कहते हैं क्रूरता यदि व्यक्तित्व में हो तो मुस्कुराना भी दिखावे का होता है। नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व पहले दिन से साफ है। लेकिन महत्वाकांक्षाएं जब छलांग लगाती हैं तब व्यक्तित्व को कई तरह से पेंट करना पड़ जाता है। भारतीय लोकतंत्र ने अपने अच्छे बुरे नायकों के साथ बड़ी तीव्रता से समाजवाद, तानाशाही और लोकतंत्र के रंग में लिपटी तानाशाही को प्लेट में सजा कर भारतीय मतदाता के सामने प्रस्तुत किया है। पर उतनी तीव्रता के साथ मतदाता स्वयं को बदल पाने या समझदार दिखने में सक्षम नहीं रहा। कुटिल व्यक्तित्व से सराबोर नरेंद्र मोदी समाजवाद और स्पष्ट समझ आने वाली तानाशाही के बीच से रास्ता निकालना चाहते हैं। लेकिन व्यक्तित्व की तमाम चरम अवस्थाओं की भी अंतत: अपनी सीमाएं तो होती ही हैं लिहाजा मोदी का व्यक्तित्व भी उससे अछूता तो नहीं है। धीरे धीरे हम मोदी के व्यक्तित्व की खुलती परतें देख रहे हैं। उसमें जो कुछ भी हमें नजर आ रहा है सब पेंट की चमकदार परतों के सिवा और कुछ नहीं है । 2014 में मतदाता ने मोदी के जिस रूप को देखा वह रूप निरंतर बदलता रहा है। यही कारण है कि मोदी आज तक अजेय समझे गये। लेकिन पहली बार मोदी के अश्वमेघ घोड़े की लगाम पंजाब के जीवट किसानों ने पकड़ी है। और इन किसानों ने अपना इतना विस्तार किया कि एक तरफ तो किसान आंदोलन देश के किसानों का हो गया दूसरी तरफ मोदी के व्यक्तित्व के भीतर की क्रूर अवस्थाएं एक एक कर बाहर आने लगीं।
यह साफ है कि समझदार, पढ़ा लिखा बौद्धिक समाज, स्वतंत्र विचार के प्रतिबद्ध लोग और पत्रकार सबको, पहले दिन से मोदी के व्यक्तित्व को लेकर कोई गफलत नहीं थी। 2002 के गुजरात ने सबको जागरूक कर दिया था। इसीलिए चतुर मोदी ने एक जबरदस्त प्रयोग किया। बौद्धिक समाज बनाम सामान्य जनता का वितंडावाद खड़ा किया। चाहा कि लोगों को बौद्धिक समाज से जितनी नफरत संभव हो, होनी चाहिए। बदनाम करने का अंतिम अस्त्र ‘आंदोलनजीवी’। और न जाने कैसे कैसे तमगे दिए गए।
लोकतंत्र की आड़ में चलती तानाशाही का सबसे बड़ा उदाहरण हास्य कला को बर्दाश्त नहीं करना और उस पर लगाम लगाना है। पं. नेहरू में जो प्रखर बौद्धिकता थी उसी का परिणाम था कि वे हास्य और कार्टून कला का महात्म समझते रहे। इंदिरा गांधी ने कभी हास्य, व्यंग्य या कार्टून पर लगाम नहीं लगायी (इमरजेंसी के दौर को छोड़ कर, जो स्वाभाविक लग सकता है ) लेकिन मोदी यहीं चूक जाते हैं। ये सब उनके व्यक्तित्व के अनछुए पहलू हैं। उन्हें पढ़ने लिखने वालों से चिढ़ है, उन्हें वामपंथियों से चिढ़ है, उन्हें कला की तमाम विधाओं से चिढ़ है। और यह सब इन दिनों बखूबी देखा जा रहा है। जहां हास्य और व्यंग्य से सत्ता पर चोट होगी वहां उसे कुचल दिया जाएगा। आप कुणाल कामरा से महमूद फारुखी होते हुए श्याम रंगीला तक आइए। सबको धमकाना, मुकदमों में फंसाना और हर तरह से प्रताड़ित करना शुरू है। श्याम रंगीला जैसे मामूली और साधारण व्यक्ति पर भी इसलिए केस करवाया गया क्योंकि उसने सौ रूपये लीटर पेट्रोल हो जाने पर मोदी जी की मिमिक्री करते हुए वीडियो बनाया था। इसी संदर्भ में बात करें तो उर्मिलेश जी ने इस बार लीक से अलग हास्य – व्यंग्य कलाकारों या कहिए स्टेंडअप कामेडियन आदि के साथ जैसा व्यवहार किया जा रहा है उस पर एनडीटीवी के प्रियदर्शन और मीनाक्षी श्रेयन के साथ बातचीत की। दोनों का विवेचन / विश्लेषण गौर तलब था। प्रियदर्शन की यह चिंता बड़ी वाजिब है कि पैसे वालों का कोई सरोकार रह ही नहीं गया है।उर्मिलेश जी का ‘हफ्ते की बात’ कार्यक्रम भी इस बार आकर्षक था। विशेषतौर पर वे जिस तरह विपक्ष पर बरसे।
यू ट्यूब पर इन दिनों ‘लाऊड इंडिया टीवी’ के संतोष भारतीय भी अपनी तरह से छाए हुए हैं। रोचक जानकारियों के साथ स्पष्ट और मुखर। वे अपनी बात तो करते ही हैं साथ ही विभिन्न लोगों, खासकर पत्रकारों और चिंतकों, के साथ भी ऐसी चर्चा करते हैं कि बिना पूरा सुने बंद नहीं किया जा सकता। मसलन अभय कुमार दुबे, सोमपाल शास्त्री, विनोद शर्मा, सुरेश खैरनार, अखिलेंद्र प्रताप सिंह जैसों के साथ उनकी बातचीत बेहद दिलचस्प होती है। अभय दुबे की यह पंक्ति मार्के की है कि किसानों के इस आंदोलन ने मोदी सरकार की अथारिटी को जबरदस्त चुनौती दी है।
इस हफ्ते प्रिया रमानी छाई रहीं। आरफा खानम शेरवानी ने ‘वायर’ के लिए और भाषा सिंह ने ‘न्यूज़ क्लिक’ के लिए प्रिया रमानी से बात की। आरफा के कार्यक्रम में गजाला वहाब भी थीं। सबसे चौंकाने वाली और दर्दनाक बात यह थी कि जिस समय गजाला वहाब कोर्ट में अपना बयान दे रही थीं उस समय वहां मौजूद सब लोग हंस रहे थे। शर्मनाक !! प्रिया ने भाषा सिंह से भी खूब खुल कर बात की। प्रिया मस्त और आत्मविश्वास से भरपूर तथा संतुष्ट दिखीं। नीलू व्यास ने दिशा रवि पर पूर्व जज दीपक गुप्ता और प्रशांत भूषण से बढ़िया बातचीत की। लेकिन नीलू को इस पर ध्यान देना चाहिए कि दोनों मेहमान बातचीत से उकता क्यों गये। दीपक गुप्ता तो उखड़ ही गये थे। आरफा खानम शेरवानी के कई महत्वपूर्ण वीडियो इस दौरान आए। भाषा सिंह और अजीत अंजुम ने किसान नेता जोगिंदर सिंह ‘उग्राहा’ से अलग अलग बात की। ‘उग्राहा’ और किसान नेता राजेवाल दोनों बेहद समझदार नेताओं में से हैं। ‘उग्राहा’ ने किस तरह पंजाब की महिलाओं और युवाओं को संगठित किया यह एक मिसाल है। बरनाला की महापंचायत इसका प्रमाण है।
जिस तरह दिशा रवि को मानसिक प्रताड़ना दी गयी उसी प्रकार नवजोत कौर और उनके साथी शिव कुमार को भी प्रताड़ित किया गया और अभी तक यह प्रताड़ना जारी है। शिव कुमार के साथ तो पुलिस की नृशंसता एक घिनौनी मिसाल है। यै दोनों मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ रहे थे। घिनौनेपन, नृशंसता और जालिमाना दौर के लिए यह सत्ता हमेशा याद की जाती रहेगी। यह दौर अभी जारी है। यह अभी और बढ़ेगा। लेकिन धर्मेन्द्र राणा जैसे जज भी बीच बीच में आते रहेंगे जिन्होंने दिशा रवि को जमानत देते हुए जो कुछ कहा वह एक मिसाल है। और उस दिन एनडीटीवी के अपने प्राइम टाइम में रवीश कुमार का जबरदस्त गुस्सा देखने लायक था। यह गुस्सा हमें अच्छा लगा । ‘सत्य हिंदी’ की चर्चाएं देखते रहिए। कुछ मिले न मिले पर आप बोर नहीं होंगे।
Basant Pandey