गाँधी जी की शहादत के और देश की स्वतंत्रता के पचहत्तर साल के उपलक्ष्य में मुक्त चिंतन !

आज महात्मा गाँधी का 74 वा पुण्य स्मरण दिवस है ! और उत्तर प्रदेश के चुनाव में बीजेपी किसानों, मजदूरों और सबसे महत्वपूर्ण बेरोजगार युवकों के बारे मे एक शब्द ना बोलते हुए ! सिर्फ जीना, पाकिस्तान और मुजफ्फरनगर के दंगे जो खुद संघ की साजिश के तहत हुए हैं ! और उन्हें उल्टा तत्कालीन समाजवादी सरकार को कटघरे में खडा करने की कोशिश कर रहे हैं ! मेरे पास मुजफ्फरनगर दंगे की चारसौ पन्ने की रिपोर्ट है ! यदि उसे सार्वजनिक करू तो बीजेपी या संघ के चेहरे बेनकाब हो जायेंगे ! और जनता से अपना मुंह छिपाने के लिए जगह नहीं मिल सकती ! इतने जधन्य कांड किए हैं ! उदाहरण के लिए शामली नाम के जगह से पचास हजार से अधिक मुस्लिम समुदाय के लोगों को अपने जगह छोड़कर भागने के लिए मजबूर करने के लिए कौन जिम्मेदार हैं ?
उसी तरह जीस जीना का राग लगातार आलाप रहे है ! जीना के मुस्लिम लीग के साथ हिंदुत्ववादीयोने बंगाल से लेकर सिंध प्रांत तक कैसे मिलीजुली सरकारों का गठन 1942 के बाद किया था ! और उसके आधार क्या थे ? जबकि 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग के पाकिस्तान बनाने के लाहौर प्रस्ताव पारित होने के बाद की ! इनके मीलीजुली सरकारों का गठबंधन बना है ! और उसकी एक मात्र वजह कांग्रेस के नेता भारत छोड़ो आंदोलन के कारण जेलों में बंद थे ! और उसीका फायदा उठाकर हिंदुमहासभा जीना के साथ मिलकर कई प्रांतों में एकसाथ सत्ता में रहते हुए ! जीना से कुछ भी परहेज नहीं था ?
और अब पचहत्तर साल के बाद जीना का राग अलापने के अलावा और कुछ नहीं कर रहे हैं ! इतना दोगलापन भारत के इतिहास में सिर्फ संघ के लोग ही कर सकते हैं ! आजादी के आंदोलन में शामिल नहीं होने के बावजूद आज लोगो को देशभक्ति के नाम पर बरगलाने का काम शुरू है और जीना पाकिस्तान जैसे मुद्दों पर जोर दिया जा रहा है ! क्योंकि लोगों के रोजमर्रे के सवाल पर बीजेपी ने कुछ भी काम न करने के कारण ऐसे गडे मुडदे निकालने पड रहे!
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्रदेश है ! और उस प्रदेश के किसानों, मजदूरों की स्थिति क्या है ? यह किसानों के आंदोलनों से, और लाॅकडाउन के समय लाखों की संख्या में अपने माथेपर अपने सामान को लादकर चलने वाले मजदूरों को उत्तर प्रदेश की पुलिस ने मेंढक की तरह कुद – कुदकर चलने वाले फोटो आज भी ताजे है ! और वुलगढी से पहले आदित्यनाथ सत्ता में आने के तुरंत बाद हुए दलितों के खिलाफ दंगे !
और सबसे हैरानी की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने 2014 के चुनाव की सभाओं में हर साल, दो करोड़ नई नौकरीया देने का वादा किया था ! शायद ही अबतक आठ साल के अंत में भी इतने रोजगार नही दे सके ! हर साल दो करोड तो सिर्फ एक जुमले के अलावा कुछ भी नहीं था !
और आज के भास्कर नाम के दैनिक अखबार की, प्रथम पृष्ठ पर सबसे मुख्य खबर “भास्कर एनालिसिस. पिछले चार साल से लगातार बढ रही बेरोजगारी ! देश में 3. 03 करोड़ युवा बेरोजगार ये लाॅकडाउन के दौर से भी ज्यादा !
यह है टाइटल और आगे जाकर लिखा है कि चौकाने वाले 3 तथ्य
कुल बेरोजगारों में 95 % 29 साल से कम उम्र के !(आज भारत की आधी आबादी युवा पीढ़ी की है!)
इस समय 1.18 करोड़ से ज्यादा ग्रेजुएट बेरोजगार .1.24 करोड़ तो सक्रियता से काम खोज भी नहीं रहे हैं !

रेल्वे की परीक्षा में गड़बड़ी के बाद युवा प्रदर्शन कर रहे हैं ! लेकिन, क्या सिर्फ एक परीक्षा में हुई गड़बड़ी से ही युवा इतने नाराज है ? जानकारो का माने तो युवाओं में गुस्से की बड़ी वजह बेरोजगारी का रेकॉर्ड स्तर हैं ! बेरोजगारी का डेटा जारी करने वाली संस्था सेंटर फॉर मानिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर-दिसम्बर 2021 के दौरान देश में बेरोजगारों की कुल संख्या 3.18 करोड़ रही है ! इनमें 3.03 करोड़ 29 साल से कम उम्र के है ! यह संख्या 2020 के देशमर में लगे लाॅकडाउन के दौर से भी ज्यादा है ! तब देश में 2. 93 करोड़ युवा बेरोजगार थे ! अहम बात यह है कि 3.03 करोड़ युवा तो वो है , जो काम खोज रहे हैं ! 1.24 करोड़ युवा ऐसे भी हैं, जो रोजगार चाहते है, लेकिन थक कर काम नहीं खोज रहे ! यदि इन्हें भी शामिल कर ले तो युवा बेरोजगारों की संख्या 4.27 करोड हो जाती है ! और सबसे हैरानी की बात भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जिसकी आधी आबादी युवाओं की है !
सीएमआईई बेरोजगारी का डेटा जारी करने वाली एकमात्र संस्था है ! सीएमआईई का डेटा का इस्तेमाल आरबीआई समेत केंद्र सरकार के सभी विभाग भी करते हैं !यह है आज के भारत के रोजगार की स्थिति का ताजा रिपोर्ट ! लेकिन वर्तमान समय में भारत के पांच राज्यों के चुनाव में सत्ताधारी पार्टी के नेतृत्व के प्रचारकों के मुद्दों पर कोई नजर दौडायें तो, लगता है कि जीना या पाकिस्तान और अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ नफरत करने के अलावा, खुद पिछले चुनाव के लिए विशेष रूप से पुलवामा से लेकर मुजफ्फरनगर के और तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक जैसे भावना को उत्तेजित करने के लिए ! जान बुझकर उन्हें बनाने से लेकर ! पुन:-पुन: उन्हें उछाल कर राजनीति करने वालों को देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने की जगह उसे प्रायवेट मास्टर्स के हवाले सौपना, ताजा उदाहरण जिस टाटा से सत्तर साल पहले हमारे देश की विमान सेवा को सरकारी नियंत्रण में लेने वाली सरकारों को देशभक्त कहा जायेगा ? या सत्तर साल के बाद वापस उस पुंजीपती को वापस सौपना कौन-सी देशभक्ति की व्याख्या में आती है ? उसी तरह रेल, रक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभागों को भी प्रायवेट मास्टर्स के हवाले करने की भी बात फिर हमारे देश के एअरपोर्ट से लेकर पानी के पोर्ट बडे-बडे सरकारी कारखाने जिसमें सालाना तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक मुनाफा देने वाले विशाखापट्टनम जैसे स्टिल के कारखाने बेचने वाली करतुत करना, अगर कोई देशभक्ति का काम है ! तो फिर हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने वाले लोगों की मुर्तीयो की राजनीति करने वाले लोगों को सबसे बडे पाखंडी ही कहा जा सकता है !
मैने अपने पोस्ट कि शुरुआती दौर में ही बेरोजगारी की स्थिति से शुरू किया ! तथा हमारे देश के असली सवालों की जगह पर गत तीस साल से अधिक समय से, सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द संपूर्ण राजनीति के चक्र को ले जाने वाले लोगों को अपने देश की आजादी से लेना देना नहीं था ! यहां तक की बटवारे के बारे मे घडियालों के आंसुओं से जीना और पाकिस्तान का राग आलापते रहते हैं ! लेकिन उनके साथ बटवारे के निर्णय लेने के बाद सरकारों में भी भागीदारी करने की करतुत कौन-सा बटवारे की आपत्ति का लक्षण था ?
आज महात्मा गाँधी के चौहत्तरवे पुण्यस्मरण दिवस पर मेरी पिडा है ! कि हर तरह से बटवारे के खिलाफ रहने वाले महात्मा गाँधी की हत्या करने वाले लोगों के राजनीतिक दलों ने , बटवारे वाले लोगों की मिलीजुली सरकारों के गठबंधन बनाने की पूर्वशर्त क्या थी ?

बाकायदा कलकत्ता में मुस्लिम लीग की डायरेक्ट अ‍ॅक्शन जैसे ! आतंकवादी घोषणा के बाद भी ! श्यामा प्रसाद मुखर्जी लीग की सरकार मे मंत्री बने रहे ! और बयालीस के क्रांतिकारियों के साथ कैसा निपटने काम कर सकते हैं इस के दस फार्मूला के पत्र तत्कालीन वायसराय को लिखने की करतुत कौनसी देशभक्ति का लक्षण है ? और उठते बैठते दुसरो को देशद्रोही, टुकड़े – टुकड़े गॅंग कहना कितना विरोधाभास की राजनीति करोगे ?
और महात्मा गांधी कलकत्ता से लेकर नोआखाली और बिहार तथा दिल्ली के दंगों को रोकने की वन मॅन आर्मी का काम कर रहे थे ! और आज से चौहत्तर साल पहले अगर उनकी हत्या नही हुई होती तो ! फरवरी में वह पाकिस्तान में भी हिंदुओं के खिलाफ चल रहे कत्लेआम को रोकने के लिए जाने वाले थे !
सबसे हैरानी की बात भारत के आजादी के बाद के सभी दंगों में संघ और उसके शेकडो अलग – अलग संघठनो के कारण दंगों की तिव्रता बढी है जिसमें भागलपुर, मुजफ्फरनगर, भिवंडी, मालेगाव, जलगाव, जमशेदपुर, बिहारशरिफ और गुजरात के दंगों को लिया जा सकता है !


लेकिन आज महात्मा गाँधी के पुण्यस्मरण दिवस के बहाने मुल्यांकन करने से लगता है कि, इन सब गुनाहों को करने वाले लोगों को राजनीतिक लाभ मिलना यह सबसे बड़ी चिंता का विषय है ! क्योंकि नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और आदित्यनाथ यह तीन नाम उदाहरण के लिए, सिर्फ दे रहा हूँ ! इसपरसे लगता है कि बीजेपी के अंदर अगर किसी को अपना राजनीतिक करियर बनाना है तो इनके जैसा ट्रेक रेकॉर्ड बनाने चाहिए ! यही कारण है कि कल मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव की राष्ट्रपिता, चाचा नेहरू और इंदिरा गाँधी को फर्जी बोलने की ओछी टिप्पणी, या प्रज्ञा सिंह ठाकुर और भी कई सांसद और विधायक तथा अन्य पदाधिकारियों के लिए शायद प्रिकंडिशन है कि आपके पूर्व चरित्र में कितने ऐसे कांडों को आपने अंजाम दिया है ! जो बीजेपी की अलिखित पाॅलिसी होने की संभावना है ! तभी तो महात्मा गाँधी के खिलाफ बोलने वाले या नाथूराम को महिमामंडित करने वाले किसी भी व्यक्ति के उपर कोई कार्रवाई नहीं की है !
और पाखंड है कि राजघाट जाकर आज माथा टेकते हुए, जैसे लोकसभा की सिढी पर साष्टांग दंडवत करने की फोटो और उस समय मन में क्या सोचते होंगे ? यह मेरे लिए संशय की बात है ! सबसे बडी बात हमारे देश की आधी आबादी युवा पीढ़ी की है ! और मैंने अपने पोस्ट की शुरुआत युवा वर्ग के बेरोजगारी के वर्तमान स्थिति से शुरू की है !
मै भी 1972-73 के समय बीस साल की उम्र में चल रहा था ! और उसी समय गुजरात के मोरवी नाम के गांव में, सरदार पटेल इंजीनियरिंग कालेज के छात्रों ने वहां की मेस के एक रूपया थाली के खाने की किमत, सव्वा रुपया कर दिया था ! मतलब सिर्फ चार आने या पच्चीस पैसे की बढौतरी करने की कृती के विरोध में आंदोलन शुरू हुआ था ! और बाद में उसे नवनिर्माण आंदोलन के रूप में जाना जाता है ! और काफी लोगों को विश्वास नहीं होगा, उस आंदोलन के सचिव, वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे ! फिर बाद में बिहार आंदोलन शुरू हुआ ! जिसे संपूर्ण क्रांति का आंदोलन कहा गया ! जीसमे एक सिपाही मैं भी था ! दोनों आंदोलन युवाओं द्वारा शुरू कीये गये थे ! जिसे पचास साल होने को आ रहे हैं !


और अभी रेल भर्ती घोटाले को लेकर बिहार में जो कुछ चल रहा हैं ! उसमे भी मुझे पचास साल पहले के आंदोलनों की चेतना दिखाई दे रही है ! लेकिन पचास साल पहले की सरकार की नियत इतनी खराब नही थी ! जितनी अभी की सरकार की है ! यह सिर्फ सांप्रदायिकता का जहर फैला – फैला कर सभी आंदोलनों को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं ! लेकिन सबसे ताजा किसानों के आंदोलनों ने एक नई दिशा दिखाई है ! और अगर यही जज्बा बना रहा तो, बीजेपी का बेड़ा डुबना ही भारत जैसे बहुधर्मिय ,और बहुसांस्कृतिक देश के लिए, आजादी के पचहत्तर साल और महात्मा गांधी के भी जीवन के समाप्त होने के पचहत्तर साल, की सबसे बड़ी आदरांजलि ! भारत के इतिहास की और विश्व के भी सबसे बड़ी सांप्रदायिक पार्टी की केंद्रीय, और अन्य राज्यों से उनके चुंगल से मुक्त करने की कृति ही सही आदरांजलि होगी !
डॉ सुरेश खैरनार 30 जनवरी 2022, नागपुर

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