पांच राज्यों में हुए चुनाव के नतीजों से पहले एक्जिट पोल आ चुके हैं, जिनमें कांग्रेस की बढ़त दिख रही है. इन एक्जिट पोल के नतीजों से उत्साहित कांग्रेस बिहार में सीट शेयरिंग के मामले में झुकने के बजाय अपना वाजिब हक लेने का भरसक प्रयास करेगी. 10 तारीख को दिल्ली में होने वाली यूपीए घटक दलों की बैठक में बिहार के मसले पर अलग से बातचीत होने की उम्मीद है. इस बैठक में भाग लेने के लिए तेजस्वी यादव और जीतन राम मांझी भी दिल्ली जा रहे हैं.
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गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का राजद के साथ समझौता था और उस चुनाव में कांग्रेस के 12 उम्मीदवारों ने अपना भाग्य आजमाया था जिसमें किशनगंज और सुपौल में पार्टी को कामयाबी मिली थी. बिहार कांग्रेस का दावा है कि पिछली बार की तुलना में इस बार जमीन पर पार्टी काफी मजबूत हुई है. विधायकों की संख्या बढ़ी है और नए सांगाठनिक ढांचे ने पार्टी में नई उर्जा का संचार किया है. पार्टी यह भी मानती है कि अपर कास्ट वोटर खासकर ब्राह्मण और राजपूतों का झुकाव बहुत तेजी से कांग्रेस की ओर हो रहा है. भाजपा के प्रति इन जाति समूहों की नाराजगी लगातार बढ़ रही है जिसका फायदा कांग्रेस को मिल रहा है.
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इसके अलावा, दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों में भी कांग्रेस का प्रभाव बढ़ रहा है. इसलिए कांग्रेस इस बार 12 से ज्यादा सीटों पर भाग्य आजमाना चाहती है. इसकी वजह यह है कि भाजपा और जदयू से नाराज कुछ बड़े नेता भी कांग्रेस की ओर उम्मीद भरी नजरें लगाए बैठे हैं. इसके अलावा, पप्पू यादव, मुकेश सहनी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे बड़े नेताओं को भी लग रहा है कि उनकी अंतिम उम्मीद कांग्रेस ही है. पार्टी नेता समीर सिंह कहते हैं कि कांग्रेस का प्रभाव चौतरफा बढ़ रहा है. राहुल गांधी के नेतृत्व में बिहार कांग्रेस आगामी चुनाव में सफलता का नया रिकार्ड बनाने जा रही है.
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सीटों की संख्या पर समीर सिंह का कहना है कि यूपीए का शीर्ष नेतृत्व इस काम को सहजता से निपटा देगा. इसके लिए चिंता करने की जरूरत नहीं है. समीर सिंह कहते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने जिस तरीके से जनता को ठगा है, उससे लोगों में जबरदस्त गुस्सा है. एक्जिट पोल में इसकी झांकी साफ दिखती है. कांग्रेस के जानकार सूत्र कहते हैं कि पार्टी चाहती है कि 15 सीटों पर भाग्य आजमाया जाए पर वार्ता के टेबल पर यह संख्या कहां आकर टिकती है, यह तो समय ही बताएगा. लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस इस बार बहुत झुक कर बात नहीं करेगी और कोशिश करेगी कि कम से कम अपनी पुरानी संख्या को बरकरार रखा जाए.