वी पी सिंह भारत के आठवे प्रधानमंत्री थे, राजीव गाँधी के बाद जनता दल को चुनाव में जीत हासिल हुई और इस तरह 1989 में वी.पी. सिंह सत्ता के उच्च पद पर आसीन हुए. इनका रुझान राजीनीति की तरफ हमेशा से ही था, जिसके लिए इन्होने कठिन परिश्रम किये. एक प्रधानमंत्री के रूप में भारत की निचली जातियों की हालत में सुधार के लिए वी पी सिंह ने कठिन परिश्रम किया था. इन्होने 1989 में भारत देश की राजनीती में अविस्मरणीय बदलाव कर दिए. वी पी सिंह ने दलित व निचली जाति के लोगों को चुनावी राजनीती में आने का मौका दिया.

“राजा नहीं फकीर है भारत की तकदीर है”. 80 के दशक के आखिरी सालों में हिंदी बोलने वाले इलाकों में ये नारा खासा बोला जाता था. इसी के साथ विश्वनाथ प्रताप सिंह भारतीय राजनीति के पटल पर नए मसीहा और क्लीन मैन की इमेज के साथ अवतरित हुए थे. 1987 में भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई उनकी मुहिम ने देश का मिजाज ही बदल दिया. वो एक नई राजनीतिक ताकत बन गए.

वी.पी. सिंह का राजनीतिक-सामाजिक जीवन मुख्य रूप से तीन हिस्सों में विभाजित है.

  • पहला दौर एक जमींदार परिवार से निकल कर कांग्रेस की राजनीति में होना और मुख्यमंत्री तथा देश का वित्त मंत्री तथा रक्षा मंत्री बनना है. इसमें से उनका मुख्यमंत्री काल बागियों के खिलाफ अभियान के लिए जाना जाता है, जबकि वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने कॉरपोरेट करप्शन और रक्षा सौदों में दलाली के खिलाफ अभियान चलाया. इसी दौर में वे कांग्रेस से दूर हो गए.
  • उनके जीवन का दूसरा दौर प्रधानमंत्री के तौर पर रहा, जिस दौरान उनका सबसे प्रमुख और साथ ही सबसे विवादास्पद कदम मंडल कमीशन को लागू करने की घोषणा करना था. प्रधानमंत्री रहने के दौरान उन्होंने बाबा साहेब को भारत रत्न देने से लेकर उनकी जयंती पर छुट्टी देने और ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए स्वर्ण मंदिर जाकर माफी मांगने जैसे कदम उठाए. इस दौरान वे रिलायंस कंपनी के साथ सीधे टकराव में आए और धीरूभाई अंबानी को लार्सन एंड टुब्रो पर नियंत्रण जमाने से रोक दिया. राममंदिर आंदोलन के मुद्दे पर उन्होंने बीजेपी के सामने झुकने से मना कर दिया और इसी वजह से उनकी सरकार गिर गई.
  • अपनी जीवन के तीसरे अध्याय में वी.पी. सिंह संत की भूमिका में आ गए. वे कविताएं लिखने लगे और पेटिंग्स में हाथ आजमाया. लेकिन इस दौरान भी वे सामाजिक मुद्दों से जुड़े रहे. दिल्ली में झुग्गियों को उजाड़ने की कोशिशों का उन्होंने सड़कों पर उतरकर विरोध किया और सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ खड़े रहे.

विश्वनाथ प्रताप सिंह कहा करते थे कि सामाजिक परिवर्तन की जो मशाल उन्होंने जलाई है और उसके उजाले में जो आंधी उठी है, उसका तार्किक परिणति तक पहुंचना अभी शेष है. अभी तो सेमीफाइनल भर हुआ है और हो सकता है कि फाइनल मेरे बाद हो. लेकिन अब कोई भी शक्ति उसका रास्ता नहीं रोक पाएगी. वीपी सिंह शुरुआत से ही नेतृत्व क्षमता के धनी रहे, जिसके दम पर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे और सामाजिक न्याय की दिशा में इतिहासिक कदम उठाकर पिछड़े और वंचित समाज को आरक्षण के दायरे में लाने का काम किया.

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