस्ट विरोधी आंदोलन के नाम से कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक घुम रहे हैं ! लेकिन 1938-39 में फासिस्टवाद की बात को समझ नहीं पाए थे ! साम्राज्यवाद के विरुद्ध की आड में उन दिनों कम्युनिस्टों ने फासिस्टवाद के प्रति समर्थन ही व्यक्त किया था !
उसका एक कारण था ! सर्वहारा-राष्ट्र के एकमात्र दलाल के रूप में स्टालिन के रुस ने उस समय
तक फासीस्ट नायक – हिटलर और मुसोलीनी के विरुद्ध मुंह नहीं खोला था ! उंगली तक हिलाई नही थी ! अप्रस्तुत और मुमूरषू साम्राज्यवादी शक्तियां (यह बात भी मानवेंद्र नाथ रॉय की है, उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि इस युध्द में यदि फासिस्टवादी शक्तियों का पतन हो तो साम्राज्यवादीयो के सारे साम्राज्य भी युद्ध के बाद एक – एक करके उनके हाथों से निकल जायेंगे ) ब्रिटेन और फ्रांस – उस दिन जनमत के दबाव से सभ्यता पर फासिस्टवाद के हिंस्रतम आक्रमण का विरोध करने के लिए खड़े हो गए थे ! संसार का प्रगतिशील भाग जब बड़ी उत्कंठा से प्रतिक्षा कर रहा था, तब रुस भी फासिस्टवाद के विरोध में उतर पड़ा क्योंकि नाजीवादी आक्रमण का जोर उस समय पूर्व की ओर था – ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, हंगेरी इसके पहले ही हार चुके थे ! इस बार लक्ष्य था पोलंड, किंतु प्रत्याशित था वह नहीं हुआ ; सोवियत रूस नाजीवादी जर्मनी के साथ संधि कर के बंध गया ! और इस कारण पोलंड का बटवारा भी हुआ, सोवियत रूस और नाजीवादी जर्मनी के बीच में ! मोलोतोव और रिबेनट्रॉप के द्वारा तैयार किए गए शांति – पत्र के धुर्तता – भरे दस्तावेज पर उस समय का यह शर्मनाक इतिहास मौजूद हैं !
प्रिय प्रधानमंत्री, इस बार आपके ताजे फासिस्ट-विरोधी, मित्र – मंडली की कलाबाजियो के अनुरूप एक मजे की बात सुनाता हूँ, ध्यान दे ! आजकल के किसी गोगोल या मेलियेर के हाथों ‘मोलोतोव कॉकटेल’ शीर्षक से अपूर्व रचना के उत्कृष्ट दृष्टांत के रूप में बहुत अच्छा प्रदर्शन हो सकता है ! तो फिर सुनिए ! मोलोतोव – रिबेनट्रॉप समझौते के छ महिने बाद आपके फासिस्ट- विरोधी आंदोलन के ताजे साथी, आपके महा – प्रभुगण स्टालिन – हिटलर साम्राज्यवाद के शत्रु साम्राज्यवाद का नाश हो’ इस कीर्तन में मतवाले हो गए थे ! उसके छ महीने बाद ही एक और भारी कलाबाजी लगायी गयी और साम्राज्यवादी ब्रिटेन के साथ गठबंधन हुआ, क्योंकि इस बीच रुस की धरती पर हिटलर आक्रमण तेजी से बढ़ रहा था ! दोस्ति हुई रुस – अमेरिका – ब्रिटेन में – जिसके फलस्वरूप कॉमरेड कवि की कलम से जन्म लिया एक अपूर्व सुभाषित फासीस्ट – विरोधी कविता और गित ने जो जनयुद्ध की फौजी टुकडीयो द्वारा चारों ओर गाया जाने लगा : वज्रकंठ से उठी आवाज, जापानी फौज को रोकेंगे आज, देगा नही जपानी हवाई जहाज ! इत्यादी, इत्यादि ! और फासिस्टवाद – विरोधी मोर्चे के कंधों पर चढकर घुमने लगे चर्चिल – रुजवेल्ट और स्टालिन के चित्र ! कितने जल्दी होश आया !
प्रिय प्रधानमंत्री, इन भारी कलाबाजियो का पर्व भी इतिहास में अधिष्ठित है ! वहीं इतिहास आज इस अधम लेखक को इसलिए, उद्घाटित करना पडा कि आज के फासिस्ट-विरोधी आंदोलन नाम के जिस किर्तन की आप स्वयं मूल गायीका है, उस गायन में जो लोग साथ दे रहे हैं, दोहरा रहे हैं और जो गाने में आपको ताल देते हैं, वे सब ही घटिया फासीस्टवादी और बढीया कलाबाजी के दादा लोग हैं, यह सिधा – साधा सत्य मुझे आपको बताना है !
जो बात आज कहना चाहता हूँ, वह मेरी अपनी बात नहीं है, भाषांतरीत-प्रचलित एक प्रवचन मात्र है : ‘हे चिकित्सक ! अपनी चिकित्सा आप पहले करो, क्योंकि जिसके अपने सिरपर गंजापन हो उसके लिए फेरी लगाकर गंजापन दूर करने की शर्तिया दवा बेचना ठीक नहीं !’ उसी तरह जो खुद फासिस्टवादी मूर्खता से घीरे है, उनकी जबान से फासिस्टवाद के विरुद्ध खोखली आवाजें निष्ठुर व्यंग को ही मूर्तिमान करती है ! है न ?
बात को थोड़ा और खुलासे से कहना है ! जैसे : ( एक ) दुसरे पर प्रभुत्व विस्तार की प्रबल इच्छा ,
( दो ) राष्ट्र की शक्ति को मुठ्ठी – भर पिट्ठुओं के गुट, अर्थात जी – हुजूरो के दल की कोख में संकीर्ण करना ,
( तीन ) जनता के कल्याण के लिए जनता के मौलिक अधिकारों का अपहरण,
( चार ) तरह – तरह के बहानों से विरोधी- दल का और विरोधि मत का दमन,
( पांच ) प्रजातांत्रिक व्यवस्था को हो सके तो मिटा देना, नहीं तो उसे पंगु कर देना,
( छ ) दुसरों के विचारों के प्रति असहिष्णुता ,
( सात ) व्यापक रूप से और बीना सोचे – समझे दमन – नीति का प्रयोग,
( आठ ) प्रचार के माध्यमों को नियंत्रण में लाकर सेंसर के माध्यम से इकतरफ़ा, अपना ढोल पीटना और विरोधियों के चरित्र पर किचड उछालना ,
( नौ ) दल का नेता ही देश (एक नेता, एक जाति एक झंडा – यह ध्वनि ही फासिस्टवाद का प्रचलित स्तवगान हैं ) इस अहंभाव को खुले – खुले प्रश्रय देना, और
( दस ) क्रमशः हिंसात्मक मनोवृत्ति के सामने घुटने टेक देना !
क्या वर्तमान समय में भारत के स्थिति को देखते हुए यह एक दम फिट बैठ रहा ना ? हालांकि गौरकिशोर घोष ने यह पत्र 48 साल पहले के घोषित आपातकाल के समय प्रेसीडेंसी जेल कलकत्ता से एक दिसम्बर 1975 के दिन लिखा हुआ, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लिखा खत हैं ! लेकिन समय की विडम्बना देखीये उस समय की गलतियाँ पुनः और वह भी खुद भुक्तभोगी संघ और उसकी राजनीतिक ईकाई भाजपा के तरफसे गत नौ सालों से लगातार जारी है !
प्रिय प्रधानमंत्री, यह दस लक्षण फासीस्टवाद की सामान्य पहचान है ! यह सारे लक्षण जिसमें मौजूद हो विद्वानों ने उसी व्यक्ति को फासिस्टवादी कहा है ! और जो स्वयं फासीस्टवादी हो, और आप स्वयं ही समझ सकते है, कि उसके द्वारा फासिस्टवाद कायम ही हो सकता है, क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना ही हिटलर और मुसोलीनी को देखते हुए की गई है ! उसके लिए बीं. जे. मुंजे जिन्हें धर्मवीर की उपाधि हिंदू महासभा के स्थापना और संघ की स्थापना के कारण दी गई थी ! वह इंग्लैंड से सेकंड राऊंड टेबल कॉन्फरन्स के बाद तीन हप्ते के लिए इटली सिर्फ बेनिटो मुसोलीनी के फासीस्ट प्रयोग का अध्ययन करने के लिए विशेष रूप से गए थे ! और अपने प्रवास के आखिरी दिन बेनिटो मुसोलीनी से मुलाकात कर, उन्हें अपने अध्ययन तथा अपने द्वारा भारत में भी सात साल पहले ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के नाम से हम लोगों ने हूबहू आपका ‘बलाला’ नामक बच्चों के संघटन के जैसा शुरू किया है ! यह बेनिटो मुसोलीनी को बताने की बात खुद बी जी मुंजे ने अपनी डायरी में लिखा है जो जवाहरलाल नेहरू मुझीयम (अब नया नाम प्रधानमंत्री मुझीयम और मुझे शंका है कि अब शायद वह डायरी के पन्नों को गायब कर दिया होगा ! क्योंकि जहाँ देश के इतिहास को एनसीईआरटी ने बदल दिया है तो इस मुझीयम से ऐसी बहुत सी बातें होंगी जो संघ और उसकी राजनीतिक ईकाई भाजपा के पूर्व इतिहास उदाहरण के लिए आजादी के आंदोलन में शामिल नहीं होना अंग्रेजी सेना में भर्ती के काम तथा भारत छोडो आंदोलन के खिलाफ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तत्कालीन व्हाइसराय को लिखा ग्यारह सुचनाओ की चिठ्ठी !)
“उसका विनाश नही ! इसिलिये कहा है : हे चिकित्सक, अपनी चिकित्सा पहले खुद करो ! सत्य का सामना करो ! प्रजातंत्र को बंधन से मुक्त करो ! प्रजातंत्र की उसके सच्चे स्वरूप में प्रतिष्ठा करो ! एक मात्र प्रजातांत्रिक शक्ति ही फासीस्टवाद का नाश करने की क्षमता रखती है ! मनुष्य का महात्म्य गणतंत्र में ही विकसित होता है ! इसलिए अंत तक प्रजातंत्र को कोई दबाकर रख नही सकता !
जहाँ लोभ, हिंसा और झूठ का शासन है, वहां फासीस्टवाद का प्रभुत्व जम जाता है ! जहाँ अन्याय और अविचार है, दमन और अत्याचार है, फासिस्टवाद वहीं सर्वेसर्वा है ! लोभ और हिंसा और मिथ्या अन्याय और अविचार और दमन और अत्याचार फासीस्टवाद के एकमात्र ठीकाने है ! इसलिए उनको उखाड फेकने में ही फासीस्टवाद का चिरपराभव होगा ! आप फासीस्टवाद का नाश चाहती है ? सचमुच चाहती हैं ? तो चोट मारिए उसकी जडमे ! मूढता के अंधकार ने जहां आपकी बुध्दि को ढक कर रखा है , उस अहं को हटाइए ; सत्य को जिसने घेर रखा है उस छलना को दूर किजीये जिसने सोने के हिरण की माया से आपको लुभा रखा है ! प्रतिष्ठा किजिए उसी प्राणमय प्रजातंत्र की, उखाड फेकेगा उसी फासिस्टवाद को ! मुक्त कर दिजीए स्वाधीन चेतना और चैतन्य की उस वेगवती धारा को ! तरह – तरह की विपरीत भावनाओं को चोटों से फूल उठे जाग उठे जो जागरूक प्रहरी, और निरंतर रक्षा करे प्रजातंत्र की ! फासीस्टवाद – विरोध का नैसर्गीक भाग यही है ! इस संग्राम में यदि आप नेतृत्व दे, तो स्वागत है ; मैं और मेरी तरह के सही लोग फासीस्टवाद – विरोधी योद्धा आपके साथ हैं ! यही पथ हमारे अभ्युदय का है, और इसके विपरीत पथ का विनाश है ! आप मे शुभबुध्दि जागृत हो !
इति – – – – – – शुभाकांक्षि, भवदीय
गौरकिशोर घोष, इमर्जन्सी मीसा का कैदी
प्रेसिडेंन्सि जेल, सेल नंबर 10
पहली दिसंबर, 1975.
साथियों यह पत्र पढ़ कर वर्तमान समय में और 48 पहले की घोषित आपातकाल में आप लोगों क्या फर्क नजर आता है ?
डॉ. सुरेश खैरनार, 26 जून 2023, नागपुर.