भाजपा बहुमत में आने के बाद भी अपने ही विधायकों से भयभीत थी. इसलिए पार्टी आलाकमान ने रघुवर दास एवं पार्टी के कुछ वरीय नेताओं को दूसरी पार्टी में सेंधमारी के काम में लगाया. पार्टी नेताओं ने सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री एवं झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी से सम्पर्क साधा. उन्हें केंद्र में मंत्री बनाए जाने और राज्यसभा भेजने का प्रलोभन दिया गया. लेकिन बाबूलाल ने इसे लेकर हामी नहीं भरी. इसके बाद प्रदेश के नेताओं को यह टास्क सौंपा गया कि वे कांग्रेस और झाविमो में सेंधमारी करें. झाविमो के विधायकों को जब मंत्री पद के साथ ही अन्य लालच दिए गए, तो नए चुनकर आए विधायकों का मन डोल गया.
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपनी सरकार को पूरी तरह से सुरक्षित रखने के लिए वो सभी काम किया, जो नहीं करना चाहिए था. वे झारखंड विकास मोर्चा के आठ विधायकों में से छह को भाजपा में लाने में सफल रहे. अमर कुमार बाउरी, रणधीर कुमार सिंह, जानकी यादव, नवीन कुमार जायसवाल, गणेश गंझू एवं आलोक चौरसिया को भाजपा की सदस्यता दिला दी गई. पार्टी तोड़ने में अहम भूमिका निभाने वाले अमर कुमार बाउरी एवं रणधीर कुमार सिंह को मंत्री पद एवं मलाईदार विभाग मिला, वहीं अन्य विधायकों को बोर्ड निगम में अध्यक्ष बना दिया गया.
हालांकि आजसू से झाविमो में गए नवीन कुमार जायसवाल के लिए अभी तक मंत्रिमंडल में एक जगह खाली रखी गई है, पर आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के विरोध के कारण उन्हें मंत्री नहीं बनाया जा सका है. गौरतलब है कि आजसू एनडीए का घटक दल है. वैसे रघुवर दास ने डोरा तो कांग्रेस विधायकों पर भी डाला था, पर कांग्रेस विधायक बादल पत्रलेख की पार्टी के प्रति निष्ठा के कारण वे कांग्रेस विधायकों को अपने खेमे में लाने में विफल रहे. हालांकि कांग्रेस विधायकों को भी मंत्री पद का प्रलोभन दिया गया था.
विधायकों के पाला बदलने के खिलाफ झाविमो (प्रजातांत्रिक) के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी और प्रधान महासचिव प्रदीप यादव ने विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत कर दल-बदल करने का आरोप लगाया था. दोनों नेताओं ने विधानसभा अध्यक्ष से विधायकों पर दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई का अनुरोध किया था. उसके बाद से ही संबंधित छह विधायकों के खिलाफ दल-बदल कानून के तहत विधानसभा अध्यक्ष के न्यायाधिकरण में सुुनवाई चल रही है. इस मामले को साढ़े तीन साल बीत गए, पर अभी तक इसपर कोई फैसला नहीं आ सका है. विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव ने कई बार गवाहों एवं दलबदल करने वाले विधायकों को नोटिस भेजा, पर अधिकांश विधायक विधानसभा अध्यक्ष के न्यायधिकरण में उपस्थित नहीं हुए.
इस पर अध्यक्ष ने काफी सख्त रवैया अपनाते हुए सभी विधायकों को अपना पक्ष रखने को कहा है. ये विधायक जानते हैं कि अध्यक्ष काफी सख्त हैं और वे किसी के दबाव में नहीं आने वाले हैं. वे सरकार के खिलाफ सख्त टिप्पणी करने से भी परहेज नहीं करते. इस कारण मुख्यमंत्री रघुवर दास भी घबराते हैं. गौर करने वाली बात यह भी है कि पाला बदलने के मामले में इन छह विधायकों ने जिन गवाहों के नाम दिए थे कि इनलोगों के सामने पार्टी के विलय का निर्णय लिया गया था, उनमें से अधिकांश गवाह या तो मुकर गए या वे विधानसभा अध्यक्ष के न्यायाधिकरण में हाजिर ही नहीं हुए. कुछ गवाह तो दल-बदल करने वाले विधायकों को पहचानते भी नहीं थे. इस मामले को विधायकों एवं गवाहों द्वारा हल्के ढंग से लेने को लेकर विधानसभा अध्यक्ष नाराज भी हुए और उन्होंने संबंधित विधायकों को जमकर फटकार भी लगाई.
दल-बदल की कहानी
इस दल-बदल की कहानी भी बहुत रोचक है. भाजपा बहुमत में आने के बाद भी अपने ही विधायकों से भयभीत थी. इसलिए पार्टी आलाकमान ने रघुवर दास एवं पार्टी के कुछ वरीय नेताओं को दूसरी पार्टी में सेंधमारी के काम में लगाया. पार्टी नेताओं ने सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री एवं झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी से सम्पर्क साधा. उन्हें केंद्र में मंत्री बनाए जाने और राज्यसभा भेजने का प्रलोभन दिया गया. लेकिन बाबूलाल ने इसे लेकर हामी नहीं भरी. इसके बाद प्रदेश के नेताओं को यह टास्क सौंपा गया कि वे कांग्रेस और झाविमो में सेंधमारी करें.
झाविमो के विधायकों को जब मंत्री पद के साथ ही अन्य लालच दिए गए, तो नए चुनकर आए विधायकों का मन डोल गया. अमर बाउरी एवं नवीन जायसवाल बीच के सेतु बने और पार्टी तोड़ने में अहम् भूमिका निभाई. इन्होंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि दल-बदल का कोई मामला नहीं बने, इसलिए आठ में से छह विधायकों को तोड़ा गया. लेकिन इनसे चूक यह हुई कि इन्होंने विलय की सूचना न तो निर्वाचन आयोग को दी और न ही विधानसभा अध्यक्ष को. अब ये लोग दल-बदलू की श्रेणी में आ गए हैं. अब देखना है कि विधानसभा अध्यक्ष इस दल-बदल मामले में अपना फैसला कब सुनाते हैं. हालांकि इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि इन छह विधायकों की सदस्यता रद्द होनी ही है, केवल फैसले का इंतजार है.
विलय के दावों पर सवाल
दल-बदल मामले की सुनवाई कर रहे विधानसभा अध्यक्ष के न्यायाधिकरण में झाविमो पक्ष के अधिवक्ता आरएन सहाय ने साक्ष्य पेश करते हुए कहा है कि झाविमो का किसी भी दल में विलय नहीं हुआ था. निर्वाचन आयोग ने जो सूचना दी है, उसमें यह साफ तौर पर कहा गया है कि झारखंड के किसी मान्यता प्राप्त दल का किसी दल में विलय नहीं हुआ है. झाविमो की ओर से भी ऐसा कोई आवेदन चुनाव आयोग को नहीं मिला है. इसलिए यह विलय का नहीं, बल्कि दल-बदल का मामला है. झाविमो के अधिवक्ता ने निर्वाचन आयोग के पत्र को साक्ष्य के तौर पर शामिल करने का भी अनुरोध विधानसभा अध्यक्ष से किया, जिसमें किसी दल के विलय न होने की बात कही गई है. संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने भी इस मामले में कहा कि अगर पार्टी की आमसभा में विलय को लेकर फैसला हुआ और दो-तिहाई से ज्यादा विधायक दूसरे दल में शामिल हो गए, तो इसे मान्यता देकर चुनाव आयोग को जानकारी देना विधानसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी है, पर ऐसा कोई पत्र चुनाव आयोग के पास नहीं है.
इससे यह स्पष्ट है कि इस बात की जानकारी दल-बदल करने वाले विधायकों ने न तो विधानसभा अध्यक्ष को दिया और न ही चुनाव आयोग को. अगर मर्जर नहीं हुआ, तो यह पूरी तरफ से दल-बदल का मामला है. पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी का भी मानना है कि चुनाव आयोग ने कहा है कि पार्टी का मर्जर नहीं हुआ है, तो यह मामला पूरी तरह से दल-बदल का बनता है. ऐसे में दल-बदल करने वालों को दोषी माना जा सकता है. विधानसभा अध्यक्ष को टाइम-बाउंड फैसला सुनाने का नियम बनाना चाहिए, यदि वे समय सीमा के भीतर फैसला नहीं देते हैं, तो वादी पक्ष को ऊपरी अदालत में अपील करने का अधिकार मिलना चाहिए.
भाजपा व विधायकों का तर्क
15 जुलाई, 2016 को भाजपा की ओर से निर्वाचन आयोग से आरटीआई के तहत विधानसभा में दलगत स्थिति के बारे में जानकारी मांगी गई थी. आयोग की ओर से स्पष्ट कहा गया था कि झारखंड में भाजपा के 43 व झाविमो के 2 विधायक हैं. दल-बदल करने वाले विधायकों एवं भाजपा की ओर से बहस करने वाले अधिवक्ता ने इस तथ्य को माना है. हालांकि इससे इतर, भाजपा का अपना तर्क यह है कि आयोग ने झाविमो के भाजपा में मर्जर की बात स्वीकार की थी. इस मामले में झाविमो की ओर से दिए जा रहे साक्ष्यों का भाजपा के अधिवक्ता ने विरोध किया है. उनका कहना है कि अब जो भी साक्ष्य झाविमो की ओर से दिए जा रहे हैं, वो गलत हैं, जो साक्ष्य दिया जाना था, वह पहले ही दिया जा चुका है, वे अब और कोई साक्ष्य नहीं दे सकते.
इधर, दल-बदल मामले में फंसे विधायक राज्य के पर्यटन मंत्री अमर कुमार बाउरी ने कहा है कि झारखंड में स्थिर सरकार के लोकतांत्रिक अधिकारों की धज्जियां उड़ रही थीं, तानाशाही वाले फैसले हो रहे थे, नेता और कार्यकर्त्ता भाग रहे थे, इसलिए हमलोगों ने बैठक कर झाविमो का भाजपा में विलय करा दिया. चुनाव आयोग को जानकारी न देने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह जानकारी भाजपा को देनी थी. आयोग को बताना मेरा काम नहीं था. मंत्री ने यह भी कहा कि बैठक बुलाने के लिए पहले बाबूलाल से भी आग्रह किया गया था, लेकिन जब वे तैयार नहीं हुए, तो वरिष्ठ नेता जानकी यादव की अध्यक्षता में बैठक बुलाकर हमने विलय का फैसला लिया. उन्होंने कहा कि इस बात की जानकारी विधानसभा अध्यक्ष को दे दी गई थी, इसलिए यह विलय कानूनसम्मत है और हमलोगों पर दल-बदल का मामला बनता ही नहीं.
एक तथ्य यह भी है कि झाविमो के टिकट पर चुनाव जीतकर भाजपा में आने वाले छह विधायकों ने आठ फरवरी, 2015 की रात झाविमो (प्रजातांत्रिक) की केंद्रीय समिति की बैठक में पार्टी के भाजपा में विलय का दावा किया था. इसी आधार पर इन्हें विधानसभा में अलग बैठने की जगह भी दी गई. विधायकों पर जब दल-बदल का मामला चला, तब इनकी ओर से गवाही देने वाले सभी गवाहों ने लगातार यही बात दुहराई कि इनकी पार्टी का भाजपा में विलय हो गया है.
इस पूरे मामले में अब गेंद विधानसभा अध्यक्ष के पाले में है और जल्द ही फैसला आने वाला है. इसकी ज्यादातर संभावना है कि दल-बदल करने वाले सभी छह विधायकों की सदस्यता समाप्त की जा सकती है. अगर ऐसा होता है तो यह उन छह विधायकों से ज्यादा भाजपा और रघुवर दास के लिए बड़ी फजीहत का कारण बनेगा.
भाजपा ने लोकतंत्र के साथ मज़ाक किया है: बाबूलाल मरांडी
झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी का कहना है कि चुनाव आयोग से मिली जानकारी के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि झाविमो का किसी दल में विलय नहीं हुआ है. विलय का जो दावा कर रहे हैं, वो पूरी तरह से गलत है. झाविमो से जीतकर भाजपा में शामिल होने वाले सभी छह विधायक दोषी हैं और उनपर कार्रवाई होनी चाहिए. भाजपा भी इस मामले में दोषी है, भाजपा ने लोकतंत्र के साथ मजाक किया है.