मुझे नहीं पता, इस बार क्या होगा? लेेकिन उसका पहला हिस्सा, जिसकी सूचना मुझे कांग्रेस के समर्थक उस बहुत बड़े वकील ने दी है, मैंने उसे क्रास चेक किया और वेरीफाई किया. मेरे सूत्रों ने मुझे बताया कि यह खबर सौ प्रतिशत सच है और भारतीय जनता पार्टी की सरकार अगले तीन महीने में प्रियंका गांधी के दरवाजे पर जांच कमेटी भेजने की योजना बना चुकी है.
देश के एक बड़े वकील, जो संसद के सदस्य रह चुके हैं, उनकी व्यथा मैं रखना चाहता हूं. उनका नाम मैं इसलिए नहीं ले रहा हूं, क्योंकि उनकी बात में कांग्रेस के बहुत सारे नेताओं और बहुत सारे कार्यकर्ताओं की बात शामिल है. वह सज्जन सोनिया गांधी के लिए उन अवसरों पर मददगार साबित हुए, जब श्रीमती सोनिया गांधी के सामने कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. उनका यह मानना है कि भारतीय जनता पार्टी को इतनी बढ़त स़िर्फ और स़िर्फ इसलिए मिली, क्योंकि कांग्रेस अपने नेता राहुल गांधी के ज़रिये तय ही नहीं कर पाई कि उसे नरेंद्र मोदी का मुक़ाबला किस शैली में और किस तरीके से करना है. नतीजे के तौर पर वह हड़बड़ाहट या घबराहट में लगातार अपने पैर पीछे खींचती रही. आज कांग्रेस वहां पहुंच गई है, जहां कांग्रेस उठने के लिए स़िर्फ ईश्वर से प्रार्थना कर सकती है. कांग्रेस जिस एक बात को नहीं समझ पा रही है, वह है धारणा (परसेप्शन) या आपकी लोगों के ऊपर छाप. कोई नहीं जानता कि राजीव गांधी ने बोफोर्स कांड में 64 करोड़ रुपये की घूस ली थी या नहीं ली थी. लेकिन, देश में एक छाप पड़ गई कि राजीव गांधी उस घूस कांड के पीछे थे. बिना राजीव गांधी की सहमति के वह पैसा लिया ही नहीं जा सकता और चूंकि वह पहला बड़ा पैसा था, इसलिए वह पैसा ज़रूर राजीव गांधी ने लिया होगा. इस बात ने देश के इतिहास में बनी सबसे मजबूत सरकार यानी 412 सांसदों के समर्थन से बनी सरकार की साख जनता में शून्य कर दी. साख बहुत महत्वपूर्ण भी होती है और बहुत खतरनाक भी होती है. राजीव गांधी सत्ता में आते समय 412 सदस्यों के कंधे पर बैठकर प्रधानमंत्री बने थे और देश ने माना था कि यह शख्स निहायत ईमानदार है और इसके ऊपर किसी तरह का दाग नहीं है और यह देश को आगे ले जाएगा. जब राजीव गांधी ने कहा कि हमें 21वीं शताब्दी की तैयारी करनी है, तब सारे देश ने राजीव गांधी के इस वाक्य को हाथों हाथ लिया, लेकिन सफलता उनके हाथ से फिसलती रही और बोफोर्स कांड ने उस फिसलन को तेजी से अंधी सुरंग में धकेलने वाला रास्ता बना दिया.
आज वही धारणा (परसेप्शन) कांग्रेस नेतृत्व के सामने है. कांग्रेस कार्यकर्ता और उससे ज़्यादा देश के लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि कांग्रेस आ़िखर करना क्या चाहती है, कांग्रेस खुद को किस तरीके से पुनर्संगठित करेगी? राहुल गांधी का चेहरा सौैम्य है, लेकिन उनके शारीरिक हाव-भाव (बॉडी लैंग्वेज) उनके चेहरे के बिल्कुल विपरीत हैं. अगर राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी की तरह शालीन शैली का इस्तेमाल करते, थोड़ी मुस्कराहट, थोड़ी हंसी उनके चेहरे पर रहती, तो देश शायद उन्हें ज़्यादा सुनता. लेकिन, आज देश में यह राय बन गई है, खासकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में यह राय बन गई है कि राहुल गांधी नॉन स्टार्टर हैं. वह जितना देश में घूम रहे हैं, प्रचार कितना हो, पर जनता उनके साथ खड़ी होने में हिचकेगी. श्रीमती सोनिया गांधी की तबीयत खराब है, यह सबको पता है. इस स्थिति ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को और चिंतित कर दिया है.
इस स्थिति में उस बड़े वकील ने, जो देश के ब्यूरोक्रेट्स और राजनेताओं के नज़दीक रहे हैं, मुझे एक खतरनाक बात बताई. उन्होंने कहा कि राबर्ट वाड्रा के ज़रिये भारतीय जनता पार्टी की सरकार प्रियंका गांधी तक पहुंचना चाहती है. उन्होंने कहा कि उनके पास यह निश्चित जानकारी है कि राबर्ट वाड्रा के लिए इन्क्वायरी सेटअप करके, कमीशन सेटअप करके केंद्र सरकार प्रियंका गांधी के पास इसलिए पहुंचेगी, क्योंकि राबर्ट वाड्रा ने प्रियंका गांधी को अपनी कई कंपनियों में हिस्सेदार बनाया हुआ है. जब मैंने कहा कि प्रियंका गांधी उनकी पत्नी हैं, तो वह उन्हें हिस्सेदार नहीं बनाते, तो फिर किसे बनाते? तब उस बड़े वकील ने कहा कि शायद राबर्ट वाड्रा ने इसलिए नहीं, बल्कि इसलिए कि कभी मुसीबत आएगी, तो प्रियंका गांधी नामक ढाल उनकी रक्षा करेगी. इसलिए उन्होंने प्रियंका गांधी को अपनी उन कंपनियों में लिया है, जिनकी जांच आज भाजपा सरकार कराने का मन बना चुकी है.
इसका मतलब यह है कि गांधी परिवार एक भयानक मुसीबत में है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जब रास्ता नहीं सूझता है, तो वे प्रियंका गांधी को कांग्रेस में लाने और उन्हें पार्टी की कमान सौंपने की मांग छिटपुट जगहों से उठा देते है. उन्हें लगता है कि प्रियंका गांधी की बॉडी लैंग्वेज, प्रियंका गांधी का चेहरा, प्रियंका गांधी का अपनी बात को समझाने का तरीका राहुल गांधी से ज़्यादा असरदार है. लेकिन, अगर कांग्रेस के लिए आशा की किरण बनने वाली प्रियंका गांधी के ऊपर ही भाजपा अपनी मिसाइल छोड़ रही है और अगर वह मिसाइल कहीं सटीक ढंग से लग गई, तो कांग्रेस परेशानी में पड़ सकती है. कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने सबसे कमजोर काम यह किया कि उन्होंने कांग्रेस के भीतर पांच-छह सेकेंड रैंक के और नेता नहीं बनाए. किसी तरह दिग्विजय सिंह टिमटिमाते, लड़खड़ाते कांग्रेस नेतृत्व के लिए सहारे का काम करते रहे. लेकिन, आ़िखर में उन्हें भी यह संदेश दिया गया कि आपने अगर ज़्यादा बयान दिए, तो आपको किनारे कर दिया जाएगा. वह चुप हो गए. जनार्दन द्विवेदी कांग्रेस के फैसले लेने वाले सर्कल से बाहर हो गए हैं. शायद राहुल गांधी की टीम उन लोगों को पसंद नहीं करती, जो सोनिया गांधी के नज़दीक हैं.
गांधी परिवार एक भयानक मुसीबत में है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जब रास्ता नहीं सूझता है, तो वे प्रियंका गांधी को कांग्रेस में लाने और उन्हें पार्टी की कमान सौंपने की मांग छिटपुट जगहों से उठा देते है. उन्हें लगता है कि प्रियंका गांधी की बॉडी लैंग्वेज, प्रियंका गांधी का चेहरा, प्रियंका गांधी का अपनी बात को समझाने का तरीका राहुल गांधी से ज़्यादा असरदार है.
लेकिन, राहुल गांधी उस खतरे को नहीं समझ रहे हैं, जो भारतीय जनता पार्टी की रणनीति की वजह से उनके घर के दरवाजे तक आ पहुंचा है. वह खतरा है, प्रियंका गांधी को क़ानूनी दायरे में लेकर उनकी संपूर्ण साख समाप्त कर देना. हालांकि, यह काम एक बार मोरारजी देसाई की सरकार में चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा गांधी के लिए किया था. उन्हें लगा था कि अगर इंदिरा गांधी को हम गिरफ्तार कर लेंगे, तो उनकी साख मिट्टी में मिल जाएगी और वह कभी दोबारा चुनाव नहीं लड़ पाएंगी. लेकिन विडंबना देखिए कि वह सरकार श्रीमती इंदिरा गांधी की वजह से टूटी और चौधरी चरण सिंह भी श्रीमती इंदिरा गांधी की वजह से प्रधानमंत्री बने. ऐसे प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने संसद का चेहरा नहीं देखा और प्रधानमंत्री पद से विदा हो गए तथा उसके बाद इंदिरा गांधी ही देश की प्रधानमंत्री बनीं.
मुझे नहीं पता, इस बार क्या होगा? लेेकिन उसका पहला हिस्सा, जिसकी सूचना मुझे कांग्रेस के समर्थक उस बहुत बड़े वकील ने दी है, मैंने उसे क्रास चेक किया और वेरीफाई किया. मेरे सूत्रों ने मुझे बताया कि यह खबर सौ प्रतिशत सच है और भारतीय जनता पार्टी की सरकार अगले तीन महीने में प्रियंका गांधी के दरवाजे पर जांच कमेटी भेजने की योजना बना चुकी है.
अभी भी वक्त है कि कांग्रेस पार्टी अपनी रणनीति बनाए, अपने फैसले बदले और उन लोगों को साथ ले, जिन्होंने मुसीबत के वक्त कांग्रेस को संकट से उबरने में योगदान किया है. अगर श्रीमती सोनिया गांधी ऐसा नहीं करती हैं, तो राहुल गांधी के बारे में एक धारणा देश में बन चुकी है और अगर प्रियंका गांधी के ऊपर भी हमला हो गया, तो यह मानना चाहिए कि गांधी परिवार की साख समाप्त करने में कांग्रेस के समापन का रास्ता खुल जाएगा. क्या इस बात को कोई जाकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को बताएगा या उन्हें भारतीय जनता पार्टी की मिसाइल के निशाने पर बने रहने देगा?
अगर राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी की तरह शालीन शैली का इस्तेमाल करते, थोड़ी मुस्कराहट, थोड़ी हंसी उनके चेहरे पर रहती, तो देश शायद उन्हें ज़्यादा सुनता. लेकिन, आज देश में यह राय बन गई है, खासकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में यह राय बन गई है कि राहुल गांधी नॉन स्टार्टर हैं. वह जितना देश में घूम रहे हैं, प्रचार कितना हो, पर जनता उनके साथ खड़ी होने में हिचकेगी. श्रीमती सोनिया गांधी की तबीयत खराब है, यह सबको पता है. इस स्थिति ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को और चिंतित कर दिया है.