congress कांग्रेस के लोग जयराम रमेश को नया कांग्रेसी बता रहे हैं. उनका कहना है कि 2004 में जयराम रमेश कांग्रेसी नहीं थे और अब वो कांग्रेस को अप्रासंगिक होने के खतरे गिना रहे हैं. लेकिन क्या जयराम रमेश के सवाल गलत हैं? इसका उत्तर कांग्रेस के लोग क्या देते हैं, नहीं पता, लेकिन इसका उत्तर जनता क्या देती है, ये ज्यादा महत्वपूर्ण है.

जिन सवालों को जयराम रमेश उठा रहे हैं, उन सवालों को भारतीय जनता पार्टी अमलीजामा पहना रही है. वो कांग्रेस के हर उस शख्स को अपने साथ लाने की योजना बना रही है, जो कांग्रेस को दोबारा खड़ा करने में योगदान दे सकता है. नीतीश कुमार का जाना भारतीय जनता पार्टी की सफलता नहीं है. ये लालू यादव की विफलता है, ऐसा माना जाना चाहिए. लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की कोशिश भारतीय जनता पार्टी कर रही है, उसकी चिंता कांग्रेस को क्यों नहीं हो रही है? अहमद पटेल का मामला अभी ताजा है. कांग्रेस के लोगों में एक बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि पार्टी का संगठन कहीं काम नहीं कर रहा है.

देश का कोई भी राज्य ऐसा नहीं है, जहां का प्रदेश संगठन सचमुच कोई काम कर रहा हो. इस वर्ष होने वाले कर्नाटक के चुनाव कांग्रेस के लिए शायद वाटरलू या पानीपत का मैदान साबित हो सकते हैं. कांग्रेस को लगता है कि उसकी सत्ता कर्नाटक में बहुत मजबूत है, पर शायद ऐसा है नहीं. कर्नाटक का बैलेंस कुमार स्वामी के पास है या दूसरे शब्दों में देवेगौड़ा जी के पास है और उन्हें अपमानित करने में कांग्रेस कोई कसर बाकी नहीं रख रही है. देवेगौड़ा या कुमार स्वामी का अगर इसी तरह अपमान होता रहा, तो ये लोग जाने-अनजाने भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने में हिचकेंगे नहीं.

उत्तर प्रदेश का संगठन मृतप्राय है? चुनाव से पहले राजबब्बर को कमान दे दी गई. राजबब्बर भीड़ बटोरते हैं, जाते हैं, घूमते हैं, दौड़ते हैं, पर संगठन खड़ा नहीं हो रहा है और इसका उत्तर कांग्रेस स्वयं नहीं तलाश रही है. बिहार का संगठन बर्बाद है. नीतीश कुमार की वजह से कांग्रेस को 40 सीटें मिल गईं, जिनमें 28 जीते. उनमें एक भी कोशिश कांग्रेस संगठन की नहीं थी.

राजस्थान का कांग्रेस संगठन वैसा ही लुंज-पुंंज है, लेकिन मध्यप्रदेश, राजस्थान या छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को इस बात का फायदा है कि वहां सिर्फ और सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले वो ही है और कोई तीसरी पार्टी है नहीं. आम आदमी पार्टी ने गुजरात और हिमाचल में चुनाव न लड़ने की घोषणा की है. शायद उन्होंने पहला सही कदम उठाया है.

लेकिन क्या कांग्रेस हिमाचल में चुनाव जीत पाएगी? क्या कांग्रेस गुजरात के आगामी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला कर पाएगी, ऐसा लगता नहीं है. शंकर सिंह वघेला को जिस तरह से कांग्रेस ने अपमानित कर निकाला और जिस तरह कांग्रेस वहां के तमाम विपक्षी लोगों से बातचीत नहीं कर रही है, नए उभरे पाटीदार नेताओं और दलित नेताओं से कांग्रेस का संपर्क नहीं है, ऐसी स्थिति को देखकर नहीं लगता कि कांग्रेस गुजरात में भारतीय जनता पार्टी से सत्ता छीन पाएगी. गुजरात में इस समय भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपने पराभव पर है. लोगों में उसकी साख बहुत खराब है. इसके बावजूद क्या कांग्रेस वहां कुछ कर पाएगी?

मध्यप्रदेश में कांग्रेस चुनाव जीत सकती है. 15 साल का शिवराज सिंह सरकार का कार्यकाल इस बार उन्हें काफी अलोकप्रियता दे गया है. किसान आन्दोलन और जमीन पर विकास के कामों में ढिलाई इसके प्रमुख कारण हैं. कांग्रेस का अपना संगठन यहां चरमराया हुआ है. कांग्रेस के जो नेता दिल्ली की राजनीति करते हैं, वो मध्यप्रदेश में रुचि ही नहीं रखते. वे केवल चुनाव के दौरान जाएंगे. लोग कहते हैं वो हारी हुई भारतीय जनता पार्टी की सरकार मध्यप्रदेश में दोबारा बनवा देंगे. ओड़ीशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान को ही ले लें, हर जगह कांग्रेस संगठन बहुत बुरी हालत में है. इस संगठन की पूछ परख केन्द्र के नेता नहीं कर रहे हैं.

राहुल गांधी के पास क्यों वक्त नहीं है कि वो राज्यों के संगठन को चुस्त-दुरुस्त कर सकें या वो करना नहीं चाहते या उन्होंने ये मान लिया है कि वो 2022 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करेंगे और तब तक वो विश्वाटन करेंगे. मतलब विश्व पर्यटन करेंगे, दुनिया में घूमेंगे, सीखेंगे, समझेंगे, सबकुछ करेंगे, लेकिन वो अपने संगठन को मजबूत नहीं करेंगे.

इस बार नौ अगस्त का भाषण देते हुए लोकसभा में सोनिया गांधी काफी कमजोर दिखाई दीं. शायद उनकी तबीयत खराब है. वो राहुल गांधी को सत्ता देना चाहती हैं, कांग्रेस अध्यक्ष बनाना चाहती हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के लोग नहीं चाहते कि राहुल गांधी अध्यक्ष बनें. बयान सब दे रहे हैं, पर कोई भी राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के फैसले का समर्थन नहीं कर रहा है. कांग्रेस ऐसे जाल में फंस गई है, जिसमें विचार की धार नहीं है, आगे बढ़ने की तेज इच्छा नहीं है और संगठन बनाने के लिए जिस कुशलता की आवश्यकता होती है, वो कुशलता नहीं है.

मेरे पास कांग्रेस कार्यकर्ता बहुत ज्यादा आते हैं. कांग्रेस के नेता भी मिलते हैं, बात करते हैं. सबमें आशा का अभाव है, इसीलिए जिसको जहां जगह मिल रही है, वो वहां तलाशने की कोशिश कर रहा है. कांग्रेस संगठन के अलावा किसी अन्य संगठन में अगर किसी भी कांग्रेस कार्यकर्ता को संभावना दिखाई देती है, तो मन से उधर चला जाता है. ये स्थिति 100 साल पुरानी कांग्रेस की है.

लोगों के मन में एक छोटी सी आशा है. शायद प्रियंका गांधी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की कमान संभालें, तो कांग्रेस दोबारा लड़ने के स्तर पर आ जाए. वो ये भी कहते हैं कि प्रियंका गांधी के आते ही भारतीय जनता पार्टी सरकार रॉबर्ट वाड्रा के ऊपर, जो उनके पति हैं, शिकंजा कस लेगी और तब प्रियंका गांधी फिर आगे बढ़ने से हिचक जाएंगी. सवाल प्रियंका गांधी और राहुल गांधी का नहीं है. सवाल उस तरीके का है, जिसमें ये दोनों कार्यकर्ता की बात कुछ कम, कुछ ज्यादा सुनते तो हैं, लेकिन उसपर अमल करने में हिचक जाते हैं. सोनिया गांधी लोगों से बातें करती हैं, पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देतीं. राहुल गांधी की प्रतिक्रिया किसी को समझ में नहीं आती. राहुल गांधी लोगों के नाम याद नहीं कर पाते. राहुल गांधी के सामने अमेठी में भी ये खतरा पैदा हो गया है. स्मृति ईरानी जी-जान से अमेठी को किस तरह राहुल मुक्त किया जा सके, इसकी योजना बनाने में लगी हुई हैं.

अब वो एक कदम और आगे बढ़कर नरेन्द्र मोदी की एक जिम्मेदारी संभालने लगी हैं. वो जिम्मेदारी है, सोनिया गांधी पर हमला करने की. ऐसी स्थिति में कांग्रेस का क्या हाल होगा? यहीं मुझे लगता है कि जयराम रमेश की चिंता काफी जायज है. कांग्रेस के लोग, जिन्हें हम सचमुच कांग्रेस कहते हैं, वो इतना तो निश्चित है कि भारतीय जनता पार्टी की तरफ नहीं जाएंगे, लेकिन वो कांग्रेस के लिए भी जी-जान से काम नहीं करेंगे. क्या इस स्थिति को तोड़ा जा सकता है? कांग्रेस का समर्थन कोई नहीं करता, क्योंकि मौजूदा बाजार आधारित आर्थिक नीतियां और गरीबों के खिलाफ सारे कदम कांग्रेस ने ही उठाए. नरसिम्हा राव ने जो किया, उसके लिए उन्हें क्षमा नहीं किया जा सकता.

वो इस तरह से अपना रास्ता बदल गए कि आने वाली कोई भी सरकार उसे सही करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. अब देश इतना ज्यादा बाजार के चंगुल में फंस चुका है कि चाहे भी तो नहीं उबर सकता. उसे जीना और मरना बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के साथ है, जहां लूट है, शोषण है, गरीबों का दमन है.

पर कांग्रेस संगठन लोकतंत्र के लिए आवश्यक है. कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं है, जिसकी पैठ सारे देश में हो. छोटा ही सही, लेकिन विरोध का स्वर होना आवश्यक है, जिसके लिए देश में कांग्रेस का जिंदा रहना बहुत जरूरी है. भारतीय जनता पार्टी के लोकतांत्रिक स्वरूप में विपक्ष का कोई स्थान नहीं है. लोकतंत्र बिना विपक्ष के अनाथ व्यक्ति की तरह से है, जिसके सामने कोई अवसर नहीं, कोई रास्ता नहीं, सिर्फ आत्महत्या एकमात्र चारा है. कांग्रेस कैसे जिंदा रहे, इसके बारे में कांग्रेस के लोग अगर नहीं सोचेंगे, तो कांग्रेस के लोग लोकतंत्र को समाप्त करने के लिए सबसे बड़े दोषियों की सूची में सबसे ऊपर होंगे.

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