राहत पैकेजों से अकालग्रस्त बुंदेलखंड को कोई राहत नहीं मिल रही है. राहत पैकेजों में भारी घोटाले की खबरें सामने आ रही हैं. किसानों के राहत के लिए आए पैकेज से नेता, अफसर, ठेकेदार और दलाल मालामाल हो रहे हैं. बुंदेली समाज के एक सर्वेक्षण में इसका सनसनीखेज खुलासा हुआ है. बुंदेली समाज के संयोजक और रोटी-बैंक के प्रणेता तारा पाटकर ने उस सर्वेक्षण के आधार पर रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि 91 प्रतिशत लोगों ने माना है, उन्हें कोई राहत नहीं मिली है. 98.1 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि राहत पैकेज किसानों का क्षेत्र से हो रहा पलायन रोक नहीं पाया. सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि बुंदेलखंड के 70 प्रतिशत गांव खाली हो चुके हैं.
तारा पाटकर ने सर्वेक्षण का हवाला देते हुए बताया कि 98.6 फीसदी लोगों ने बताया है कि तालाबों और कुओं व अन्य परम्परागत जलस्त्रोतों को बचाने और उन्हें संरक्षित करने के लिए सरकारों ने कोई सार्थक प्रयास नहीं किए. अब कागजों में भी मात्र चार हजार तालाब ही बचे दिख रहे हैं. सर्वे में शत प्रतिशत लोगों ने माना कि 50 लाख से अधिक पशुधन मौत के मुहाने पर है. पशुओं के लिए सरकार की तरफ से भूसा चारा और पानी की कोई व्यवस्था नहीं की गई है. इस वजह से रोजाना हजारों पालतू पशु मर रहे हैं. 94.9 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि बुंदेलखंड के ह्रदयस्थल महोबा आ रहे पानी एक्सप्रेस को झांसी से लौटा देना अखिलेश सरकार का सबसे गलत फैसला था, जिसने राहत पैकेज वितरण के राजनीतिक लाभ को धो डाला.
सर्वेक्षण में एक हजार लोगों से बातचीत की गई, लेकिन एक व्यक्ति भी ऐसा नहीं मिला जिसने बिजली व्यवस्था से अपनी परेशानी का जिक्र न किया हो. जनता बिजली कटौती, मनमाने लोड व बिलों से बुरी तरह त्रस्त है. 85 फीसदी लोगों ने कहा कि अखिलेश सरकार का राहत पैकेज वास्तविक जरूरतमंदों को नहीं मिल रहा है. सपा के लोग अपने लोगों और नाते रिश्तेदारों के बीच राहत पैकेज बंटवा रहे हैं. 90.9 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि बुंदेलखंड संसाधनों की कमी से नहीं, बल्कि भारी भ्रष्टाचार से जूझ रहा है.
बुंदेलखंड के लोग राहत पैकेज के नाम पर अब तक आए धन का पूरा ब्यौरा मांग रहे हैं. राहत पैकेज में भ्रष्टाचार की सीबीआई से जांच कराने की मांग की जाने लगी है. मांग हो रही है कि राहत पैकेज के तहत बुंदेलखंड आ रहे धन की निगरानी रखने के लिए जिला और तहसील स्तर पर वकीलों, पत्रकारों और सम्मानित नागरिकों की निगरानी समिति बनाई जाए. 92.5 प्रतिशत लोगों ने माना कि अकाल झेल रहे लोग अब उसकी राहत के नाम पर भ्रष्टाचार झेल रहे हैं. तारा पाटकर ने कहा कि एक से 15 मई के बीच मध्य बुंदेलखंड के सभी सात जिलों महोबा, हमीरपुर, बांदा, झांसी, ललितपुर, उरई-जालौन व चित्रकूट में सर्वेक्षण किया गया था. इसके अलावा एक हजार लोगों से फोन पर बातचीत की गई.
पाटकर कहते हैं कि जो राहत सामग्री बांटी भी गई वह अत्यंत घटिया थी. दाल में घुन लगा मिला. आलू सड़ा हुआ था. मिल्क पाउडर और आटा की क्वालिटी अत्यंत घटिया थी. शिकायत पर प्रशासन ने जांच का आदेश भी दिया है. बुंदेलखंड में बांटे जा रहे राहत पैकेट में आटा, तेल, घी, मिल्क पाउडर, चने की दाल और आलू दिए जा रहे हैं. बांदा के आवास विकास कॉलोनी में इसकी पैकिंग हो रही है. बताया जा रहा है कि मजदूर जूते पहन कर दाल के ढेर पर चढ़ते हैं और उसी दाल को पैक कर देते हैं. राहत पैकेट में भी कमीशनबाजी हो रही है.
कमीशन के चक्कर में घटिया सामग्री पैक की जा रही है. पैकेट को सड़क किनारे गंदगी के बीच रखा जाता है. यह सामग्री जौनपुर के एक सप्लायर से सप्लाई की जाती है. इसमें आटा, सरसों तेल, देसी घी, मिल्क पाउडर और चने की दाल घुन लगी हुई है. आलू ऐसा है कि जिसे पशु भी न खाए.
पानी के लिए अलग मारामारी हो रही है. झांसी, महोबा, हमीरपुर, बांदा, जालौन, ललितपुर और चित्रकूट में पानी को लेकर त्राहिमाम मचा हुआ है. हैंडपंप पहले से खराब पड़े हैं और कुओं में पानी तलहटी में चला गया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुंदेलखंड को राहत देने के लिए प्रदेश सरकार को 1,304 करोड़ रुपये दिए और एक हफ्ते में किसान के खाते में धनराशि भेजने को कहा था, मगर किसानों के खातों में एक रुपया भी जमा नहीं हुआ. हमीरपुर समेत कई जिलों में किसानों को रोटी के लाले पड़े हुए हैं और किसानों का पलायन लगातार जारी है. बुंदेलखंड में 40 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है. इनमें से कई आत्महत्याएं हैं.
पलायन का आंकड़ा भयावह
सूखा और अकालग्रस्त बुंदेलखंड से लोगों के पलायन का आंकड़ा भयावह है. बुंदेलखंड के बांदा से सात लाख 37 हजार 920, चित्रकूट से तीन लाख 44 हजार 801, महोबा से दो लाख 97 हजार 547, हमीरपुर से चार लाख 17 हजार 489, उरई (जालौन) से पांच लाख 38 हजार 147, झांसी से पांच लाख 58 हजार 377 और ललितपुर से तीन लाख 81 हजार 316 लोगों का पलायन हुआ. बुंदेलखंड के मध्य प्रदेश से जुड़े जिलों में टीकमगढ़ से पांच लाख 89 हजार 371, छतरपुर से सात लाख 66 हजार 809, सागर से आठ लाख 49 हजार 148, दतिया से दो लाख 901, पन्ना से दो लाख 56 हजार 270 और दतिया से दो लाख 70 हजार 477 किसान और कामगार आर्थिक तंगी और भुखमरी की वजह से अन्यत्र शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं.
जरूरतमंदों के पेट भर रहा है रोटी-बैंक
पूर्व पत्रकार तारा पाटकर द्वारा शुरू किए गए रोटी-बैंक अभियान से इलाके के लोगों को काफी राहत है. रोटी-बैंक के जरिए मुफलिसी के शिकार लोगों के साथ-साथ उन किसान परिवारों को भी भोजन मुहैया कराया जा रहा है जो सूखे से त्रस्त होकर लाचार हैं. महोबा से शुरू हुई रोटी-बैंक मुहिम पूरे बुंदेलखंड और प्रदेशभर में फैल गई है. अब रोटी-बैंक’ जरूरतमंद लोगों के घर-घर जाकर उन्हें घर की बनी रोटी और सब्जी मुहैया करा रहा है. रोटी-बैंक अभियान से जुड़े लोग घर-घर जाकर लोगों से दो रोटी दान करने को कहते हैं, ताकि जरूरतमंद और भूखे लोगों को खिलाया जा सके. यह अभियान अब एक आंदोलन में बदल चुका है. इस मुहिम के जरिए हर रोज कम से कम एक हजार जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाया जा रहा है. अभियान के प्रणेता तारा पाटकर बताते हैं कि इस मुहिम की शुरुआत भिखारियों और रेलवे स्टेशन पर दिखने वाले गरीबों को खाना खिलाने के इरादे से हुई थी. लेकिन अब महोबा के अधिकतर हिस्सों में रोटी-बैंक की मुहिम ने रफ्तार पकड़ ली है. अस्पताल के बाहर मरीजों के तामीरदार, सड़क पर रहने वाले गरीब, रेलवे स्टेशन के इर्द-गिर्द रहने वाले गरीब या झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोग, सबों को रोटी-बैंक के जरिए खाना उपलब्ध हो रहा है. पाटकर कहते हैं कि हम तब तक ज्यादा आगे नहीं बढ़ना चाहते जब तक कि हम यह सुनिश्चित न कर लें कि खाना बरबाद नहीं होगा और यह जरूरतमंदों तक पहुंचेगा.