भूमाफिया के नाक में नकेल डालने के नाम पर भलेे ही तरह-तरह की मुहिम चलाई जा रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि भू-माफिया की करतूत के आगे किसी की नहीं चल पा रही है. अगर हम कोसी की बात करें तो यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बिहार में हुकूमत चाहे जिस किसी की हो, लेकिन दादागीरी भू-माफिया की ही चलती है. बलकुंडा गांव की कहानी तो एक बानगी मात्र है, किशनगंज, पूर्णिया, भागलपुर, मोकामा, बेगूसराय सहित कई अन्य इलाकों में गैर-मजरूआ अथवा सरकारी जमीन पर मालिकाना हक की लड़ाई में कई बार भू-माफिया के बीच गोलीबारी हुई है. गैर-मजरूआ अथवा सरकारी जमीन को लेक सहरसा, सुपौल, खगड़िया, मधेपुरा सहित कोसी की धरती कई बार खून से लाल हुई है. इतना ही नहीं, कोसी के सीने में कई राज भी दफन हैं. सच ये है कि भू-माफिया के आगे न खाकी की चली और न ही खादी की. कोसी इलाके के नहरों व तटबंधों के साथ-साथ रेल पटरियों के आस-पास किसी तरह जीवन गुजार रहे लोगों को कागज पर जमीन तो उपलब्ध करा दी गई, लेकिन कब्जा पाने के लिए उन्हें धक्के खाने पड़ रहे हैं. बलकुंडा गांव निवासी टुनटुन राम कहते हैं कि हमें माफिया की बंदूकों का सामना करना पड़ रहा है. सरकार द्वारा अधिगृहीत की गई बीस एकड़ जमीन पर प्रति परिवार चार डिस्मिल जमीन का खाका खींचकर प्लॉट काट दिया गया है. लेकिन कब्जा दिलाने के नाम पर भू-माफिया द्वारा लाई गई भाड़े की महिलाओं द्वारा की गई बेइज्जती का सामना कर लौटी पुलिस पुन: वापस नहीं आई है. विस्थापित परिवार के लोग अपने नाम से आवंटित खटाल पर झोपड़ी के लिए तंबू-खुट्टा गाड़ ही रहे थे कि भू-माफिया ने विस्थापित महादलित व अति पिछड़े बलकुंडा गांव के विस्थापितों को निशाना बनाकर गोलीबारी शुरू कर दी. शुक्र है कि गोलीबारी में कोई हताहत नहीं हुआ. कोसी की बाढ़ व कटाव का दंश झेल चुके बलकुंडा गांव के विस्थापितों की कहानी भी अजीब है. खगड़िया-सहरसा सीमा के आस-पास बसे चौथम थाना क्षेत्र का बलकुंडा गांव महादलितों के साथ अति पिछड़ों का गांव था. बाइस वर्ष पूर्व कोसी ने गांव का भूगोल बदला और देखते-देखते कटाव के कहर से बलकुंडा का अस्तित्व ही मिट गया. पहले बाढ़ ने उजाड़ा, फिर उसके बाद तेज हुए कटाव के कारण चार सौ परिवारों के लोग बेघर हो गए. विस्थापितों को प्रशासनिक मदद मिली और बलकुंडा गांव को पुनर्वासित करने के लिए जमीन की खोज शुरू हुई. चौदह वर्षों की लंबी लड़ाई के बाद सभी विस्थापित परिवारों को बसाने के नाम पर 1998 में राज्य सरकार ने 11 लाख रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से बीस एकड़ जमीन अधिगृहीत की. सवाल ये है कि जमीन अधिग्रहण के दौरान आस-पास के जमीन की कीमत बमुश्किल तीन-चार लाख रुपए होने के बाद भी जमीन मालिक को प्रति एकड़ ग्यारह लाख बतौर मुआवजा क्योंे दिया गया? नौ जुलाई 2013 को डीसीएलआर, अनुमंडल पदाधिकारी, अंचलाधिकारी सहित कई थाना पुलिस या यों कहें कि पूरा सरकारी अमला ही कोसी कटाव प्रभावित बलकुंडा गांव के विस्थापतों को बसाने गया था. लेकिन भू-माफिया की रणनीति के आगे प्रशासनिक रणनीति ने दम तोड़ दिया और प्रशासनिक अमलों को महिलाओं के हाथों बेइज्जत होकर बैरंग वापस लौटना पड़ा. प्रशासनिक अमलों की फौज भू-माफिया की तथाकथित महिला सेना के सामने हार गई. प्रशासनिक अमलों को यह कहकर सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च कर अधिगृहित की गई जमीन से भागना पड़ा कि महिला पुलिस की फौज अब माफिया द्वारा एकत्रित की गई महिलाओं से भिड़ेगी और हर हाल में बलकुंडा गांव के कोसी कटाव प्रभावित विस्थापितों को बसाया जाएगा. आशियाने की उम्मीद में जवानी से बुढ़ापे की ओर तेजी से कदम बढ़ाते शिवनंदन सिंह कहते हैं कि आशियाने की लड़ाई में अब जमा की गई राशि भी खत्म होने को है. भू-माफिया के आगे जब सरकार भी विवश है, तो फिर उन जैसे गरीबों की क्या बिसात! शिवनंदन कहते हैं कि दंडाधिकारी के नेतृत्व में पुलिस द्वारा बल प्रयोग कर किसी तरह अधिगृहीत जमीन पर बस्ती बसाने की मुहिम चलाई गई. लेकिन भू-माफिया द्वारा एकत्रित की गई महिलाएं जमीन पर लेट गईं और पुलिस को बैरंग वापस लौटना पड़ा. स्थिति यह है कि प्रभावित परिवारों द्वारा अपने स्तर से भी जमीन कब्जा छुड़ाने की कोशिश की गई, लेकिन भू-माफिया ने गोली-बारूद व लाठी-डंडों का प्रयोग कर सभी प्रभावित महादलित व अति पिछड़े परिवार के लोगों को खदेड़ दिया. बालकुंडा निवासी जयजय राम, किशुनी राम, जवाहर सिंह, टुनटुन राम, शिवनंदन सिंह आदि कहते हैं कि लगभग चार वर्ष पूर्व जमीन अधिगृहीत किए जाने की जानकारी मिलने के बाद से बलकुंडा गांव के लोगों को आशियाना बनने की उम्मीद थी. लेकिन अभी तक जमीन का नक्शा ही उनके जीवन का सहारा है. 1998 में प्रभावित परिवारों के लिए बीस एकड़ जमीन एक्वायर किया गया था लेकिन जमीन एक्वायर करने में ही सरकार को चौदह साल लग गए. भू-माफिया सरकार द्वारा अधिगृहीत की गई जमीन को छोड़ना नहीं चाहता है और सरकारी अमला अधिगृहीत जमीन पर कब्जा दिलाने में समर्थ नहीं दिखता है. विस्थापितों को निशाना बनाकर गोलीबारी करने वाले 22 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाए जाने के बाद भी गिरफ्तारी तो दूर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. वहीं खगड़िया के अनुमंडल पदाधिकारी शिव कुमार शैव का कहना है कि जल्द ही बलकुंडा गांव के विस्थापितों के लिए अधिगृहीत की गई जमीन को कब्जामुक्त कराकर विस्थापित परिवार के लोगों को बसाया जाएगा. वैसे इस तरह के दावे चौथम के अंचलाधिकारियों द्वारा पहले भी कई बार किए गए. चौथम प्रखंड विकास पदाधिकारी को भी कई बार बलकुंडा गांव के विस्थापितों की याद दिलाई गई, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ाए गए. अंचलाधिकारी का स्थानांतरण होने के बाद एक बार फिर बलकुंडा का मामला फाइलों में धूल चाट रहा है.
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