जंतर-मंतर पर प्रतिदिन धरने होते हैं और कई लोग अपनी अलग-अलग मांगों को लेकर प्रदर्शन करते रहते हैं. जंतर-मंतर को तो वैसे दूसरी वजह से जाना जाता है, लेकिन आज कल वह धरना-प्रदर्शन के लिए ही प्रसिद्ध है. कई लोग और अलग-अलग संगठन अपनी मांगों को लेकर जंतर-मंतर पर एक या दो दिन के लिए धरने पर बैठते हैं, तो वहीं कुछ लोग अपनी मांगों को लेकर कई दिनों, महीनों और वर्षों से वहां पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं. आंदोलन करने के भी कई तरीके हैं. कुछ संगठन, अपनी मांगों को लेकर बड़ी संख्या में लोगों के साथ वहां पहुंचते हैं, तो कोई अकले ही अपनी मांग पूरी होने की आस में बैठा रहता है.
धरने पर बैठे लोगों ने अपने आंदोलन का नाम भी कई तरह का रखा हुआ है. ऐसे ही महाराष्ट्र के एक व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.
जूता मारो अभियान
महाराष्ट्र के मछींद्रनाथ सूर्यवंशी ने अपने आंदोलन का नाम जूता मारो आंदोलन रखा है. जब संवाददाता ने उनसे पूछा कि आपने अपने आंदोलन का नाम जूता-मारो आंदोलन क्यों रखा है, तो उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है और बिना रिश्वत के एक भी काम नहीं होता है.
कोर्ट कचहरी से लेकर सरकारी दफ्तरों तक जब तक आप रिश्वत नहीं देंगे तब तक आपका काम नहीं हो सकता. पहले हम कभी किसी अधिकारी या नेता पर कहीं भीड़ में उन पर अपना विरोध जताने के लिए उन पर जूता फेंकते थे, लेकिन अब मेरा मानना है कि कुछ भी हो जाए कोई कानून आए जाए ये भ्रष्टाचारी सुधरने वाले नहीं है, इसलिए भ्रष्टाचारी अधिकारी और नेताओं को जूता मारो, जिससे उनको भरी सभा में लज्जा महसूस हो.
एक अदद छत और 30 साल से चला आ रहा इंतजार
ऐसे ही जंतर-मंतर पर अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे दूसरे व्यक्ति श्रवण कुमार लांबा से हमने बात की. लांबा 1985 की स्लम आवास योजना को लागू कराने की मांग को लेकर धरने पर 5 जनवरी 2016 से बैठे हैं. उन्होंने जो हमें बताया उसको सुनकर आप हैरान हो जाएंगे. श्रवण कुमार लांबा ने बताया कि डीडीए की एक स्कीम आज से तीस साल पहले 1985 में स्लम आवास योजना के नाम से आई थी.
इस योजना के अन्तर्गत दिल्ली के हजारों झुग्गी झोपड़ी वालों ने डीडीए की इस योजना में तीन-तीन हजार रुपये जमा कराए थे, लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि तीस साल बीत जाने के बाद भी झुग्गी झोपडियों में रह रहे लोगों को फ्लैट नसीब नहीं हुआ. उनका कहना है कि उन्होंने इस विषय में संबंधित नगर निगम के शासन और प्रशासन को सैकड़ों चिटि्ठयां लिखीं मगर किसी का भी कोई जवाब नहीं आया. गूंंगे बहरे निगम के शासन और प्रशासन में कुंभकर्ण की नींद में सोए हुए लोगों को जगाने के लिए मैं 5 जनवरी 2016 से जंतर-मंतर पर दिल्ली वासियों के मांग को लेकर अनिश्चित काल धरने पर बैठा हूं.
आगे उन्होंने कहा कि उनका यह धरना तब तक जारी रहेगा जब तक स्लम आवास योजना के तहत लोगों को फ्लैट या प्लॉट नहीं मिल जाता. सभी सरकारें गरीबों और झुग्गी-झोपड़ी वालों की बातें, तो खूब करती हैं, लेकिन उनके लिए काम कोई नहीं करता. वह चाहे भाजपा की सरकार हो, कांग्रेस की सरकार हो या नई नवेली दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी की सरकार हो. डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) केंद्र सरकार के अधीन है. आम आदमी पार्टी जो हर मुद्दे पर धरना देती है और धरना प्रदर्शन के लिए भी जानी जाती है, लेकिन उसने भी आज तक इस मुद्दे को लकेर धरना प्रदर्शन नहीं किया.
1985 से लेकर अब तक सबसे अधिक देश में कांग्रेस सरकार रही है, जो पार्टी गरीबी हटाओ के नारे पर सालों तक देश पर राज किया है. तीसरे मोर्चें की भी देश में सरकार रही है, लेकिन झुग्गी-झोपड़ी वालों के लिए इस योजना के तहत मिलने वाले फ्लैट के लिए उन्होंने भी कुछ नहीं किया. वर्तमान में केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए की सरकार है. अब देखना है कि मोदी सरकार भी स्लम आवास योजना के तहत मिलने वाले गरीबों के आशियाने दिलाती है या नहीं.