राजनीति के लिए मुद्दों की कमी नहीं होती और वैसे मुद्दाविहीन राजनीति का कोई मतलब भी नहीं होता. यह अलग बात है कि वर्तमान में हर मुद्दे का मकसद सत्ता पाने से ही जुड़ा हुआ है. इसी कड़ी में कभी अगड़ा बनाम पिछड़ा तो कभी मंदिर-मस्जिद जैसे मसले राजनीति मुद्दों का रूप ले लेते हैं. पिछले कई दशक से मंदिर राग अलापने वाली भाजपा को साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बहुमत मिला, तो इसके पीछे कहीं न कहीं राम मंदिर के मुद्दे ने भी निर्णायक भूमिका अदा की थी. यूपी विधानसभा चुनाव में तो राम मंदिर मुद्दे की अहमियत सब ने देखी. चुनाव बाद जब बात मुख्यमंत्री चुनने की आई, तो इसमें भी कहीं न कहीं मंदिर मुद्दा ही दिखा. उत्तर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण मठ गोरखनाथ मंदिर से जुड़े महंथ योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री चुना गया.
हाल के गुजरात चुनाव में राहुल गांधी द्वारा मंदिर-मंदिर घूमना भी चर्चा के केंद्र में रहा. अब बिहार में भी राजनीति उसी करवट हो रही है. मंदिर-मस्जिद मुद्दे से दूर रही बिहार की राजनीति भी अब उसी रास्ते पर बढ़ती दिख रही है. सीतामढ़ी में मां सीता के मंदिर निर्माण की चर्चा कर भाजपा नेताओं ने साफ कर दिया है कि उनकी मंशा अब बिहार में मंदिर के बहाने कमल खिलाने की है. भाजपा को भरोसा है कि यूपी की तर्ज पर बिहार में भी इसी सियासी रास्ते से सत्ता में स्थापित हो सकती है. ऐसा नहीं है कि सीता मंदिर निर्माण को लेकर इससे पूर्व में कोई चर्चा नही हुई, परंतु अबकी बार एक पार्टी विशेष के नेताओं का बयान बिहार में खासकर सीतामढ़ी की राजनीति को नई दिशा देती नजर आ रही है.
हालांकि सियासत से इतर मां सीता का यह मंदिर निर्माण पर्यटन से भी जुड़ा है. लेकिन इस दृष्टिकोण से कोई भी दल इसकी चर्चा नहीं कर रहा. बिहार में पर्यटन को बढ़ावा देने को लेकर राज्य सरकार द्वारा अनवरत घोषणाएं की जाती रही है. प्रमुख स्थानों के विकास को लेकर कार्य योजनाएं भी बनाई जा रही हैं और वृहद रणनीति पर कार्य भी हो रहे हैं, बावजूद इसके सूबे बिहार में पर्यटन के विकास की जो रफ्तार होनी चाहिए, वो नहीं है. खासकर, दशकों से उपेक्षा का दंश झेल रहा उत्तर बिहार का सीतामढ़ी जिला अब भी पर्यटन के दृष्टिकोण से काफी पिछड़ा है. ऐसा नहीं कि यहां अन्य प्रांतों से पर्यटक नहीं आ रहे हैं, आ रहे हैं, लेकिन पर्यटन विकास के लिहाज से उनकी संख्या काफी कम है.
तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद भी यहां आ चुके हैं जगतजननी मां जानकी की पावन जन्म स्थली सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में जानकी नवमी के अवसर पर 3 मई 2017 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद जी का आगमन हुआ था. उनके इस दौरे से स्थानीय लोगों में उम्मीद बढ़ी कि अब शायद मां सीती की जन्मभूमि जो इतने वर्षों से उपेक्षित है, उसके दिन बहुरेंगे. महामहिम राज्यपाल ने उस समय पुनौरा धाम जानकी मंदिर में दर्शन के बाद ऐतिहासिक सीताकुंड की परिक्रमा भी की थी. उस दौरान उन्होंने कहा था कि सीता के बिना राम का अस्तित्व नहीं है. जगतगुरु से कथा के क्रम में मुलाकात के दौरान महामहिम ने कहा कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर सीतामढ़ी आने को कहेंगे. यह महज एक संयोग ही कहा जाएगा कि उस दौरे के चंद माह बाद ही महामहिम राज्यपाल देश के महामहिम राष्ट्रपति बन गए. उस वक्त राज्यपाल के कार्यक्रम के दौरान सीता जन्म स्थली के विकास को लेकर राज्यसभा सांसद प्रभात झा ने भी तकरीबन 10 लाख रुपए के सहयोग की बात कही थी.
इससे पूर्व, सूबे की सरकार में पर्यटन मंत्री का पदभार संभालने के बाद स्थानीय विधायक रहे सुनील कुमार पिंटू ने भी मां सीता की जन्म स्थली के विकास को लेकर महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया था. बतौर मंत्री उन्होंने रामायण सर्किट के तहत सीतामढ़ी व बक्सर के विकास को लेकर करीब 2 सौ करोड़ रुपए उपलब्ध कराए थे. जिसमें से 150 करोड़ सीतामढ़ी और 50 करोड बक्सर में खर्च किया जाना था. लेकिन अब तक इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाया जा सका है. साल 2011 में जानकी नवमी के अवसर पर नौ दिवसीय कथा के लिए पुनौरा धाम पहुंचे चित्रकूट के तुलसी पीठाधीश्वर जगतगुरु रामानंदाचार्य श्रीरामभद्राचार्य जी ने सीता जन्म स्थली को अद्वितीय स्थान की संज्ञा दी थी. उन्होंने भरोसा व्यक्त किया था कि अपने जीवन के अंत तक वे प्रति वर्ष जानकी नवमी के अवसर पर पुनौरा धाम में श्रीराम कथा कहते रहेंगे. जगतगुरू ने पुनौरा धाम को विश्व पर्यटन स्थल के मानचित्र पर स्थापित कराने का संकल्प भी लिया था.
स्वामी के बयान के बाद चर्चा तेज़
इधर हाल ही में भाजपा के वरीय नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सीता माता के मंदिर को लेकर एक बयान दिया है, जिसके बाद इसे लेकर चर्चा और तेज हो गई है. स्वामी ने अपने बयान में जिक्र किया था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद सीतामढ़ी में सीता मंदिर का निर्माण होगा. भाजपा नेता के उक्त बयान के बाद स्थानीय स्तर पर भी मंदिर निर्माण को लेकर सोशल मीडिया पर घमासान मचना शुरू हो गया है. अलग- अलग विचारधारा के लोगों के जमात ने अभी से ही मंदिर निर्माण को लेकर स्थान के मसले पर दावेदारी भी शुरू कर दी है. कोई पुनौरा धाम तो कोई जानकी मंदिर और कुछ तो संपूर्ण मिथिला क्षेत्र को ही सीता जन्म स्थली बताने में लग गए हैं.
मतलब यह कि मंदिर मसले की चर्चा ने स्थानीय स्तर पर सियासी रंग दिखाना शुरू कर दिया है. आगे क्या होगा, फिलहाल कहना मुश्किल है. लेकिन इतना तो साफ हो गया है कि भाजपा इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाएगी. लेकिन हजारों पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में अब भी कई कार्य अधूरे पड़े हैं. सीता कुंड के चारो ओर आकर्षक सीढी घाट के निर्माण के साथ मनोहारी फब्बारा लगाने समेत अन्य कार्य अधर में लटका है. मां सीता के बाल रूप मंदिर का निर्माण भी कराया जाना है.
हालांकि बिहार की राजनीति को करीब से देखने-समझने वालों का मानना है कि जदयू के साथ सरकार में रहते हुए भाजपा के लिए मंदिर निर्माण के मुद्दे पर अपना स्टैंड क्लियर करना गले की फांस बन गया है. यह ऐसा मुद्दा बन गया है, जिसे जदयू के लिए न स्वीकार करते बन रहा है और न ही इसका विरोध करते. इससे बिहार में राजद व जदयू के बीच सीधे टकराव का माहौल बनता दिख रहा है. यह संभव है कि भाजपा पूर्व की तरह एक बार फिर जदयू के साथ मिलकर चुनावी अखाड़े में उतरेगी लेकिन मंदिर मुद्दे को लेकर भाजपा के लिए अपना कद बढ़ाना इतना आसान नही होगा.
भाजपा यह बात भली-भांति समझ रही है कि शराबबंदी और दहेजबंदी जैसे सामाजिक कदमों से बिहार के एक बड़े वर्ग के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहुंच बनी है. दूसरी बता यह भी है कि गत विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा गया और मंदिर-मस्जिद का मुद्दा उछालना कमाल नहीं दिखा पाया. लोगों ने उसे नकार दिया था. राम मंदिर के मुद्दे पर भी भाजपा के पास कुछ खास कहने को नहीं है, वो मुद्दा 3 साल पहले जहां था, वहीं है. इसलिए भाजपा अब इस मुद्दे पर सधे हुए कदमों से आगे बढ़ना चाहेगी. इधर चारा घोटाला मामले में लालू के दोषी करार दिए जाने के बाद से राजद भी भाजपा को निशाने पर लेने लगी है. राजद से जुड़े लोगों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की सजा केंद्र की भाजपा सरकार की साजिश का हिस्सा है.