1995 में नैना साहनी हत्या (तंदूर कांड ) में तत्कालीन सत्ताधारी दल के सुशिल शर्मा ने संशय के आधार पर अपनी पत्नी को मारकर एक होटल के तंदूर में जला दिया था ! और मार्च 1993 में मुंबई में धारावाहिक बमों के विस्फोट होने की घटना से, संपूर्ण देशभर में तत्कालीन मिडिया तथा विरोधी दलों ने मिलकर काफी शोर मचाने की वजह से, सरकारने 1993 में तत्कालीन गृहसचिव, श्री. एन . एन. वोरा की अध्यक्षता में (15 जुलै 1993 ) एक कमेटी का गठन किया गया था ! जिसका नाम वोरा कमेटी के रूप में प्रसिद्ध है ! हालांकि यह रिपोर्ट कभी भी जनता के सामने नहीं आई !


क्योंकि मुंबई बम विस्फोट में मुंबई पुलिस के कुछ लोगों ने भी आतंकी संगठनों के साथ सहयोग किया है ! वैसे ही नैना साहनी हत्या में तत्कालीन सत्ताधारी दल के सदस्यों के सहभागिता होने की वजह से ! भारत की संसदीय राजनीति से भी कुछ लोगों का इस तरह के अपराधिक मामलों में शामिल होने की बात सामने आई है ! वर्तमान में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अश्विनी उपाध्याय नाम के एक व्यक्ति ने अपनी याचिका में आपराधिक मामलों में कोर्ट से दोषी करार दिए जाने वाले नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाना चाहिए ! अभी जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार, सजा की अवधि पूरी होने के बाद दागी नेताओं के अगले छह साल तक ही चुनाव लडने पर रोक है ! आपराधिक मामलों में आरोपी सांसदो /विधायकों के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट में पेश रिपोर्ट में यह बात कही ! इसके मुताबिक, चुनाव लड़ने की अयोग्यता को केवल छह साल तक के लिए ही सीमित करना समानता के अधिकार का हनन है !


नैतिक अधमता का अपराध करने पर लोकपाल, विजिलेंस कमिश्नर और मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष समेत 20 उच्च संविधानिक पदों के अफसर हटाए जा सकते हैं, ऐसे में सांसदो /विधायकों को विशेष रियायत देना संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है ! याचीकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने दागीं नेताओं के आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी की मांग की है ! विजिलेंस कमिश्नर को नैतिक अधमता पर हटाने के लिए सेंट्रल विजिलेंस कमिशन एक्ट है ! लोकायुक्त को अयोग्य घोषित करने के लिए लोकायुक्त एक्ट और मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष को हटाने के लिए प्रोटेक्शन अॉफ ह्यूमन राइट एक्ट 1993 है ! तो उसी अपराध के लिए सासंदों/विधायकों को छूट देना भेदभाव है ! 40 %सांसद और 44% विधायकों पर क्रिमिनल केस चल रहे हैं ! देश के कुल 768 सांसदो में से 306 यानी 40% पर आपराधिक केस है ! इनमें 194 पर हत्या की कोशिश, अपहरण और महिलाओं पर अत्याचार जैसे गंभीर आपराधिक मामले है ! कुल 4001 विधायकों में से 1,777 यानी 44% के खिलाफ आपराधिक केस है ! इनमे 1,136 यानी 28 % पर हत्या, अपहरण और महिलाओं पर अत्याचार जैसे गंभीर आपराधिक केस है !
सांसदो और विधायकों पर 5,175 आपराधिक केस लंबीत है ! इनमे से 40 % यानी 2,116 केस 5 साल से ज्यादा पुराने हैं ! न्याय मित्र ने इन सभी मामलों के निपटारे के लिए रोज सुनवाई का सुझाव दिया है ! जिन जजों के पास नेताओं से संबंधित आपराधिक मामले है, उन्हें अन्य केस न दिए जाएं ! हाइकोर्ट अपने अधिनस्थ न्यायालयों को निर्देश जारी करे कि वह किसी भी कारण से इन केसों की सुनवाई न टाले !


ब्रिजगोपाल हरकिशन लोया ( उम्र 48 ) 1 दिसंबर 2014 की सुबह उनके परिवार वालों को बताया गया, “कि वह नागपुर में किसी जज की बेटी की शादी में शामिल होने गए थे ! और उनकी 30 नवंबर की रात में मृत्यु हो गई !” इस मृत्यु के बारे में खोजी पत्रकार निरंजन टकले ने ‘ द कॅरवान’ पत्रिका के, 20 नवंबर 2017 के अंक में, प्रकाशित अपनी अथक प्रयासों के बाद तैयार की हुई स्टोरी “आखिरकार उनका मौनभंग हुआ – और सोहराबुद्दीन मामलों के न्यायाधीश की मृत्यु के संदर्भ में हिला देने वाले सत्य ” इस शिर्षक से उपलब्ध है ! ( caravanmagzin . com )
एक दिसंबर 2014 की सुबह सीबीआई स्पेशल कोर्ट के न्यायाधीश ब्रिजगोपाल हरकिशन लोया (उम्र 48 ) किसी जज की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए नागपुर में गए थे ! और उनकी 30 नवंबर की रात में मृत्यु हो गई ! इस तरह के संदेश फोन द्वारा दिए गए ! देश के सबसे ज्यादा चर्चित 2005 में सोहराबुद्दीन फर्जी एंनकाऊंटर केस में मुख्य आरोपी तत्कालीन गुजरात के गृहमंत्री ( आज भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह को हटाकर बनाए गए हैं ! ) के पद पर बैठे थे अमित शाह ! लोयाके मृत्यु के समय 30 नवंबर 2014 भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर नितिन गडकरी को हटाकर नियुक्त किए गए थे !


न्यायमूर्ति लोया की मृत्यु हुई, उस समय वह सीबीआई स्पेशल कोर्ट में सिर्फ सोहराबुद्दीन के मामले की सुनवाई कर रहे थे ! और इस मामले को लेकर संपूर्ण देश में बारीकी से ध्यान दिया जा रहा था ! 2012 को सर्वोच्च न्यायालय ने यह केस गुजरात से मुंबई में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था ! और इस केस की निस्पक्षता से सुनवाई करने के लिए, गृहराज्य गुजरात से बाहर भेजने की आवश्यकता है ! ऐसी टिप्पणी करते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने, इस केस को शुरू से आखिर तक एक ही न्यायमूर्ति ने देखने की निर्देश देने के बावजूद, उस निर्देश की अनदेखी करते हुए ! प्रथम न्यायमूर्ति श्री. जे. टी. उत्पात को 2014 में इस केस से हटाकर न्यायमूर्ति लोयाके सुपुर्द किया गया !
6 जून 2014, को न्यायमूर्ति उत्पात ने अमित शाह को न्यायालय के सामने उपस्थित न रहने की सहुलियत मांगने पर ! आदेश दिया थी कि, “वह 20 जून को अदालत में हाजिर होने का आदेश दिया था ! तो अमित शाह हाजिर तो नहीं हुए ! लेकिन तो अगली तारीख 26 जून को हाजिर होने के लिए कहा ! तो उसके एक दिन पहले ही 25 जून को न्यायमुर्ति जे टी उत्पत साहब का तबादला करके सर्वोच्च न्यायालय के 2012 के आदेश का उल्लंघन करते हुए ! न्यायमूर्ति ब्रिजगोपाल हरकिशन लोया को वह जिम्मेदारी सौंपी गई थी !
और लोया ने अमित शाह को राज्य के बाहर रहने पर कोर्ट में हाजिर न रहने की सहुलियत दी थी ! लेकिन 31 अक्तूबर 2014 को अमित शाह मुंबई में महाराष्ट्र राज्य की, भाजपा सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में, मुंबई के राजभवन में जो मुंबई के सीबीआई कोर्ट से डेढ किलोमीटर की दूरी पर रहते हुए, कोर्ट में क्यों नहीं आए ? यह बात स्पष्ट रूप से लोया ने अमित शाह के वकील को पुछकर बताया कि, वह इसी राज्य में रहते हुए और वह भी मुंबई में उन्होंने कोर्ट में आना चाहिए था ! यह बोलते हुए 15 दिसंबर 2014 अगली तारीख को हाजिर रहने के लिए कहा था ! और एक दिसम्बर को न्यायमूर्ति ब्रिजगोपाल हरकिशन लोया की मृत्यु होने की खबर कुछ अखबारों में प्रकाशित हुई थी !


और तृणमूल कांग्रेस के संसद सदस्यों ने, संसद के 2014 के शितसत्र में, लोयाके संशयास्पद मृत्यु होने की बात की जांच करने की मांग के लिए, संसद के बाहर धरना देते हुए, बताया कि यह मृत्यु संशयास्पद है ! और इसकी जांच होनी चाहिए ! दुसरे ही दिन सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने भी सीबीआई को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति लोया का मृत्यु हिलाने वाला है ! और इस की जांच करने की मांग की थी ! यह लिखकर अपनी प्रतिक्रिया दी थी ! लेकिन नही संसद सदस्यों के धरने या सोहराबुद्दीन के भाई के खत का कुछ भी असर सीबीआई, या चुनकर आई हुई भाजपा की सरकार पर पडा है ! उल्टा अमित शाह को भारत के कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बने गृहमंत्री राजनाथ सिंह को हटाकर गृहमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदकी जिम्मेदारी सौंपी गई है ! जिसके अंतर्गत सीबीआई जैसे जांच करने वाली एजेंसी भी आती है ! और न्यायमूर्ति लोया के मृत्यु के बाद एम बी गोसावी नाम के जज को सोहराबुद्दीन एन्काऊंटर केस चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई ! जिसने दस हजार से अधिक पन्ने के आरोप पत्र और सौ से अधिक टेलिफ़ोन कॉल रेकॉर्ड और वह भी गुजराती में रहते हुए लोया के मृत्यु होने के तीस दिनों के भीतर 30 दिसंबर को अमित शाह को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में से बाईज्जत बरी कर दिया ! और वह दिन था भारत की क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की खबर का जो कि ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का मॅच चल रहा था और धोनी के टेस्ट मैच से सन्यास लेने की खबर धोनी ने नही गुजरात क्रिकेट असोसिएशन के सेक्रेटरी ने धोनी ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा की है ! मतलब संपूर्ण देश में आज जिस तरह से क्रिकेट के खेल का लोगो के दिमाग पर सबसे अधिक प्रभाव रहते हुए कौन सी खबर को मिडिया सबसे ज्यादा फैलाने की संभावना – शक्यताऐ देखकर अमित शाह को सोहराबुद्दीन के एन्काउंटर के केस से बाईज्जत बरी करने के लिए समय का चुनाव किया गया है !
अभी सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे केस में न्याय मित्र ने रिपोर्ट में कहा है ! “कि राजनेता चुनाव जितकर कानून भी बनाते हैं ! ऐसे में इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि किसी आपराधिक मामले में अयोग्य घोषित होने की अवधि पूरी होने के बाद वे संबंधित कानून को खत्म करने की कोशिश करे !”
उसके बाद सांप्रदायिक राजनीति परवान पर चढने की शुरुआत हुई ! और इसमें दंगा – फसाद तथा आतंकवाद का नया राजनीतिक अध्याय भी शुरू हुआ ! जिसमेंसे आज की लोकसभा और विधानसभा में दागीं लोगो की भरमार होना शुरु हुई ! उन्हें समाज में प्रतिष्ठित करने की शुरूआत यह भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी असफलता है ! क्योंकि इनमें से कुछ लोग भारत के सत्ताधारी बनने में कामयाब हुए हैं ! और तथाकथित मुख्य धारा का मिडिया उन्हें भारत के तारणहार के रूप में महिमामंडित करने में जुट गए हैं !


यह लगभग नब्बे साल पहले के जर्मनी के हिटलर के फासिस्ट राज के दिनों को याद दिला रहे हैं ! लेकिन वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में चल रही केस से कुछ उम्मीद बनती है ! क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने ही नियुक्त किए हुए एमिकस क्यूरी ( न्याय मित्र ) और वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने बहुत ही महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं ! इसलिए मैं उम्मीद करता हूँ कि वर्तमान समय में चारों तरफ के अंधेरे में , सर्वोच्च न्यायालय कुछ आशा की किरण दिखा रहा है ! तो उम्मीद करते हैं कि, न्याय मित्र के सुझावों पर अमल करेंगे तो ! भारत की संसदीय राजनीति में आपराधिक मामलों में लिप्त सांसद और विधायकों को जिवन भर के लिए चुनाव लड़ने के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाए, तो कुछ अपराधियों को भी इससे संदेश जायेगा कि, अपराधियों को भारत की राजनीति में कोई भी स्थान नहीं है ! अन्यथा हमारे देश के जनतंत्र आचार्य विनोबा भावे की भाषा में एक तंत्र के सिवाय और कुछ नहीं है ! ही सिध्द हो जायेगा ! आज की तारीख में सिर्फ और सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय से ही उम्मीद बची है !
अपेक्षा करता हूँ कि इस केस से भारत की संसदीय राजनीति में से आपराधिक तत्वों को निकाल बाहर करने का समय आ गया है ! क्योंकि हमारे संसदीय राजनीति को 2027 यानी चार साल बाद पचहत्तर साल पुरे होने जा रहे हैं ! तो लोकतंत्र की गंगा सफाई अभियान की शुरुआत हमारे सर्वोच्च न्यायालय से शुरू हुआ तो ऐतिहासिक काम होगा ! और हमारी न्यायसंस्था के बारे में हमारे देश के लोगों को और अधिक विश्वास मजबूत बनने में सहायता होगी !
डॉ. सुरेश खैरनार, 15 सितंबर 2023, नागपुर.

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