आज देश जिस नक्सल समस्या से जूझ रहा है, वह सीपीएम की ही देन है. सीपीएम ही वह पार्टी है, जिसने पश्चिम बंगाल सहित अपने प्रभुत्व वाले अन्य राज्यों में युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया. तालीम से उन्हें महरूम रखा. उन्हें बुनियादी सुविधाएं नहीं दीं. उनके लिए दो व़क्त की रोटी का इंतज़ाम नहीं किया. नतीज़तन युवा गुमराह हो गए. अपना पेट भरने की ख़ातिर उन्होंने हथियार उठा लिया. तृणमूल कांग्रेस के युवा तुर्क सांसद और केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री सुल्तान अहमद नक्सलवाद का ज़िक़्र होते ही सीपीएम पर बरस पड़ते हैं. उनकी आवाज़ नाराज़गी से भर जाती है. वह इस भयंकर समस्या का पूरा ठीकरा सीपीएम के सिर पर फोड़ने से गुरेज़ नहीं करते.
पश्चिम बंगाल के उलुबेरिया से तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुल्तान अहमद रेल मंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का अल्पसंख्यक चेहरा हैं. बेहद जुझारू रहे सुल्तान अहमद अपनी बातें बड़ी मज़बूती से दर्ज़ कराते हैं. वह न स़िर्फ क्षेत्र की जनता की समस्याओं से पूरा सरोकार रखते हैं, बल्कि राज्य में जहां-जहां पार्टी का जनाधार है, वहां के लोगों की द़िक्क़तों से भी बख़ूबी बावस्ता होते हैं. सामाजिक कार्यों की ज़िम्मेदारी पूरी तल्लीनता से निभाने वाले सुल्तान अहमद को खेलों से भी बड़ा लगाव है. यही वजह है कि एक खिलाड़ी की ऊर्जा और लगन भी उनमें सा़फ नज़र आती है. सुल्तान अहमद का मानना है कि अब व़क्त आ चुका है कि तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष एवं रेल मंत्री ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की बागडोर मुख्यमंत्री के तौर पर संभालें. राज्य की जनता सीपीएम के तानाशाही शासन से परेशान हो चुकी है. उसे बस एक मौक़ा चाहिए, सीपीएम को सत्ता से बेदख़ल करने का.
सुल्तान अहमद यह मानने को बिल्कुल तैयार नहीं कि सीपीएम के राज-काज से राज्य के लोगों का कुछ भी भला हुआ है. सीपीएम की उपलब्धियों को भी वह सिरे से ख़ारिज़ कर देते हैं. वह कहते हैं कि सीपीएम ने राज्य को तबाह और बर्बाद कर दिया. राज्य के निवासी दिन-ब-दिन ग़रीब होते चले गए. गांव हो या शहर, कहीं भी विकास की रोशनी नहीं पहुंची. राज्य में प्रमुख विपक्षी पार्टी के नेता होने के नाते सुल्तान अहमद के आरोपों की सूची ख़ासी लंबी है. ख़ासकर अल्पसंख्यक जमात की अवमानना उन्हें बेहद पीड़ा पहुंचाती है. सुल्तान अहमद प्रदेश की सीपीएम सरकार पर सीधा वार करते हुए कहते हैं कि इस सरकार ने मुसलमानों की बेहतरी के लिए कोई भी क़दम नहीं उठाया. कोई स्कूल, कोई मदरसा नहीं बनवाया. स्वास्थ्य, रोज़ी-रोज़गार की दिशा में सोचा तक नहीं.
आज से 35-40 साल पहले पश्चिम बंगाल के गांवों और बस्तियों के जो हालात थे, आज भी वही हैं. बल्कि और भी बदतर हैं. इस जमात में जानबूझ कर फसाद कराए गए, ताकि लोग आपसी झगड़ों में ही उलझे रहें और अपने हक़ और हुक़ूक की आवाज़ न उठा सकें. नौजवान पीढ़ी को भ्रम में रखा गया.
लिहाज़ा आज उनकी ज़िंदगी दोज़ख़ बन गई है. महज़ कहने को सीपीएम सेक्युलर है, पर असल में ऐसा है नहीं. यह पार्टी और इसके नेता स़िर्फ ढ़कोसला करते हैं. राज्य में विकास के नाम पर दंगे-फसाद कराए जाते हैं. विरोध करने पर पुलिसिया ज़ुल्म से उन्हें कुचल दिया जाता है. अरबों रुपये विकास के नाम पर ख़र्च कर दिए गए, पर आज तक राज्य की जनता को शौचालय तक की समुचित सुविधा भीनहीं मिली. सर्व शिक्षा अभियान के नाम पर बच्चों का दाख़िला तो स्कूल में करवा दिया जाता है, पर कुछ ही दिनों बाद बच्चे अभाव के कारण पढ़ना-लिखना छोड़ घर बैठ जाते हैं. अब सरकार दाख़िले का प्रतिशत तो जगज़ाहिर करती है, पर जो बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं, उनका आंकड़ा पेश नहीं करती. यही वजह है कि सीपीएम सरकार विकास का चाहे लाख डंका पीटे, पर राज्य में अभी भी अशिक्षा का ही आलम है.
सुल्तान अहमद कहते हैं कि राज्य में सीपीएम के ख़िला़फ लोग उठने लगे हैं. उनकी समझ में यह बात आ चुकी है कि उनका भला तृणमूल कांग्रेस ही कर सकती है. सुल्तान अहमद अपनी पार्टी और पार्टी अध्यक्ष का गुण गाते नहीं अघाते. ममता बनर्जी को वह देश का सबसे क़ाबिल राजनीतिज्ञ मानते हैं. कहते हैं कि देश की स़िर्फ वही एक ऐसी नेता हैं, जिसकी कथनी और करनी में फर्क़ नहीं होता. उनकी नीयत हमेशा ग़रीबों के हक़ में होती है. यही वजह है कि आज तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल से बाहर निकल कर पूरे देश में अपना जनाधार बना रही है. केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री होने के नाते सुल्तान अहमद इन दिनों विश्व स्तर पर भारतीय पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने में लगे हैं. वह चाहते हैं कि भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार पूरे विश्व में हो.