सालभर नहीं हुए आयोजन, बजट हो गया लेप्स
मुस्लिम संस्थाओं में नियुक्ति की उम्मीदों पर लगने लगे ताले
Corona काल के कहर ने कई तबाही और मुश्किलों के हालात बनाए हैं। इसी लहर में प्रदेश के मुस्लिम संस्थाएं भी आने से नहीं बची हैं। कार्यक्रमों को लेकर छाए रहे सन्नाटे ने अदब के इदारे को मिलने वाले बजट को वापस करने के हालात बना दिए हैं। इसी बीच गुपचुप तरीके से इस संस्था के वजूद को भी दांव पर लगा दिया है। इसके आगे चलते हुए अब अदब की इस दुकान पर ताला लगता नजर आ रहा है। हालात आगे बढ़कर अन्य मुस्लिम संस्थाओं की तरफ भी बढ़ते दिखाई देने लगे हैं।
सूत्रों का कहना है कि पिछले मार्च से सभी साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियां बंद पड़ी हुई हैं। इसका असर मप्र उर्दू अकादमी से होने वाले आयोजन पर भी पड़ा है। अकादमी से पिछले मार्च से कोई मुशायरा, कवि सम्मेलन, सम्मान, साहित्यकारों की मदद या प्रदर्शनी आदि के कार्यक्रम नहीं हो पाए हैं। नतीजा यह है कि पिछले वित्तीय वर्ष में अकादमी को जारी हुआ करीब दो करोड़ रुपए का बजट इस्तेमाल नहीं हो पाया है। वित्तीय वर्ष के समापन के करीब आते इस राशि के खर्च होने की उम्मीद भी कम ही हैं। ऐसे में ये बजट राशि लेप्स होने की कगार पर पहुंच गई है।
वजूद भी गया
करीब पांच दशक पुरानी देश भर में उर्दू अकादमी की व्यवस्था मप्र में बिखरती नजर आ रही है। अब तक यहां अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और कार्यकारिणी अकादमी का संचालन करते आए हैं। लेकिन दो दिन पहले जारी हुए आदेश में अकादमी की व्यवस्था निदेशक के हवाले कर दी गई है। मप्र संस्कृति परिषद ने ४ फ़रवरी को जारी आदेश में व्याख्याता नुसरत मेहदी को निदेशक पद पर प्रतिनियुक्ति पर बुलाया है। दो वर्ष के लिए की गई इस प्रतिनियुक्ति के दौरान मेहदी के वेतन, भत्ते आदि संस्कृति विभाग ने भुगतान करने की सहमति दी है। मप्र उर्दू अकादमी की व्यवस्था में बदलाव कर की गई इस नियुक्ति ने उर्दू अकादमी को संस्कृति विभाग की एक शाखा तक समेट दिया है। साथ ही मुस्लिम नेताओं, बुद्धिजीवियों, साहित्यिक लोगों को मिलने वाली नियुक्ति के रास्ते रोक दिए हैं।
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मुश्किल में बाकी संस्थाएं भी
सरकार बदल को साल भर के करीब समय होने वाला है। लेकिन इस दौरान निगम मंडल की नियुक्ति की राहें रुकी हुई हैं। इस बीच मुस्लिम संस्थाओं में भी ओहदेदारों का खालीपन छाया हुआ है। इस स्थिति ने संवैधानिक व्यवस्था वाले अल्पसंख्यक आयोग, अकीदत के ईदारे प्रदेश हज कमेटी, अरबों की सम्पत्ति वाले मप्र वक्फ बोर्ड और तालीम से जुड़े मप्र मदरसा बोर्ड की व्यवस्थाओं को प्रभावित कर रखा है।