कोविड 19 महामारी के पहले भी, मानव जाति ने कई तरह की तबाही देखी है। एंटोनिन प्लेग और जस्टिनीयनिक प्लेग की प्राचीन महामारियों से लेकर मध्य युग के ब्लैक डेथ और स्मॉल पॉक्स ही नहीं बल्कि बीसवीं शताब्दी तक आते-आते स्पेनिश फ्लू तक इसकी एक लंबी फ़ेहरिस्त है। अलग-अलग सभ्यता, अलग-अलग दौर में बड़े पैमाने पर मृत्यु और विनाश का गवाह रही है। इस कड़ी में अगर प्राकृतिक बाढ़ और अकाल की चपेट में आई मौतों को भी जोड़ लें तो तस्वीर और भी भयावह और त्रासदीपूर्ण हो जाती है। वर्तमान में कोरोना वायरस संक्रमण की बात करें तो इस आपदा ने अभी तक 15 मिलियन लोगों को अपने चपेट में ले लिया है और जिसकी वजह से आधे मिलियन से भी ज्यादा लोगों की जान चली गई है। यह आँकड़े उन व्यापक मौतों और विनाश की याद दिलाते हैं जो मनुष्य सहस्त्राब्दियों से झेलता चला आ रहा है।
समय-समय पर मानव सभ्यता पर आए इन त्रासदियों ने जीवन की अनिश्चितताओं को तो गहराया ही साथ ही इससे वैश्विक स्तर पर आय में असमानता और लिंगानुपात में भी एक बड़ा अंतर देखने को मिला है। लेकिन, कहते हैं न कि हर बात का एक दूसरा पक्ष भी होता है। महिलाओं के नज़रिये से देखें तो यह उनके लिए एक बड़े अवसर के रूप में रहा। क्योंकि बीते तमाम महामारियों और युद्धों के दौरान लाखों पुरुषों ने अपने प्राण गँवाये इससे उन सार्वजनिक स्थानों पर जहाँ आम तौर पर तमाम जिम्मेदारियां पुरुषों के काँधे पर हुआ करती थीं, वहाँ भी महिलाओं को उभरने का एक अवसर मिला। जैसे कि 1347-1352 CE के बीच ब्लैक डेथ के प्रकोप ने मध्ययुगीन यूरोप के भूगोल को पूरी तरह से बदल कर रख दिया था। जिसने हालांकि पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित किया था लेकिन, इससे महिलाओं को भी बीमार और घायल लोगों की देखभाल के लिए पुरुष डॉक्टरों के साथ नर्स के रूप में काम करने का मौका मिला। अफसोस की बात है कि चर्च के दखल के बाद इस पर रोक लगाने की कोशिश हुई और तमाम सामंती अभिजात वर्ग ने इसमें अड़ंगा लगाने का प्रयास किया।
इसी प्रकार, प्रथम विश्व युद्ध के समय जब स्पैनिश फ्लू (1918) की घटना के बाद भी श्रमिकों और कामगारों की भारी कमी पैदा हुई थी तब भी महिलाओं को राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय और महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर मिला था। गौरतलब है कि उसके बाद ही अमेरिका में 19 वें संविधान संशोधन का समर्थन किया गया। जिसने कालांतर में संयुक्त राज्य में महिलाओं को संघ बनाने का अधिकार दिया। इसे अमेरिकी इतिहास में वूमेन सफ़रेज मूमेंट (महिलाओं के मताधिकार आंदोलन) के नाम से जाना जाता है और इसी अभियान के बाद स्त्रियों ने वहाँ मतदान के अधिकार भी प्राप्त किये।
वर्तमान समय में भारत की बात करें तो यहाँ स्वास्थ्य कर्मचारियों की सूची में महिलाओं की संख्या काफी तादाद में है। क्योंकि वे स्वास्थ्य सेवा के सभी स्तरों पर बराबर की भागीदार हैं। जिनमें सामाजिक कार्यकर्ता और देखभालकर्ता के रूप में समुदायों के साथ बातचीत से लेकर आंगनबाड़ी की महिलायें भी शामिल है। वे चिकित्सा अनुसंधान और नित नए प्रयोगों पर तो काम कर ही रही हैं साथ ही कोरोनावायरस फैलने की प्रवृत्ति और वजहों की पहचान कर और महामारी के लिए प्रभावी निदान और उपाय तैयार करने में भी सहयोग दे रही हैं। इतना ही नहीं संक्रमण की रोकथाम और उसके बारे में समय पर पता लगाने से लेकर नए टीकाकरण के विकास की रणनीतियां बनाने में भी वो सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। स्वास्थ्यकर्मियों के अलावा इस संकट के समय में पुलिस बल से लेकर मीडियाकर्मी के रूप में भी ये महिलायें बढ़ चढ़ कर अपना योगदान दे रही हैं।
वैश्विक राजनीतिक नेताओं की बात करें तो महिला होते हुए भी राज्य के प्रभावी प्रमुख के रूप में भी वे बेहतरीन काम कर रही हैं। जैसे तमाम वैश्विक नेताओं की भीड़ में जर्मनी की एंजेला मर्केल, न्यूजीलैंड की जैसिंडा अर्डर्न और नॉर्वे में एर्ना सोल्बर्ग कोविड -19 के प्रकोपों का कुशलतापूर्वक इलाज और उपचार करने की दिशा में अपने देश का सफलतापूर्वक नेतृत्व कर रही हैं। कम संक्रमण के मामले और अभी भी कम मृत्यु दर के साथ, ये देश अन्य देशों के लिए एक मिसाल बने हुए हैं। इन सबके बीच न्यूजीलैंड ने तो अपनी सक्रिय संकट प्रबंधन नीतियों के कारण कोविड -19 मुक्त राष्ट्र होने का अनूठा गौरव भी हासिल कर लिया है।
फिर भी, इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि आज भी महिलाएं सामाजिक इकाई के रूप में निचले पायदान पर ही बनी हुई हैं। वे आज दुनिया भर के कई देशों में हिंसक अपराधों, अत्यधिक आय असमानता और संगरोध केंद्रों में भेदभाव से पीड़ित हो रही हैं। आज आप आम घरों में देखें तो इस बात पर शायद ही किसी को संदेह हो कि घर की देखभाल की तमाम जिम्मेदारी एक महिला के काँधे पर ही होती है। हमारा इशारा गृहनियों के काम-काज की तरफ है। अपने परिवारों में मुख्य देखभालकर्ता के रूप में मानव जीवन की गरिमा को बनाए और बचाये रखने में उनके अद्भुत योगदान के बावजूद, उनके सेवा भाव को अक्सर पितृसत्तात्मक समाजों में कम प्राथमिकता दी जाती है। इसके अलावा बीमार और घायलों की देखभाल के लिए ज़्यादा संवेदनशीलता के साथ प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों के रूप में भी उन्हें अभी भी समाज के मूल्यवान नागरिकों के रूप में श्रेय दिया जाना बाकी है। अपने कौशल और नौकरी में समर्पण के बावजूद, महिलाओं को अक्सर स्वास्थ्य देखभाल उद्योग में कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है, और उनकी शिक्षा और कौशल के बावजूद उन्हें कम भुगतान वाली नौकरियों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
यह आलेख कोविड -19 के साथ मानव इतिहास में दर्ज़ किये गए विभिन्न महामारी से लड़ने में महिलाओं की भूमिका पर केंद्रित है। आपदा प्रबंधन के समय महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्हें सम्मानित करने की जरूरत है और साथ ही यह समझने की भी आवश्यकता है कि महिलाओं के सहयोग, समर्पण और साथ के बिना विकास, तरक्की और आधुनिकता के हर दावे खोखले हैं। अब यह स्थापित हो चुका है कि महामारी के दौरान देखभालकर्ताओं, स्वास्थ्य चिकित्सकों, सार्वजनिक नीति प्रबंधकों और राजनीतिक नेताओं की विभिन्न भूमिकाओं में भी महिलाओं का निर्णायक योगदान है। इस बात को तथ्यों के आधार पर मजबूती से और आगे लाने की आवश्यकता है। ताकि यह दुनिया जान सके कि इस संकट के समय में महिलाओं की भागीदारी और अहमियत किसी से भी कम नहीं है।
(डॉ. संतोष भारती, असिस्टेंट प्रोफेसर, अंग्रेज़ी विभाग, दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय)