santosh bhartiyaपुणे के एक एनजीओ की सलाह पर, जो एक इंजीनियर चलाते हैं, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को संभाल रहे नोटों को रद्द करने का फैसला लिया है. हो सकता है यह ख़बर सही हो. इसके लिए मोदी जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने कई कहावतों को एक साथ चरितार्थ कर दिया. मोहम्मद बिन तुग़लक़ का नाम इतिहास में बड़े आदर से लिया जाता है. इसी तरह कालिदास का नाम भी इतिहास में बड़े आदर से लिया जाता है.

मेरी प्रार्थना है कि प्रधानमंत्री मोदी का नाम इतिहास में उस आदर से न लिया जाए, पर कुछ सवाल तो हैं, जो आज प्रधानमंत्री सहित सारी सरकार से पूछना आवश्यक हो गया है. क्या देश के सारे अर्थशास्त्री, देश या विश्‍व की अर्थव्यवस्था को जानने वाले लोग बुद्धिहीन हो गए, जो पुणे के एक एनजीओ, जिसका दावा है कि उसका रिश्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से है और देश की अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए जिसने अपने एक इंजीनियर साथी की मदद से देश की अर्थव्यवस्था के संपूर्ण परिदृश्य को बदल दिया.

क्या वो अर्थशास्त्री, जो वित्त मंत्रालय से जुड़े हैं या देश के महान वकील, जो सुप्रीम कोर्ट में अक्सर मुक़दमे जीतते हैं, अरुण जेटली जो आज देश के सबसे बड़े अर्थशास्त्री हैं, वित्त मंत्रालय का भार संभालते हैं, क्या उन्होंने प्रधानमंत्री जी को ये नहीं बताया कि देश का 90 प्रतिशत ब्लैकमनी शेयर्स, सोने के बिजनेस और रीयल इस्टेट के बिजनेस में इन्वॉल्व है. सिर्फ 10 प्रतिशत ब्लैकमनी कैश के रूप में देश में चल रहा है, जिसमें ज्यादातर छोटे और मध्यम दर्जे के व्यापारी और वे सारे लोग, जो इस देश में अपनी सुरक्षा के लिए पचास हज़ार, एक लाख रुपए रखते हैं, ताकि वक्त ज़रूरत में उनके काम आ सके.

मोदी जी के इस क़दम से वो सारे लोग बच गए, जो ब्लैकमनी का संचालन करते हैं, जो समानांतर अर्थव्यवस्था का संचालन करते हैं. अर्थव्यवस्था का संचालन करने वालों का पैसा बेनामी कंपनियों के एकाउंट्स में, बैंक में सुरक्षित है और जो उससे बड़े हैं, उनका सारा पैसा स्विट्जरलैंड, पनामा, मॉरीशस जैसे टैक्स हैवेन और कालेधन के लिए स्वर्ग माने जाने वाले अफ्रीक़ी देशों तथा उन जगहों पर, जो सारी दुनिया के ब्लैकमनीज़ संचालित करने वालों के लिए स्वर्ग है, वहां सुरक्षित है.

देश की ब्लैकमनी या समानांतर अर्थव्यवस्था का संचालन करने वाले डॉलर और पाउंड में डील करते हैं, भारतीय मुद्रा में डील नहीं करते हैं. प्रश्‍न उठता है कि मोदी जी ने इन लोगों के ऊपर हाथ क्यों नहीं डाला? क्या ये पैसा जो देश के कालेधन के 90 प्रतिशत को कंट्रोल करता है, स़िर्फ इसलिए हाथ नहीं डाला कि उसकी मदद आनेवाले चुनाव में कोई एक राजनीतिक दल लेना चाहता है? क्या वित्त मंत्रालय ने इसका अंदाज़ा लगाया है कि दो हज़ार रुपए का नोट, जो अब भारतीय बाज़ार में सरकार द्वारा लाया गया है, वह अगले पांच से दस साल में किस तरह की अर्थव्यवस्था का आधार बनेगा?

क्या हम एक नए इन्फ्लेशन के दौर में प्रवेश कर गए हैं, क्योंकि इन्फ्लेशन का सीधा रिश्ता प्रिंटिंग ऑफ हायर इनोमिनेशन नोट्स और इन्फ्लेशन के बीच है. और हाइपर इन्फ्लेशन बल्कि कहें कि देश इन्फ्लेशन तथा हाइपर इन्फ्लेशन के दौर में प्रवेश कर गया है. अब तक हम जिस विश्‍वव्यापी आर्थिक मंदी से बचते आए हैं, क्या इस ़फैसले ने हमें उस विश्‍वव्यापी आर्थिक मंदी के दौर का अगुआ तो नहीं बना दिया है. एक जानकारी के मुताबिक, अमेरिका हमारी अर्थव्यवस्था को तोड़ने की बहुत दिनों से कोशिश कर रहा था. उसके लिए आश्‍चर्य का विषय था कि कैसे भारत की अर्थव्यवस्था विश्‍वव्यापी आर्थिक मंदी का शिकार होने से बच गई और उसने इस बार हमें समझदारी के साथ तोड़ दिया.

अब तक बचने का एक ही बड़ा कारण था कि हम अपनी अर्थव्यवस्था को यानी हिन्दुस्तान के लोग अपनी अर्थव्यवस्था को अपनी ताक़त के साथ, अपने सेल्फ गवर्नेंस के तरी़के से संभाल लेते थे. इस फैसले से हम वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ द्वारा निर्देशित अर्थव्यवस्था के एक पिछलग्गू अगुआ बन गए हैं. हमारी अर्थव्यवस्था भी अब विश्‍वव्यापी अर्थव्यवस्था का एक घटिया अंग बन गई है. हम उस मंदी के सबसे सशक्त हिस्सेदार बनकर उभरने वाले हैं. अगर हमने तत्काल करेक्टिव मेजर्स नहीं उठाए या भूल को सुधारने की कोशिश नहीं की, तो हम अमेरिका या यूरोप जैसी आर्थिक मंदी का शिकार होने से बच नहीं पाएंगे.

भारत में काग़ज़ के नोटों पर आधारित जिस ब्लैकमनी की बात या टेरेरिस्ट को जानेवाले पैसे की बात भारत सरकार या प्रधानमंत्री कर रहे हैं, स़िर्फ हम इतना समझना चाहते हैं कि अगर ये पैसा बंद हो जाएगा, तो क्या टेरेरिस्टों के पास बाहर से पैसा आना रुक जाएगा? क्या हमारे यहां हमले रुक जाएंगे? क्या हमारे यहां हथियार बंटने बंद हो जाएंगे? मैं जानता हूं कि इसका उत्तर सरकार हमें नहीं देगी, लेकिन मैं इसका उत्तर देना चाहता हूं कि ऐसा नहीं होगा क्योंकि आतंकवादियों की अर्थव्यवस्था हमारे नोटों से नहीं चलती.

आप जो भी नोट लाएंगे, उनसे हथियार नहीं ख़रीदे जाते. हथियार आते हैं, आप उन हथियारों को रोक नहीं पाते, क्योंकि उन हथियारों को लाने में हमारी ही व्यवस्था के कुछ लोग शामिल हैं. सरकार को जिन चीजों पर चाक-चौबंद होना चाहिए, वहां सरकार निष्क्रिय साबित हो रही है. सरकार स़िर्फ उन सवालों से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है, जो सवाल हिन्दुस्तान के लोगों में विकास और विकास के मॉडल को लेकर हैं, नौकरियों व लोकतांत्रिक व्यवस्था को बदलने की कोशिशों को लेकर हैं, कश्मीर के लोगों को लेकर हैं, बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य को लेकर हैं.

जिन वादों के ऊपर मौज़ूदा सरकार आई थी, उनमें से कितने वादे पूरे हुए, इसका कोई लेखा-जोखा न सरकार के पास है और न ही उन अर्थशास्त्रियों के पास, जो सरकार से जुड़े हैं. ढिंढोरची मीडिया के पास इन सवालों के जवाब तो हैं ही नहीं. हम देश में धीरे-धीरे एक अराजकता का माहौल पैदा करने के हिस्सेदार बनते जा रहे हैं.

कहीं ऐसा न हो कि इस फैसले से देश में शादी इंडस्ट्री, खाने-पीने का उद्योग, जिसमें किसान का सामान ख़रीदा और बेचा जाता है, जिसमें छोटे स्तर के काम करने वाले, जिनमें सब्जी, रिक्शे वाले, टैक्सी वाले हैं, जितने मंझोले और छोटे व्यापारी हैं, उनका काम दो साल के भीतर ख़त्म हो जाए. मल्टीनेशनल कंपनियां, जिस मॉल कल्चर को सालों से हिन्दुस्तान में लाने की कोशिश कर रही थीं, उसे एक झटके में ले आया गया है. उस मॉल कल्चर के आने से हमारे देश में करोड़ों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे और उसका परिणाम कहीं बिगड़ी हुई कानून व्यवस्था के रूप में हमें न देखने को मिले.

आज सबसे ज्यादा परेशान वो लोग हैं, जिनका इस ब्लैकमनी के साम्राज्य से कोई लेना- देना नहीं है, जो अपनी मुसीबत के समय दस-बीस-चालीस हज़ार या एक लाख रुपए अपने घर में रखते हैं बड़े नोटों के रूप में क्योंकि छोटे नोट जगह ज्यादा घेरते हैं, उन पर सरकार ने ये प्रहार किया है. 90 प्रतिशत ब्लैकमनी चलाने वाले जो कुछ लोग हैं, उनके ऊपर सरकार का कोई प्रहार नहीं हुआ.

वो सुरक्षित हो गए और इस समय मुस्कुराते हुए इस देश की राजनीति को सौ प्रतिशत अपने कब्जे में लेने की योजना बनाते हुए शराब की पार्टियां कर रहे होंगे. अगर कहीं ईश्‍वर है तो मेरी उससे प्रार्थना है कि मेरी ये सारी शंकाएं निर्मूल साबित हों और ये चेतावनियां कूड़े के ढेर में चली जाएं. पर अफसोस ऐसा नहीं होने वाला और ज्यादा से ज्यादा स़िर्फ कुछ महीने चाहिए और उन दो महीनों के भीतर इन चेतावनियों के सत्य होने की शुरुआत हो जाएगी, जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा.

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